आतंकवादी समूह हमास ने 7 अक्टूबर 2023 को इज़रायल पर अब तक के सबसे भीषण हमले को अंज़ाम दिया. हमास के आतंकियों ने दक्षिणी इज़रायल और उसके आसपास के कई इलाक़ों में बुलडोज़रों, हैंग ग्लाइडर्स, मोटरसाइकिलों का इस्तेमाल करते हुए सैनिकों और नागरिकों को निशाना बनाया. हमास के इस हमले में 1,200 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जबकि बड़ी संख्या में लोग ज़ख्मी हो गए. इतना ही नहीं, हमास ने दुस्साहसिक क़दम उठाते हुए 200 से अधिक लोगों को बंधक भी बना लिया. ज़ाहिर है कि इससे इज़रायली सेना की मुश्किलें बहुत अधिक बढ़ गईं हैं. हमास के इस हमले का जवाब देते हुए इज़रायल डिफेंस फोर्स (IDF) ने गाज़ा पट्टी में हमास के तमाम ठिकानों पर ज़बरदस्त बमबारी की और हमास के कब्ज़े से अपने नागरिकों को छुड़ाने के लिए सैन्य अभियान शुरू किया. यह भी बताया जा रहा है कि IDF हमास का समूल नाश करने के लिए ज़मीनी हमले की भी तैयारी कर रहा है.
कई रणनीतिक विश्लेषकों ने हमास आंतकियों द्वारा इज़रायल पर किए गए इस अचानक हमले की तुलना वर्ष 1973 के योम किप्पुर युद्ध से की है. उस वक़्त मिस्र और सीरिया की अगुवाई में अरब देशों ने संयुक्त रूप से योम किप्पुर के पवित्र दिन इज़रायल पर अचानक आक्रमण कर दिया था.
कई रणनीतिक विश्लेषकों ने हमास आंतकियों द्वारा इज़रायल पर किए गए इस अचानक हमले की तुलना वर्ष 1973 के योम किप्पुर युद्ध से की है. उस वक़्त मिस्र और सीरिया की अगुवाई में अरब देशों ने संयुक्त रूप से योम किप्पुर के पवित्र दिन इज़रायल पर अचानक आक्रमण कर दिया था. इज़रायल की आंतरिक इंटेलीजेंस एजेंसी शिन बेट ने इस चूक को मानते हुए कहा है कि उसके पास हमास के संभावित हमले से संबंधित कोई जानकारी नहीं थी, इसलिए उसने कोई अलर्ट जारी नहीं किया, जबकि मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि ख़ुफ़िया एजेंसी के पास इस हमले के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध थी. इस तरह की चर्चाओं की वजह से ही कुछ विश्लेषक कर रहे हैं कि हमास का हमला पूरी तरह से इज़रायल की इंटेलीजेंस एवं ऑपरेशनल नाक़ामी है. विश्लेषकों के मुताबिक़ हमले को लेकर न केवल ख़ुफ़िया एजेंसियां अलर्ट जारी करने में विफल साबित हुई हैं, बल्कि इज़रायल डिफेंस फोर्स भी तत्काल जवाब देने में नाक़ाम साबित हुई है.
टेक्नोलॉजी को अपनी चालाकी से हरा देना?
इज़रायल डिफेंस फोर्स ने पिछले कुछ दशकों में अपनी क्षमताओं के डिजटलीकरण एवं अपनी ताक़त को तकनीक़ी तौर पर अपग्रेड करने के लिए अरबों डॉलर का निवेश किया है. इज़रायल ने अपनी हथियार प्रणालियों में व्यापक स्तर पर सेंसर, कैमरे, ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल किया है और ऐसा करके इज़रायल ने पूरे रीजन में खुद को एक अत्याधुनिक और माडर्न टेक्नोलॉजी से लैस सैन्य ताक़त बनाने की कोशिश की है. लेकिन जिस प्रकार से 7 अक्टूबर को इज़रायल पर हमास द्वारा ज़बरदस्त हमला किया गया, उसने यह साबित कर दिया है कि उसकी तकनीक़ी क्षमताओं की भी सीमाएं हैं. हमास द्वारा हमले के दौरान कुछ ऐसे तरीक़ों का उपयोग किया गया, जिन्होंने IDF को भी हैरत में डाल दिया. हमास ने इतने भयानक हमले को अंज़ाम देने के लिए गज़ान बॉर्डर पोस्ट्स पर कब्ज़ा किया, इज़रायल के एयर डिफेंस को भेद दिया और बहु-प्रचारित इज़रायली एयर डिफेंस सिस्टम को तहस-नहस कर दिया. इसके अलावा, हमास ने दुष्प्रचार की रणनीति का भी लाभ उठाया.
ज़ाहिर है कि जहां एक तरफ इज़रायल ने अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए हाईटेक तकनीक़ों का इस्तेमाल किया, वहीं हमास ने उसके जवाब में साधारण सी तकनीक़ों का सहारा लिया और इज़रायल के सुरक्षा कवच को तार-तार कर दिया.
देखा जाए तो जिस व्यापक स्तर पर हमास ने एकजुटता एवं तीव्रता के साथ यह आक्रमण किया है, उसने स्पष्ट कर दिया है कि IDF ऐसे हमलों को रोकने के लिए कतई तैयारी नहीं था. इज़रायल के नाहल ओज़ और रीम मिलिट्री बेस, साथ ही नोवा म्यूज़िक फेस्टिवल और केफ़र अज़ा किबुत्ज़(kibbutz), जो कि पारंपरिक रूप से खेती-बाड़ी करने वाला एक समुदाय है, पर हमास के ताबड़तोड़ हमले के बाद, शुरुआती कुछ घंटों में IDF हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. ज़ाहिर है कि जहां एक तरफ इज़रायल ने अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए हाईटेक तकनीक़ों का इस्तेमाल किया, वहीं हमास ने उसके जवाब में साधारण सी तकनीक़ों का सहारा लिया और इज़रायल के सुरक्षा कवच को तार-तार कर दिया.
इज़रायल ने गाज़ा से सटी अपनी सीमा पर ‘स्मार्ट बाड़’ (smart fence) लगाई है, जिसमें ज़मीन के नीचे सेंसर से लैस एक दीवार है, साथ ही ज़मीन से ऊपर सुरक्षा कैमरों और ड्रोन से लैस छह मीटर ऊंची मज़बूत बाड़ है. इसके अलावा थोड़ी-थोड़ी दूर पर रिमोट से नियंत्रित होने वाले मशीनगन टॉवर भी बने हुए हैं. बेहद सुरक्षित यह दीवार 60 किलोमीटर लंबी गाजा सीमा पर वर्ष 2021 में बनाई गई थी और इसके निर्माण में 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर ख़र्च हुए थे. इसके अलावा, इज़रायल ने समुद्र के रास्ते घुसपैठ को रोकने के लिए भी समुचित इंतज़ाम किए हैं. इतना ही नहीं कैमरों और सेंसरों की मदद से सीमा पर लगातार नज़र रखने के साथ ही सीमा से सटे इलाक़ों में IDF जवान भी गश्त करते हैं. इज़रायल द्वारा अपने इन सुरक्षा इंतज़ामों को “लोहे की दीवार” के रूप में खूब प्रचारित किया गया था और उसका दावा था कि यह अभेद है और गाज़ा पट्टी की ओर से आतंकवादियों की घुसपैठ रोकने में सक्षम है.
हमास ने निजी संचार चैनलों के माध्यम से जमकर झूठे संदेशों को फैलाया कि अब इज़रायल पर हमला करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है. इससे लगता है कि हमास को पता था कि उस पर इज़रायली इंटेलीजेंस एजेंसियों की पैनी नज़र है.
हमास ने जब इज़रायल पर हमला बोला तो सबसे पहले उनके निशाने पर इज़रायली सीमा पर लगाई गई यही ‘सुरक्षित बाड़’ थी. इज़रायल में दाखिल होने के लिए हमास ने सबसे पहले इसी अभेद बाड़ पर हमला किया और जगह-जगह से इसे तोड़ दिया. आतंकियों को ऐसा करने से रोकने के लिए वहां कोई नहीं था. गाजा पट्टी से सटी इज़रायली सीमा पर जहां सुरक्षा के इंतज़ाम कम थे, वहां बाड़ को तोड़ने के लिए हमास के आतंकियों ने बुलडोज़र का उपयोग किया. इसके साथ ही दूसरी जगहों से इज़रायल में घुसने के लिए नावों और पैराग्लाइडर का इस्तेमाल किया. इसके अलावा, आतंकवादियों ने इज़रायल के सीमा से सटे निगारानी टावरों और संचार से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाने के लिए ड्रोन ने बम बरसाए. यह सब इतनी ज़ल्दी किया गया कि इज़रायल की सीमा पर उसे सारे सुरक्षा इंतज़ाम धरे के धरे रह गए और एक हिसाब से सीमा सुरक्षा विहीन हो गई. IDF के मुताबिक़ हमास के आतंकियों ने 29 स्थानों पर बाड़ को नुक़सान पहुंचाया.
हमास के आतंकियों ने सिर्फ़ सीमा पर लगी बाड़ को ही निशाना नहीं बनाया, बल्कि इज़रायल के आयरन डोम मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भी निशाना बनाया. दावा किया जाता है कि इसी डिफेंस सिस्टम की वजह से हमास और इस्लामिक जिहाद द्वारा किए जाने वाले रॉकेट हमलों से इज़रायली हवाई क्षेत्र अभेद है. पूर्व में हुए रॉकेट हमलो में इस आयरन डोम मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने बेहतरीन काम किया था, हालांकि, तब बहुत ही कम रॉकेट हमले हुआ करते थे. इस हमले में हमास के आतंकियों ने कुछ ही मिनटों के भीतर 3,000 से अधिक रॉकेट (हमास 5,000 रॉकेट का दावा करता है) दागे और एक हिसाब से आयरन डोम सिस्टम को नाक़ाम कर दिया. हमास द्वारा कुछ राकेट यरूशलम की ओर भी चलाए गए थे. इज़रायल द्वारा तैनात की गईं 10 आयरन डोम बैटरियों के लिए इतनी बड़ी तादाद में आसमान में दागे जाने वाले रॉकेटों को रोकना असंभव था, जिसकी वजह से सैकड़ों रॉकेट इज़रायली हवाई क्षेत्र को भेदते हुए यहां-वहां गिरने लगे. देखा जाए तो यहां भी हमास ने अपनी सस्ती टेक्नोलॉजी और रॉकेटों से इज़रायल की हाईटेक तकनीक़ को मात दे दी. इस प्रकार से विश्व के सर्वोत्तम एयर डिफेंस सिस्टम की असलियत सामने आ गई.
इतना ही नहीं, जिस प्रकार से हमास ने गाजा पट्टी में थोड़े से वक़्त में बिना किसी को भनक लगे हज़ारों की संख्या में रॉकेट जमा कर लिए, वो कहीं न कहीं इज़रायली ख़ुफ़िया एजेंसी की नाक़ामी दिखाता है. जबकि ऐसा माना जाता है गाजा पट्टी इलाक़े में इज़रायली इंटेलीजेंस एजेंसियों के जासूस चप्पे-चप्पे पर मौज़ूद हैं.
साइबरस्पेस, चालकी और धोखा
ताज़ा हमले में हमास की और से भले ही सस्ती और चलताऊ तकनीक़ों का इस्तेमाल किया गया हो, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि उसने पिछले दशक में अपनी साइबर क्षमताओं को उल्लेखनीय रूप से मज़बूत किया है. दुनिया के दूसरे हिंसक संगठन की तरह ही हमास के लिए भी इज़रायल के विरुद्ध किया गया दुष्प्रचार, गलत सूचनाओं का प्रसार और साइबर हमले कारगर साबित हुए हैं. देखा जाए तो इज़रायल के पास बेहद प्रभावी और आक्रामक साइबर क्षमताएं मौज़ूद है, इसके बावज़ूद हमास ने कई बार उसके साइबरस्पेस को सफलतापूर्वक हैक किया है. हमास कई बार तो साइबर जासूसी और जानकारी जुटाने के लिए मैलवेयर का भी इस्तेमाल करता है. IDF ने वर्ष 2019 में साइबर अटैक से बचाव के लिए गाजा पट्टी स्थित हमास के टेक्नोलॉजी डिवीजन पर बमबारी भी की थी. वर्तमान हमले के दौरान हमास का समर्थन वाले हैकिंग ग्रुप्स ने दर्ज़नों साइबर हमले किए और सरकारी व निजी वेबसाइटों को निशाना बनाया, जिससे कुछ वक़्त के लिए इन वेबसाइटों के संचालन और कामकाज पर असर पड़ा.
हमास ने इन्फॉर्मेशन स्पेस यानी सूचना के क्षेत्र में भी यह सब किया और बेहद चालाकी से कार्रवाई करते हुए इज़रायल को पीछे छोड़ दिया. उल्लेखनीय है कि हमास द्वारा पिछले कुछ वर्षों के दौरान इज़रायल की सरकार को यह समझाने की कोशिश की गई है कि वो गाजा के नागरिकों के कल्याण और उनकी रोज़ी-रोटी के लिए अत्यधिक चिंतित है, साथ ही उसका IDF से टकराव का कोई इरादा नहीं है. इतना ही नहीं हमास को इसकी अच्छे से जानकारी थी कि इज़रायल के ख़ुफ़िया एजेंटों ने उसके संगठन में घुसपैठ कर ली है, ऐसे में उसने बड़ी चालाकी से गलत सूचनाएं फैलाकर झूठ और धोखे का अभियान चलाया. इस हमले से पहले कई महीनों तक हमास ने हर तरफ यही जताने की कोशिश की कि उसका इज़रायली सुरक्षा बलों से टकराने की कोई मंशा नहीं है. उदाहरण के तौर पर जब मई 2023 की शुरुआत में IDF का फिलिस्तीन के एक दूसरे आतंकवादी संगठन इल्सामिक जिहाद के साथ टकराव हुआ था, तब हमास ने अपनी ओर से IDF के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं किया. इतना ही नहीं हमास ने निजी संचार चैनलों के माध्यम से जमकर झूठे संदेशों को फैलाया कि अब इज़रायल पर हमला करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है. इससे लगता है कि हमास को पता था कि उस पर इज़रायली इंटेलीजेंस एजेंसियों की पैनी नज़र है.
हमास के लिए उसका चालाकी और झूठ से भरा यह अभियान फायदेमंद साबित हुआ, क्योंकि ऐसा लगता है कि इन बातों से इज़रायली सरकार और सेना ने यह अनुमान और निष्कर्ष निकाला कि हमास की अब उनसे कोई दुश्मनी नहीं है. इज़रायल की सरकार और उसकी इंटेलीजेंस हमास को लेकर अपने इस निष्कर्ष के प्रति इतनी आश्वस्त थी कि जब हमले के कुछ दिन पहले उन्हें गाजा पट्टी में हमास की बढ़ती गतिविधियों के बारे ख़ुफ़िया जानकारी मिली, तो उन्होंने न केवल उसकी अनदेखी कर दी, बल्कि IDF को हाई अलर्ट पर नहीं रखने का भी निर्णय लिया.
इज़रायल पर हमले का व्यापक संदर्भ
जब इतनी बड़ी घटना घट चुकी है और व्यापक स्तर पर नुक़सान भी हो चुका है, ऐसे में जब इसके पीछे के कारणों की जांच-पड़ताल की जा रही है, तो साफ़ नज़र आ रहा है कि इज़रायल की सरकार और सेना ने कई मोर्चों पर ग़लती की है. जैसे कि इज़रायल ने हमास के इरादों और क्षमताओं का आंकलन करने में ग़लती की, अपनी टेक्नोलॉजी पर अत्यधिक भरोसा करने और बहुत अधिक निर्भर होने की गलती की, साथ ही आतंकवादी हमले के बाद जवाबी कार्रवाई में देरी करने की ग़लती की.
यह हमला इज़रायली इंटेलीजेंस की लापरवाही और नाक़ामी को भी प्रकट करता है. इज़रायली ख़ुफ़िया एजेंसियों को इस बात की जानकारी थी कि गाजा पट्टी क्षेत्र में हमास की गतिविधियां बढ़ रही है, इसके बावज़ूद उसके आला अधिकारियों इसे नज़रंदाज़ किया. उदाहरण के तौर पर हमास की तरफ से पैराग्लाइडरों का प्रशिक्षण कई वर्षों पहले शुरू किया गया था, इसी प्रकार से ख़तरनाक हमले का अभ्यास भी वर्षों से किया जा रहा था, लेकिन इज़रायली सेना ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की, क्योंकि पिछले दो वर्षों के दौरान IDF और हमास के बीच कोई बड़ा टकराव नहीं हुआ था. इसके अतिरिक्त, पूर्व में जिस प्रकार से हमास द्वारा हमलों को अंज़ाम दिया गया था, उससे इस बात का कतई अंदाज़ा नहीं था कि हमास इतने व्यापक पैमाने पर और संगठित होकर हमला करने में सक्षम है. इसके साथ ही पिछले दिनों हुए कई घटनाक्रमों, जैसे कि इज़रायल में प्रस्तावित न्यायिक सुधारों के बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का बढ़ता विरोध और देश के बिगड़े घरेलू हालात, ईरान की ओर से बढ़ते ख़तरे एवं वेस्ट बैंक में तनाव आदि ने भी इज़रायल की सरकार और सेना को हमास के बारे में सोचने का मौक़ा ही नहीं दिया.
इज़रायल पर जिस प्रकार से हमास का हमला हुआ है, वो दूसरे देशों की इंटेलीजेंस एजेंसियों के लिए भी एक सबक है. हमास के हमले ने साबित किया है कि अगर किसी देश को अपनी सेना एवं तकनीक़ पर बहुत अधिक भरोसा है और इस वजह से वो दुश्मन की गतिविधियों के प्रति लापरवाह है, तो यह उसके लिए घातक सिद्ध हो सकता है.
इन सभी वजहों के चलते इज़रायल को इंटेलीजेंस एवं सुरक्षा के मोर्चे पर सबसा बड़ा आघात झेलना पड़ा है. वर्तमान में इज़रायली सेना का फोकस हमास से लड़ाई और गाजा पट्टी में संभावित ज़मीनी अभियानों पर है. हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि जब एक बार यह लड़ाई समाप्त हो जाएगी, तो इज़रायल द्वारा इसकी जांच ज़रूर कराई जाएगी कि आख़िर ऐसी कौन सी ग़लती हुई, जिसकी वजह से उसे इतने बड़े हमले का सामना करना पड़ा. साथ ही इसकी भी जांच की जाएगी कि कहीं टेक्नोलॉजी पर अत्यधिक निर्भरता तो इस हमले की वजह नहीं बनी.
इज़रायल पर जिस प्रकार से हमास का हमला हुआ है, वो दूसरे देशों की इंटेलीजेंस एजेंसियों के लिए भी एक सबक है. हमास के हमले ने साबित किया है कि अगर किसी देश को अपनी सेना एवं तकनीक़ पर बहुत अधिक भरोसा है और इस वजह से वो दुश्मन की गतिविधियों के प्रति लापरवाह है, तो यह उसके लिए घातक सिद्ध हो सकता है. इज़रायल पर हुआ हमला ख़ुफ़िया एजेंसियों के लिए ख़ास तौर एक बहुत बड़ी चेतावनी है. यह बताता है कि विरोधी की छोटी से छोटी गतिविधि को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए, क्यों कि ऐसा करने पर दुश्मन की वास्तविक मंशा और क्षमता का पता नहीं चल पाएगा, जो कि आगे जाकर नुक़सानदायक सिद्ध हो सकता है. इसलिए, आज की बदली हुई परिस्थितियों में, निरंतर बदलते ख़तरों एवं दुश्मन की चालबाज़ियों का मुक़ाबला करने के लिए नई-नई ख़ुफ़िया गतिविधियों को अमल में लाना बेहद ज़रूरी है.
समीर पाटिल ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.
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