Author : Manish Vaid

Published on Jan 31, 2024 Updated 0 Hours ago
भारत में यातायात को हरित बनाने के सफ़र में मददगार फ्लेक्स ईंधन

एक ऐसे भविष्य की कल्पना कीजिए जिसमें वाहन ना सिर्फ़ सड़कों पर चले बल्कि एक टिकाऊ और पर्यावरण के प्रति जागरूक रास्ते पर भी आगे बढ़े. भारत में एक आशाजनक और संभावना पूर्ण विकल्प यानी फ्लेक्स ईंधन के ज़रिए ये दृष्टिकोण आकार ले रहा है. जैसे-जैसे देश गतिशीलता की मांगों और पर्यावरणीय दायित्वों से दो-चार हो रहा है, इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) पर जारी मौजूदा सरगर्मी की पृष्ठभूमि में फ्लेक्स ईंधन एक दमदार दावेदार के रूप में उभरा है. 

10 प्रतिशत इथेनॉल मिलाने के लक्ष्य (E10) को पार करते हुए देश अब 2025-26 तक 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, जो ईंधन की खपत के रुझान में कायाकल्पकारी बदलाव का संकेत करती है. 

इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के ज़रिए इथेनॉल मिश्रण की दिशा में भारत की प्रगति, हरित ऊर्जा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है. 10 प्रतिशत इथेनॉल मिलाने के लक्ष्य (E10) को पार करते हुए देश अब 2025-26 तक 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, जो ईंधन की खपत के रुझान में कायाकल्पकारी बदलाव का संकेत करती है. 

ब्राज़ील से प्रेरणा लेते हुए भारत के टिकाऊ भविष्य के लिए संभावित उत्प्रेरक के रूप में फ्लेक्स-ईंधन वाहनों (FFVs) पर ध्यान केंद्रित किया गया है. ये गाड़ियां 85 प्रतिशत तक इथेनॉल-पेट्रोल मिश्रण (जिसे E85 ईंधन कहा जाता है) पर दक्षतापूर्वक दौड़ सकती हैं. इसके लिए FFVs को लेकर एक ख़ास प्रकार के परिष्कृत इंजीनियरिंग दृष्टिकोण की आवश्यकता है. हालांकि फ्लेक्स ईंधन वाहनों को अपनाने के लिए पिस्टन और वॉल्व्स जैसे आवश्यक हिस्सों के साथ-साथ आंतरिक दहन इंजन में ईंधन पाइपलाइन और तमाम घटकों को समायोजित किए जाने की दरकार होती है.

ख़ासतौर से EV के ऊर्जा स्रोत जुटाने में नवीकरणीय संसाधनों पर पूर्ण निर्भरता के अभाव की सूरत में प्रमोद चौधरी जैसे हिमायती EV की तुलना में फ्लेक्स-ईंधन कारों की व्यावहारिक ज़रूरत को रेखांकित करते हैं.

वाहन निर्माताओं में इस भावना की गूंज सुनाई दे रही है. मारुति सुज़ुकी और अन्य कंपनियां फ्लेक्स-ईंधन मॉडलों का प्रदर्शन कर रही हैं. हालांकि ये तमाम कंपनियां फ्लेक्स ईंधन की व्यापक स्वीकार्यता के लिए बुनियादी ढांचे के विकास की ज़रूरत को स्वीकार करती हैं. इथेनॉल मिश्रित वाहनों की पैरोकार मारुति सुज़ुकी ने 2023 ऑटो एक्सपो में अपने वैगनआर फ्लेक्स ईंधन प्रतिरूप का प्रदर्शन किया था, जो 25-80 प्रतिशत के दायरे में इथेनॉल का मिश्रण कर सकता है. इसके 2025 में लॉन्च होने की उम्मीद है.  

हाल ही में भारत के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने पूरी तरह से इथेनॉल से संचालित वाहनों की योजनाओं का ख़ुलासा किया है. उनकी ये घोषणा इस दिशा में एक महत्वपूर्ण छलांग है. इथेनॉल-संचालित स्कूटरों और कारों के लिए प्रतिबद्धता जताने वाले प्रमुख निर्माता, तकनीकी उन्नति के साथ मिलकर फ्लेक्स-ईंधन की कहानी को आगे बढ़ाते हैं. मिसाल के तौर पर, 2024 में TVS मोटर्स द्वारा पहला फ्लेक्स-ईंधन दोपहिया वाहन लॉन्च किए जाने की उम्मीद है.

नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का लाभ उठाकर और उत्सर्जनों में कटौती कर फ्लेक्स ईंधन तकनीक अद्वितीय लचीलापन पेश करती है. एक ओर अनुकूलनशीलता, वाहन चालकों को उपलब्धता, लागत और पर्यावरणीय कारकों के आधार पर ईंधन का चयन करने के लिए सशक्त बनाती हैं तो दूसरी ओर मक्के या गन्ने जैसे नवीकरणीय भंडारों से प्राप्त इथेनॉल किसी वाहन की कार्बन छाप (फुटप्रिंट) में उल्लेखनीय कमी ला देता है, जिसके नतीजतन दहन के दौरान कम ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता है. ख़ासतौर से E20 मिश्रण दोपहिया वाहनों में कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन में प्रभावशाली रूप से तक़रीबन 50 प्रतिशत की कटौती कर देता है और E0 (बग़ैर इथेनॉल मिश्रण वाले) की तुलना में चौपहिया वाहनों में 30 प्रतिशत की सराहनीय कमी हासिल करता है, जैसा कि नीचे टेबल में दिखाया गया है. 

उत्सर्जन

गैसोलीन या पेट्रोल

दोपहिया वाहन

चौपहिया वाहन

 

E10*

E20*

E10*

E20*

कार्बन मोनोऑक्साइड

आधार-रेखा

20% कम

50% कम

20% कम

30% कम

हाइड्रोकार्बन

आधार-रेखा

20% कम

20% कम

20% कम

20% कम

नाइट्रोजन के ऑक्साइड

आधार-रेखा

कोई अहम रुझान नहीं

10% ज़्यादा

कोई अहम रुझान नहीं

समान

*E10 परियोजना 2009-10 में और E20 परियोजना 2014-15 में चलाई गई थी. लिहाज़ा, परीक्षण वाहन समान नहीं थे. हालांकि, उत्सर्जन के रुझान समान या मिलते-जुलते हैं. 

स्रोत: नीति आयोग

संभावित अड़चनें

हालांकि, फ्लेक्स ईंधन वाहन अनेक प्रकार की अड़चनें भी सामने लाते हैं. इथेनॉल घटक की वजह से इंजन घिसाव जैसा अहम मसला और गंभीर हो जाता है, जिससे तनाव और क्षय बढ़ जाता है. इससे इंजीनियरों के लिए भारी चुनौतियां पैदा होती हैं. इसके अलावा, बदलती ईंधन अर्थव्यवस्था, ख़ासतौर से E85 जैसे उच्च इथेनॉल मिश्रणों के साथ, समग्र दक्षता में गिरावट लाती है. 

इतना ही नहीं, बुनियादी ढांचे की सीमाएं बड़ी बाधा बनकर खड़ी हैं, ऐसे में बदलाव को समायोजित करने के लिए भारी निवेश की दरकार होती है. E20 कार्यक्रम के लिए सालाना 1000 करोड़ लीटर से अधिक इथेनॉल की आवश्यकता है. इतना ही नहीं, फ्लेक्स-ईंधन वाहनों की ओर मुड़ने की क़वायद में नियमित पेट्रोल वाहनों की तुलना में कारों के लिए 25,000 रु और दोपहिया वाहनों के लिए 12,000 रु की बढ़ी हुई लागत का अनुमान है. ये बढ़ी हुई लागत तकनीकी बदलावों और सामग्रियों की दोबारा इंजीनियरिंग के लिए है.

भारत फ्लेक्स ईंधन को बढ़ावा देने की चुनौतियों से जूझने के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाने की पहेली का भी सामना कर रहा है.

भारत फ्लेक्स ईंधन को बढ़ावा देने की चुनौतियों से जूझने के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाने की पहेली का भी सामना कर रहा है. EVs की सीमाओं और फ्लेक्स ईंधन तकनीक की विशाल क्षमता को देखते हुए एक विविधतापूर्ण रणनीति की आवश्यकता पैदा हो गई है.

इन चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस प्रयासों की दरकार है. क्षमता निर्माण, स्टेकहोल्डरों के जुड़ाव में बढ़ोतरी, और उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाना सर्वोपरि है. भारत की कृषि अर्थव्यवस्था के साथ फ्लेक्स ईंधन का तालमेल बिठाना एक दमदार मामला पेश करता है, जिसे व्यापक रूप से अपनाने के लिए सरकारी समर्थन की दरकार है.  

ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस (GBA) इस यात्रा में एक अहम सहयोगी के रूप में उभरा है, जो ज्ञान और अनुभव का भंडार पेश कर रहा है. हाल ही में भारत में हुए G20 शिखर सम्मेलन के दौरान गठित GBA का लक्ष्य टिकाऊ जैव-ईंधनों के विकास और तैनाती का समर्थन करना है. इस गठबंधन का मक़सद भारतीय कंपनियों और अन्य देशों की इकाइयों के बीच संयुक्त उद्यमों की सुविधा प्रदान करना है. इनमें जैव-ईंधन अर्थव्यवस्था में दुनिया की अगुवाई करने वाला ब्राज़ील शामिल है. इस क़वायद से टेक्नोलॉजी और नीतिगत सबक़ साझा करने की सुविधा मिलती है. 

ब्राज़ील के कामयाब इथेनॉल कार्यक्रम से प्रेरणा लेते हुए भारत बुनियादी ढांचे के विकास, स्टेकहोल्डरों के जुड़ाव और नीतिगत ढांचे में बेशक़ीमती सबक़ सीख सकता है, जो फ्लेक्स ईंधन को अपनाने का प्रोत्साहन प्रदान करते हैं. ब्राज़ील के तौर-तरीक़ों का अध्ययन करके भारत अपने ख़ुद के इथेनॉल उत्पादन और मिश्रण प्रक्रियाओं को बढ़ा सकता है, जिससे अधिक ऊर्जा निर्भरता और टिकाऊपन हासिल हो सकेगा. 

आगे की राह बहुआयामी रुख़ की मांग करती है. अड़चनों के बावजूद भारत द्वारा फ्लेक्स ईंधन को अपनाया जाना ईंधन के ज़िम्मेदारी भरे खपत की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत करती है. विभिन्न तकनीकों और ईंधन प्रकारों का सम्मिलन टिकाऊपन सुनिश्चित करते हुए गतिशीलता और जलवायु उद्देश्यों को हासिल करने की चाबी है. 

जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, उसके स्वच्छ और हरित गतिशीलता विमर्श में फ्लेक्स ईंधनों को एकीकृत करना आवश्यक हो गया है, जो एक अधिक टिकाऊ भविष्य की शुरुआत है.

इस कायाकल्पकारी यात्रा में, स्टेकहोल्डरों के बीच निरंतर गठजोड़ अनिवार्य है. जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, उसके स्वच्छ और हरित गतिशीलता विमर्श में फ्लेक्स ईंधनों को एकीकृत करना आवश्यक हो गया है, जो एक अधिक टिकाऊ भविष्य की शुरुआत है.

लिहाज़ा, फ्लेक्स ईंधन महज़ एक विकल्प नहीं है, वो भारत की सतत गतिशीलता क्रांति को संचालित करने वाली एक परिवर्तनकारी ताक़त है.


मनीष वैद ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में जूनियर फेलो हैं

डिस्क्लेमर: व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं. 

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