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फार्मास्यूटिकल्स और आर्थिक वृद्धि पर रणनीतिक ज़ोर के बूते बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में चीन-रूस का गठजोड़ वैश्वीकरण के भविष्य पर वैश्विक चिंताओं का सबब बन गया है.
2019 में चीन और रूस ने वैज्ञानिक नवाचार और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपनी सहभागिता पर नए सिरे से ज़ोर दिया. इस गठजोड़ की जड़ें 1990 के दशक तक जाती हैं. रूस की यात्रा से पहले मार्च 2023 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा एक हस्ताक्षरित पत्र से इस सहभागिता को दोबारा लॉन्च किया गया. 2021 में रूस और चीन ने चांद पर शोध और खोजबीन से जुड़े रोडमैप की शुरुआत की. इन दोनों देशों के बीच के गठजोड़ में रिमोट सेंसिंग, अंतरिक्ष उड़ान अनुप्रयोगों के लिए इलेक्ट्रॉनिक घटक, और अंतरिक्ष में मलबे की निगरानी जैसी क़वायद शामिल हैं. परमाणु टेक्नोलॉजी और ऊर्जा सहयोग के क्षेत्र में दोनों देशों ने सातवीं और आठवीं बिजली इकाइयों के निर्माण को अंजाम दिया है. चीन के शुदाबाओ परमाणु बिजली संयंत्र के तियानवान परमाणु बिजली संयंत्र की तीसरी और चौथी परमाणु इकाइयों को मई 2021 में लॉन्च किया गया था. इसके अतिरिक्त दोनों देशों ने बीजिंग, शंघाई और तियानजिन मार्गों पर प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पाइपलाइन का निर्माण पूरा करने का वादा किया है.
चीन और रूस के बीच सहभागिता के इस क्षेत्र में आने वाले समय में ज़्यादातर निवेश और कोष के पीछे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हाथ बताया जा रहा है, जो जीव विज्ञान, सामग्री विज्ञान और अंतरिक्ष में खोज के क्षेत्र में विश्वविद्यालय स्तरीय शोध केंद्रों में अनुसंधान का विस्तार कर रहा है.
इसके अतिरिक्त, रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष और चीनी निवेश निगम द्वारा रूस-चीन निवेश कोष की स्थापना की गई. चीन और रूस के बीच सहभागिता के इस क्षेत्र में आने वाले समय में ज़्यादातर निवेश और कोष के पीछे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हाथ बताया जा रहा है, जो जीव विज्ञान, सामग्री विज्ञान और अंतरिक्ष में खोज के क्षेत्र में विश्वविद्यालय स्तरीय शोध केंद्रों में अनुसंधान का विस्तार कर रहा है. सहयोग का ये इतिहास बायोटेक्नोलॉजी क्षेत्र की ओर सामरिक सम्मेलन को साथ जोड़ता है. दरअसल, दोनों ही देश ना केवल अपनी वैज्ञानिक उन्नति को आगे बढ़ाने बल्कि वैश्विक वैज्ञानिक परिदृश्य को नया आकार देने में भी इस क्षेत्र की क्षमता को मान्यता देते हैं.
बायोटेक्नोलॉजी में चीन-रूस गठजोड़ के बहुमुखी आयाम हैं, जो उनकी ऐतिहासिक जड़ों तक जाते हैं, साथ ही उनके दूरगामी निहितार्थों, बाधाओं और संभावित परिणामों पर विचार करते हैं. इनमें जैविक युद्ध और जैव सुरक्षा पर इसके प्रभाव से जुड़ी क़वायद भी शामिल हैं.
चीन ने अपनी मेड इन चाइना 2025 रणनीति में बायोटेक से जुड़े अपने लक्ष्यों को रेखांकित किया है, जिनमें नवाचारयुक्त औषधि शामिल है. इसी प्रकार रूस ने दिसंबर 2021 में अपनी फार्मा 2030 रणनीति जारी की. इस रणनीति का लक्ष्य दवा और मेडिकल उपकरण के उत्पादन और नवाचार को आगे बढ़ाना है.
इस सहभागिता का एक प्रमुख दायरा जेनेटिक्स और जीनोमिक्स के क्षेत्र में है. दोनों देशों के भीतर अपार जेनेटिक विविधता, साझा शोध के लिए एक अभूतपूर्व मंच उपलब्ध कराती है. इससे तमाम बीमारियों के पेचीदा जेनेटिक संबंधों से पर्दा उठ सकता है. अपने विशाल संसाधनों, विस्तृत डेटासेट्स और वैज्ञानिक विशेषज्ञता के प्रयोग से चीन और रूस जीनोमिक शोध में रफ़्तार भर सकते हैं और रोग की रोकथाम को लेकर व्यक्तिगत औषधि और नवाचार भरे दृष्टिकोणों के लिए मार्ग तैयार कर सकते हैं. दोनों देशों की जनता और व्यापक वैश्विक स्वास्थ्य सेवा के साथ-साथ बायोटेक्नोलॉजी नवाचार परिदृश्य के लिए इन क़वायदों के अपने निहितार्थ हैं.
दोनों देशों में पिछले दशक में बायोटेक्नोलॉजी क्षमताओं में बढ़ोतरी हुई है. मिसाल के तौर पर चीन में 2021 तक बायोटेक्नोलॉजी का बाज़ार मूल्य 4 अरब अमेरिकी डॉलर के क़रीब है. इसी प्रकार, रूस ने भी बायोटेक्नोलॉजी में शोध और बाज़ार निवेश में विस्तार शुरू किया है. विशेष रूप से सार्स-कोविड वैक्सीन स्पूतनिक V के विकास के बाद इस क़वायद में तेज़ी आई है. वैसे तो अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से प्रतिस्पर्धा करने को लेकर रूस के बाज़ार का अब भी विस्तार होना बाक़ी है, लेकिन चीन के साथ उसकी सहभागिता इस क्षेत्र में भावी विकास का संकेत कर सकती है.
रिपोर्ट की गई गतिविधियों या राज्यसत्ता से बाहर के किरदारों और जैविक आतंकवाद से निपटने के लिए बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहभागिता के महत्व पर भी बल दिया गया है.
राष्ट्रीय बायोटेक उद्योगों में अपनी सीमाओं के बावजूद रूस और चीन ने बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपनी सहभागिता बढ़ाई है; इस कड़ी में एक उल्लेखनीय उदाहरण रूसी कंपनी बायोकैड और चीनी विनिर्माता शंघाई फार्मास्यूटिकल्स होल्डिंग (SPH) का गठजोड़ है, जो चीनी बाज़ार में दवाओं का व्यवसायीकरण कर रहा है. इस वेंचर को भारी-भरकम कोष हासिल हुआ है, जिसमें SPH का हिस्सा 50.1% और बायोकैड का 49.9% है.
बहरहाल, चीनी और रूसी बायोटेक कार्यक्रमों और उनकी सहभागिता में बढ़ोतरी ने अन्य देशों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. जैसा कि बायोडिफेंस पॉश्चर रिव्यू 2023 में बताया गया है अमेरिका समेत अनेक राष्ट्रों ने इन्हें ऐसे देश के तौर पर रेखांकित किया है जिस पर “ग़ैर-भरोसेमंद सूचना” के लिए निगरानी रखे जाने की आवश्यकता है.
2022 में अमेरिका ने नवीकृत राष्ट्रीय जैव-रक्षा रणनीति और कार्यान्वयन योजना के साथ-साथ अपना बायोडिफेंस पॉस्चर रिव्यू 2023 जारी किया. 2023 बायोडिफेंस पॉस्चर रिव्यू जैव-रक्षा के लिए जैव-सुरक्षा दृष्टिकोण की ज़रूरत को रेखांकित करता है. इसी प्रकार, यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने जैविक सुरक्षा रणनीति जारी की है, जिसमें एवियन फ्लू में बढ़ोतरी से जुड़े एक अध्ययन में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को रेखांकित किया गया है. रूस और चीन से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी चिंताओं के अलावा इन रणनीतियों (सार्वजनिक सुरक्षा प्रयोगशालाओं के लिए भारत के जैवसुरक्षा मैनुअल समेत) में जैविक युद्ध की तैयारियों की भारी ज़रूरत को रेखांकित किया गया है. साथ ही बिना रिपोर्ट की गई गतिविधियों या राज्यसत्ता से बाहर के किरदारों और जैविक आतंकवाद से निपटने के लिए बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहभागिता के महत्व पर भी बल दिया गया है.
महामारी की चिंताओं और भविष्य में महामारियों की आशंका के बाद बायोटेक्नोलॉजी में निवेश और नवाचार में वैश्विक बदलाव की प्रतिक्रिया में यूरोपीय संघ और अफ्रीका जैसे अन्य क्षेत्र भी जैव-सुरक्षा और जैव-रक्षा रणनीतियों को प्राथमिकता देने लगे हैं.
आगामी दशक में राष्ट्र-राज्यों के लिए जैव-सुरक्षा और जैव-रक्षा गहराती हुई चिंता है, लिहाज़ा इनमें से कई राष्ट्रों ने अपनी रणनीतियों में इन क्षेत्रों को रेखांकित किया है. हालांकि ग़ैर-भरोसेमंद बताए जाने वाले देशों के बीच की सहभागिताओं के मद्देनज़र इस रणनीति में दुष्प्रचार और ग़लत इरादों पर प्रतिक्रिया जताने पर भी विचार किया जाना चाहिए.
जैविक युद्ध के संभावित ख़तरे गहराते जा रहे हैं, और रणनीतियां पर्याप्त साबित नहीं हो रही हैं. ऐसे में विशाल अर्थव्यवस्थाओं के गठजोड़कारी प्रयास, जैव-आतंकी ख़तरों की टोह लगाने, उनकी रोकथाम करने और उनमें गिरावट लाने को लेकर उन्नत रणनीतियों के विकास में क्रांतिकारी साबित हो सकते हैं. जेनेटिक्स और बायोटेक्नोलॉजी में उनकी साझा विशेषज्ञता, संभावित जैव-युद्ध एजेंटों के ख़िलाफ़ तीव्र प्रतिक्रिया प्रणाली, उन्नत निदान व्यवस्था और जवाबी उपाय तैयार करने की क्षमता उपलब्ध कराते हैं. ऐसा गठजोड़ चीन-रूस सहयोग, राज्यसत्ता से इतर किरदारों के ख़तरों और भावी महामारियों के इर्द-गिर्द रणनीतियों के अनुप्रयोगों और चिंताओं का समाधान कर सकते हैं.
बायोटेक्नोलॉजी विकास और नवाचार के क्षेत्र में भारत और अमेरिका के बीच सहयोगकारी द्विपक्षीय गठजोड़ का निर्माण, चीन-रूस गठजोड़ की क्षमता का प्रतिकार करने में मदद कर सकता है. ये ऐसी क़वायद होगी जो वैश्विक विकास में बाधा खड़ी किए बिना अन्य अर्थव्यवस्थाओं की ज़रूरतों को प्राथमिकता देती है. क्वॉड (क्वॉड्रिलैटरल स्ट्रैटेजिक अलायंस (भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका)) या I2U2 (भारत, इज़रायल, यूके, यूएस) जैसी बहुपक्षीय भागीदारियों के तहत भी ऐसा गठजोड़ विकसित किया जा सकता है. हम भारत को वैक्सीन के विकास में सहभागितापूर्ण उन्नति के साथ वैश्विक बाज़ार में प्रगति करते देख चुके हैं. यही विस्तारित नैदानिक व्यवस्था और निगरानी टेक्नोलॉजी, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और तैयारी में उनकी प्रतिबद्धता के प्रमाण प्रस्तुत करती हैं. ये ग्लोबल साउथ (अल्प-विकसित और विकासशील देश) और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को रूस और चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए ज़्यादा अहम मंच उपलब्ध कराते हैं.
भारत समेत अन्य अग्रणी अर्थव्यवस्थाएं आगे आने वाले अवसरों का लाभ उठाने और इन चुनौतियों से कुशलतापूर्वक पार पाने की क़वायदों में लगी हैं.
जैविक युद्ध की तैयारियों पर ज़ोर देती चीन-रूस जैव-तकनीकी सहभागिता की क़वायद ख़ासतौर से चुनौतीपूर्ण है. भू-राजनीतिक विचार, मेडिकल नवाचार के इर्द-गिर्द पेचीदगियां, व्यापार और निवेश के साथ-साथ विनियामक समग्रता की जटिलताएं सधे हुए तरीक़े से आगे बढ़ने की प्रक्रिया को अनिवार्य बना देती हैं. इस गठजोड़ की कामयाबी को क़ायम रखने के लिए अन्य देशों के बीच द्विपक्षीय/त्रिपक्षीय स्तरों पर वैश्विक भागीदारियों, पारस्परिक विश्वास, न्यायसंगत संसाधन आवंटन और दोस्ताना माहौल में ज्ञान साझा करने की क़वायद की नींव रखे जाने की आवश्यकता है.
कोविड-19 महामारी के दौरान उठाए गए हालिया क़दमों की रोशनी में बढ़ते संक्रामक रोगों और जैव-आतंकी ख़तरों के समाधान में वैश्विक सहयोग की तात्कालिकता और प्रभावकारिता रेखांकित होती है. इस दौरान अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बात का साक्षी बना कि कैसे सहभागितापूर्ण अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के ज़रिए वैक्सीन का तेज़ रफ़्तार विकास और वितरण हासिल किया जा सकता है. बायोफार्मास्यूटिकल्स, रीजेनरेटिव मेडिसिन, बायोइंफॉर्मेटिक्स और जैविक युद्ध की तैयारियों में साझा पहल से कामयाबियां मिलनी तय है.
बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में चीन-रूस गठजोड़ ने वैश्वीकरण के भविष्य पर वैश्विक चिंता और बढ़ा दी है. फार्मास्यूटिकल्स पर रणनीतिक ज़ोर के अलावा अंतरिक्ष और BRI अनुप्रयोगों में आर्थिक वृद्धि के बूते चीन और रूस की सहभागिता आगे बढ़ी है. जैविक युद्ध की तैयारियों के इर्द-गिर्द अतिरिक्त चिंताएं वैज्ञानिक भागीदारी के उभरते परिदृश्य और भू-राजनीतिक गठजोड़ों के ज़रिए इनको संतुलित किए जाने का संकेत करती हैं. जेनेटिक्स, जीनोमिक्स, स्वास्थ्य सेवा और जैविक युद्ध की तैयारियों में अपनी पूरक विशेषज्ञताओं का भरपूर लाभ उठाकर चीन और रूस द्वारा बायोटेक्नोलॉजी उद्योग की रूपरेखा को दोबारा परिभाषित किया जाना तय है. साथ ही वैश्विक स्वास्थ्य परिणामों में क्रांति लाने, आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने और वैश्विक सुरक्षा में बढ़ोतरी होने के भी आसार हैं. भारत समेत अन्य अग्रणी अर्थव्यवस्थाएं आगे आने वाले अवसरों का लाभ उठाने और इन चुनौतियों से कुशलतापूर्वक पार पाने की क़वायदों में लगी हैं. ऐसे में इन्हें बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी अपने विकास में रफ़्तार भरनी चाहिए और सहभागिताओं के ज़रिए वैश्विक बाज़ारों की ज़रूरतें पूरी करनी चाहिए.
श्राविष्ठा अजयकुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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Shravishtha Ajaykumar is Associate Fellow at the Centre for Security, Strategy and Technology. Her fields of research include geospatial technology, data privacy, cybersecurity, and strategic ...
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