Published on Feb 26, 2024 Updated 3 Days ago

स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करना सरल भले ही न हो लेकिन एक आसान काम है. इसके लिए हमें घरेलू स्तर पर तैयारी एवं प्रतिक्रिया में निवेश करने और वैश्विक स्तर पर सहयोग के अपने तरीकों को बढ़ाने की आवश्यकता होगी.

स्वास्थ्य सुरक्षा: महामारी के बाद की दुनिया में एक राष्ट्रीय नीतिगत प्राथमिकता

ये लेख हमारी- रायसीना एडिट 2024 सीरीज़ का एक भाग है


 स्वास्थ्य के बारे में क्या? महामारी के बाद प्राथमिकता में बदलाव

कोविड-19 महामारी और उसका असर काफी हद तक दुनिया के ज़्यादातर देशों की सुर्खियों से गायब हो गए हैं. फिर भी इसके दुष्परिणाम अभी भी गहरे हैं. कोविड-19 महामारी के वर्षों (2020-23) में लगभग 2 करोड़ 80 लाख लोगों की मौत हो गई. ये आंकड़ा महामारी के ऐतिहासिक रुझान से ज़्यादा है.

महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को काफी झटका पहुंचाया और साथ ही ग़रीबी के ख़िलाफ़ दुनिया की लड़ाई पर भी ख़राब असर डाला. महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई और उससे उबरने की वजह से सार्वजनिक बजट पर काफी दबाव है. सबसे पिछड़े देश कर्ज़ चुकाने में सबसे ज़्यादा पैसा खर्च कर रहे हैं.

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अनगिनत संघर्षों को देखते हुए ये आश्चर्यजनक नहीं लगता कि नीतिगत प्राथमिकता में स्वास्थ्य सुरक्षा और महामारी के ख़िलाफ़ तैयारी काफी पीछे चली गई है. ये केवल ध्यान देने का विषय नहीं है बल्कि कई लंबे हिंसक संघर्षों की दुनिया में खड़ी हो रही समस्याओं के कठिन संकेत हैं. उदाहरण के लिए, 2024 में लगभग 13.1 करोड़ लोग मजबूरी में विस्थापित होंगे या देश विहीन हो जाएंगे. ये आंकड़ा 2015 की तुलना में दोगुना हो गया है.

"पूरे जीवनकाल में एक बार होने वाली घटना" के रूप में महामारी की धारणा तेज़ी से खारिज हो रही है और इसकी जगह "पीढ़ी में एक बार होने वाली घटना" ने ले ली है.

फिर भी, इस तथ्य से महामारी की आशंका कम होने या महामारी के कम गंभीर होने की संभावना नहीं है कि एक महामारी कुछ ही साल पहले आई थी. "पूरे जीवनकाल में एक बार होने वाली घटना" के रूप में महामारी की धारणा तेज़ी से खारिज हो रही है और इसकी जगह "पीढ़ी में एक बार होने वाली घटना" ने ले ली है.[1] फिर भी ख़तरे की सोच अलग-अलग हैं जिसका पता विश्व आर्थिक मंच (WEF) के एग्ज़ीक्यूटिव ओपिनियन सर्वे से चलता है. जब पूछा गया कि "अगले दो वर्षों में कौन से पांच जोखिम आपके देश के लिए सबसे बड़े हो सकते हैं?" तो सर्वे में शामिल 103 देशों में से केवल 16 ने पांच बड़े जोखिमों में संक्रामक बीमारियों से ख़तरे को शामिल किया. एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट के कुछ ही समय बाद महामारी को लेकर जोखिम की आशंका कम होना चिंताजनक है (नीचे रेखा-चित्र देखें).

स्रोत: WEF ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2024, एनेक्स C. इन्फॉर्म रिस्क रिपोर्ट 2024 से एपिडेमिक हज़ार्ड इंडेक्स और जनसंख्या के आंकड़े. विश्व बैंक आमदनी समूह. कार्यप्रणाली टिप्पणी: WEF के डेटासेट में बड़ी खामियां हैं. उदाहरण के लिए, चीन, दक्षिण अफ्रीका और रूस को शामिल नहीं किया गया है या कम-से-कम कोई डेटा जारी नहीं किया गया है. सर्वे अप्रैल और अगस्त 2023 के बीच किया गया यानी गज़ा में संघर्ष की शुरुआत नहीं हुई थी. विश्लेषण CPC एनालिटिक्स का है.

ज़्यादातर देशों में अधिकारी वर्ग के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा की जगह दूसरी प्राथमिकताओं ने ले ली है. हालांकि बुरी समस्याओं से त्रस्त दुनिया में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने, जलवायु परिवर्तन का समाधान करने और सामाजिक असमानताओं से निपटने की कोशिशों का हल स्वास्थ्य सुरक्षा के साथ मिल-जुलकर करना चाहिए. कदम नहीं उठाना भयानक साबित होगा.

अगली महामारी के ख़िलाफ़ बचाव की शुरुआत घर से

अलग-अलग देशों के नीति निर्माताओं के लिए कोविड-19 महामारी से सीखे गए सबक पर ध्यान देना अनिवार्य है. इस लेख में हम "घरेलू स्तर पर" निवेश के पांच प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहते हैं.

पहला, दुनिया के अलग-अलग देशों को महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए सक्रिय कदम उठाने की ज़रूरत है. ये लक्ष्य या तो नई बीमारियों को उभरने से रोककर या उसके प्रसार को कम-से-कम करके हासिल किया जा सकता है. आधे से ज़्यादा ज्ञात संक्रामक बीमारियां और 75 प्रतिशत तक नई या उभरती संक्रामक बीमारियां (EID) ज़ूनोटिक (जानवरों से लोगों में फैलने वाली बीमारियां) होती हैं. शहरीकरण, ज़मीन के इस्तेमाल, जंगलों की कटाई, वैश्विक व्यापार और माइग्रेशन से ये और भी बढ़ गई है. इसके अलावा जलवायु और स्वास्थ्य की वैश्विक चुनौतियां एक-दूसरे से बहुत ज़्यादा जुड़ी हुई हैं. दुनिया भर में बढ़ता तापमान संक्रामक बीमारियों के उभार और प्रसार में बढ़ोतरी कर सकता है. महामारी से जुड़ी तैयारी के हिस्से के रूप में इन मुद्दों का समाधान करना महामारी को रोकने का एक तरीका है.

दुनिया भर में बढ़ता तापमान संक्रामक बीमारियों के उभार और प्रसार में बढ़ोतरी कर सकता है. महामारी से जुड़ी तैयारी के हिस्से के रूप में इन मुद्दों का समाधान करना महामारी को रोकने का एक तरीका है. 

दूसरा, निवेश के माध्यम से सही समय पर महामारी का पता लगाने और इसके प्रसार को रोकना चाहिए. उभरते स्वास्थ्य ख़तरों का शुरुआत में पता लगाने और इसके जवाब के लिए निगरानी की क्षमता को बढ़ाना सर्वोपरि है. तकनीक और डेटा पर आधारित दृष्टिकोण का लाभ उठाकर निगरानी की प्रणाली मज़बूत की जा सकती है और बीमारी के रुझानों की रियल-टाइम निगरानी संभव हो सकती है. समय पर हस्तक्षेप मुहैया कराने के लिए ये विशेष रूप से मानव, पशु और पर्यावरण के मेलजोल की जगह (इंटरफेस) पर आवश्यक है. कुछ देशों ने अलग-अलग सेक्टर की परियोजनाओं में निवेश शुरू कर दिया है. इस संबंध में भारत का नेशनल वन हेल्थ मिशन एक उदाहरण है और इसे पिछले दिनों महामारी के ख़िलाफ़ देश की कोशिशों में सहायता के लिए महामारी फंड से 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान हासिल करने के लिए चुना गया.

तीसरा, अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच जारी रहने के उद्देश्य से स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए निवेश को सुनिश्चित करना आवश्यक है. कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा की आधारशिला के रूप में लचीली राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली के विशिष्ट महत्व को रेखांकित किया है. लचीली स्वास्थ्य प्रणाली का निर्माण न केवल महामारी के प्रकोप के दौरान लगने वाले अप्रत्याशित झटकों को झेलने पर बल्कि अच्छी स्वास्थ्य देखभाल तक लगातार पहुंच सुनिश्चित करने पर भी ध्यान देता है.

चौथा, अलग-अलग देशों को स्वास्थ्य में असमानताओं, विशेष रूप से देश के सबसे कमज़ोर समूहों में, को कम करने के लिए निवेश की ज़रूरत है. कोविड-19 जैसे स्वास्थ्य आपातकाल सेहत से जुड़ी मौजूदा असमानताओं को बढ़ाते हैं. इससे हाशिये पर बैठे समुदायों और वंचित आबादी पर बहुत ज़्यादा असर पड़ता है. इसलिए स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक असरदार जवाब व्यवस्था से जुड़ी खामियों का समाधान किए बिना और समानता पर आधारित स्वास्थ्य परिणामों को सुनिश्चित किए बिना हासिल नहीं किया जा सकता है.

अंत में, महामारी के ख़िलाफ़ एक त्वरित प्रतिक्रिया जवाबी उपायों और डायग्नोस्टिक्स की उपलब्धता पर निर्भर करती है. एक तरफ तो इसके लिए वैक्सीन, डायग्नोस्टिक्स और थेराप्यूटिक्स (चिकित्सा विज्ञान) में रिसर्च और विकास की कोशिशों की आवश्यकता होती है. दूसरी तरफ, इसके लिए पर्याप्त उत्पादन की क्षमता की ज़रूरत पड़ती है. ज़रूरी नहीं कि अलग-अलग देशों को पूरी तरह से घरेलू उत्पादन की क्षमताओं का निर्माण और रख-रखाव करना पड़े. अफ्रीकी महाद्वीप, लैटिन अमेरिका, कैरिबियन और आसियान क्षेत्र में वैक्सीन के उत्पादन के उद्देश्य से क्षेत्रीय नेटवर्क बनाने की दिलचस्प क्षेत्रीय पहल हो रही हैं. राष्ट्रीय नीति-निर्माताओं को सुनिश्चित करना चाहिए कि वो इन अवसरों का आकलन करें और संभावित तौर पर उन उभरते इकोसिस्टम में योगदान करें.

राष्ट्रीय स्तर पर कोशिशों की वैश्विक स्तर पर पुष्टि करने की ज़रूरत है

कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था (ग्लोबल हेल्थ गवर्नेंस) को नया आकार दिया है, महामारी के बाद की दुनिया में आगे बढ़ने के लिए बहुपक्षवाद और स्वास्थ्य कूटनीति की अहम भूमिका पर ज़ोर दिया है. दुनिया भर में स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर किए गए निवेश में सामंजस्य स्थापित कर काम करने की आवश्यकता है.

वैसे तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जैसे बहुपक्षीय संस्थानों की प्रमुख तालमेल वाली भूमिका को स्वीकार किया गया है लेकिन महामारी ने भारी कमियों को भी उजागर किया है. भविष्य की स्वास्थ्य चुनौतियों से बेहतर ढंग से निपटने के लिए बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार और मज़बूती की अपील ने कई कोशिशें शुरू की: इस साल मई तक 194 देश महामारी से जुड़े एक समझौते पर अपनी बातचीत ख़त्म करना चाहते हैं. इस समझौते का लक्ष्य भविष्य में महामारी के लिए अधिक ठोस संरचना की नींव रखना है. ये प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य रेगुलेशन (IHR) के अपडेट के साथ चलती है. महामारी से जुड़ी तैयारी और प्रतिक्रिया के उद्देश्य से कम और मध्य आय वाले देशों में क्षमता का निर्माण करने के लिए 1.6 अरब अमेरिकी डॉलर की वित्तीय प्रतिबद्धता के साथ एक नया फंड तैयार किया गया है. वैसे तो यूरोपियन यूनियन, इसके सदस्य देश और अमेरिका ने इस फंड में सबसे ज़्यादा योगदान दिया है लेकिन चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका ने भी अच्छा योगदान दिया है. इटली, इंडोनेशिया, भारत और ब्राज़ील की G20 अध्यक्षता में वैश्विक स्वास्थ्य के एजेंडे को प्रमुखता मिली है. G20 साझा वित्त और स्वास्थ्य टास्क फोर्स ने स्वास्थ्य और वित्त मंत्रालयों के साथ सेहत से जुड़े निवेश पर चर्चा की तरफ ध्यान आकर्षित किया है.

इस साल मई तक 194 देश महामारी से जुड़े एक समझौते पर अपनी बातचीत ख़त्म करना चाहते हैं. इस समझौते का लक्ष्य भविष्य में महामारी के लिए अधिक ठोस संरचना की नींव रखना है. 

ये प्रयास उत्साह बढ़ाने वाले हैं. हालांकि ये भी साफ है कि महामारी से पहले के वैश्विक स्वास्थ्य के हालात की तरफ लौटना संभव नहीं है ( न ही इसकी इच्छा है). 2021 में वैक्सीन के समान रूप से वितरण को सुनिश्चित करने में नाकामी से वैश्विक स्वास्थ्य के प्रति हमारे दृष्टिकोण में बदलाव की ज़रूरत का पता चला. ये बदलाव संस्थानों के सुधार या वैश्विक स्वास्थ्य पहल के लिए पैसे के इंतज़ाम से आगे बढ़कर है. हमें सोच और बर्ताव को भी बदलना या छोड़ना होगा जैसे कि वो पुरातन धारणाएं जिनके तहत कुछ विशेष देश जानकारी और विशेषज्ञता के संरक्षक हैं और इसलिए महामारी के प्रकोप से निपटने के लिए दुनिया को सलाह देने के मामले में वो बेहतर स्थिति में हैं.

स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करना सरल भले ही न हो लेकिन एक आसान काम है. इसके लिए हमें घरेलू स्तर पर तैयारी एवं प्रतिक्रिया में निवेश करने और वैश्विक स्तर पर सहयोग के अपने तरीकों को बढ़ाने की आवश्यकता होगी. जिस साल दुनिया में मतदान करने के योग्य 49 प्रतिशत लोग चुनाव में मतदान करने जा रहे हैं, हम देखेंगे कि क्या आने वाली सरकार कोविड-19 के बाद के मौके का इस्तेमाल स्वास्थ्य को लेकर फंड बढ़ाने की मज़बूत नीतियों को बनाने और सार्वजनिक वित्त पोषण (फाइनेंसिंग) के तौर-तरीकों के लिए राजनीतिक प्रतिबद्धता जताने में करती हैं या नहीं जो भविष्य की आपात स्थितियों के लिए तैयारी में काम आएंगी.


साहिल देव CPC एनेलिटिक्स के सह-संस्थापक हैं.

क्रिश्चियन फ्रैंज़ CPC एनेलिटिक्स के सह-संस्थापक हैं.

रितिका संगमेश्वरन CPC एनेलिटिक्स में नीति विश्लेषक हैं.


[1] According to the Center for Global Development, a Washington D.C. based think tank, “there is a 66% probability of a respiratory pandemic that would kill 10 million people” within the next 25 years.

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