Author : Oommen C. Kurian

Published on Nov 30, 2023 Updated 0 Hours ago

अंतरराष्ट्रीय सहभागिता, तकनीकी अनुकूलनशीलता और परंपरागत अभ्यासों के साथ एकीकरण पर मसौदा विधेयक के ध्यान से भारत में फार्मेसी अभ्यास की गुणवत्ता में बढ़ोतरी हो सकती है.

नियमन से स्वास्थ्य देखभाल का कायाकल्प: भारत के फार्मेसी विधेयक के संभावित प्रभाव

मसौदा राष्ट्रीय फार्मेसी आयोग विधेयक 2023 लंबे समय से चले आ रहे फार्मेसी अधिनियम, 1948 की जगह लेने को तैयार है. ये फार्मेसी क्षेत्र के नियमन को लेकर भारत के दृष्टिकोण में बड़े बदलाव का सूचक है. विधेयक फार्मेसी क्षेत्र के भीतर शैक्षणिक और पेशेवर मानकों के आधुनिकीकरण में सुधारों की एक श्रृंखला प्रस्तुत करता है, साथ ही सेवाओं को सुचारू बनाने के लिए तकनीकी उन्नतियों को भी एकीकृत करता है. ज़्यादा समावेशी विधायी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के प्रयास के रूप में सरकार ने स्टेकहोल्डर्स और आम जनता से सुझाव आमंत्रित किए हैं. ये पहल ना केवल सहभागी नीति निर्माण की ओर प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है बल्कि फार्मेसी की प्रभावी रूपरेखा को आकार देने के लिए विविध अंतर्दृष्टि की ज़रूरत को भी स्वीकार करती है. इस विधेयक के अधिनियम बनने और लागू हो जाने से भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी सेवाओं की गुणवत्ता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होने का अनुमान है. इससे ये सुनिश्चित होगा कि फार्मेसी क्षेत्र समसामयिक ज़रूरतों और अंतरराष्ट्रीय मानकों, दोनों के साथ तालमेल बिठाए.

 इस विधेयक के अधिनियम बनने और लागू हो जाने से भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी सेवाओं की गुणवत्ता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होने का अनुमान है.

विधेयक का फोकस

मसौदा राष्ट्रीय फार्मेसी आयोग विधेयक 2023 भारत के फार्मेसी क्षेत्र में अद्यतन (अपडेटेड) नियमनों की तात्कालिक आवश्यकता का समाधान करता है, जो पुराने पड़ चुके 1948 के फार्मेसी अधिनियम की तुलना में एक अहम बदलाव का सूचक है. संक्रामक और ग़ैर-संचारी रोगों के दोहरे बोझ से जूझते देश में फार्मेसी क्षेत्र, स्वास्थ्य सेवा के वितरण में अहम भूमिका निभाता है, जिससे ये नया विधेयक अहम हो जाता है. मसौदा विधेयक में नियामक ढांचे को उन्नत करने पर ज़ोर दिया गया है. इस तरह भारत के कई हिस्सों में बिना ज़रूरी योग्यता के काम कर रहे फार्मेसिस्टों की वास्तविकता को पहचाना गया है, जो मरीज़ की संरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है. अध्ययनों से पता चला है कि भारत की अनेक फार्मेसियों में (ख़ासतौर से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में) योग्य फार्मेसिस्टों के अभाव के चलते दवाओं के परामर्श से जुड़ी अपर्याप्त सेवा और दवाओं के वितरण में ग़लतियां होती हैं, जिससे रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) जैसे मसले बढ़ जाते हैं. फार्मेसी के अभ्यास और निगरानी के लिए और सख़्त मानदंड स्थापित करके, ये विधेयक देखभाल के मानको को ऊपर उठाने और स्वास्थ्य देखभाल के सुरक्षित अभ्यासों को सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखता है.

 ये वैश्विक एकीकरण भारतीय फार्मेसी क्षेत्र के लिए अहम है, जो ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ाकर भारत में फार्मास्यूटिकल शिक्षा और अभ्यास की गुणवत्ता के स्तर को ऊंचा उठाएगी.

फार्मेसी शिक्षा और अभ्यास के मानदंडों को ऊंचा उठाने पर मसौदा बिल का फोकस, उस देश के लिए आवश्यक है जहां अक्सर फार्मासिस्ट ही स्वास्थ्य देखभाल के पहले प्रदाता (ख़ासतौर से ग्रामीण और पिछड़े इलाक़ों में) के तौर पर काम करते हैं. फार्मासिस्टों के लिए कठोर शैक्षणिक योग्यताओं और पेशेवर तौर पर निरंतर विकास को अनिवार्य बनाकर विधेयक ये सुनिश्चित करना चाहता है कि चिकित्सा प्रक्रिया से जुड़े ये कर्मी मरीज़ों का प्रभावी रूप से मार्गदर्शन करने के लिए बेहतर रूप से तैयार हों. भारत में ख़ुद ही दवाइयां लेने और स्वयं अपना इलाज करने के व्यापक प्रचलन को देखते हुए ये ख़ासतौर से ज़रूरी हो जाता है. हालांकि ऊंचे मानकों से जुड़े इस प्रयास को फार्मेसी शिक्षा तक समान पहुंच के साथ संतुलित किया जाना निहायत ज़रूरी है. शोध से पता चलता है कि आर्थिक और सामाजिक बाधाएं भारत में अक्सर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच को बाधित करती हैं. लिहाज़ा, समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर तबक़ों से संभावित फार्मासिस्टों को बाहर किए बिना शैक्षणिक मानकों को ऊंचा उठाने में ही चुनौती छिपी है.

डिजिटल कायापलट और अंतरराष्ट्रीय पहचान की संभावना

भारत की डिजिटल उन्नतियों के साथ तालमेल बिठाते हुए फार्मासिस्टों के लिए डिजिटल रजिस्टरों पर विधेयक का ज़ोर, स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र के आधुनिकीकरण की दिशा में एक सराहनीय क़दम है. ऐसा डिजिटल बदलाव फार्मेसी सेवाओं की पारदर्शिता और दक्षता को बढ़ा सकता है, जो भारत जैसे देश में एक आवश्यक पहलू है. दरअसल अपनी विशाल भौगोलिक और जनसांख्यिकीय विविधता के चलते भारत स्वास्थ्य देखभाल के वितरण में भारी चुनौतियों का सामना करता है. डिजिटलीकरण इन अंतरालों को पाटने में मदद कर सकता है, साथ ही गुणवत्तापूर्ण फार्मेसी सेवाओं तक ज़्यादा समान पहुंच भी उपलब्ध करा सकता है. हालांकि देश में मौजूद डिजिटल विभाजन पर विचार करना और ये सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि ऐसी तकनीकी उन्नतियां दूरदराज़ के इलाक़ों और ग्रामीण क्षेत्रों समेत सबकी पहुंच में हों.

राष्ट्रीय फार्मेसी आयोग विधेयक 2023 का मसौदा फार्मेसी योग्यताओं और अंतरराष्ट्रीय सहभागिता में अहम प्रगतियों का ब्योरा देता है. मसौदा विधेयक की धारा 28 से 32 ख़ासतौर से भारत से बाहर के संस्थानों से फार्मेसी योग्यता की मान्यता पर ज़ोर देती है और देशों के बीच पारस्परिक पहचान की सुविधा उपलब्ध कराती है. ये वैश्विक एकीकरण भारतीय फार्मेसी क्षेत्र के लिए अहम है, जो ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ाकर भारत में फार्मास्यूटिकल शिक्षा और अभ्यास की गुणवत्ता के स्तर को ऊंचा उठाएगी. इतना ही नहीं, ये भारतीय फार्मेसी पेशेवरों के लिए अंतरराष्ट्रीय संपर्क हासिल करने और वहां से बेशक़ीमती अंतर्दृष्टि और अभ्यास लाने के दरवाज़े खोलती है. ये क़दम पहले से ज़्यादा अंतर-संपर्क वाली स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के वैश्विक रुझान के अनुरूप है. इससे भारतीय फार्मेसी जगत के पेशेवरों की योग्यता में भारी बढ़ोतरी होगी, नतीजतन भारत में स्वास्थ्य देखभाल के समग्र परिदृश्य को लाभ होगा.    

अमल करना और प्रभावशील बनाना: गुणवत्ता और पहुंच में संतुलन बनाना

बिल में क्रियान्वयन सुनिश्चित करने और प्रभावशील बनाने को अहम चुनौतियों के तौर पर रेखांकित किया गया है, ख़ासतौर से भारत में स्वास्थ्य देखभाल के परिदृश्य की विशालता और विविधता को देखते हुए ये बात कही गई है. ये विधेयक तमाम राज्यों में मानकों को प्रभावशील बनाने के लिए एक समग्र रूपरेखा प्रस्तुत करता है, लेकिन असली चुनौती ज़मीन पर इन मानदंडों के प्रभावी क्रियान्वयन में छिपी है. भारत के अलग-अलग राज्यों में स्वास्थ्य देखभाल के संसाधनों और बुनियादी ढांचों में विविधता (जैसा तमाम अध्ययनों से प्रमाणित हुआ है), क्रियान्वयन को लेकर पहले से तैयार दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करती है. इससे ये सुनिश्चित होगा कि विधेयक के प्रावधान एकरूपता के साथ लागू हों और उन्हें प्रभावशील बनाया जाए. विधेयक की सफलता केंद्र और राज्य के अधिकारियों के बीच की सहभागिता और अनुपालन सुनिश्चित करने और उस पर निगरानी रखने के लिए ठोस तंत्रों के विकास पर निर्भर करेगी.

 भले ही ये विधेयक भारत में स्वास्थ्य देखभाल के नए रास्ते साफ़ करता है, लेकिन साथ ही साथ ये ठोस नियामक ढांचों के गठन का भी आह्वान करता है.

ये विधेयक फार्मेसी शिक्षा और अभ्यास के मानकों को ऊंचा उठाने की ज़रूरत का समाधान करती है. हालांकि इन उन्नत मानकों का पहुंच के साथ संतुलन क़ायम करना अनिवार्य हो जाता है, ख़ासतौर से भारत जैसे देश में जहां आर्थिक विषमताएं शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में भारी-भरकम बाधाएं प्रस्तुत कर सकती हैं. निश्चित रूप से विधेयक को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि ऊंची गुणवत्ता के लिए की जा रही क़वायद, ग़रीब और वंचित पृष्ठभूमि के लोगों की फार्मासिस्ट बनने की आकांक्षाओं को हाशिए पर ना ला दे या जनसंख्या के कुछ तबक़ों के लिए फार्मेसी सेवा को दुर्लभ ना बना दे. स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा में समानता क़ायम रखने के लिए ये संतुलन बेहद अहम है. इससे ये सुनिश्चित होगा कि फार्मेसी अभ्यास में प्रगति मौजूदा विषमताओं को और बढ़ाए बिना स्वास्थ्य देखभाल में समग्र सुधार में योगदान दे पाए.

परंपरागत और आधुनिक अभ्यासों को एकीकृत करने की चुनौती

भारत में परंपरागत औषधि की समृद्ध धरोहर है, और मसौदा विधेयक इन अभ्यासों को आधुनिक फार्मेसी के साथ एकीकृत करने के लिए ढांचागत रूपरेखा तैयार करने का लक्ष्य रखता है. भारत जैसे देश में, जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य देखभाल के लिए परंपरागत औषधि पर निर्भर करता है, वहां ये पहल काफ़ी अहमियत रखती है. ऐसे युगों पुराने अभ्यासों को फार्मेसी पाठ्यक्रम में शामिल करने से स्वास्थ्य देखभाल के और अधिक समग्रता भरे दृष्टिकोण को अपनाने का मौक़ा मिलता है. ऐसी समावेशी रणनीति परंपरागत और आधुनिक चिकित्सा अभ्यासों की मौजूदा खाई को संभावित रूप से पाट सकती है, जिससे फार्मेसी सेवाओं के समग्र दायरे और गुणवत्ता में बढ़ोतरी होगी. ये एकीकरण समकालीन वैज्ञानिक तौर-तरीक़ों को ऐतिहासिक ज्ञान के साथ जोड़कर भारतीय जनसंख्या की स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी विविध ज़रूरतों को पूरा करने की संभावना प्रदर्शित करता है.

हालांकि ये एकीकरण कई उल्लेखनीय चुनौतियों के साथ आता है, ख़ासतौर से नियमनों की परिधि से बाहर परंपरागत दवाओं के साथ कई तरह के जोख़िम जुड़े होते हैं. भले ही परंपरागत उपचार फ़ायदेमंद हो सकते हैं, लेकिन उपयुक्त रूप से नियमन और एकीकरण ना किए जाने से ये स्वास्थ्य से जुड़े जोख़िम भी पेश कर सकते हैं. अनुपयुक्त तरीक़े से उपयोग किए जाने पर जड़ी-बूटी के कुछ यौगिकों के संभावित विषैले प्रभावों के साथ-साथ हर्बल और परंपरागत औषधियों के बीच पारस्परिक संपर्कों को लेकर चिंताएं रही हैं. ऐसे घालमेल के प्रतिकूल प्रभाव सामने आ सकते हैं. ये मसले आधुनिक फार्मेसी अभ्यास के साथ परंपरागत औषधि के एकीकरण के लिए कठोर परीक्षण, मानकीकरण और गुणवत्ता नियंत्रण को रेखांकित करते हैं. इन आवश्यक उपायों के बिना, मरीज़ की सुरक्षा और इलाज की प्रभावशीलता संकट में पड़ सकती है, जिससे इस एकीकृत दृष्टिकोण के उद्देश्य कमज़ोर पड़ जाएंगे. लिहाज़ा, भले ही ये विधेयक भारत में स्वास्थ्य देखभाल के नए रास्ते साफ़ करता है, लेकिन साथ ही साथ ये ठोस नियामक ढांचों के गठन का भी आह्वान करता है. इससे परंपरागत औषधि का आधुनिक चिकित्सा अभ्यासों के साथ सुरक्षित और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा.  

तकनीकी परिवर्तनों के हिसाब से ढलना और फार्मेसी कार्यबल को मज़बूत करना

स्वास्थ्य देखभाल में तेज़ रफ़्तार तकनीकी उन्नतियों की प्रतिक्रिया में ये विधेयक भावी नवाचारों को समायोजित करने के लिए लचीली रूपरेखा उपलब्ध कराता है. ये अनुकूलनशीलता एक ऐसे देश में बेहद अहम है जहां डिजिटल स्वास्थ्य पहलें उभार पर हैं. डिजिटलीकरण के प्रावधान, जैसे डिजिटल फार्मेसी रजिस्टर तैयार करना और टेलीफार्मेसी जैसे उभरते रुझानों के हिसाब से ढलना, इस विधेयक के दूरदर्शितापूर्ण रुख़ का संकेत करता है. इन तकनीकी उन्नतियों में फार्मेसी सेवाओं तक पहुंच में क्रांति (ख़ासतौर से दूरदराज़ के और पिछड़े इलाक़ों में) लाने की संभावना है, और ये भारत में फार्मेसी सेवाओं की समग्र कार्यकुशलता और पहुंच को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं.

विधेयक का सफल क्रियान्वयन अच्छी तरह से प्रशिक्षित कार्यबल की उपलब्धता पर टिका है. इनमें फार्मासिस्ट, शिक्षक और प्रशिक्षक, नियामक और प्रशासनिक कर्मचारी शामिल हैं. विधेयक फार्मेसी सेक्टर में क्षमता निर्माण की ज़रूरत को स्वीकार करता है. भारत में, ख़ासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े पेशेवरों की किल्लत को देखते हुए ये बात महत्वपूर्ण हो जाती है. विधेयक के प्रावधानों के प्रभावी क्रियान्वयन, और फार्मेसी शिक्षा और अभ्यास में उन्नत मानकों की देश भर में पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कुशल और पर्याप्त कर्मियों वाला फार्मेसी कार्यबल विकसित किया जाना बेहद अहम होगा.

आगे की राह: जन जागरूकता और जुड़ाव

ये विधेयक क्रियान्वयन प्रक्रिया में जन जागरूकता और जुड़ाव की अहमियत पर ज़ोर देता है. भारत में, जहां ख़ासतौर से ग्रामीण इलाक़ों में फार्मासिस्ट अक्सर स्वास्थ्य सेवा में संपर्क के पहले बिंदु के तौर पर कार्य करता है, लोगों को फार्मेसी क्षेत्र के नियमन और अभ्यास के बारे में सूचित और शिक्षित करना आवश्यक है. ग्रामीण और दूरदराज़ के इलाक़ों समेत देश भर में विविधता भरी आबादियों तक पहुंचने के लिए उनके अनुरूप संचार रणनीतियों की दरकार है. फार्मेसी क्षेत्र के परिवर्तनों की आम जनता द्वारा समझ और स्वीकृति सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी जन जुड़ाव काफ़ी महत्वपूर्ण होगा.

स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में सुधार को लेकर सामंजस्यपूर्ण रुख़ के लिए इस विधेयक के उद्देश्यों का स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भारत में चल रहे अन्य सुधारों के साथ तालमेल क़ायम करना आवश्यक है. इस तालमेल से ये सुनिश्चित होगा कि फार्मेसी क्षेत्र का कायाकल्प देश में स्वास्थ्य देखभाल की समग्र गुणवत्ता को उन्नत करने की एक व्यापक और एकीकृत क़वायद का हिस्सा बन जाए. स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता और समानता पर ध्यान को बिल में रेखांकित किया गया है. इसे भारतीय स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के व्यापक लक्ष्यों के अनुरूप बनाए जाने की आवश्यकता है, जिससे ये सुनिश्चित हो सकेगा कि फार्मेसी क्षेत्र में हो रही प्रगति भारतीय जनसंख्या के सभी खंडों के लिए स्वास्थ्य सेवा की पहुंच और गुणवत्ता सुधारने के व्यापक लक्ष्य में योगदान दे.

मसौदा राष्ट्रीय फार्मेसी आयोग विधेयक 2023 भारत में फार्मेसी क्षेत्र के कायाकल्प के लिए एक समग्र रूपरेखा प्रस्तुत करता है. हालांकि इसकी सफलता काफ़ी हद तक क्रियान्वयन की चुनौतियों का निपटारा करने, पहुंच के साथ गुणवत्ता को संतुलित करने और भारत में स्वास्थ्य देखभाल के अद्वितीय परिदृश्य के हिसाब से अनुकूलित होने पर निर्भर करेगा. मसौदा विधेयक में अंतरराष्ट्रीय सहभागिता, तकनीकी अनुकूलनशीलता और आधुनिक फार्मेसी के साथ परंपरागत अभ्यासों के एकीकरण पर ध्यान दिया गया है, जो भारत में फार्मेसी अभ्यास की गुणवत्ता और मानक को आगे बढ़ाने की दिशा में एक प्रगतिशील दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है.


ओमन सी. कुरियन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और हेल्थ इनिशिएटिव के प्रमुख हैं.

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