Author : Paul M Cadario

Published on Apr 29, 2022 Updated 1 Days ago

अब अगली परिचर्चां- फिर चाहे वो लोगों के व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण से जुड़े हों या फिर सरकार की भूमिका का दायरा बढ़ाने को लेकर- उनके कम विवादित होने की संभावना कम ही है.

सरकार का नियमन और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर आधारित भविष्य की राह

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने तकनीक और ख़ास तौर से इसके प्लेटफॉर्म के नियमन में सरकार की भूमिका को कई मामलों में इस तरह से केंद्र में ला दिया है, जिसकी पहले पूरी तरह से कल्पना ही नहीं की गई थी.

हिंसा की तस्वीरें, समाचार या ‘ख़बर’ का प्रचार या पाबंदी, दुनिया भर में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाने वाले तकनीक के प्लेटफॉर्म और संघर्ष का दस्तावेज़ तैयार करने और उसकी ख़बर देने में पत्रकारों की भूमिका इस तरह से प्रकाश में लाई गई है, या उस पर नए सिरे से ऐसी चर्चा हो रही है, जैसी यूरोप में दूसरे विश्व युद्ध के बाद से नहीं हुई थी. तकनीक को नए सिरे से ढालने का ये काम उस वक़्त हो रहा है, जब इंटरनेट पर निजता और सुरक्षा को लेकर बहस हो रही है, जिसे लेकर अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ ने अलग अलग नज़रिए अपनाए हुए हैं.

यूरोपीय संघ के मार्च 2022 में पारित डिजिटल मार्केट एक्ट का मक़सद, ‘एक ऐसे सुरक्षित डिजिटल स्पेस के निर्माण का लक्ष्य रखता है, जहां पर यूज़र्स के बुनियादी अधिकार सुरक्षित हों और कारोबार के लिए सबको बराबरी का मौक़ा मिले.’ 

यूरोपीय संघ के जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) लोगों के डेटा संरक्षण के सख़्त नियम तय करता है और इसका पालन न करने वालों पर बड़े जुर्माने लगाने की बात करता है, फिर चाहे वो मंच या संगठन कहीं से भी चलाए जाते हों और उनका मुख्यालय कहीं भी स्थित हो. यूरोपीय संघ के मार्च 2022 में पारित डिजिटल मार्केट एक्ट का मक़सद, ‘एक ऐसे सुरक्षित डिजिटल स्पेस के निर्माण का लक्ष्य रखता है, जहां पर यूज़र्स के बुनियादी अधिकार सुरक्षित हों और कारोबार के लिए सबको बराबरी का मौक़ा मिले.’ GDPR की तरफ़ से यूरोपीय संघ के पूरे डिजिटल बाज़ार में ‘एक ही क़ानूनी इंटरफ़ेस’ होना, न केवल बड़ी तकनीकी कंपनियों के लिए बल्कि स्टार्टअप और यूरोप के बहुत से देशों की डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हुआ है. यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया और यूनान जैसे छोटे देशों की डिजिटल अर्थव्यवस्था में भी तेज़ी से उछाल देखा गया है.

GDPR की कामयाबी को आगे बढ़ाते हुए डिजिटल मार्केट एक्ट (DMA) की ‘डिजिटल सेवाओं’ की व्यापक परिभाषा के दायरे में सामान्य वेबसाइट से लेकर, ‘इंटरनेट की मूलभूत ढांचे वाली सेवाएं’ और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तक सब शामिल हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि इसमें सब निगरानी करने वाले मंच, ‘वो डिजिटल प्लेटफॉर्म जिनकी इंटरनेट के बाज़ार में संस्थागत भूमिका है, जो अहम डिजिटल सेवाओं के मामले में कारोबारियों और ग्राहकों के बीच रोड़े डालने का काम करते हैं’. डिजिटल सर्विस एक्ट (DSA) ये मानता है कि यूरोपीय संघ के अंदरूनी बाज़ार में इस बदलाव से ये फ़ायदा हो रहा है कि बाज़ार ज़्यादा कुशल और पारदर्शी बन रहे हैं और इसके साथ साथ उन्हें नए बाज़ार तक पहुंच बनाने और अपना विस्तार करने का भी मौक़ा मिलता है. हालांकि, ये क़ानून ये भी मानता है कि इनसे कुछ समस्याएं भी पैदा होती हैं. ख़ास तौर से इससे ऑनलाइन दुनिया में अवैध सामान, सेवाएं और कंटेंट के व्यापार को बढ़ावा मिलता है, और ‘जोड़-तोड़ करने वाले एल्गोरिद्म के सिस्टम इनका ग़लत जानकारी को बढ़ावा देने और अन्य नुक़सानेदह मक़सदों के लिए भी इस्तेमाल करते हैं’.

नई चुनौतियां

ये नई चुनौतियां और इनसे निपटने के लिए प्लेटफॉर्म किस तरह के क़दम उठाते हैं, इसका यूरोपीय संघ के बुनियादी दस्तावेज़ में दर्ज़ मूलभूत अधिकारों पर बहुत गहरा असर पड़ता है. ऐसी ही चिंताएं अमेरिका और चीन की भी हैं. हालांकि ये दोनों देश अपनी चिंताओँ को अलग तरह से व्यक्त करते हैं, और इनका अलग प्रभाव भी पड़ता है.

ये नई चुनौतियां और इनसे निपटने के लिए प्लेटफॉर्म किस तरह के क़दम उठाते हैं, इसका यूरोपीय संघ के बुनियादी दस्तावेज़ में दर्ज़ मूलभूत अधिकारों पर बहुत गहरा असर पड़ता है. ऐसी ही चिंताएं अमेरिका और चीन की भी हैं. 

अपने यहां इंटरनेट को नियमित करने का चीन का लक्ष्य सामाजिक संरक्षण और सामाजिक सौहार्दर की रक्षा करने का होता है. ये पिछले एक हज़ार साल से साम्राज्यवादी शासन के दौर से ही चीन के नेताओं का मक़सद रहा है. चीन की ग्रेट फायरवाल के दायरे में कई महत्वपूर्ण और अनूठे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे कि बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की जाने वाली माइक्रोब्लॉगिंग और सोशल मीडिया साइट वीबो है, जिसकी सख़्त निगरानी की जाती है. वीबो ने अब अपना विस्तार कारोबारी मार्केटिंग के क्षेत्र में भी कर लिया है. इसके अलावा ऐंट फाइनेंशियल का अलीपे भी चीन के नियमन के दायरे में है, जो एक ई-वॉलेट ऐप है, जो चीन के अंदर और बाहर के यूज़र्स को अपनी वित्तीय जानकारियां रखने की इजाज़त देता है, जिससे कि वो डिजिटल ऑनलाइन और इन-स्टोर ख़रीदारियां और भुगतान उसी तरह कर सकें, जैसे एपलपे से कर सकते हैं.

इन दोनों ही मंचों में चीन के अधिकारियों ने काफ़ी दिलचस्पी दिखाई है और वो इसमें बड़ी सक्रियता से दखल भी देते हैं. अलीपे में यूज़र्स के ख़र्च और निवेश का वित्तीय रिकॉर्ड तो रखा ही जाता है. वो इस मंच पर दर्ज उनकी संपत्तियों का भी हिसाब बचाकर रखता है. हाल के दिनों तक इसे विदेशों में भी काफ़ी स्वीकार्यता हासिल थी. वहीं वीबो के कंटेंट की न सिर्फ़ निगरानी की जाती है, उसमें काट-छांट की जाती है और उसे सेंसर किया जाता है. बल्कि, इस प्लेटफॉर्म पर ऑनलाइन भुगतान की भी एक सुविधा, वीचैट पे है. चूंकि चीन में होने वाले 55 फ़ीसद भुगतान इसी से होते हैं, और प्लेटफॉर्म के यूज़र्स को लोन के ऑफ़र भी दिए जाते हैं. इसीलिए, इन दोनों की चीन के वित्तीय अधिकारी सख़्त निगरानी करते हैं.

दुनिया की ज़्यादातर अकादेमिक और आम परिभाषाओँ के मुताबिक़ चीन एक लोकतांत्रिक देश नहीं है. फिर भी इसके दो बड़े ऐप और जिस तरह उनका नियमन होता है, उसमें एक ऐसा ढांचा देखने को मिलता है जिससे अमेरिका के प्लेटफॉर्म और इंटरनेट के मूलभूत ढांचे को मुहैया कराने वालों का इस संदर्भ में मूल्यांकन किया जा सकता है कि वो लोकतंत्रों और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा किस तरह से करते हैं. हाल में यूक्रेन पर रूस के हमले हाल की घटनाएं इस बात की गवाही देती हैं.

सोशल मीडिया पर किसी टकराव की स्थिति में सरकारों को दख़ल देने की चुनौती दी जाती है. यूरोपीय संघ के कई देशों, अमेरिका, कनाडा और अन्य लोकतांत्रिक देशों ने तय किया है कि वो अपने क्षेत्र में रूसी यूज़र्स द्वारा सोशल मीडिया पर डाली जाने वाली पोस्ट पर ठीक उसी तरह प्रतिबंध लगाएं, जैसे प्रतिबंध जर्मनी और कनाडा लंबे समय से यहूदियों के नरसंहार के मामले में लगाते आए हैं. 

अमेरिकी तकनीकी कंपनियां और मंच भी निजी डेटा के संरक्षण के लिए ऐसे ही सिद्धांतों का पालन करते हैं. लेकिन, वहां पर यूरोपीय संघ की तरह डेटा संरक्षण की औपचारिक व्यवस्था नहीं है, न ही प्लेटफॉर्म या मूलभूत ढांचे में सरकार की सीधी और सक्रिय भूमिका है. टुकड़ों में कुछ नियम क़ानून बनाए गए हैं, जो अमेरिका में सरकार की दख़लंदाज़ी से आज़ादी और नागरिकों की स्वतंत्रता के सिद्धांतों के अनुरूप ही हैं. इनमें उन कंपनियों की जवाबदेही भी शामिल है, जिनके पूरे डेटाबेस को हैक कर लिया जाता है और फिर उन्हें यूज़र्स और सरकार को इसकी जानकारी देनी होती है. कई बार ऐसी कंपनियों पर अमेरिकी केंद्रीय ग्राहक संरक्षण संस्था संघीय व्यापार आयोग द्वारा जुर्माना भी लगाया जाता है. लोगों के निजी स्वास्थ्य और वित्त संबंधी रिकॉर्ड को और सख़्त नियमन का सामना करना पड़ता है. इसका मुख्य लक्ष्य निजी वित्तीय और स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों को तीसरे पक्ष से साझा करने से रोकना है. सिर्फ़ कैलिफ़ोर्निया राज्य में ही डेटा और व्यक्तिगत निजता के संरक्षण का ऐसा क़ानून है, जो यूरोपीय संघ के मानकों के बराबर है. हालांकि अभी भी कैलिफोर्निया के बाहर इस क़ानून को लागू करने की इजाज़त नहीं है.

सोशल मीडिया पर किसी टकराव की स्थिति में सरकारों को दख़ल देने की चुनौती दी जाती है. यूरोपीय संघ के कई देशों, अमेरिका, कनाडा और अन्य लोकतांत्रिक देशों ने तय किया है कि वो अपने क्षेत्र में रूसी यूज़र्स द्वारा सोशल मीडिया पर डाली जाने वाली पोस्ट पर ठीक उसी तरह प्रतिबंध लगाएं, जैसे प्रतिबंध जर्मनी और कनाडा लंबे समय से यहूदियों के नरसंहार के मामले में लगाते आए हैं. मेटा ने भी फ़ेसबूक पर रूस और यूक्रेन के यूज़र्स द्वारा की जाने वाली पोस्ट की निगरानी और सख़्त कर दी है. मेटा ने रूस के सरकारी मीडिया को किसी भी तरह की पोस्ट या विज्ञापन डालने से रोक दिया है और यूक्रेन के उन यूज़र्स के खातों की पहचान करके उन्हें हटा दिया है, जो युद्ध के बारे में पोस्ट करना चाहते हैं. वहीं दूसरी तरफ़ रूस ने अपने मीडिया को आदेश दिया है कि वो यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर ज़ेलेंस्की का कोई इंटरव्यू प्रकाशित न करें. ये ऐसी पाबंदी वाला क़दम है, जो अमेरिका में असंवैधानिक माना जाएगा और जिसकी अवहेलना रूस के वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क वाले यूज़र्स कर सकते हैं, अगर VPN और VPN ऐप क़ानूनी तौर पर मान्यता के साथ उपलब्ध हों.

कई चुनावों में दख़लंदाज़ी के व्यापक विवाद के बाद इन प्लेटफ़ॉर्म ने ख़ुद ही इस खेल को आगे बढ़ाते हुए ट्रोल फार्म, बॉट्स और फ़र्ज़ी खातों की पहचान करके उन्हें हटाना शुरू कर दिया है. लेकिन, जहां तक उनके ख़ास एल्गोरिद्म द्वारा यूज़र्स को कंटेंट का सुझाव देने की बात है, तो ये बात अब तक यूज़र्स के लिए अपारदर्शी बनी हुई है. ऐसे में ये सवाल हमेशा ही बना रहेगा कि प्लेटफॉर्म द्वारा ग़लत या अवैध गतिविधियों को प्रतिबंधित करने की कोशिशें कैसी रही हैं या कैसी होनी चाहिए. जब तक ये सवाल बने हुए हैं, तब तक सरकारों को इस बात पर विचार करना होगा कि इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर ऑनलाइन कंटेंट की निगरानी में उनकी भूमिका कैसी होनी चाहिए.

ऐसे में ये सवाल हमेशा ही बना रहेगा कि प्लेटफॉर्म द्वारा ग़लत या अवैध गतिविधियों को प्रतिबंधित करने की कोशिशें कैसी रही हैं या कैसी होनी चाहिए.

चीन में ये काम तुलनात्मक रूप से काफ़ी आसान रहा है. यूरोपीय संघ में GDPR और नया डिजिटल सर्विसेज़ एक्ट पूरे यूरोपीय संघ के लिए एक व्यापक ढांचा मुहैया कराते हैं, जो मेटा, अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म और गूगल के एकाधिकार स्थापित करने की निगरानी करने और प्रतिद्वंदिता को बढ़ावा देने की यूरोपीय आयोग की भूमिका में सहयोग करता है.

राजनीति और सोशल मीडिया के मंच: सिद्धांतों पर आधारित सुधार?

युद्धों के दौरान प्लेटफॉर्म की भूमिका से और समस्या पैदा होती है? यूक्रेन में सोशल मीडिया ने नागरिकों पर हुए ज़ुल्म और संभावित युद्ध अपराध की बेहद भयकंर तस्वीरें इकट्ठी करके उन्हें शेयर किया जा रहा है. इससे पहले की जंगों में आम तौर पर सूचना के क्षेत्र में सैन्य सूत्रों की प्रभावी भूमिका रहती थी और युद्ध लड़ने वाले अपने साथ पत्रकारों को लेकर चलते थे, जिनकी रिपोर्टिंग को काफ़ी सेंसर किया जाता था. ट्विटर के कुछ यूज़र तो शौकिया विश्लेषक बन गए हैं और वो जियोलोकेशन और अहम ठिकानों का इस्तेमाल करके पोस्ट किए जाने वाले वीडियो की पुष्टि करते हैं और खुले तौर पर उपलब्ध गोपनीय जानकारी मुहैया कराते हैं. आज युद्ध के दौरान आम जनों का इतिहास, हज़ारों सोशल मीडिया पोस्ट के ज़रिए जंग के साथ साथ ही लिखा जा रहा है. ऐसा सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि हर सोशल मीडिया पोस्ट किसी संभावित: युद्ध अपराध का सबूत है, बल्कि इसलिए भी है क्योंकि मीडिया संगठन इन तस्वीरों के सबूत को तुरंत ही दुनिया भर में मौजूद दर्शकों और यूज़र्स तक पहुंचा रहे हैं.

जब तक इंटरनेट के कनेक्शन खुले तौर पर संभव हैं, तब तक सूचना की दुनिया में जनता की राय को प्रभावित करने का रास्ता खुला रहेगा. अगर वेब को पूरी तरह से उसी के दायरे में घेर या बंद नहीं करना है. या फिर रियल टाइम में कंटेंट को संपादित करने और फैक्ट चेक नहीं करना है, तो लोकतांत्रिक सरकारों को इन मंचों पर ही निर्भर रहना होगा कि वो किस तरह से सूचना का प्रबंधन करते हैं, और इस तरह से जनता की राय और इसकी प्रतिक्रिया में सरकार को क़दम उठाने के लिए मजबूर करते हैं.

6 जनवरी 2021 को अमेरिका की सरकार के तख़्तापलट की हिंसक कोशिश के बाद ट्विटर ने जिस तरह तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर स्थायी प्रतिबंध लगाया था, उससे इन प्लेटफॉर्म और इसके ऐप के मालिकों द्वारा अपने मानक ख़ुद तय करने पर छोड़ने और इससे जुड़े विवादों के जोखिमों का एहसास कराया था. 

6 जनवरी 2021 को अमेरिका की सरकार के तख़्तापलट की हिंसक कोशिश के बाद ट्विटर ने जिस तरह तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर स्थायी प्रतिबंध लगाया था, उससे इन प्लेटफॉर्म और इसके ऐप के मालिकों द्वारा अपने मानक ख़ुद तय करने पर छोड़ने और इससे जुड़े विवादों के जोखिमों का एहसास कराया था. ट्विटर के नए सेफ्टी टूल से यूजर्स को अब परेशान करने और अपने आप ही बिना बुलाए आए संदेशों को ब्लॉक करने का अधिकार मिल जाएगा. ‘हालांकि सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म अभी इस दुविधा के शिकार हैं कि क्या ये संरक्षण राजनेताओं को भी मिलना चाहिए. क्योंकि बोलने की आज़ादी की वकालत करने वालों को आशंका है कि वो इन फीचर्स का इस्तेमाल करके अपने आलोचकों का मुंह बंद कर सकते हैं.’

इस समय प्लेटफॉर्म पर किसी एक सुविधा के बदले में दूसरे प्रतिबंध का मसला पहले से ही पेचीदा है. जिस टूल का इस्तेमाल सरकारी अधिकारियों को हिंसक या नफ़रत भरी पोस्ट से सुरक्षित करने के लिए किया जा सकता है, उन्हें ही विरोध में कही जाने वाली बातों को दबाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. मिसाल के तौर पर चुने हुए अधिकारी अपने किसी रुख़ की आलोचना करने वालों या फिर बड़े जनहित के मसलों पर वोट देने वालों को ब्लॉक करने का क़दम उठा सकते हैं.

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर आधारित प्लेटफॉर्म और ऐप का नियमन

सरकारों को इस बात का अंदाज़ा होना चाहिए कि आगे चलकर मशीन लर्निंग (ML) और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) पर आधारित ऐप्स और प्लेटफ़ॉर्म आएंगे और उनका इस्तेमाल भी ख़ूब होगा. आज ऐसी किसी भी चीज़ की कल्पना करना नामुमकिन है, जिसमें आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस अहम न हो, या फिर किसी मौजूदा व्यवस्था में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की वजह से ख़लल न पड़े. डिजिटल अर्थव्यवस्था, वित्त और परिवहन के लिए डिजिटल मानक, डेटा संरक्षण और अलग अलग न्यायिक क्षेत्र में लेन देन और ज़िम्मेदार सोशल मीडिया के क्षेत्र में शिक्षा, श्रम और हुनर, जिसमें अज्ञात आंकड़ों पर आधारित ‘बिग डेटा’ का रिसर्च भी शामिल है, इन सबको मिलाकर ही नियमित करने की ज़रूरत पड़ेगी. यहां तक कि अभी भी हम दो बहुत बड़ी चुनौतियों को अपने सामने खड़ा देख सकते हैं.

‘बायोमेट्रिक से अलग निजता का संरक्षण, उपयोग को आसान बनाने और अर्थपूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करने की व्यवस्था लागू करने लिए सबसे अहम क़दम ये होगा कि पासवर्ड पर आधारित पुष्टि की व्यवस्था को ख़त्म करना होगा.’ लेकिन वो युग अभी बहुत दूर है.

पहला तो ये कि चूंकि वैश्विक प्लेटफॉर्म चाहते हैं कि यूज़र्स उन पर भरोसा करें, तो इसके लिए वो तमाम देशों में आसानी से अपना संचालन करने की सुविधा चाहते हैं. इस संदर्भ में डेटा संरक्षण और निजता के मौजूदा नज़रिए और क़ानून ही आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर आधारित फिल्टर और सुझावों को बढ़ावा देते हैं; इस चुनौती से निपटने के लिए निजी डेटा के संरक्षण के न्यायिक नज़रिए को और सुधारने की ज़रूरत होगी. इसके लिए एक साझा न्यूनतम मानक, जिन्हें आसानी से बताया जाना और भरोसेमंद तरीक़े से लागू करना आवश्यक होगा. लेकिन, जब ऐप और प्लेटफॉर्म के मालिकों को अलग अलग देशों में एक जैसे मानक लागू करने के लिए कहा जाता है, तो इसके लिए ज़रूरी सरकारी मंच दिखाई नहीं देते हैं. इसी वजह से एंटी-ट्रस्ट के कई नए मसले खड़े हो जाते हैं.

दूसरा, जो ऐप बायोमेट्रिक डेटा के भरोसे चलते हैं, उन्हें अलग अलग न्यायक्षेत्रों के हिसाब से ढाल पाना मुश्किल दिखाई देता है. अमेरिका में हर चीज़ के लिए बड़े पैमाने पर बायोमेट्रिक डेटा जुटाया जाता है. फिर चाहे वो पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस हो या फिर हवाई कंपनियों से नियमित रूप से यात्रा करने वालों के लिए भरोसेमंद कार्यक्रम हों. सभी के लिए बायोमेट्रिक डेटा जुटाया जाता है, ताकि कारोबारी और सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी के लिए किसी व्यक्ति के बारे में जानकारी जुटाई जा सके. फिर अमेरिका की इंटरनल रेवेन्यू सर्विस (IRS) ने हाल ही में करदाताओं के लिए अपना रिकॉर्ड देखने के लिए बायोमेट्रिक फेशियल रिकॉग्निशन की अनिवार्यता ख़त्म कर दी है: लोगों का डेटा जमा करने और उसे रखने का काम IRS के बजाय निजी ठेकेदारों के हवाले कर दिया गया. हालांकि, ऐसा लगता है कि आम लोगों की नाराज़गी शायद ठेकेदार के डेटाबेस की हैकिंग से ज़्यादा निजता और आम नागरिकों की आज़ादी को लेकर है. ‘बायोमेट्रिक से अलग निजता का संरक्षण, उपयोग को आसान बनाने और अर्थपूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करने की व्यवस्था लागू करने लिए सबसे अहम क़दम ये होगा कि पासवर्ड पर आधारित पुष्टि की व्यवस्था को ख़त्म करना होगा.’ लेकिन वो युग अभी बहुत दूर है.

जब अकादेमिक रिसर्च के ज़रिए फेशियल रिकॉग्निशन के सॉफ्टवेयर में नस्लीय और लैंगिक पूर्वाग्रह सामने आया, तो अमेरिका के दर्जनों न्यायिक क्षेत्रों ने अपने स्थानीय न्यायिक क्षेत्राधिकार वाली एजेंसियों में इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसकी तुलना में चीन अपने नागरिकों (इसमें उइगर अल्पसंख्यक भी शामिल हैं) की जानकारी जुटाने बड़े पैमाने पर फेशियल रिकॉग्निशन का इस्तेमाल करता है. इसके ज़रिए हांगझोऊ और शंघाई में गाड़ियां चोरी करने वालों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदगी का एहसास कराया जाता है और पासपोर्ट नियंत्रण से ली गई तस्वीरों की तुलना म्यूज़ियम के एंट्री गेट पर करके विदेशी पर्यटकों को म्यूज़ियम में जाने की इजाज़त देने के लिए किया जाता है. इसकी तुलना में यूरोपीय संघ फेशियल रिकॉग्निशन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के लिए क़ानूनी क़दम उठा रहा है. इसकी संसद में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क़ानून के ज़रिए सार्वजनिक स्थानों पर पुलिस द्वारा फेशियल रिकॉग्निशन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने को लेकर चर्चा चल रही है.

डिजिटल कारोबार के भूमंडलीकरण से आख़िर में जाकर तमाम न्यायिक क्षेत्रों में समानता लाने की दरकार होगी क्योंकि कारोबार में आसानी के लिए इसकी ज़रूरत होती है और यूज़र चाहते हैं कि वो प्लेटफॉर्म पर भरोसा करके उसका इस्तेमाल करना चाहते हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/ मशीन लर्निंग पर आधारित प्लेटफॉर्म और सेवाओं के बड़े पैमाने पर उपयोग की शुरुआत से पहले डेटा संरक्षण और निजता के संरक्षण पर इस वक़्त चल रही बहस आसान नहीं रही है और अब तक ये किसी नतीजे पर भी नहीं पहुंच सकी है. अब अगली परिचर्चां- फिर चाहे वो लोगों के व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण से जुड़े हों या फिर सरकार की भूमिका का दायरा बढ़ाने को लेकर- उनके कम विवादित होने की संभावना कम ही है.

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Paul M Cadario

Paul M Cadario

Paul M Cadario is Distinguished Fellow in Global Innovation at the Munk School of Global Affairs and Public Policy University of Toronto.

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