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2023 में दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवाओं ने परिवर्तन और नई परिस्थितियों के हिसाब से ढालने में उल्लेखनीय बदलाव होते देखा. इसके पीछे मुख्य रूप से कोविड-19 महामारी का लंबे समय तक चला आ रहा असर और तकनीकी आविष्कार में बढ़ोत्तरी रही. 2023 का साल एक ऐसा युग साबित हुआ जब दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवाओं ने अधिक उत्साह से डिजिटल समाधानों को अपनाया, जो मरीज़ों पर केंद्रित सेवा के अधिक चपल मॉडल की ओर बढ़ते क़दमों का परिचायक है. 2023 में हमने मानसिक सेहत पर बहुत अधिक ज़ोर दिए जाते देखा और अब इसे सेहत का एक महत्वपूर्ण तत्व माना जा रहा है. महामारी के प्रभाव, वैश्विक सामाजिक आर्थिक अनिश्चितताओं की वजह से और जटिल हो गए हैं. इन्हीं कारणों से स्वास्थ्य सेवा संबंधी परिचर्चाओं में मानसिक स्वास्थ्य सबसे अग्रणी मोर्चे पर आ गया है. इस साल स्वास्थ्य के क्षेत्र में समता और समावेश पर नीतिगत ज़ोर की भी वापसी होते देखी गई. पिछले साल के इन चलनों ने स्वास्थ्य सेवा के भविष्य की राह के लिए एक मिसाल क़ायम की है, जिससे नई परिस्थितियों के अनुरूप ढालने लायक़, लचीली और समावेशी स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत रेखांकित हुई है.
2023 में डिजिटल स्वास्थ्य सेवा का परिवर्तन बहुत तेज़ी से आया और स्वास्थ्य सेवा की वर्चुअल उपलब्धता का काफ़ी असर देखा गया. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उन्नत तकनीकों को डायग्नॉस्टिक, टेलीमेडिसिन और स्वास्थ्य के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ज तैयार करने ने स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है.
2023 में डिजिटल स्वास्थ्य सेवा का परिवर्तन बहुत तेज़ी से आया और स्वास्थ्य सेवा की वर्चुअल उपलब्धता का काफ़ी असर देखा गया. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उन्नत तकनीकों को डायग्नॉस्टिक, टेलीमेडिसिन और स्वास्थ्य के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ज तैयार करने ने स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है. ये बदलाव स्वास्थ्य सेवा को अधिक निजी, कुशल और सहज रूप से उपलब्ध बनाने में, ख़ास तौर से दूर-दराज़ के इलाक़ों और स्वास्थ्य क्षेत्र में पिछड़े इलाक़ों तक सेवा पहुंचाने में बड़ा परिवर्तनकारी साबित हुआ है, जहां स्वास्थ्य की पारंपरिक सेवाएं सीमित हैं. मिसाल के तौर पर टेलीमेडिसिन ने स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच की कई कमियों को दूर किया है, इससे दूर-दराज़ के इलाक़ों में रहने वाले मरीज़ों के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों से सलाह मशविरा करना काफ़ी आसान हो गया है. रोग की पड़ताल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल ने भी बीमारी का तेज़ी से सटीक पता लगाने और उनके इलाज की योजनाएं तैयार करने में काफ़ी अहम भूमिका निभाई है, जिससे मरीज़ों की सेहत में सुधार आया है.
फिर भी, डिजिटल स्वास्थ्य सेवा को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ने का काम आसान नहीं रहा है, ख़ास तौर से वित्तीय स्थायित्व के मामले में. पिछले 12 महीनों के दौरान बहुत सी डिजिटल हेल्थ स्टार्ट-अप को फंडिंग की चुनौतियों से जूझते देखा गया है, जिससे इस क्षेत्र में निवेश के सौदों और कुल पूंजी प्रवाह की संख्या में गिरावट आई है; इसके प्रभाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं, इनमें Babyl जैसी प्रमुख डिजिटल स्वास्थ्य स्टार्ट-अप का बंद होना भी शामिल है.
डिजिटल स्वास्थ्य में डेटा की निजता और सुरक्षा भी बढ़ती हुई चिंता का विषय बना हुआ है. मरीज़ों की जानकारियां सुरक्षित रखते हुए इन तकनीक़ी प्रगतियों का लाभ उठाते रहना सुनिश्चित करने के लिए लगातार प्रयास जारी रखने की ज़रूरत है. आज जब स्वास्थ्य क्षेत्र में बदलाव आ रहे हैं तो इनोवेशन, मरीज़ों की देख-भाल और निजता एवं वित्तीय रूप से लाभप्रद बने रहने के बीच संतुलन बिठाना विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू बन गया है.
2023 में मानसिक सेहत से जुड़े मसलों को लेकर समझ में व्यापक बदलाव आया है, और अब इस बात को अधिक स्वीकारा जा रहा है कि मानसिक बीमारियां दुनिया भर में शारीरिक अक्षमता बढ़ाने में बड़ी भूमिका अदा कर रही हैं. कोविड-19 महामारी के बचे खुचे प्रभाव और संघर्षों और बेरोज़गारी जैसी मौजूदा सामाजिक आर्थिक चुनौतियों के के कारण मानसिक सेहत बिगड़ने में इज़ाफ़ा हो रहा है. दिमाग़ी सेहत को लेकर इस बढ़ी हुई जागरूकता ने पूरे स्वास्थ्य क्षेत्र में इसको बेहतर ढंग से समझने, इसकी रोकथाम और मानसिक तकलीफ़ों के इलाज के प्रयासों में तेज़ी ला दी है. एक उल्लेखनीय चलन, मानसिक सेहत की देखभाल को शारीरिक सेहत की सेवाओं से जोड़ने का भी आया है, यानी ये माना जा रहा है कि किसी इंसान की सेहत में उसका मानसिक रूप से स्वस्थ रहना भी महत्वपूर्ण है.
अब मानसिक बीमारियों का पता लगाने और उनसे जुड़े जोखिमों को कम करने पर भी काफ़ी ज़ोर दिया जा रहा है, जिससे व्यक्ति आधारित रोकथाम की रणनीतियों के विकास को भी बढ़ावा मिला है.
मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों से निपटने में इस साल कई नए तरीक़े अपनाते देखे गए. इनमें टेलीथेरेपी और मेंटल हेल्थ के ऐप्स जैसी डिजिटल तकनीकों का इस्तेमाल भी शामिल है. इन औज़ारों ने मानसिक बीमारियों के इलाज की सेवाओं की उपलब्धता को और आसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, ख़ास तौर से उन क्षेत्रों में जहां मानसकि स्वास्थ्य के पारंपरिक साधन बहुत कम उपलब्ध हैं. अब मानसिक बीमारियों का पता लगाने और उनसे जुड़े जोखिमों को कम करने पर भी काफ़ी ज़ोर दिया जा रहा है, जिससे व्यक्ति आधारित रोकथाम की रणनीतियों के विकास को भी बढ़ावा मिला है. ये व्यापक नज़रिया, मानसिक स्वास्थ्य के मसलों से निपटने के लिए एक ऐसी बहुआयामी रणनीति की ज़रूरत को रेखांकित करता है, जिसमें तमाम सेक्टरों और विषयों में आपसी सहयोग भी शामिल है.
2023 में वैश्विक स्वास्थ्य सेवाओं में सेहत की समानता पर बहुत ध्यान केंद्रित किया गया और आज उन सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारणों को लेकर समझ बेहतर हुई है, जो स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े फ़ासलों को जन्म देते हैं. महामारी ने उत्प्रेरक का काम किया है, जिससे ये मुद्दे सामने आ गए हैं और अब ऐसी स्वास्थ्य सेवा की मांग तेज़ हो गई है, जो सबके लिए समान और आसानी से उपलब्ध हो. इसके लिए सेवाएं हासिल करने में आने वाली बाधाएं हटाने के लिए आवश्यक नीतिगत सुधार और महरूम तबक़ों तक पहुंचने और इलाज के मामले में उन्हें सशक्त बनाने के लिए लक्ष्य आधारित प्रयास किए जा रहे हैं. दूर-दराज़ और ग्रामीण इलाक़ों में विशेष रूप से तकनीक का इस्तेमाल स्वास्थ्य की देख-भाल की सेवाओं का विस्तार ऐसे वर्गों तक पहुंचाने में किया जा रहा है, जिनकी ऐतिहासिक रूप से अनदेखी होती रही है.
2023 में स्वास्थ्य क्षेत्र में समानता पर ज़ोर देने की वजह से तमाम क्षेत्रों के बीच सहयोग में भी बढ़ोत्तरी होती देखी गई. स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में असमानता को दूर करने के लिए रणनीतियां बनाने और उन्हें लागू करने के लिए, स्वास्थ्य सेवाएं देने वालों, सरकार और अलाभकारी संगठनों के बीच साझेदारियां बढ़ती देखी जा रही हैं. अब इस बात को स्वीकार किया जा रहा है कि स्वास्थ्य सेवा के मामले में बराबरी का लक्ष्य हासिल करने के लिए व्यापक नज़रिए की ज़रूरत है. ऐसा नज़रिया जो स्वास्थ्य निर्धारित करने वाले व्यापक पहलुओं पर ज़ोर देता हो, और जिसमें पर्यावरण, शिक्षा और सामाजिक आर्थिक स्तर जैसे कारक भी शामिल किए जाएं. ऐसा व्यापक नज़रिया इस समझ को दिखाता है कि स्वास्थ्य सेवा में समता लाना केवल सेहत का मामला नहीं, बल्कि एक सामाजिक मुद्दा है, जिसके लिए सभी सेक्टरों द्वारा लगातार प्रयाय और प्रतिबद्धता दिखानी होगी.
अब इस बात को स्वीकार किया जा रहा है कि स्वास्थ्य सेवा के मामले में बराबरी का लक्ष्य हासिल करने के लिए व्यापक नज़रिए की ज़रूरत है. ऐसा नज़रिया जो स्वास्थ्य निर्धारित करने वाले व्यापक पहलुओं पर ज़ोर देता हो, और जिसमें पर्यावरण, शिक्षा और सामाजिक आर्थिक स्तर जैसे कारक भी शामिल किए जाएं.
वैसे तो 2023 का साल स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में लंबी छलांग का रहा है, और डिजिटल इनोवेशन, मानसिक स्वास्थ्य और समानता के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति हुई है, मगर एक बड़ी चुनौती अभी भी बनी हुई है: विकासशील देशों की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में पूंजी की भारी कमी. इन अंतरों से प्रमुख नई उपलब्धियों को लागू करने और लोगों तक पहुंचाने में बाधा आती है, विशेष रूप से दूर-दराज़ और सेवा की अनुलब्धता वाले इलाक़ों में. ये हालात इन वित्तीय विभाजनों की खाई पाटने के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग के प्रयासों की महत्वपूर्ण ज़रूरत को रेखांकित करते हैं. ये ज़रूरी है कि टिकाऊ फंडिंग के मॉडल, अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों और उन नीतिगत रूप-रेखाओं को लागू किया जाए, जो स्वास्थ्य सेवा को सार्वभौमिक अधिकार के तौर पर प्राथमिकता देते हैं और ये सुनिश्चित करते हैं कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई उपलब्धियां कुछ ख़ास लोगों की सुविधा बनकर न रह जाएं, बल्कि सबके लिए उपलब्ध हों, फिर चाहे वो किसी भी भौगोलिक या आर्थिक सीमा के दायरे में रहते हों.
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Oommen C. Kurian is Senior Fellow and Head of Health Initiative at ORF. He studies Indias health sector reforms within the broad context of the ...
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