Author : Avijit Goel

Published on Apr 10, 2019 Updated 0 Hours ago

रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण गोलान हाइट्स पर जिसका भी नियंत्रण होता है, उसे आस-पास के इलाक़े पर एक अलग सैन्य लाभ मिलता है।

इज़रायल के चुनावों में गोलान का प्रत्यक्ष प्रभाव

गोलान हाइट्स से यूएन क्षेत्र और सीरियाई नियंत्रण वाले क्षेत्र का अवलोकन।

अगले कुछ ही दिनों में इज़रायल में होने जा रहे संसदीय चुनाव की क़िस्मत बेनी गैंट्ज़ की अगुवाई वाली ब्लू और वाइट अलायंस और मौजूदा प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की लिकुड पार्टी के बीच अनिश्चित रूप से संतुलित है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन किस मीडिया आउटलेट को फ़ॉलो कर रहा है, क्योंकि मिडिल ईस्ट को लेकर हर दूसरे ग्रे डिटेल के साथ विजेताओं के नाम का एलान पहले ही हो चुका है।

कनेसेट (इज़रायल की संसद) की 120 सीटें कई राजनीतिक दलों के बीच बंटी हुई हैं और आम तौर पर विजेता पार्टी का एक चौथाई सीट पर क़ब्ज़ा होता है या फिर विभाजित सीटों से ज़्यादा पर। इसलिए, चुनाव के बाद गठबंधन असली परीक्षा है (एक हफ़्ते पहले एक बड़े नेटवर्क के सर्वेक्षण में प्रधानमंत्री की पसंद पूछे जाने पर 38 फ़ीसदी लोगों ने मौजूदा प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को अपनी पहली पसंद बताया जबकि 36 फ़ीसदी लोगों की पसंद बेनी गैंट्ज़ थे)।

यह इज़रायल के सबसे क़रीबी चुनावों में से एक है, प्रतिस्पर्धी पक्षों द्वारा एक-दूसरे पर हमलों के बीच पिछले हफ़्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का एक एलान इस द्वंद्व युद्ध में उनके अति प्रभाव की ओर इशार करता है। डॉनल्ड ट्रंप ने गोलान पहाड़ियों पर इज़रायल के अधिकार को मान्यता देने का एलान किया। गोलान हाइट्स रणनीतिक रूप से बेहद अहम पहाड़ी इलाक़ा है जिसे इज़रायल ने क़रीब 50 साल पहले 1967 की छह दिनों की लड़ाई में सीरिया से छीन लिया था, लेकिन इज़रायल के क़ब्ज़े को दुनिया ने कभी मान्यता नहीं दी। अमेरिकी राष्ट्रपति का इज़रायल के पक्ष में इस ऐताहिसक फ़ैसले का श्रेय प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को मिलेगा और इसकी वजह से चुनाव में नेतन्याहू की लिकुड पार्टी का पलड़ा भारी रहने की उम्मीद है।

एक जीती हुई ज़मीन पर क़ब्ज़े को स्वीकार करना आश्चर्यजनक है क्योंकि आधुनिक अमेरिकी इतिहास में यह अभूतपूर्व है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। पिछले हफ़्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ट्वीट के ज़रिए जब अपने फ़ैसले का एलान किया तब अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो बेंजामिन नेतन्याहू के साथ जश्न मनाने के लिए यरुशलम पहुंचे हुए थे। इसके बाद माइक पॉम्पियो ने एक क़दम आगे बढ़ते हुए डॉनल्ड ट्रंप की तुलना रानी एस्थर से कर दी, बाइबिल की एक नायिका जिसे यहूदियों का मसीहा माना जाता है। नेतन्याहू के साथ साझा धर्मशास्त्रीय भाषा ने अमेरिकी ईवैन्जेलिकल (ईसाई धर्म पुस्तक संबंधी) के साथ गठजोड़ करने में मदद की है, जो अमेरिकी राजनीति में नेतन्याहू के दबदबे की कुंजी है।

बेंजामिन नेतन्याहू के लिए, डॉनल्ड ट्रंप इस समय एक राजनीतिक रूप से फ़ायदेमंद सपने के सच होने जैसे हैं, क्योंकि ठीक चार साल पहले तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2015 के चुनावों से पहले ग़ैर-हस्तक्षेप का हवाला देते हुए बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाक़ात से इनकार कर दिया था। डॉनल्ड ट्रंप न सिर्फ़ 2019 चुनावों से कुछ पहले बेंजामिन नेतन्याहू से मिल रहे हैं, बल्कि सार्वजनिक तौर पर वो नेतन्याहू में अपने विश्वास को जाहिर कर रहे हैं, और राजनीतिक रूप से गोलान पहाड़ी जैसे तोहफ़े देकर चुनाव से पूर्व जीत की शुभकामनाएं दे रहे हैं।

हालांकि यह यहूदी तुष्टिकरण की लंबी कोशिशों में से एक है, जो कि अमेरिकी दूतावास को यरुशलम से हटाने, वॉशिंगटन स्थित फ़िलिस्तीनी राजनयिक दफ़्तरों को बंद करने और फ़िलिस्तीनी लोगों के लिए काम करने वाले अमेरिका के अपने वाणिज्यिक दूतावासों को बंद करने के फ़ैसले तक फैला हुआ है। वेस्ट बैंक पर इज़रायली शासन के मुहर के रूप में असली तोहफ़ा चुनाव के थोड़े दिन बाद आ सकता है, बिल्कुल ट्रंप स्टाइल में।

रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण गोलान हाइट्स पर जिसका भी नियंत्रण होता है, उसे आस-पास के इलाक़े पर एक अलग सैन्य लाभ मिलता है। छह दिनों की लड़ाई के दौरान, सीरिया की सेना ने बम के गोलों से गैलिली को उड़ाने के लिए गोलान हाइट्स का इस्तेमाल किया था। इज़रायल ने न सिर्फ़ युद्ध में गोलान के पहाड़ी मैदान पर क़ब्ज़ा कर लिया, बल्कि इसने इस इलाक़े को विस्थापित कर दिया और फिर से यहां आबादी बसा दी। 1973 में सीरिया ने मध्य-पूर्व युद्ध के दौरान गोलान हाइट्स को दोबारा हासिल करने की कोशिश की, लेकिन यह प्रयास असफल रहा। और इसका परिणाम ये हुआ कि 1981 में इज़रायल ने गोलान हाइट्स को अपने क्षेत्र में मिलाने की एकतरफ़ा घोषणा कर दी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने इज़रायल के इस क़दम को ख़ारिज कर दिया और अंतरराष्ट्रीय जगत में इसकी ख़ूब निंदा हुई। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के प्रस्ताव ने गोलान हाइट्स पर इज़रायल के क़ब्ज़े को अमान्य घोषित कर दिया, क्योंकि ये अधिग्रहण बलपूर्वक किया गया था।

गोलान हाइट्स को फिर से पाने के लिए सीरियाई स्कूली बच्चों द्वारा हर साल कुछ प्रार्थनाओं के अलावा, यह हमेशा “क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों” का भूला हुआ हिस्सा रहा है। शांति समझौते के तहत इज़रायल ने सीनाई प्रायद्वीप को मिस्र को लौटा दिया था, और वेस्ट बैंक और गाज़ा की क़िस्मत इज़रायल और फ़िलिस्तीन के बीच शांति वार्ता का फ़ोकस बन गया।

हालांकि डॉनल्ड ट्रंप के इस एलान ने एक बार फिर से इस इलाक़े को दुनिया की नज़र में ला दिया है। मिस्र, तुर्की, ज़्यादातर अमेरिकी सहयोगियों और अरब के पड़ोसियों ने ट्रंप के इस एलान की कड़ी निंदा की है।

हालांकि, अरब स्प्रिंग के बाद से मध्य पूर्व की बदलती राजनीतिक रूप-रेखा और कई घरेलू मुद्दों से निपटने की चुनौती को देखते हुए, ऐसा कम ही लगता है कि चिंतित पड़ोसी अरब देश ऐसा कर सकते हैं या इससे उन्हें कुछ हासिल हो सकता है। सीरिया गृह युद्ध की मार झेल रहा है और ईरान के पास बड़ी आंतरिक राजकोषीय चिंता है।

अरब की एक समाचार साइट के संपादक का कहना है कि — “गोलान हाइट्स को हमेशा उस प्रलोभन के तौर पर देखा गया जिसे सीरिया के साथ शांति के लिए इज़रायल कभी भी दे सकता है, और अब शांति कोई मायने नहीं रखती, सीरिया मायने नहीं रखता और शायद अब सीरिया उस इलाक़े का, उस ज़मीन का वैध/असल मालिक नहीं है।

इस बीच, जिस समय में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने गोलान हाइट्स पर इज़रायल के क़ब्ज़े को स्वीकृति दी है, यह इज़रायल के मौजूदा प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए अपने 13 साल के शासन को विस्तार देने का एक सुनहरा मौक़ा हो सकता है।

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