Author : Chaitanya Giri

Expert Speak Raisina Debates
Published on Aug 13, 2024 Updated 0 Hours ago

जैसे-जैसे भारत अपनी मानव अंतरिक्ष उड़ान कूटनीति का विस्तार करने की राह पर आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे उसे इस बात की भी कोशिश करनी चाहिए कि महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पहलों (iCET) के लिए वो दूसरे देशों के साथ मिलकर काम करे. इस तरह की द्विपक्षीय पहल का दोनों देशों को फायदा होगा.

गगनयान मिशन से iCET क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद!

चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास ' अ टेल ऑफ़ टू सिटीज़' की तर्ज़ पर कहें तो ये कहानी दो 'एक्सिओम्स' की है. पहली है ‘एक्सिओम रिसर्च लैब’. टीम इंडस के नाम से लोकप्रिय इस लैब की स्थापना 2010 में बेंगलुरू में की गई थी. दूसरी है ‘एक्सिओम स्पेस’ जो 2016 में ह्यूस्टन में स्थापित की गई. दोनों ही भारत-अमेरिका (यूएस) अंतरिक्ष सहयोग से संबंधित हैं, और दोनों ही उभरते वैश्विक सीआईएस-लूनर आर्किटेक्ट में अहम भूमिका निभाने का इरादा रखती हैं. इंडियन एक्सिओम का निर्माण भारतीयों द्वारा किया गया था, लेकिन भारत में व्यावसायिक अंतरिक्ष संस्थाओं के लिए अवसरों की कमी के कारण 2017 में इसने खुद को अमेरिकी कमर्शियल स्पेस इकोसिस्टम में समाहित कर लिया. अमेरिका के एक्सिओम को अमेरिकी और अंतरराष्ट्रीय प्रतिभाओं द्वारा बनाया गया है. ये लोग बेहद विकसित हो चुके अमेरिकी व्यापारिक अंतरिक्ष सेक्टर से प्रभावित थे. ऐसे में अब इन दोनों संस्थाओं की कहानी और भाग्य के विश्लेषण की आवश्यकता है क्योंकि भारत भी अपनी मानव अंतरिक्ष उड़ान कूटनीति के रास्ते में एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर तक पहुंचने के कगार पर है.

 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक्सिओम स्पेस और नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के साथ एक संयुक्त अंतरिक्ष उड़ान समझौते पर दस्तख़त किए हैं. इस समझौते के तहत एक गगनयात्री (भारतीय अंतरिक्ष यात्री) को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर ले जाया जाएगा. 

नासा के साथ समझौता


विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय में स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने एक बड़ी घोषणा की है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक्सिओम स्पेस और नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के साथ एक संयुक्त अंतरिक्ष उड़ान समझौते पर दस्तख़त किए हैं. इस समझौते के तहत एक गगनयात्री (भारतीय अंतरिक्ष यात्री) को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर ले जाया जाएगा. भारत ने गगनयात्री के प्रमुख उम्मीदवार के तौर पर ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को चुना है. ग्रुप कैप्टन प्रशांत नायर रिज़र्व के तौर पर होंगे. दोनों ही भारतीय वायुसेना से जुड़े हैं और वो ही इस मिशन का संचालन करेंगे. इसे एक्सिओम मिशन 4 (AM4) नाम दिया गया है और ये अक्टूबर 2024 यानी इसी साल लॉन्च होने वाला है. इस अंतरिक्ष यान के कमांडर अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री कार्यालय के पूर्व प्रमुख पैगी व्हिटसन हैं, जो वर्तमान में दुनिया में सबसे लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने वाले शख्स हैं. इसके अलावा एएम-4 मिशन में पोलैंड और हंगरी के दो गैर-कैरियर अंतरिक्ष यात्री भी शामिल होंगे. एएम-4 एक्सिओम स्पेस के लिए सबसे महत्वपूर्ण पूर्ववर्ती मिशनों में से एक है क्योंकि अगले पांच साल में वो अपने अंतरिक्ष स्टेशन के तीन मॉड्यूल लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है. एएम-4 मौजूदा आईएसएस संरचना से जुड़ा पहला मॉड्यूल है. एक्सिओम स्पेस का इरादा एक कमर्शियल स्पेस स्टेशन स्थापित करने और उसे संचालित करने का है.

भारत ने 2018 में गगनयान मिशन की घोषणा की थी. उसके बाद से भारत के मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के लिए इसरो को फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी, सीएनईएस से अंतरिक्ष चिकित्सा और रूसी स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस की तरफ से अंतरिक्ष उड़ान प्रशिक्षण पर सहयोग हासिल हुआ है. ख़ास बात ये है कि अमेरिका इन सब मामलों पर स्पष्ट रूप से अनुपस्थित रहा, जबकि 2005 में स्थापित नागरिक अंतरिक्ष सहयोग पर भारत-अमेरिका संयुक्त कार्य समूह सक्रिय था. इस कार्य समूह ने भारत के चंद्रयान मिशनों में काफ़ी मदद की, लेकिन इनमें मानव अंतरिक्ष उड़ान का कोई घटक नहीं था. बाद में, 2014 में इसरो के मार्स ऑर्बिटर मिशन और नासा के मावेन अंतरिक्ष यान को मंगल ग्रह पर लगभग एक साथ लॉन्च करने के बाद इसरो और नासा ने मार्स वर्किंग ग्रुप की स्थापना की, लेकिन इसमें भी किसी मानव अंतरिक्ष उड़ान का घटक शामिल नहीं किया गया. भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय अंतरिक्ष सहयोग से एक चीज़ गायब थी और वो एक ऐसा नया पद था, जिसके पास पॉलिटिकल विज़न तो हो लेकिन जो राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों की सीमा से परे हो. इस भूमिका के लिए दोनों देशों में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद सबसे उपयुक्त था.

जब बात अंतरिक्ष क्षेत्र की आती है, तो अमेरिका इस मामले में नंबर वन है. वो प्रतिभा और निवेश को आकर्षित करता है. उदाहरण के लिए भारतीय कंपनी एक्सिओम रिसर्च लैब्स (एआरएल) या टीम इंडस का मामला ही ले लीजिए. इसने 2010 में गूगल लूनर एक्स पुरस्कार प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. 



जैसा कि द्विपक्षीय अंतरिक्ष सहयोग से स्पष्ट है, मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए नागरिक अंतरिक्ष और वैज्ञानिक एजेंसियों, रक्षा प्रतिष्ठानों और व्यावसायिक संस्थाओं से जुड़ी प्रतिभाओं को एक साथ मिलकर काम करने की ज़रूरत होती है. अंतरिक्ष एजेंसियों के पास इन समूहों को एक साथ लाने के लिए ज़रूरी अधिकार नहीं हैं.  अमेरिका में ये शक्ति राष्ट्रपति के कार्यकारी कार्यालय के तहत आने वाली राष्ट्रीय अंतरिक्ष परिषद के पास है. भारत में प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत आने वाले अंतरिक्ष आयोग के पास ये अधिकार है और इन दोनों निकायों को एक साथ लाने वाली शक्ति जिस पेशेवर पद के पास है, वो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का है. इसी उद्देश्य के लिए मई 2022 में स्थापित क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (iCET) पर एनएसए के नेतृत्व वाली अमेरिका-भारत पहल शुरू की गई. इसने मानव अंतरिक्ष उड़ान, कमर्शियल लूनर एक्सप्लोरेशन और व्यापारिक अंतरिक्ष साझेदारी पर काफ़ी ज़ोर दिया, जबकि ये नागरिक अंतरिक्ष सहयोग ढांचे के दायरे में संभव नहीं था.

भारत और अमेरिकी के टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम के बीच स्वाभाविक समानताएं हैं. इसे देखते हुए ये कहा जा सकता है कि भारत के किसी दूसरे देश के साथ अंतरिक्ष सहयोग पर द्विपक्षीय संबंधों की तुलना में भारत-अमेरिकी द्विपक्षीय सहयोग का अच्छी तरह से आगे बढ़ना स्वाभाविक है. हालांकि अगर बात दीर्घकाल की करें तो जब भी घरेलू कमर्शियल स्पेस इकोसिस्टम को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने का सवाल खड़ा होगा तो भारत को अपना रास्ता खुद तय करना होगा.

 

अमेरिका की धाक



जब बात अंतरिक्ष क्षेत्र की आती है, तो अमेरिका इस मामले में नंबर वन है. वो प्रतिभा और निवेश को आकर्षित करता है. उदाहरण के लिए भारतीय कंपनी एक्सिओम रिसर्च लैब्स (एआरएल) या टीम इंडस का मामला ही ले लीजिए. इसने 2010 में गूगल लूनर एक्स पुरस्कार प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. अपने स्वनिर्मित लैंडर और रोवर को लॉन्च करने के मामले में ये इस प्रतियोगिता में चुने गए फाइनलिस्टों में से एक था. इस सफलता के बावजूद एआरएल को 2018 से पहले भारत में अपनी भविष्य की योजनाओं के लिए कोई ख़ास प्रोत्साहन नहीं मिला. लेकिन अमेरिकी इकोसिस्टम ने इसे उपयोगी पाया और एआरएल ने अपना ध्यान नासा के कमर्शियल लूनर पेलोड सर्विसेज (सीएलपीएस) कार्यक्रम पर केंद्रित किया. इस कार्यक्रम के तहत ऐसी कंपनियों को अनुबंधित किया जाता है, जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की खोज, संसाधनों का संग्रह और ऐसी ज़रूरी तकनीकी का विकास करती हैं, जिससे चांद पर लंबे वक्त तक रहा जा सके. अलग-अलग मौकों पर इसने ऑर्बिटबियॉन्ड और सेरेस रोबोटिक्स जैसी अमेरिकी कंपनियों के साथ साझेदारी की. ये दोनों कंपनियां सीएलपीएस में रुचि रखती हैं और अपनी विशेषज्ञता और बौद्धिक संपदा को साझा करने का इरादा रखती हैं. भारत का लूनर एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम एआरएल की व्यावसायिक सेवाओं को समायोजित करने के लिए बहुत नया था.

मानव अंतरिक्ष यान पर एक जैसी आपसी समझ वाले भागीदारों के साथ काम करने की भारत की क्षमता हमारी उच्च प्रौद्योगिकी रणनीतिक स्वायत्तता का एक संकेत होगी.

इसी तरह अमेरिका ने उस वित्तीय, मानव संसाधन और तकनीकी संसाधनों को आकर्षित करने के उद्देश्य के लिए आर्टेमिस कार्यक्रम बनाया है जो उसके भागीदार देश उत्पन्न करते हैं. चीन की सोच भी ऐसी ही रहती है, जब वो अपने इंटरनेशनल लूनर रिसोर्स स्टेशन मेगाप्रोजेक्ट के लिए अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को आकर्षित करता है. अंतरिक्ष के क्षेत्र में काम कर रही भारतीय निजी कंपनियों को मुश्किल तब आती है, जब वो अलग-अलग देशों के स्पेस इकोसिस्टम के साथ अनुभवात्मक शिक्षा की प्रक्रिया से गुज़रती हैं. ऐसे में अगर उन्हें कई कंपनियों के साथ काम करने का अनुभव मिला हो तो ये रणनीतिक स्वायत्तता के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है.

अंतरिक्ष एजेंसी के स्तर पर भारत की मानव अंतरिक्ष उड़ान कूटनीति एकतरफ़ा नहीं है. भारत-फ्रांस रणनीतिक अंतरिक्ष संवाद के ज़रिए से इसका पेरिस और भारत-रूस विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से मास्को के साथ जुड़ाव है. भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) के अनुसंधान और विकास के साथ जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, उसे निश्चित रूप से विभिन्न भू-राजनीतिक देशों से उभरने वाली संस्थाओं के साथ वाणिज्यिक अंतरिक्ष साझेदारी का फायदा उठाना होगा. जैसे एएम-4 हंगरी और पोलैंड के अंतरिक्ष यात्रियों को ले जा रहा है, वैसे ही भारत को भी अंतरिक्ष यात्रियों और उनके देशों के कमर्शियल इकोसिस्टम को बीएएस में लाने की कोशिश करनी चाहिए.

निष्कर्ष

इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिकी इकोसिस्टम के साथ भारत की साझेदारी काफी मददगार है. फिर भी अगर भारत बीएएस पर कई देशों के अंतरिक्ष यात्रियों को शामिल करने का इरादा रखता है, तो उसे अपनी मानव अंतरिक्ष यान कूटनीति की कमज़ोरियों को दूर करना होगा. इसके ज़रिए उसे नागरिक, व्यावसायिक और डिफेंस इकोसिस्टम के अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक ब्लॉकों से पार करना होगा. लेकिन हमें ये नहीं मान लेना चाहिए कि ये सिर्फ एक शांतिपूर्ण प्रस्ताव है. मानव अंतरिक्ष यान कूटनीति का मूल परिचालन पारस्परिक निर्भरता, अलग-अलग सक्षम साथियों के साथ मनोसामाजिक समझ सुनिश्चित करना है, जो बाहरी अंतरिक्ष के चरम क्षमता वाली मांग और सीमित वातावरण में काम कर रहे हैं. जो विभिन्न भागीदारों के साथ हमेशा नेटवर्क में व्यावसायिक रूप से उपलब्ध आकस्मिकताओं को विकसित कर रहे हैं. इन्हें उन सैनिक अभ्यासों की तरह मानें जिनमें हमारी सेनाएं शामिल हैं. मानव अंतरिक्ष यान पर एक जैसी आपसी समझ वाले भागीदारों के साथ काम करने की भारत की क्षमता हमारी उच्च प्रौद्योगिकी रणनीतिक स्वायत्तता का एक संकेत होगी. ये रणनीतिक स्वायत्तता इसरो के दायरे तक ही सीमित नहीं है. ये हमारे कमर्शियल स्पेस इकोसिस्टम में फैली हुई है. भारत के लिए कुछ अन्य देशों के साथ iCET जैसी द्विपक्षीय 'मानव अंतरिक्ष यान' पहलों पर काम करना फायदेमंद होगा. आखिरकार भारतीय व्यावसायिक अंतरिक्ष संस्थाओं में वैश्विक मानव अंतरिक्ष यान और सीआईएस-लूनर आर्किटेक्चर व्यवसाय में शामिल होने और बहुराष्ट्रीय दिग्गज बनने की क्षमता होनी चाहिए.


चैतन्य गिरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सिक्योरिटी, स्ट्रैटजी और प्रौद्योगिरी केंद्र में फेलो हैं.

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