Author : Omkar Sathe

Expert Speak Raisina Debates
Published on Apr 25, 2024 Updated 0 Hours ago

EU-भारत FTA की वज़ह से भारत के लिए यूरोपियन बाज़ार खुल सकते हैं लेकिन GIs का प्रभावशाली उपयोग करने के लिए घरेलू स्तर पर काफ़ी काम किया जाना आवश्यक है.

EU-भारत FTA के बीच जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन्स: अधूरा भुनाया अवसर

पृष्ठभूमि

EU-भारत के बीच चल रही फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) बातचीत में जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन्स (GIs) केंद्रीय एवं विवाद का मुद्दा बनकर उभरे हैं. GI किसी ऐसे उत्पाद के लिए बौद्धिक संपदा संरक्षण का काम कर सकती है, जिसकी उत्पत्ति किसी विशेष जियोग्राफ़िकल अर्थात भौगोलिक स्थान पर हुई हो और उस उत्पाद की विशेषता, उसकी प्रतिष्ठा अथवा विशिष्ठ गुण उस जियोग्राफ़िकल लोकेशन यानी भौगोलिक स्थान से जुड़ी हुई है. इसे लेकर उपजा विवाद इस बात को लेकर है कि इस उत्पाद को किस हद तक संरक्षण दिया जाए और संरक्षण देने का तरीका क्या होगा. इसके अलावा यह मुद्दा भी विवाद के केंद्र में है कि इस उत्पाद की बाज़ार में पहुंच से नॉन-GI उत्पाद किस तरह प्रभावित होंगे. GI टैग वाले उत्पाद के निर्माताओं को तो यह छूट मिलती है कि वे अपने उत्पाद का नाम उस उत्पाद की उत्पत्ति वाले स्थान के नाम पर रख लें, लेकिन अन्य उत्पादकर्ताओं पर बिक्री के लिए यही नाम रखने को लेकर पाबंदियां लगा दी जाती हैं. उदाहरण के लिए यूरोपियन यूनियन में एक स्पारक्लिंग वाइन कोशैम्पेननाम रखने और विपणन करने की अनुमति उसी वक़्त दी जाती है जब उसका उत्पादन फ्रांस के एक डिफाइन्ड यानी निश्चित स्थान पर ही किया गया हो. इतना ही नहीं इसका उत्पादन भी शैम्पेन के लिए उपज लेने वाले क्षेत्र के अंगुरों पर डबल फर्मेंटेशन की प्रक्रिया से किया गया होना चाहिए. यदि कोई जर्मन उत्पादनकर्ता इसी प्रक्रिया का उपयोग करते हुए स्पार्कलिंग वाइन बनाता है जो भले ही तकनीकी रूप से एक जैसी हो, लेकिन वह इसके लिए "शैम्पेन" शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकता.
अत: GI का उपयोग करने से एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र को ही आर्थिक विकास का लाभ मिलता है. इसकी वज़ह से विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से जुड़े उत्पादों को बाज़ार में अपनी विशेष पहचान बनाने का अवसर भी मिलता है. इसकी वज़ह से उस क्षेत्र में चल रहे उद्योगों को आर्थिक प्रोत्साहन भी मिल सकता है.

GI का उपयोग करने से एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र को ही आर्थिक विकास का लाभ मिलता है. इसकी वज़ह से विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से जुड़े उत्पादों को बाज़ार में अपनी विशेष पहचान बनाने का अवसर भी मिलता है.

अनेक GI-संरक्षित उत्पादों का उत्पादन उस क्षेत्र की सांस्कृतिक परंपराओं के साथ जुड़ी परंपरागत उत्पादन प्रक्रिया के अनुसार ही किया जाता है. शैम्पेन के मामले में उस उत्पाद की प्रामाणिकता उस क्षेत्र की परंपरागत वाइन मेकिंग के साथ जुड़ी होती है. ऐसी प्रामाणिकता ही शैम्पेन की प्रतिष्ठा और उसकी आर्थिक बढ़ोतरी के लिए अहम होती है. आर्थिक मूल्य में निरंतर होने वाली वृद्धि के कारण ही परंपरागत पद्धतियों का जतन करना संभव हो पाता है. इसकी वज़ह से उस क्षेत्र का आर्थिक मूल्य भी बढ़ पाता है. इसके परिणामस्वरूप होने वाली आर्थिक उन्नति भी उस भौगोलिक क्षेत्र की सांस्कृतिक परंपराओं का जतन करने में सहायक साबित होती है.


EU-भारत FTA में GI टैग

EU वैश्विक स्तर पर मजबूत GI रेग्युलेशन्स यानी नियमन का पक्षधर रहा है. EU केवल भारत, बल्कि चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ भी अपने यहां के GIs को अधिक मान्यता देने और उसका संरक्षण करने के लिए बातचीत करता रहा है. EU ऐसा इसलिए करता है, क्योंकि उसे पता है कि GIs में उसके घरेलू उद्योग को प्रोत्साहित करने की क्षमता है. एक यूरोपियन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार EU के GIs-संरक्षित एग्री एवं फूड प्रोडक्ट्स की अनुमानित बिक्री 2017 में 75 बिलियन यूरो थी. इस बिक्री में वाइन्स की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत, कृषि उपज एवं खाद्य पदार्थों की 35 प्रतिशत, स्पिरिट ड्रिंक की 13 प्रतिशत, एरोमेटेड वाइन प्रोडक्ट की 0.1 प्रतिशत थी. यहां उल्लेखनीय है कि इसमें भी निर्यात से मूल्य का पांचवां हिस्सा (एक पंचमांश पैसा) रहा था.

फिगर : वैश्विक स्तर पर अधिकृत रूप से स्वीकार्य शैम्पेन GI 

Source: Comité Champagne

EU के GI टैग संबंधी विनियमनों को स्वीकार करने का अर्थ यह होगा कि भारत में EU के GI टैग को मान्यता देना और इसके बदले में भारत के GI टैग को EU में मान्यता मिलना. हालांकि ऐसे में यूरोपियन उत्पादकों का मुकाबला कर रहे भारतीय उत्पादकों की स्पर्धात्मक क्षमता सीमित हो जाएगी, लेकिन इसकी वज़ह से भारत में GI टैग्स वाले भारतीय उत्पादकों के लिए यूरोपियन बाज़ार खुले हो जाएंगे. चूंकि EU के बाज़ारों में GI टैग्स की कद्र की जाती है, अत: भारत के लिए इसे निर्यात का बेहतर अवसर समझा जा सकता है. EU में GI टैग वाले उत्पादों को अच्छी कीमत भी मिलती है. वहां के बाज़ारों में GI प्रमाणीकरण वाले उत्पादों की सामान्य उत्पादों की तुलना में दोगुना बिक्री होती है. लेकिन भारतीय प्रतिष्ठानों को यदि इस मौके को भुनाना है तो इस दिशा में अभी काफ़ी काम करना बाकी है.


भारत के अवसर और चुनौतियां

आर्थिक हितों को प्रोत्साहित करने में GI टैग सहायक साबित हुए हैं. ये बात वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है. 2022 में अनुमानित 58,400 संरक्षित GIs थे. इसमें वैश्विक स्तर पर उपलब्ध GIs में अपर-मिडल-इनकम और हाई-इनकम अर्थव्यवस्थाओं के पास लगभग 90 फ़ीसदी हिस्सेदारी थी. इसमें भी चीन और फ्रांस के पास क्रमशः 9,000+ तथा 5500+ GI टैग थे. GI उत्पादकों से चीन की आउटपुट वैल्यू 2020 में 82 बिलियन यूरो था.

EU में GI टैग वाले उत्पादों को अच्छी कीमत भी मिलती है. वहां के बाज़ारों में GI प्रमाणीकरण वाले उत्पादों की सामान्य उत्पादों की तुलना में दोगुना बिक्री होती है. लेकिन भारतीय प्रतिष्ठानों को यदि इस मौके को भुनाना है तो इस दिशा में अभी काफ़ी काम करना बाकी है.

लेकिन दुर्भाग्य से भारत में GI टैग का बेहद कम इस्तेमाल हुआ है. भारत में अब तक लगभग कुल 550 GI टैग पंजीबद्ध किए गए हैं, जो भारत जैसे देश के लिए बेहद कम समझे जाएंगे. इसमें कृषि उत्पादों को मिले GI टैग की संख्या 190 से भी कम है, जबकि GI टैग वाले हस्तकला उत्पादों की संख्या (281) आधे से ज्यादा है. यह वैश्विक औसत के ठीक विपरीत है. वैश्विक स्तर पर उपलब्ध GI टैग्स में वाइंस का हिस्सा आधे से ज़्यादा है, जबकि अन्य कृषि एवं खाद्य उत्पादों को कुल 43 फ़ीसदी GI टैग्स मिले हुए हैं. ये आंकड़े दर्शाते हैं कि इन श्रेणियां में कितनी आर्थिक क्षमता है.

फिगर 2 : भारत में GI टैग्स



फिगर 3 : वैश्विक स्तर पर उत्पाद- श्रेणीवार ही टैग्स (2022)

Source: WIPO IP facts and figures 2022  

दूसरी समस्या यह है कि पंजीबद्ध GI टैग्स का पूर्ण क्षमता के साथ उपयोग नहीं हो रहा है. GI टैग्स को लेकर जागृति का अभाव होने की वज़ह से भारत में GI टैग्स वाले अधिकांश कृषि उत्पादों के लिए एक भी रजिस्टर्ड उपयोगकर्ता नहीं है. कुल 181 GI - टैग्ड कृषि उत्पादों में से आधे से ज़्यादा के लिए एक भी रजिस्टर्ड उपयोगकर्ता नहीं है. अनेक GI टैग्स जैसे मदुरै मल्ली, आसाम का जोहा राइस और सिरसी सुपारी के लिए एक ही रजिस्टर्ड उपयोगकर्ता है.

फिगर 4 : भारत में GI टैग्स के रजिस्टर्ड उपयोगकर्ता.

A graph of the number of tags

Description automatically generated

Source: "Registered GIs", Intellectual Property India; Analysis by CPC Analytics

GIs का इस्तेमाल करने के लिए उत्पादकों को काफ़ी उच्च स्तरीय संगठन और संयुक्त प्रयास करने की ज़रुरत होती है. उत्पादकों को GIs के उपयोगकर्ता के रूप में पंजीबद्ध होकर इस बात के लिए तैयार होना पड़ता है कि वे सदैव ब्रांड को लेकर न्यूनतम गुणवत्ता का स्तर बनाएं रखें. GIs के लिए उत्पादन प्रक्रिया का संरक्षण बेहद अहम होता है. अन्यथा वे अपनी उस विशिष्टता को खोने का ख़तरा मोल ले रहे होते हैं, जिसने GI संरक्षित दर्ज़ा मुहैया कराया है. कॉमन ब्रांड की मार्केटिंग के लिए संसाधनों का प्रावधान भी ज़रूरी है. इसके अलावा उत्पादों पर कॉमन GI-टैग का इस्तेमाल करने के लिए दिशा-निर्देशों पर अमल भी करना पड़ता है. इसी प्रकार बाज़ार में होने वाले उल्लंघन पर नज़र रखने, डॉक्यूमेंटेशन को बनाए रखने के साथ ब्रांड की प्रभावशीलता को कायम रखने के प्रत्येक उल्लंघन के ख़िलाफ़ मजबूती के साथ खड़े रहकर हर ज़रुरी उपाय करना होता है.

इस पहल के तहत एक ही भौगोलिक क्षेत्र में आने वाले छोटे और मध्यम किसानों को बेहतर उत्पाद, कम लागत और अधिक मुनाफ़े के लिए संगठित किया जा सकता है.

भारतीय कृषि समाज की ख़स्ता संगठनात्मक स्थिति इस दिशा में काम करने के मामले में कड़ी चुनौती बनकर खड़ी होती है. लेकिन GIs को वर्तमान में चल रही पहल, फॉर्मेशन एंड प्रमोशन ऑफ 10K फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन के साथ एकीकृत किया जा सकता है. इस पहल के तहत एक ही भौगोलिक क्षेत्र में आने वाले छोटे और मध्यम किसानों को बेहतर उत्पादकम लागत और अधिक मुनाफ़े के लिए संगठित किया जा सकता है. चूंकि GIs भूगोल-आश्रित होते हैं, अतः ये बेहतर और सटीक होगा कि इन FPOs का उपयोग GIs को लेकर अधिक जागरूकता लाने के लिए किया जाए. GIs का प्रभावी उपयोग करते हुए उन्हें अपने उत्पाद के लिए अच्छी कीमत मांगने में सक्षम कर उनके पारंपरिक उत्पादन प्रक्रियाओं का संरक्षण भी किया जा सकता है. इसके अलावा निर्यात-सक्षम FPOs के लिए सरकारी सहायता उपलब्ध करवाना भी महत्वपूर्ण होगा. ऐसा इसलिए ज़रूरी है ताकि वे खाद्य पदार्थों को लेकर EU विनियमन की पूर्ति करने के लिए तकनीकी ज्ञान और निवेश के लिए पैसा हासिल कर सके.


निष्कर्ष 

GIs को वैश्विक स्तर पर आर्थिक परिणाम को प्रोत्साहित करने के लिए जाना जाता है. EU-भारत FTA की वज़ह से भारत के लिए यूरोपियन बाज़ार खुल सकते हैं लेकिन GIs का प्रभावशाली उपयोग करने के लिए घरेलू स्तर पर काफ़ी काम किया जाना आवश्यक है. इस क्षेत्र से संबंधित समुदाय को संगठित करना, सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देना, उन्हें अपनी निर्माण प्रक्रिया की गुणवत्ता की व्याख्या कर उसे नियंत्रित करने में सहयोग करने के अलावा ब्रांडिंग इंवेस्टमेंट्स में मदद करते हुए आर्थिक उन्नति हासिल करने के साथ स्थानीय सांस्कृतिक विशिष्टता को बनाएं रखने में सहयोग किया जाना आवश्यक है


ओंकार साठे, CPC एनालिटिक्स में पार्टनर हैं

लेखक ओवी करवा की ओर से रिसर्च में दिए गए सहयोग का संज्ञान लेते हैं.

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