Author : Rajen Harshé

Published on Oct 04, 2021 Updated 0 Hours ago

आतंकवादी गतिविधियों का रुख़ पश्चिम एशिया से हटकर अफ्रीका तक पहुंचने का इस महाद्वीप के लिए विनाशकारी नतीजा हो सकता है.

अफ्रीका में बढ़ता आतंकवाद: एक आलोचनात्मक समीक्षा

अफ्रीका में बढ़ता आतंकवाद पिछले कुछ दशकों से निर्विवाद रूप से ख़ासतौर पर अफ़ग़ानिस्तान के घटनाक्रम से और सामान्य तौर पर पश्चिम एशिया के घटनाक्रम से जुड़ा हुआ है. यह विशेष रूप से 15 अगस्त 2021 को पाकिस्तान के समर्थन से अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के कब्ज़े के बाद है. अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान के क्षेत्र में आतंकवादी संगठनों का ताक़तवर केंद्र बनने की ख़तरनाक क्षमता है. वास्तव में तालिबान शासन ने अपने आख़िरी कार्यकाल (1996-2021) के दौरान कई देशों में सक्रिय आतंकवादी संगठनों जैसे ओसामा बिन लादेन की अगुवाई वाले अल क़ायदा को पनाह दी थी. इसके बदले अल क़ायदा के घातक आतंकवादी हमले में 9/11 को न्यूयॉर्क में ट्विन टावर ध्वस्त हो गए. इसके अलावा आतंकवादी इस्लामिक स्टेट (आईएस) के ज़रिए 2014 में इराक़ और सीरिया के एक हिस्से में अपने लिए एक देश की स्थापना कर सके, भले ही ये छोटे वक़्त के लिए था. आईएस, जो कि अल क़ायदा के अवशेष से खड़ा हुआ, आख़िरकार 2019 में आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमेरिका की अगुवाई वाले गठबंधन के लगातार हमलों में ध्वस्त हो गया. पश्चिम एशिया के इलाक़े में जैसे-जैसे अल क़ायदा के साथ-साथ आईएस अपना असर खोने लगा, वैसे-वैसे इन इस्लामिक समूहों के लड़ाकों के साथ-साथ विचारकों ने अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए अफ्रीका में जगह तलाशनी शुरू कर दी. इसकी वजह से माली, नाइजीरिया, सोमालिया और मोज़ाम्बिक जैसे देशों में आम लोगों के ख़िलाफ़ आतंकवादी समूहों की हिंसा में लगातार बढ़ोतरी होने लगी. उदाहरण के लिए 2015 में अफ्रीका में आम लोगों को निशाना बनाकर 381 आतंकवादी हमले हुए जिनमें 1,394 लोग हताहत हुए जबकि 2020 में 7,108 हमलों में 12,519 लोग हताहत हुए.

पश्चिम एशिया के इलाक़े में जैसे-जैसे अल क़ायदा के साथ-साथ आईएस अपना असर खोने लगा, वैसे-वैसे इन इस्लामिक समूहों के लड़ाकों के साथ-साथ विचारकों ने अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए अफ्रीका में जगह तलाशनी शुरू कर दी. 

जून 2021 में अफ्रीका में अमेरिकी बल के कमांडर, जनरल स्टीफन टाउनसेंड ने महसूस किया कि अफ्रीका में बिना किसी रोक-थाम के आतंकवाद फैल रहा है. अगस्त 2021 तक अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने ऐलान किया कि विदेश विभाग ने विशेष रूप से मनोनीत वैश्विक आतंकवादी (एसडीजीटी) संगठनों की सूची में पांच अफ्रीकी जिहादियों को जोड़ा है. साफ़ तौर पर अफ्रीका कट्टर इस्लाम से प्रेरित आतंकवाद की चपेट में है. इस्लामिक आतंकवादी संगठन मुख्य रूप से पश्चिमी देशों के विरोधी हैं और उनका उद्देश्य शरिया क़ानून/इस्लाम के सिद्धांतों पर आधारित समाज और देश की स्थापना करना है. फिलहाल जिहादी आतंकवाद एक वैश्विक तथ्य बन चुका है. वैसे तो इस तरह के आतंकवादी समूह राजनीतिक मक़सद हासिल करने के लिए आम लोगों को निशाना बनाते हैं लेकिन आतंकवाद के कारण सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग होते हैं. इसके अलावा पश्चिम एशिया से लेकर अफ्रीका तक कट्टरपंथी इस्लाम की गतिविधियों के असर से पश्चिम अफ्रीका में बोको हराम और पूर्वी अफ्रीका में अल शबाब जैसे आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों को मदद मिली है. अलग-अलग अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के आपसी संबंधों और उनके बढ़ते नेटवर्क को देखते हुए अफ्रीका में आतंक के स्वरूप के बारे में जानना महत्वपूर्ण है.

अफ्रीका में आतंकवाद का नक्शा

शुरुआत में ही इस बात को रेखांकित किया जाना चाहिए कि अफ्रीका की 1.2 अरब आबादी में से 44.6 करोड़ लोग मुसलमान हैं और ये महादेश दुनिया के कुल मुसलमानों में से 27 प्रतिशत का घर है. पश्चिम एशिया और अफ्रीका के बीच इस्लाम न सिर्फ़ एक जोड़ने वाला कारण है बल्कि कट्टर इस्लाम का भविष्य भी इन दोनों क्षेत्रों के बीच संपर्क से तय हुआ है. मिसाल के तौर पर 1991 में सऊदी अरब से निर्वासित होने के बाद ओसामा बिन लादेन सूडान गया जहां उसने खारतूम में आतंकवादियों के लिए अपना अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर शुरू किया. 7 अगस्त 1998 को केन्या और तंज़ीनिया में अमेरिका के दूतावासों में बम धमाकों, जिसमें 224 लोगों की मौत हुई और 4,500 लोग घायल हुए, ने अफ्रीका में आतंकवाद के बढ़ते महत्व पर ज़ोर दिया जिसमें कट्टर इस्लामिक समूह जैसे अल क़ायदा शामिल था. जब ओसामा बिन लादेन अमेरिका का मोस्ट वॉन्टेड आतंकी बन गया तो उसे सूडान से बाहर कर दिया गया. इसके बाद ओसामा बिन लादेन ने तालिबान के नेतृत्व वाले अफ़ग़ानिस्तान में पनाह ली जहां उसने एक बार फिर से आतंकी प्रशिक्षण शिविरों की शुरुआत की. पश्चिम एशिया की तरह पिछले दो दशकों के दौरान अफ्रीका में आतंकवादी गतिविधियों की गुंजाइश और पेचीदगियां बढ़ गई हैं. वास्तव में अफ्रीका में इस्लाम ने सभी परंपराओं, जिनमें सूफी परंपरा भी शामिल है, को जगह दी है. लेकिन सऊदी अरब के वित्तीय समर्थन और अफ्रीका के अलग-अलग हिस्सों में सैकड़ों मस्जिद बनाने की पहल के कारण सूफीवाद धीरे-धीरे इस्लाम की सलाफी व्याख्या से बदला जा रहा है. इसके अलावा अफ्रीका में जिहादी आतंकवाद को मज़बूत करने के लिए धार्मिक और जातीय पहचानों का भी इस्तेमाल किया गया है. सामाजिक एकजुटता में कमी, कमज़ोर संस्थान, भ्रष्टाचार, ख़राब शासन और गड़बड़ अर्थव्यवस्था के नतीजतन ग़रीबी और बढ़ती बेरोज़गारी जैसे कारणों ने अफ्रीका के अलग-अलग क्षेत्रों में सिर्फ़ आतंकवाद को मज़बूत किया है.

अफ्रीका की 1.2 अरब आबादी में से 44.6 करोड़ लोग मुसलमान हैं और ये महादेश दुनिया के कुल मुसलमानों में से 27 प्रतिशत का घर है. पश्चिम एशिया और अफ्रीका के बीच इस्लाम न सिर्फ़ एक जोड़ने वाला कारण है बल्कि कट्टर इस्लाम का भविष्य भी इन दोनों क्षेत्रों के बीच संपर्क से तय हुआ है.

अफ्रीका में आतंकवाद के नक्शे पर एक सरसरी निगाह डालने से पता चलता है कि तीन अलग-अलग क्षेत्र हैं जहां आतंकवादी गतिविधियां फल-फूल रही हैं. इसकी शुरुआत सोमालिया से करते हैं जो कि उत्तर-पूर्व अफ्रीका का एक बड़ा तटीय देश है. पिछले कई दशकों से सिपहसालारों की आपसी लड़ाई, अलगाववाद की तरफ़ रुझान और अंधाधुंध हिंसा के ज़रिए सत्ता पर कब्ज़ा करने की अल शबाब की बार-बार की कोशिशों की वजह से सोमालिया की राजनीतिक स्थिरता छिन गई है. सोमालिया के घटनाक्रम ने दूसरे देशों जैसे केन्या, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) के साथ-साथ मोज़ाम्बिक पर भी ख़राब असर डाला है. आतंकवाद से प्रभावित दूसरा क्षेत्र साहेल है जो राजनीतिक तौर पर एक अस्थिर क्षेत्र हैं. इसमें माली, नाइजर और बुर्किना फासो जैसे देश हैं जो आतंकवादी गतिविधियों की चपेट मे हैं. इन गतिविधियों का असर इस क्षेत्र के पड़ोस के देशों, जिनमें आइवरी कोस्ट, टोगो और बेनिन हैं, पर भी पड़ा है. आख़िर में, आतंकवाद विरोधी क़दमों के बावजूद लेक चाड क्षेत्र में भी विद्रोह कायम है. ख़ास तौर पर नाइजीरिया, चाड, कैमरून और नाइजर आतंकवादी गतिविधियों से प्रभावित हैं.

अफ्रीका में फिलहाल अनगिनत इस्लामिक चरमपंथी समूह सक्रिय हैं. लेकिन सबसे ज़्यादा कुख़्यात आतंकवादी संगठन जैसे अल शबाब, बोको हराम, अल क़ायदा इन इस्लामिक मग़रेब (एक्यूआईबी) और अंसार दीने अल क़ायदा से जुड़े हुए हैं. इस्लामिक स्टेट ऑफ सोमालिया (आईएसएस) आईएस से जुड़ा है और मोज़ाम्बिक ने तो आईएस से बढ़ते ख़तरे को भी देखा है. लेक चाड के क्षेत्र में बोको हराम से अलग हुए समूह इस्लामिक स्टेट ऑफ वेस्ट अफ्रीकन प्रॉविंस (आईएसडब्ल्यूएपी) का असर बढ़ता जा रहा है. इसके अलावा अंसार दीने माली में ताक़तवर संगठन बनकर उभरा है जबकि इस्लामिक स्टेट इन ग्रेटर सहारा (आईएसजीएस) ने 2016 से माली, नाइजर और बुर्किना फासो में अपना विस्तार किया है. सच्चाई ये है कि लीबिया में राजनीतिक स्थिरता में कमी और गृह युद्ध ने साहेल क्षेत्र में आतंकवाद के उदय में योगदान दिया है. मूलभूत रूप से आतंकवाद में काफ़ी हद तक अलग-अलग तरह के लोग शामिल हैं क्योंकि आतंकवादी समूह जातीय, धार्मिक और क्षेत्रीय आधार पर बंटे हुए हैं. इसके अलावा बड़े संगठनों जैसे अल क़ायदा और आईएस के बीच दुश्मनी भी अफ्रीकी धरती पर उनसे जुड़े संगठनों के बीच सामने आती रहती है.

आतंकी संगठनों को चलाने का अवैध और हिंसक तरीक़ा

आतंकवादी समूह, जो प्रकट रूप से ‘पवित्रता’ का आभामंडल बनाए रखते हैं, के पास कई अनैतिक तरीक़े हैं जिनके ज़रिए वो हथियार हासिल करने के लिए फंड इकट्ठा करते हैं और इस तरह वो अपने संगठन को चलाते हैं. मिसाल के तौर पर, 2016 तक बोको हराम बड़ी मात्रा में हथियारों, बम, गश्ती की गाड़ियों और संचार उपकरणों के साथ सबसे ख़तरनाक आतंकवादी संगठन के रूप में उभरा. बोको हराम फिरौती के लिए अपहरण उद्योग, भुनी हुई मछली और लाल मिर्च के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और यूरोप एवं अमेरिका में नारकोटिक्स उद्योग पर फला-फूला. बोको हराम ने अक्सर बच्चों को अगवा किया और महिला आत्मघाती हमलावरों का इस्तेमाल किया. इसके अलावा राजनेता और कारोबारी ख़ुद को बचाने के लिए बोको हराम को प्रोटेक्शन मनी देने की पेशकश करने लगे. इसकी वजह से बोको हराम नाइजीरिया की राजनीति का अभिन्न हिस्सा बन गया. नाइजीरिया में उग्रवादियों का इस्तेमाल चुनाव में धांधली करने और यहां तक कि विरोधियों को आतंकित करने के लिए भी किया जाता है. पिछले दशक के दौरान बोको हराम की गतिविधियों की वजह से 30,000 लोगों की जान चली गई और 30 लाख लोग बेघर हो गए हैं. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के अनुसार लेक चाड इलाक़े में बोको हराम के हिंसा की वजह से 2 करोड़ 60 लाख लोग प्रभावित हुए हैं और 26 लाख लोग बेघर हुए हैं. इसी तरह अल शबाब ने समुद्री डकैती, अपहरण और स्थानीय कारोबारियों, किसानों और सहायता समूहों से ज़बरन वसूली के ज़रिए फंड हासिल किया है. इसके अलावा अवैध चारकोल के व्यापार और दूसरे सामानों पर चेक प्वाइंट के ज़रिए वसूली करने के साथ-साथ अवैध चीनी की तस्करी करके उसने अपना संसाधन बढ़ाया. इरीट्रिया की सरकार पर अल शबाब की वित्तीय मदद करने के आरोप लगे हैं. अल शबाब के बड़े हमलों में 2010 में कंपाला में बम धमाका जिसमें 74 लोगों की मौत हुई थी, 2013 में नैरोबी के मॉल पर हमला जिसमें 67 लोगों की जान गई थी, 2015 में गरिसा शहर की यूनिवर्सिटी में हमला जिसमें 148 लोगों की मौत हुई थी, 2017 और 2019 में मोगादिशु में ट्रक धमाका जिसमें क्रमश: 512 और 82 लोगों की मौत हुई थी, शामिल हैं. 14 सितंबर 2021 को मोगादिशु में एक आत्मघाती धमाके में कम-से-कम नौ लोगों की मौत होने की ख़बर है. 25 सितंबर 2021 को भी अल शबाब ने मोगादिशु में एक आत्मघाती कार धमाके में आठ लोगों की हत्या कर दी.

बोको हराम फिरौती के लिए अपहरण उद्योग, भुनी हुई मछली और लाल मिर्च के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और यूरोप एवं अमेरिका में नारकोटिक्स उद्योग पर फला-फूला. बोको हराम ने अक्सर बच्चों को अगवा किया और महिला आत्मघाती हमलावरों का इस्तेमाल किया.  

आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और अफ्रीकी संघ (एयू) जैसे संगठनों के साथ-साथ कुछ पश्चिमी देशों जैसे यूनाइटेड किंगडम (यूके), फ्रांस और अमेरिका ने अफ्रीका में दखल दिया है. अभी तक संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन, जो माली में मौजूद है और जिसका नाम यूएन मल्टीडाइमेंशनल इंटिग्रेटेड स्टैबिलाइज़ेशन मिशन (एमआईएनयूएसएमए) है, को 2012 के तुआरेग विद्रोह के बाद सामाजिक एकजुटता बनाने को लेकर कोई ख़ास सफलता नहीं मिली है. जून 2021 से यूके सैनिकों की नई तैनाती के ज़रिए माली और सोमालिया में आतंकवाद विरोधी गतिविधियों पर ध्यान देने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, यूके को अफ्रीका से आतंकवादी ख़तरे का स्वरूप अभी भी स्पष्ट नहीं है. इसके अलावा, माली, जो कि फ्रांस का उपनिवेश रह चुका है, में राजनीतिक स्थिरता बहाल करने के लिए फ्रांस ने 2013 से अब तक दो बड़े सैन्य अभियान चलाए हैं जिनका नाम ऑपरेशन सरवैल और बुर्खाने है. इसके लिए फ्रांस ने साहेल क्षेत्र में 5,000 से ज़्यादा सैनिकों को तैनात किया है. लेकिन इसके बावजूद माली की सीमा से आगे फ्रांस को सफलता नहीं मिल पाई. उदाहरण के लिए, जून 2021 में आतंकवादियों ने बुर्किना फासो के एक सीमावर्ती गांव में 160 लोगों की हत्या कर दी. साथ ही नाइजर और माली की सीमा आतंकवादी हमलों को लेकर असुरक्षित बनी हुई है. साहेल क्षेत्र की अर्ध-बंजर ज़मीन की विशाल पट्टी में आतंकवादी अपने नेटवर्क का विस्तार कर रहे हैं. अफ्रीका में फ्रांस की सैन्य मौजूदगी के भारी-भरकम खर्च को देखते हुए जून 2021 में फ्रांस ने पश्चिमी अफ्रीका में बुर्खाने अभियान को ख़त्म करने का फ़ैसला लिया और फ्रांस का जिहाद विरोधी बल 2022 की शुरुआत में ख़त्म हो जाएगा. इसी तरह अमेरिका के बाइडेन प्रशासन ने एक नई नीति की तलाश में सोमालिया में अपने आतंकवाद विरोधी अभियान को धीमा कर दिया है. हालांकि ट्रंप के शासनकाल (2017-2021) के दौरान अमेरिका ने 2017 में अल शबाब के ख़िलाफ़ हवाई हमले बढ़ा दिए थे. वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र के समर्थन वाला अफ्रीकन यूनियन मिशन इन सोमालिया (यूएनआईएसओएम), जिसमें 11 अफ्रीकी देश शामिल हैं, अभी भी सोमालिया की राजनीति में स्थिरता लाने के लिए संघर्ष कर रहा है.

अमेरिका के बाइडेन प्रशासन ने एक नई नीति की तलाश में सोमालिया में अपने आतंकवाद विरोधी अभियान को धीमा कर दिया है. हालांकि ट्रंप के शासनकाल (2017-2021) के दौरान अमेरिका ने 2017 में अल शबाब के ख़िलाफ़ हवाई हमले बढ़ा दिए थे.

आख़िर में, अल क़ायदा और आईएस जैसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन, जो कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में ग़ैर-सरकारी समूह के तौर पर काम कर रहे हैं, मज़बूत साबित हुए हैं. पश्चिम एशिया में अपने कम होते महत्व के साथ इन संगठनों ने नियमित रूप से अपनी गतिविधियों का रुख़ अफ्रीका की तरफ़ किया है. इन संगठनों की इस्लामिक कट्टरता और पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ रवैये के साथ-साथ पश्चिम एशिया और अफ्रीका में आतंकवादी नेटवर्क के बीच आपसी संबंधों ने आतंकवाद को एक डरावनी ताक़त बना दिया है. हथियार और गोला-बारूद ख़रीदते समय इन समूहों ने फंड इकट्ठा करने के लिए अनैतिक तरीक़ों पर भरोसा किया है. संयुक्त राष्ट्र और अफ्रीकी संघ जैसे संगठनों के साथ-साथ यूके, फ्रांस और अमेरिका जैसी बड़ी शक्तियों की आतंकवाद विरोधी रणनीति अफ्रीका में आतंकवाद को नियंत्रित करने में अपर्याप्त साबित हुई है.

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