2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था और वैश्विक व्यापार में बंटे होने का रुझान जारी रहा. पश्चिम एशिया में फिर से खड़ा संघर्ष और यूरोप में युद्ध की वजह से बने दबाव ने व्यापार की स्थिरता को हिला दिया है. विवाद का एक और क्षेत्र है ग्रीन टैरिफ और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए उनका असर. इन सभी चीजों के साथ बहुपक्षीय स्तर पर शिथिलता जुड़ी रही है और सुधार के लिए कोई वास्तविक ज़ोर नहीं लगाया गया है. अंकटाड[i] का अनुमान है कि आने वाले वर्ष में सामानों के वैश्विक व्यापार में 5 प्रतिशत की गिरावट आएगी और सेवाओं में व्यापार से 2024 में व्यापार विकास होने की संभावना है.
सेमीकंडक्टर समेत इलेक्ट्रॉनिक्स के पुर्जों में व्यापार का पिछले दशक के दौरान दुनिया भर में आर्थिक विकास को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
वैश्विक व्यापार संरचना में विकास को तीन व्यापक घटनाक्रम की समीक्षा से सामने रखा जा सकता है: अमेरिका-चीन व्यापार विवाद और अहम कमोडिटी; G20 और इसलिए वैश्विक व्यापार सर्वसम्मति में भारत की भूमिका; और आने वाला 13वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC13) एवं विश्व व्यापार संगठन (WTO) से उम्मीदें. ये घटनाक्रम पिछले दशक में व्यापार संबंधों को निर्धारित कर रहे हैं और निरंतर संरक्षणवादी प्रवृत्तियों एवं वैश्वीकरण से दूर जाने को उजागर कर रहे हैं. व्यापार को फिर से अपने देश में स्थापित करने (रिशोरिंग), नज़दीक के देश में स्थापित करने (नीयरशोरिंग) और सहयोगी देश में स्थापित करने (फ्रेंड-शोरिंग) की नीतियों के माध्यम से वैल्यू चेन में विविधता लाने की कोशिशों में भी बढ़ोतरी हुई है.
हमेशा क्रोध में रहने वाला रवैया
सेमीकंडक्टर समेत इलेक्ट्रॉनिक्स के पुर्जों में व्यापार का पिछले दशक के दौरान दुनिया भर में आर्थिक विकास को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. सेमीकंडक्टर सप्लाई का कई महत्वपूर्ण तकनीकों के उत्पादन पर असर पड़ता है. ये उन क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो हरित परिवर्तन (ग्रीन ट्रांज़िशन) और डिजिटल अर्थव्यवस्था पर असर डालते हैं. महत्वपूर्ण खनिजों और सेमीकंडक्टर के लिए दुनिया भर में मांग दो प्रमुख तत्वों की वजह से साथ-साथ चलती हैं- संसाधनों तक पहुंच और प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) तकनीक. इस चर्चा में एक महत्वपूर्ण सूत्र सेमीकंडक्टर का सैन्य इस्तेमाल है जो किसी देश की राष्ट्रीय सुरक्षा संरचना को अपडेट करने के लिए उन्हें ज़रूरी बनाते हैं.
दुनिया भर में चिप की कमी- जिसकी शुरुआत 2020 में हुई थी और जो मांग के मुताबिक सप्लाई नहीं होने का मामला है- की समस्या चीन और अमेरिका के बीच मौजूदा व्यापार युद्ध की वजह से और जटिल हुई है. 2019 में हुआवे और 2020 में सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉरपोरेशन पर अमेरिका की प्रतिबंध लगाने की कार्रवाई कुछ ऐसी घटनाएं थीं जिन्होंने इस सेक्टर पर असर डाला. कोविड-19 महामारी की वजह से कंज़्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए मांग बढ़ने और दुनिया भर में इससे जुड़ी सप्लाई में रुकावट के कारण कच्चे माल के स्रोतों के केंद्रीकरण (कन्सन्ट्रेशन) के ख़तरों को लेकर नए सिरे से जागरूकता आई है. चीन भी महत्वपूर्ण कच्चे माल जैसे कि गैलियम और जर्मेनियम[ii] पर निर्यात पाबंदियां लगा रहा है जिसकी वजह से संकट में और बढ़ोतरी हुई है. चीन के अलावा रूस और यूक्रेन इन कच्चे माल में से कुछ के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े सप्लायर हैं. लंबे युद्ध की वजह से इन देशों से आपूर्ति पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.
अमेरिका के द्वारा 2022 के अपने इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट[iii] (मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम) को लागू करने और EU के द्वारा सितंबर 2023 में अपने चिप्स एक्ट[iv] को प्रकाशित करने के साथ 2023 में इन घटनाक्रमों का कुछ हद तक समाधान ग्लोबल नॉर्थ (विकसित देश) से मिला है. अपनी संरक्षणवादी प्रवृत्तियों के कारण इन नीतियों की काफी आलोचना हुई थी. भारत भी चिप्स के उत्पादन और महत्वपूर्ण खनिज की सप्लाई चेन को सुरक्षित करने के लिए साझेदारी की कोशिश कर रहा है. मिनरल सिक्युरिटी पार्टनरशिप[v] (खनिज सुरक्षा साझेदारी) में शामिल होना इसका एक उदाहरण है. लेकिन ये कोशिशें वैश्विक व्यापार प्रणाली के बंटे होने के लक्षण हैं और महत्वपूर्ण खनिज और सेमीकंडक्टर का मुद्दा इस साल सबसे ज़्यादा ध्यान खींच रहा है.
असहमति के लिए सहमति: G20 और व्यापार सामंजस्य
व्यापार के लिए वैश्विक नियमों पर काफी विवाद हैं और ग्लोबल नॉर्थ के द्वारा नियमों को थोपने का ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) विरोध कर रहा है. व्यापार से जुड़े मुद्दों पर दो समूहों के बीच आम राय बनाने के लिए G20 एक मंच बन गया है. व्यापार से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर काम करने के लिए WTO को मदद की आवश्यकता के साथ पिछले पांच वर्षों में ये ज़्यादा साफ हो गया है. 2023 में भारत की अध्यक्षता और ब्राज़ील एवं इंडोनेशिया को जोड़कर लगातार 3 वर्षों तक किसी विकासशील देश के पास G20 की अध्यक्षता होने के साथ व्यापार पर काम करना ज़्यादा दिलचस्प हो गया है. नई दिल्ली में नेताओं के घोषणापत्र (लीडर्स डिक्लेरेशन)[vi] में व्यापार से जुड़े कई विवादित मुद्दों पर एक बीच के रास्ते की पहचान की गई है. जिन मुद्दों पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई उन्हें भी आगे सहयोग जारी रखने वाले क्षेत्रों के रूप में स्वीकार किया गया है.
एक प्रमुख उपलब्धि सप्लाई चेन की विविधता रही है. घोषणापत्र में “ऊर्जा परिवर्तन के उद्देश्य से महत्वपूर्ण खनिजों पर सहयोग के लिए स्वैच्छिक उच्च-स्तरीय सिद्धांतों” को स्वीकार किया गया है.
एक प्रमुख उपलब्धि सप्लाई चेन की विविधता रही है. घोषणापत्र में “ऊर्जा परिवर्तन के उद्देश्य से महत्वपूर्ण खनिजों पर सहयोग के लिए स्वैच्छिक उच्च-स्तरीय सिद्धांतों” को स्वीकार किया गया है. इसमें मौजूदा रूस-यूक्रेन संकट की वजह से सप्लाई चेन में रुकावट और खाद्य सुरक्षा पर असर की तरफ भी ध्यान दिया गया है. ग्लोबल वैल्यू चेन (GVC) का खाका खींचने के लिए एक नई कवायद शुरू की गई है. विश्व व्यापार में G20 के सदस्य देशों के 85 प्रतिशत योगदान को देखते हुए ये महत्वपूर्ण है. ध्यान देने की बात है कि व्यापार, सुरक्षा और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों के सुविधाजनक बिंदु से डिजिटल अर्थव्यवस्था पर व्यापक चर्चा हुई है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), डिजिटल हेल्थ के लिए सिद्धांत से लेकर डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) पर एक रूप-रेखा तक- इन विवादित अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों का ज़िक्र किया गया है और इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि सहयोग के ढांचे पर सहमति बनी है.
हो सकता है कि इन कोशिशों ने वैश्विक नीति के स्तर पर व्यापार के बंटे होने का समाधान करने में योगदान दिया होगा लेकिन जब तक इन्हें लागू नहीं किया जाता तब तक वो पहले से जटिल व्यापार संरचना को और ज़्यादा मुश्किल बनाएंगे.
'रचनात्मक तबाही': 2024 में WTO
WTO के लिए फरवरी 2024 एक ऐतिहासिक क्षण होगा क्योंकि 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC13) का आयोजन नज़दीक होगा. इस सम्मेलन में होने वाली बातचीत और घोषणापत्र से संकेत मिलेगा कि सदस्य देश एक नियम आधारित प्रणाली के इर्द-गिर्द केंद्रित बहुपक्षवाद को बचाने के बारे में कितने गंभीर हैं. G20 नई दिल्ली घोषणापत्र ने ‘WTO सुधार’ को व्यापार और विकास के लिए पहली और निर्णायक आवश्यकता के तौर पर माना है.
WTO की बातचीत जहां साझा बयान की पहल (JSI) के माध्यम से आगे बढ़ी है, वहीं JSI के ज़रिए किए गए फैसलों की वैधता पर अभी भी सवाल उठ रहे हैं. WTO का विवाद निपटारा निकाय (डिस्प्यूट सेटलमेंट बॉडी या DSB) भी लगभग एक दशक से संकट का अनुभव कर रहा है. अमेरिका में ओबामा प्रशासन के समय से नए नामांकनों (नॉमिनेशन) को बार-बार रोका गया है. ग्लोबल साउथ के लिए WTO की प्रासंगिकता के केंद्र में DSB है. 2020 से इस अपीलीय निकाय में कोई सदस्य नहीं है जबकि सदस्य देशों के द्वारा नए विवादों को दायर करना जारी है. ये बेहद चिंताजनक हालात हैं क्योंकि WTO में नियंत्रण और संतुलन सुनिश्चित करने के मामले में ये निकाय महत्वपूर्ण है.
WTO की बातचीत जहां साझा बयान की पहल (JSI) के माध्यम से आगे बढ़ी है, वहीं JSI के ज़रिए किए गए फैसलों की वैधता पर अभी भी सवाल उठ रहे हैं.
बहुपक्षीय व्यापार में अपना महत्व बनाए रखने के लिए WTO को नए व्यापार नियमों को लेकर बातचीत की कोशिश की जगह सुधार के प्रयासों पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
जान्हवी त्रिपाठी ORF में एसोसिएट फेलो हैं.
[ii] “China’s Chip Material Export Curbs: 4 Things to Know,” n.d., Nikkei Asia, Accessed December 18, 2023, https://asia.nikkei.com/Business/Tech/Semiconductors/China-s-chip-material-export-curbs-4-things-to-know.
[vi] “G20 New Delhi Leaders’ Declaration,” https://www.mea.gov.in/Images/CPV/G20-New-Delhi-Leaders-Declaration.pdf.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.