Published on Nov 03, 2023 Updated 0 Hours ago
ग्रीन हाइड्रोजन का बड़ा वादा

1.उद्योग की समीक्षा

वैश्विक स्तर पर ऊर्जा परिवर्तन का नेतृत्व करने की भारत की कोशिश को आज के औद्योगिक और परिवहन परिदृश्य में अहम स्थान पर ले जाने के लिए सतत तकनीकी समाधान (सस्टेनेबल टेक्नोलॉजिकल सॉल्यूशंस) की आवश्यकता होगी. न्यूट्रेस, जो कि एक इनोवेटिव क्लाइमेट-टेक स्टार्टअप है, बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन (GH2) के उत्पादन में क्रांतिकारी बदलाव लाने के एक उद्देश्य से प्रेरित दृष्टिकोण के साथ तेज़ी से इस परिवर्तन में सबसे आगे अपना रास्ता बना रहा है. न्यूट्रेस की इलेक्ट्रोराइज़र तकनीक का मक़सद लागत, सप्लाई चेन, पैमाने और कुशलता की ज़रूरी चुनौतियों का समाधान करना है और इसका व्यापक लक्ष्य धरती के लिए एक वास्तव में सतत एवं हरित भविष्य को हासिल करना है. 

हाइड्रोजन (H2) ईंधन का एक बड़ा स्रोत और बड़े पैमाने के उद्योगों में एक प्रमुख कच्चा माल है. हाइड्रोजन के उत्पादन की पारंपरिक पद्धति में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) बड़ी मात्रा में उत्पन्न होता है.

हाइड्रोजन (H2) ईंधन का एक बड़ा स्रोत और बड़े पैमाने के उद्योगों में एक प्रमुख कच्चा माल है. हाइड्रोजन के उत्पादन की पारंपरिक पद्धति में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) बड़ी मात्रा में उत्पन्न होता है. उदाहरण के लिए, स्टीम-मीथेन रिफॉर्मिंग जैसी पद्धति (2-3 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम) के ज़रिए हाइड्रोजन के उत्पादन से मौजूदा समय में 94 मिलियन टन (Mt) H2 के उत्पादन में 900 Mt CO2 का उत्सर्जन होता है. इस तरह ऐसे हाइड्रोजन का सही नाम ‘ग्रे हाइड्रोजन’ होना चाहिए. हाइड्रोजन उत्पादन की स्वच्छ पद्धतियां वैसे तो ज़्यादा सतत हैं लेकिन बेहद खर्चीली (6-7 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम) हैं. इसकी वजह है इलेक्ट्रोलाइज़र तकनीक में महत्वपूर्ण और हासिल करने में मुश्किल सामग्रियों का उपयोग. इस तरह उत्पादित हाइड्रोजन को ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ कहा जाता है.

इसके परिणामस्वरूप हाइड्रोजन बेशक एक स्वच्छ ईंधन है लेकिन व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल की राह में मौजूदा उत्पादन की पद्धतियां या तो बहुत ज़्यादा कार्बन का उत्सर्जन करती हैं या कई तरह की बाधाएं (जैसे कि लागत, सप्लाई चेन, इत्यादि) पेश करती हैं. इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए न्यूट्रेस हाइड्रोजन के उत्पादन की एक बेहतर पद्धति लेकर आया जिसमें कार्बन का उत्सर्जन कम होता है, जो किफायती है और जिसे बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन के उत्पादन में इस्तेमाल किया जा सकता है. इस तरह न्यूट्रेस की अगली पीढ़ी के इलेक्ट्रोलाइज़र का आइडिया सामने आया जो इनपुट के तौर पर रिन्यूएबल (नवीकरणीय) बिजली और पानी का उपयोग करता है, और जिसकी संरचना में किसी भी दुर्लभ धातु का इस्तेमाल नहीं है. इस तरह से तैयार हाइड्रोजन सतत और कम लागत वाला है. 

काफी हद तक जलवायु परिवर्तन के तेज़ असर के कारण बढ़ती औद्योगिक, राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता की वजह से हाइड्रोजन के उत्पादन की वैल्यू चेन को स्वच्छ करने की अहमियत बढ़ रही है. इस बदलाव को मददगार सरकारी रेगुलेशंस, नवीकरणीय ऊर्जा में दीर्घकालीन निवेश, सर्कुलर इकोनॉमी के उदय और सतत इंफ्रास्ट्रक्चर से और बढ़ावा मिला है. तकनीकी प्रगति को भी इसमें जोड़ दिया जाए तो स्वच्छ ऊर्जा का इनोवेशन ज़्यादा सुगम और किफायती हो गया है. उदाहरण के लिए, जनवरी 2023 में लागू किया गया राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन भारत सरकार के द्वारा अगले दशक के दौरान ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन, उसे अपनाने और निर्यात की दिशा में देश को आगे रखने के लिए एक उल्लेखनीय पहल है. 

सतत हाइड्रोजन उत्पादन और उपयोग को शुरू करना आर्थिक समृद्धि और एक स्वच्छ एवं ज़्यादा सतत भविष्य को बढ़ावा देने- दोनों के लिए महत्वपूर्ण है. अपनी अत्याधुनिक इलेक्ट्रोराइज़र तकनीक के साथ न्यूट्रेस का लक्ष्य जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ इस लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान देना है. इसके साथ-साथ भारत की ऊर्जा सुरक्षा की आकांक्षा को भी बढ़ावा देना है. 

2.न्यूट्रेस की गेम-चेंजर तकनीक 

इलेक्ट्रोलाइज़र ऐसी डिवाइस है जो पानी को हाइड्रोजन (H2) और ऑक्सीज़न (O2) में विभाजित करने के लिए बिजली का उपयोग करती है. इसके बाद हाइड्रोजन गैस जमा होती है और कई तरह के औद्योगिक काम में इस्तेमाल की जाती है. न्यूट्रेस के इलेक्ट्रोलाइज़र को इसकी पेंटेट की गई, अत्याधुनिक तकनीक सबसे अलग करती है क्योंकि ये कुल उत्पादन लागत में 60 प्रतिशत की कमी लाती है जबकि इसका मॉड्यूलर डिज़ाइन बड़े पैमाने पर उत्पादन को सुनिश्चित करता है. डिज़ाइन पानी को H2 और 02 में विभाजित करने के लिए नई प्रीसिज़न फ्लूइड इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी को बिना किसी परेशानी से जोड़ता है. इसमें एक उन्नत इलेक्ट्रोकैटलिस्ट मदद करता है जो दुर्लभ धातुओं की ज़रूरत को ख़त्म करता है. ये तकनीक न सिर्फ़ किफायती है बल्कि एक बड़ी, जटिल सप्लाई चेन पर शून्य निर्भरता की वजह से सतत उत्पादन के संचालन को भी बढ़ावा देती है. अंत में, आधुनिक स्वचालित उत्पादन ने प्रोटोटाइप के विकास और टेस्टिंग की साइकल को काफी कम कर दिया है और इस तरह नए उत्पाद के विकास में लंबे बदलाव का समय (टर्नअराउंड टाइम) और जटिलताएं कम हो गई हैं. मिसाल के तौर पर, बड़े पैमाने पर 3D प्रिंटिंग का लाभ उठाकर महत्वपूर्ण और जटिल डिज़ाइनों का एक विशाल स्पेक्ट्रम पेश किया जाता है. 

जब हम व्यावसायिक उत्पादन की तरफ बढ़ते हैं तो R&D में विकास पर हमारा सबसे ज़्यादा ध्यान बना हुआ है. भविष्य के विस्तार को ध्यान में रखते हुए अत्याधुनिक लैब तैयार करने में तेज़ी से प्रगति हो रही है. हमारे यहां मौजूद सुविधाएं हाइड्रोजन बाज़ार में आगामी विकास के साथ-साथ उससे जुड़ी अपेक्षित मांग से निपटने के लिए तैयार हैं. हमारी R&D गतिविधियों के नतीजतन वर्तमान में मॉड्यूलर स्टैक को दोहराने के साथ एक बेहद कुशल इलेक्ट्रोकैटलिस्ट का विकास हुआ है. हमारी टीम व्यापक स्तर पर हाइड्रोजन उत्पादन के लिए बैलेंस ऑफ प्लांट (BoP) को बढ़ाने के काम में भी लगी हुई है. हम अपनी मौजूदा 30 लोगों की टीम को बढ़ाकर 2023 के आख़िर तक 50 लोगों की टीम करने जा रहे हैं. हमारा ध्यान इलेक्ट्रोकेमिस्ट्री, स्टैक इंजीनियरिंग, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट और मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में एक मज़बूत प्रोडक्ट टीम बनाने पर है. हम वैश्विक बाज़ार के लिए एक मज़बूत बिज़नेस डेवलपमेंट टीम बनाने के साथ-साथ अपनी संचालन और इस्तेमाल की क्षमता भी बढ़ा रहे हैं. 

जब हम व्यावसायिक उत्पादन की तरफ बढ़ते हैं तो R&D में विकास पर हमारा सबसे ज़्यादा ध्यान बना हुआ है. भविष्य के विस्तार को ध्यान में रखते हुए अत्याधुनिक लैब तैयार करने में तेज़ी से प्रगति हो रही है.

भारत का ऊर्जा परिवर्तन सीधे तौर पर उभरती स्वदेशी तकनीक के विकास के परिदृश्य पर टिका हुआ है. 2030 तक 5 Mt ग्रीन हाइड्रोजन के सालाना उत्पादन के देश के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के लिए पैमाने वाली एवं कुशल तकनीक और इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत है. न्यूट्रेस का किफायती और बड़े पैमाने वाला इलेक्ट्रोलाइज़र समाधान औद्योगिक पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन को ख़त्म करने वाली व्यापक स्तर की ग्रीन हाइड्रोजन की परियोजनाओं को शुरू करने में भारत की क्षमता को बढ़ा सकता है. ये नेट-ज़ीरो टारगेट को हासिल करने के लिए जलवायु परिवर्तन को ख़त्म करने की दिशा में एक बेहद महत्वपूर्ण कदम है. 

वैसे तो हाइड्रोजन इकोसिस्टम भविष्य में हमारे काम-काज में विविधता लाने के लिए कई तरह के अवसर पेश करता है लेकिन न्यूट्रेस मौजूदा समय में कम लागत और बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए तकनीक को पेश करने के लिए समर्पित है. अंत में, हम हाइड्रोजन स्टोरेज, परिवहन और वितरण में प्रमुख कंपनियों के साथ मिलकर काम करने की तरफ देख रहे हैं. इससे मिलजुलकर हाइड्रोजन इकोसिस्टम के विस्तार के लिए अवसरों की एक व्यापक श्रेणी सामने आएगी. 

3. आगे बढ़ने की चुनौतियां और प्रमुख भागीदारों के लिए सिफारिशें

वैसे तो न्यूट्रेस का विज़न आशाजनक है लेकिन व्यापक तौर पर अपनाने की राह में कुछ प्रमुख चुनौतियां मौजूद हैं. प्राथमिक बाधा तकनीक के विकास, उत्पादन और बड़े पैमाने के ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट में फंडिंग की कमियों को पूरा करने में है. बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट में इस्तेमाल करने के लिए GH2 के अंतिम उपयोगकर्ताओं की एकीकरण आवश्यकताओं के समाधान के अलावा हमेशा छोटे पैमाने के पायलट प्रोजेक्ट शामिल होंगे. 

नीति निर्माताओं और निवेशकों को अनुकूल नीतिगत रूप-रेखा और वित्तीय प्रोत्साहन तैयार करने के लिए हर हाल में तालमेल करना चाहिए ताकि हमारे उत्पादों के शुरुआती चरण के दौरान निर्माण, दोहराने और बेहतर करने के लिए हमारे जैसे स्टार्टअप को बढ़ावा मिल सके. ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन और इलेक्ट्रोलाइज़र में तेज़ी लाने के लिए विशेष वित्तीय योजनाएं जैसे कि प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (PLI) स्कीम एक महत्वपूर्ण कदम है लेकिन इस क्षेत्र में अनूठे तकनीकी विकास और उसे अपनाने का समर्थन करने के लिए अवसरों को अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है. 

इसके आगे, भारत के औद्योगिक क्षेत्र को उभरती तकनीकों और स्टार्टअप्स को आगे बढ़ाने और अपनाने की भी ज़रूरत है. जुड़ने का मानदंड उभरते स्टार्टअप्स और उनकी तकनीकों का समर्थन करने के मुताबिक बदलना चाहिए. अंतरिक्ष-तकनीक सेक्टर में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) जैसे संगठनों ने अच्छा काम किया है. आसान और कुशल बैंकिंग प्रक्रिया, ख़ास तौर से साबित क्षमता के साथ वाले स्टार्टअप्स के लिए, प्रोजेक्ट को लागू करने में तेज़ी लाएगी और उत्पादन के लंबे समय की वजह से स्टार्टअप्स को जुर्माने से बचने में मदद करेगी. 

स्वदेशी तकनीक के विकास में सप्लाई चेन की चुनौतियों से पार पाने के लिए उत्पादकों और वेंडर का एक मज़बूत नेटवर्क विकसित करना चाहिए.

स्वदेशी तकनीक के विकास में सप्लाई चेन की चुनौतियों से पार पाने के लिए उत्पादकों और वेंडर का एक मज़बूत नेटवर्क विकसित करना चाहिए. उत्पादन और क्षमता में बढ़ोतरी के उद्देश्य से वेंडर्स के साथ तालमेल करते समय इन-हाउस डिज़ाइनिंग और रिसर्च करने का न्यूट्रेस का नज़रिया दूसरे स्टार्टअप्स के लिए एक ठोस मॉडल के रूप में काम कर सकता है. इसके अलावा वेंडर इकोसिस्टम का विकास एक ज़्यादा समय लगने वाला लेकिन आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. साथ ही तकनीक को ख़ास तरह से ढालने में उद्योग के भागीदारों को शामिल करने वाले एक फीडबैक प्रेरित दृष्टिकोण का नतीजा ज़्यादा अनुकूल समाधानों के रूप में निकलेगा जो हाइड्रोजन के  अलग-अलग उपयोग की आवश्यकता के साथ जुड़ता है.

4.निष्कर्ष

ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में न्यूट्रेस का सफर भारत के ऊर्जा परिवर्तन की मांग के अनुसार इनोवेशन और दृढ़ निश्चय की भावना का उदाहरण है. तेज़ तकनीकी प्रगति और वित्तीय सोच-विचार के बीच न्यूट्रेस की तकनीक में भारत की स्वच्छ ऊर्जा के परिदृश्य को आकार देने में एक परिवर्तनकारी भूमिका अदा करने की क्षमता है. स्वच्छ और सतत ऊर्जा समाधान मुहैया कराने में कंपनी का उद्देश्य लोगों के जीवन को बेहतर बनाना, समुदायों को सशक्त बनाना और पर्यावरण की देख-रेख को बढ़ावा देना है. नीति निर्माताओं, निवेशकों और उद्योग के भागीदारों के लगातार समर्थन के साथ न्यूट्रेस और दूसरे स्टार्टअप भारत और विश्व के लिए एक हरित, स्वच्छ और उज्ज्वल भविष्य की तरफ एक रास्ता तैयार कर सकते हैं.


प्रशांत सरकार न्यूट्रेस के को-फाउंडर और CEO हैं.

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