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Published on Mar 21, 2025 Updated 3 Days ago

जैसे-जैसे उम्रदराज़ लोगों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे दुनिया भर के देश दीर्घायु कूटनीति (लॉन्गेविटी डिप्लोमेसी) की तरफ बढ़ रहे हैं जिसके तहत सॉफ्ट पावर और वैश्विक नेतृत्व में बढ़ोतरी करने के लिए स्वास्थ्य नीतियों, जैव तकनीक और चिकित्सा विज्ञान का इस्तेमाल किया जाता है.  

विदेश नीति में लंबी उम्र की कूटनीति का बढ़ता प्रभाव

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ये लेख रायसीना एडिट 2025 सीरीज़ का हिस्सा है. 


विदेश नीति पारंपरिक रूप से दूसरी सरकारों के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने और आर्थिक, सैन्य एवं वैश्विक मामलों पर बातचीत करने में शामिल सरकारी अधिकारियों के द्वारा संचालित की जाती है. लेकिन 20वीं शताब्दी में हमने देखा है कि गैर-सरकारी किरदार (नॉन-स्टेट एक्टर्स) विदेश नीति को आगे बढ़ाने में तेज़ी से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, विशेष रूप से ट्रैक II स्तर की कूटनीति के उदय के साथ. इनमें थिंक टैंक, खेल कूटनीति (जहां एथलीट अलग-अलग देशों के बीच सद्भावना को बढ़ावा देते हैं), सांस्कृतिक कूटनीति (जिसे कलाकार और संगीतकार बढ़ावा देते हैं) और मानवीय कूटनीति (जहां गैर-सरकारी संगठन यानी NGO और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय संगठन मानवीय पहुंच और सहायता पहुंचाने के लिए बातचीत में भागीदारी करते हैं) शामिल हैं. 21वीं सदी में विदेश नीति के दायरे का और भी विस्तार हुआ है, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में जहां निजी क्षेत्र और NGO किसी देश के बहु-हितधारक समाधान में योगदान देते हैं. विदेश नीति का लगातार विस्तार हो रहा है और विदेश नीति का सबसे नया एवं उभरता रूप दीर्घायु यानी लंबी उम्र से संबंधित है. वैश्विक महामारियों, उम्रदराज आबादी, गैर-संचारी रोगों (NCD) में बढ़ोतरी और जैव तकनीक एवं दीर्घायु चिकित्सा विज्ञान में तेज़ी से वैज्ञानिक उन्नति जैसी चुनौतियों को देखते हुए एक नए प्रकार की सॉफ्ट पावर का उदय हो रहा है. 

21वीं सदी में विदेश नीति के दायरे का और भी विस्तार हुआ है, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में जहां निजी क्षेत्र और NGO किसी देश के बहु-हितधारक समाधान में योगदान देते हैं.

लंबी उम्र कूटनीति के इस उभरते क्षेत्र में वैज्ञानिक आदान-प्रदान, शैक्षिक कार्यक्रमों, कॉरपोरेट आदान-प्रदान और सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों, उद्योग के मानकों, उत्पादन एवं महत्वाकांक्षी सहयोग पर राजनीतिक संवाद के साथ अलग-अलग देश बहु-आयामी सार्वजनिक कूटनीति के प्रयासों में शामिल होंगे. 

दीर्घायु विदेश नीति की रणनीति के चार प्रमुख क्षेत्र हैं:  

  1. दीर्घायु नीति विचार नेतृत्व
  2. चिकित्सा विज्ञान कूटनीति 
  3. वैज्ञानिक अनुसंधान की उन्नति
  4. वैश्विक मानक

दीर्घायु नीति विचार नेतृत्व

दुनिया में 60 वर्ष से अधिक लोगों की संख्या 2023 के 1.1 अरब से बढ़कर 2030 तक 1.4 अरब होने का अनुमान है. 30 के दशक के मध्य तक 80 और उससे अधिक उम्र वाले 26.5 करोड़ लोग शिशुओं की आबादी को भी पीछे छोड़ने वाले हैं. 2050 तक दुनिया में शतायु जनसंख्या (100 वर्ष या उससे अधिक उम्र वाले लोग) में आठ गुना बढ़ोतरी का अनुमान है. जापान, सिंगापुर, नॉर्वे और स्विटज़रलैंड जैसे देशों ने पहले ही लंबे, स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देने के लिए घरेलू नीतियों को लागू किया है. द्विपक्षीय सहयोग या बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से वो इस घरेलू नीति की सफलता का लाभ उठा सकते हैं और सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को साझा कर सकते हैं या इसी तरह की नीतियों को लागू करने में अन्य देशों को विशेषज्ञता और समर्थन प्रदान कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, जापान के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में पोषक शिक्षा प्रथाओं ने लोगों के स्वास्थ्य पर कैसे प्रभाव डाला है, उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है. इसी तरह सिंगापुर की लंबी उम्र की सोच के हिसाब से तैयार शहरी कल्याण की योजनाओं ने वहां की जनसंख्या की गतिशीलता और कसरत में योगदान दिया है. वहीं नॉर्वे ने उम्र को बढ़ाने के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (यूनिवर्सल हेल्थकेयर), उदार सामाजिक कल्याण और सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों को जोड़ा है. 

जैसे-जैसे दुनिया भर के नागरिक लंबे जीवन के लिए योजना बनाने की शुरुआत करेंगे, वैसे-वैसे सरकारें दूसरे देशों की सफलतापूर्वक लागू की गई नीतियों का अनुकरण करना चाहेंगी.

जैसे-जैसे दुनिया भर के नागरिक लंबे जीवन के लिए योजना बनाने की शुरुआत करेंगे, वैसे-वैसे सरकारें दूसरे देशों की सफलतापूर्वक लागू की गई नीतियों का अनुकरण करना चाहेंगी. ये तेज़ी से सॉफ्ट पावर का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र होगा और सभी आकार के देशों के लिए लंबी उम्र, जनसंख्या स्वास्थ्य और इसके भीतर उदय होने वाले शासन कला के अलग-अलग विशिष्ट क्षेत्रों में ख़ुद को वैश्विक नेतृत्व करने वाले देश के रूप में स्थापित करने का एक अवसर होगा. 

चिकित्सा विज्ञान कूटनीति 

कोविड-19 महामारी ने दुनिया को याद दिलाया कि हमारा स्वास्थ्य एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है और हमारे जीवित रहने का मौका वैश्विक अर्थशास्त्र, उत्पादन की सप्लाई चेन और वैज्ञानिक विशेषज्ञता से जुड़ा हुआ है. इस महामारी के दौरान पहली बार mRNA वैक्सीन का उपयोग और जैव तकनीक में तेज़ प्रगति भी देखी गई जिसने वायरस के विश्लेषण और वैक्सीन विकास को आसान बनाया. वैक्सीन के लिए अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक लड़ाई और उसके बाद मैन्युफैक्चरिंग सप्लाई चेन पर पड़ने वाला दबाव उन देशों के सामने आने वाली चुनौतियों की स्पष्ट तस्वीरें पेश करता है जिनके पास अगली पीढ़ी की चिकित्सा विज्ञान की विशेषज्ञता या इसे तैयार करने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी है. वैसे तो महामारी की तैयारी के लिए ये महत्वपूर्ण है लेकिन mRNA तकनीक लंबी उम्र से जुड़े चिकित्सा विज्ञान के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये संभावित रूप से आनुवंशिक रोगों, संक्रमणों और कैंसर का इलाज कर सकता है. इतना ही महत्वपूर्ण उम्र बढ़ने से जुड़ी रोगविज्ञान संबंधी (पैथोलॉजिकल) स्थितियों का इलाज करने के लिए मौजूदा और उभरती जीन थेरेपी है. 

ये उपचार स्वास्थ्य कूटनीति और स्वास्थ्य संबंधी विदेशी सहायता में नए युग की शुरुआत कर सकते हैं. जिन देशों की कंपनियों ने इन उपचारों की बौद्धिक संपदा का निर्माण किया है, उनके लिए चिकित्सा विज्ञान से जुड़ी कूटनीति आर्थिक व्यापार और बातचीत में बड़ी भूमिका निभाती है. जिन देशों के पास इस तरह के नए इलाज के लिए उत्पादन का बुनियादी ढांचा है, वो प्राथमिक रूप से सप्लाई चेन के महत्वपूर्ण तत्वों के प्रमुख वैश्विक किरदारों के रूप में अपनी स्थिति बनाते हैं. 

वैज्ञानिक अनुसंधान की उन्नति

दीर्घायु अनुसंधान को आगे बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को मज़बूत करने के लिए विज्ञान कूटनीति निर्णायक है. लंबी उम्र की चाह रखने वाले देश क्षमता निर्माण यानी अत्याधुनिक अनुसंधान केंद्रों की स्थापना, डेटा विश्लेषण और मॉडलिंग, दीर्घायु अनुसंधान पर अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर और सरकारी फंड से साझा परियोजनाओं की शुरुआत के माध्यम से वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा देकर इस अवसर का लाभ उठा सकते हैं. 

आर्थिक अवसरों को आगे बढ़ाने के लिए इसे व्यापक आर्थिक नेटवर्क के ज़रिए मदद पहुंचाई जा सकती है जिसमें कंपनियों, वेंचर कैपिटल फर्म, एक्सेलरेटर प्रोग्राम और दूसरे हितधारकों को न्योता दिया जा सकता है. किसी देश के आयोजन का लाभ उठाने से सीमा पार अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ने और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक गति को तेज़ करने में और सहायता मिल सकती है. 

वैश्विक मानक 

जैसे-जैसे दीर्घायु का चिकित्सा विज्ञान और निवारक (प्रिवेंटिव) स्वास्थ्य बाज़ार बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मेडिकल प्रोटोकॉल, टूल और स्टैंडर्ड के नए रूप भी बढ़ेंगे. वैश्विक दीर्घायु स्वास्थ्य के नेतृत्व के लिए ये एक सही अवसर है. एक उदाहरण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़ा डायग्नोस्टिक (निदान) है जो प्रारंभिक अवस्था में बीमारी को पकड़ने के लिए बीमारी की पहचान में सुधार ला सकता है. आईआर्ट एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) वाली आंख की निगरानी की प्रणाली है जो उम्र से संबंधित मैक्युलर डिजेनरेशन और ग्लूकोमा की वजह से ऑप्टिक नर्व में नुकसान का पता लगाती है. अमेरिका और यूरोपियन यूनियन में ये क्लिनिकल उपयोग के लिए स्वीकृत है. भविष्य में अधिक AI क्षमताएं और डायग्नोस्टिक टूल होंगे. स्वास्थ्य कूटनीति की रणनीतियों और विदेशी सहायता के पैकेज के भीतर इनका लाभ उठाने का एक अवसर है. कम तकनीकी क्षमता और संसाधन वाले देशों के द्वारा इन तकनीकों को विकसित करना उन्हें सबसे ज़्यादा फायदा पहुंचाएगा. 

जैसे-जैसे दीर्घायु का चिकित्सा विज्ञान और निवारक (प्रिवेंटिव) स्वास्थ्य बाज़ार बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मेडिकल प्रोटोकॉल, टूल और स्टैंडर्ड के नए रूप भी बढ़ेंगे. वैश्विक दीर्घायु स्वास्थ्य के नेतृत्व के लिए ये एक सही अवसर है.

आज लंबी उम्र के मामले में राजनीतिक वैश्विक नेतृत्व का क्षेत्र पूरी तरह से खुला है और अलग-अलग देशों के पास दुनिया के साथ अपने दीर्घायु इनोवेशन, मानक, बेंचमार्क और साधनों को साझा करने का मौका है. 

राष्ट्रीय शक्ति के साधन के रूप में लंबी उम्र 

किसी देश की सैन्य ताकत, उद्योग या निर्यात चाहे कुछ भी हो लेकिन उसकी सबसे कीमती और सबसे बड़ी संपत्ति हमेशा उसके लोग ही होंगे. जैसे-जैसे दुनिया भर में जीवन स्तर की गुणवत्ता में सुधार आ रहा है, वैसे-वैसे केवल जीवन की गुणवत्ता ही बनी रहेगी. ज़्यादा पुरानी बात नहीं है जब किसी देश की समृद्धि का आकलन बिजली, फिर कार और फिर इंटरनेट तक पहुंच से किया जाता था. आज ये AI है लेकिन कल ये दीर्घायु का उपहार होगा. 

स्वास्थ्य ही धन है (हेल्थ इज़ वेल्थ) और जो देश रणनीतिक रूप से इस सांस्कृतिक और तकनीकी क्षण का लाभ उठाकर लंबी उम्र के मामले में दुनिया का नेतृत्व करेंगे वो कुछ ऐसा प्रस्तुत करेंगे जिसे इतिहास में कोई भी देश कूटनीतिक बातचीत की मेज पर मुहैया कराने में सक्षम नहीं हुआ है यानी लंबी उम्र का तोहफा. 


लीडिया कोस्तोपॉलोस एक वरिष्ठ रणनीतिकार और उभरती तकनीक की सलाहकार हैं. इन्होंने “इमैजिनेशन डिलेमा: टूल्स टू ओवरकम इट एंड थ्राइव थ्रू डिसरप्शन” किताब लिखी है और एबंडेंस स्टूडियो कंसल्टेंसी की संस्थापक हैं.  

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