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कम आबादी, बड़े भौगोलिक क्षेत्र और ज़्यादा पैसे वाले देश फुर्सत से लोकतंत्र की परंपरा के सुख का आनंद उठाते हैं.
अमेरिकी सरकार के फंड से चलने वाला ग़ैर-लाभकारी, ग़ैर-सरकारी संगठन फ्रीडम हाउस लोकतंत्र, राजनीतिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार पर सालाना एक रिपोर्ट प्रकाशित करता है जिसका शीर्षक दुनिया में स्वतंत्रता है. 2021 की रिपोर्ट में 195 देशों में से 82 को स्वतंत्र, 59 को आंशिक रूप से स्वतंत्र और 54 को स्वतंत्र नहीं पाया गया. लोकतंत्र के तौर पर भारत का दर्जा ‘स्वतंत्र’ से घटाकर ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ कर दिया गया. दर्जा कम करने की मुख्य वजह कथित तौर पर “बढ़ती हिंसा और भेदभाव वाली नीतियां” और “असहमति की अभिव्यक्ति पर कार्रवाई” है. इस रिपोर्ट पर भारत के विदेश मंत्री ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “दुनिया के कुछ स्वयंभू संरक्षक हैं जिन्हें ये पचाने में बहुत दिक़्क़त होती है कि कोई उनकी मंज़ूरी की तरफ़ नहीं देख रहा है.” विदेश मंत्री ने इस तथ्य का ख़ास तौर पर ज़िक्र किया कि भारत ने अपनी वैक्सीन दुनिया के 70 देशों के साथ साझा की. उन्होंने ये भी कहा कि, “मुझे बताइए कि अंतर्राष्ट्रीयतावादी देशों ने कितनी वैक्सीन दी है.”
लोकतंत्र के तौर पर भारत का दर्जा ‘स्वतंत्र’ से घटाकर ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ कर दिया गया. दर्जा कम करने की मुख्य वजह कथित तौर पर “बढ़ती हिंसा और भेदभाव वाली नीतियां” और “असहमति की अभिव्यक्ति पर कार्रवाई” है.
लोकतंत्र की रैंकिंग को लेकर सालाना एक और कवायद द इकोनॉमिस्ट मैगज़ीन की इकोनॉमिक इंटेलेजिंस यूनिट की ओर से की जाती है जिसका शीर्षक ‘डेमोक्रेसी इंडेक्स’ है. एक वैश्विक सर्वे के आधार पर हर देश को एक स्कोर दिया जाता है और अलग-अलग देशों को पूर्ण लोकतंत्र, दोषपूर्ण लोकतंत्र, तानाशाही और लोकतंत्र का मिश्रण और तानाशाही शासन व्यवस्था के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. इकोनॉमिस्ट की पिछली रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया की 8.4 प्रतिशत आबादी पूर्ण लोकतंत्र में रहती है, 41 प्रतिशत आबादी दोषपूर्ण लोकतंत्र में, 15 प्रतिशत आबादी तानाशाही और लोकतंत्र के मिश्रण में जबकि 35.6 प्रतिशत आबादी तानाशाही शासन व्यवस्था में रहती है. 2020 के डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत को 53वें स्थान पर रखा गया यानी पिछली समीक्षा के बाद भारत दो पायदान नीचे गिरा है. इस ‘लोकतांत्रिक गिरावट’ के लिए नागरिक स्वतंत्रता पर ‘कार्रवाई’ को ज़िम्मेदार ठहराया गया.
इस लेख का इरादा रिपोर्ट के द्वारा इस्तेमाल मानदंड का विश्लेषण करना या इन निष्कर्षों तक पहुंचने के लिए इस्तेमाल की गई पद्धति की शुद्धता तक जाना नहीं है. इसके बदले लेख में इन संस्थाओं के द्वारा दी गई रेटिंग के मुताबिक़ दुनिया में 10 सर्वश्रेष्ठ लोकतंत्रों का चयन करना है और एक निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए उनके कुछ मूल सिद्धांतों का विश्लेषण करना है. 2020 में दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ लोकतंत्र हैं नॉर्वे, आइसलैंड, स्वीडन, न्यूज़ीलैंड, कनाडा, फिनलैंड, डेनमार्क, आयरलैंड, नीदरलैंड्स और ऑस्ट्रेलिया. इन सर्वश्रेष्ठ 10 देशों के अलावा 13 और देश 23 पूर्ण लोकतंत्र वाले देशों में शामिल हैं.
सर्वश्रेष्ठ 10 देशों में सबसे बड़ा देश कनाडा जनसंख्या के मामले में दुनिया में 39वें स्थान पर है जबकि सबसे छोटा देश आइसलैंड जनसंख्या के मामले में 181वें पायदान पर है. सर्वश्रेष्ठ 10 देशों में से तीन (ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड्स और स्वीडन) जनसंख्या के मामले में 50 से 100वें स्थान पर हैं. बाक़ी देश (डेनमार्क, फिनलैंड, नॉर्वे, आयरलैंड और न्यूज़ीलैंड) जनसंख्या के मामले में 100 से 156वें स्थान पर आते हैं. अलग-अलग देशों के बीच जनसंख्या के मामले में इन 10 सर्वश्रेष्ठ देशों की औसत रैंक 104 है. आबादी के मामले में 3 करोड़ 76 लाख की आबादी के साथ कनाडा इन 10 देशों में पहले पायदान पर है जबकि 3 लाख 67 हज़ार की आबादी के साथ आइसलैंड सबसे नीचे है. इन 10 देशों की औसत आबादी 1 करोड़ 17 लाख है और इनकी कुल आबादी विश्व की आबादी का 1.5 प्रतिशत है. अगर हम इन देशों को भारत के दृष्टिकोण से देखें तो सभी देशों को मिला दिया जाए तो उनकी आबादी भारत की आबादी का 8.5 प्रतिशत है. निस्संदेह इन लोकतांत्रिक देशों में बहुत ज़्यादा लोग नहीं रहते.
2020 के डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत को 53वें स्थान पर रखा गया यानी पिछली समीक्षा के बाद भारत दो पायदान नीचे गिरा है. इस ‘लोकतांत्रिक गिरावट’ के लिए नागरिक स्वतंत्रता पर ‘कार्रवाई’ को ज़िम्मेदार ठहराया गया.
भौगोलिक क्षेत्रफल के मामले में 10 देशों में दो सबसे बड़े देश, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल क्रमश: 99.8 लाख वर्ग किलोमीटर और 76.9 लाख वर्ग किलोमीटर है. नीदरलैंड्स को छोड़ दिया जाए तो बाक़ी सात देश भी भौगोलिक तौर पर काफ़ी संपन्न देश हैं और उनका कुल क्षेत्रफल 193.4 लाख वर्ग किलोमीटर है. ये पृथ्वी का 3.79 प्रतिशत है. यहां रहने वाले हर व्यक्ति के लिए औसतन 1,10,734 वर्ग मीटर क्षेत्र उपलब्ध है. आइसलैंड का जनसंख्या घनत्व 1.2 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है जबकि ऑस्ट्रेलिया का 3.3 व्यक्ति और कनाडा का 3.7 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है. इन 10 देशों का औसत जनसंख्या घनत्व 6.05 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर होता है. दूसरे शब्दों में दुनिया की जनसंख्या के 1.5 प्रतिशत हिस्से के साथ इन 10 देशों में पृथ्वी की सतह का 2.5 गुना हिस्सा मौजूद है. भारत के मुक़ाबले देखें तो इन देशों का क्षेत्रफल 6 गुना ज़्यादा है और हर व्यक्ति के लिए 5 गुना ज़्यादा जगह है. संक्षेप में, भौगोलिक क्षेत्र के मामले में ये देश बेहद संपन्न हैं. पृथ्वी के बड़े हिस्से के साथ जनसंख्या का छोटा हिस्सा होना एक मज़बूत लोकतंत्र के काफ़ी काम आता है.
ये उचित होगा कि संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के मानव विकास रिपोर्ट (एचडीआर) 2020 द्वारा इस्तेमाल किए गए तीन मानदंडों को 10 सर्वश्रेष्ठ लोकतंत्रों में मानव विकास का विस्तार नापने में इस्तेमाल किया जाए. ये तीन मानदंड हैं- प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आमदनी (जीएनआई), जन्म के समय जीवन प्रत्याशा और स्कूल में पढ़ाई के अनुमानित वर्ष. सभी 10 देशों में काफ़ी ज़्यादा जीएनआई प्रति व्यक्ति है. ये 40,799 अमेरिकी डॉलर (न्यूज़ीलैंड) से 68,371 अमेरिकी डॉलर (आयरलैंड) के बीच है और 10 देशों का औसत 58,271 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति जीएनआई है. साफ़ तौर पर, अमीर होने से एक आदर्श लोकतंत्र बनने में मदद मिलती है.
इन 10 देशो में ईर्ष्या के योग्य जीवन प्रत्याशा भी है. एचडीआर 2020 में इन 10 देशों में जीवन प्रत्याशा 80.95 वर्ष (डेनमार्क) से 83.4 वर्ष (ऑस्ट्रेलिया) के बीच है और 10 देशों का औसत 82.4 वर्ष है. भारत से मुक़ाबला करें तो इन देशों में एक व्यक्ति भारत के एक व्यक्ति के मुक़ाबले औसतन 12.7 वर्ष ज़्यादा जीता है.
इन देशों की शैक्षणिक रूप-रेखा भी उतनी ही असरदार है. शिक्षा के अनुमानित वर्ष के मामले में सबसे आगे ऑस्ट्रेलिया है जहां औसतन 22 साल की शिक्षा छात्र लेते हैं जबकि सबसे कम 16.2 वर्ष कनाडा में है. इन 10 देशों का औसत 18.88 वर्ष है. सभी 10 देशों को साक्षरता के मामले में काफ़ी कम काम करना बाक़ी है. इनकी औसत साक्षरता दर 99.2 प्रतिशत है. जो थोड़े से लोग साक्षरता से बचे हुए हैं, वो ऐसे लोग हैं जो विकासशील देशों से यहां आए हैं और यहां की अर्थव्यवस्था में श्रमिक का काम करते हैं.
दूसरे शब्दों में दुनिया की जनसंख्या के 1.5 प्रतिशत हिस्से के साथ इन 10 देशों में पृथ्वी की सतह का 2.5 गुना हिस्सा मौजूद है.
जातीयता के मामले में इन सभी देशों में एक समूह का दबदबा है. फिनलैंड में फिनिश मूल के लोगों की आबादी सबसे ज़्यादा 91.3 प्रतिशत है. सभी 10 देशों का औसत देखें तो सबसे बड़े जातीय समूह की औसत जनसंख्या 82.19 प्रतिशत है. इन देशों में 64 प्रतिशत जनसंख्या एक ही धर्म को मानने वाली है. इनमें से किसी भी देश में दूसरे सबसे बड़े धर्म की जनसंख्या 10 प्रतिशत के आंकड़े को भी नहीं छूती है. हैरानी की बात है कि इन देशों की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा नास्तिक है. औसतन 28.2 प्रतिशत लोगों ने अपना कोई भी धर्म नही बताया. 54.1 प्रतिशत नास्तिक आबादी के साथ नीदरलैंड्स में ऐसे लोग सबसे ज़्यादा हैं जबकि 10.1 प्रतिशत नास्तिक आबादी के साथ आयरलैंड में ऐसे लोग सबसे कम हैं.
Table: Full Democracies and India
Full Democracies | Av. Population (million) | Av. Pop Density per Sq Km | Av. GNI (USD) | Av. Life Expectancy at birth | Av. Exp years of Education |
Ten Highest ranked | 11.7 | 6.05 | 58,271 | 82.4 | 18.88 |
Thirteen others | 34.28 | 163.60 | 41,506 | 81.2 | 16.13 |
India | 1,380 | 382 | 06,681 | 69.7 | 12.2 |
Source: UN HDR 2020 (for GNI, life Expectancy & Education)
एक नज़र उन 13 देशों पर भी डाला जाए जिन्हें पूर्ण लोकतंत्र की श्रेणी में रखा गया है. 21वें पायदान के देश जापान, जहां की आबादी 10 करोड़ से ज़्यादा (12 करोड़ 63 लाख) है, 8 करोड़ 37 लाख की आबादी वाले देश जर्मनी (14वीं रैंक) और 6 करोड़ 66 लाख की आबादी वाले देश यूके (16वीं रैंक) को छोड़ दिया जाए तो अन्य सभी देशों की आबादी 5 करोड़ से कम है. इन 13 लोकतंत्रों की औसत आबादी 3 करोड़ 43 लाख है जबकि सर्वश्रेष्ठ 10 देशों की औसत आबादी 1 करोड़ 17 लाख है.
इन 13 देशों का औसत भौगोलिक क्षेत्रफल शुरुआती 10 देशों के मुक़ाबले काफ़ी छोटा है. इन 13 देशों का औसत क्षेत्रफल 2,09,560 वर्ग किलोमीटर है जबकि शुरुआती 10 देशों का औसत क्षेत्रफल 19,33,696 वर्ग किलोमीटर है. इन 13 देशों की ज़्यादा औसत आबादी और कम भौगोलिक क्षेत्रफल की वजह से इनका प्रति किलोमीटर जनसंख्या घनत्व काफ़ी ज़्यादा है. शुरुआती 10 देशों के 6.05 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर के मुक़ाबले इन 13 देशों का औसत जनसंख्या घनत्व 163.60 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है. इन 13 देशों की औसत प्रति व्यक्ति जीएनपी काफ़ी कम है. शुरुआती 10 देशों की औसत जीएनपी 54,635 अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले इन 13 देशों की औसत जीएनपी सिर्फ़ 41,506 अमेरिकी डॉलर है यानी 13,129 डॉलर कम.
सामान्य तौर पर एक निष्पक्ष निष्कर्ष ये होगा कि कम आबादी, बड़े भौगोलिक क्षेत्र और ज़्यादा पैसे वाले देश फुर्सत से लोकतंत्र की परंपरा के सुख का आनंद उठाते हैं. ऐसी व्यवस्था बड़े देशों को नहीं मिलती जहां एक बड़ी और मिलीजुली आबादी रहती है, जहां जगह की कमी है और जो देश अभी भी आर्थिक संपदा, स्वास्थ्य, शिक्षा और एकीकरण से जूझ रहे हैं. जिन सर्वे की पद्धति में इन सच्चाइयों और ‘मुश्किल फैक्टर’ को फैक्टर नहीं माना जाता, उनके नतीजों पर आगे भी सवाल उठते रहेंगे.
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Dr. Ramanath Jha is Distinguished Fellow at Observer Research Foundation, Mumbai. He works on urbanisation — urban sustainability, urban governance and urban planning. Dr. Jha belongs ...
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