G7 और NATO का सम्मेलन ऐसे समय में हुआ है, जब रूस यूक्रेन जंग अपने चरम पर है. तमाम कोशिशों के बावजूद रूस की आक्रमकता में कोई बदलाव नहीं आया है. रूस को पश्चिमी देशों और अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में G7 और NATO की बैठक काफी अहम मानी जा रही है. इस बैठक में जहां पश्चिमी देश और अमेरिका अपनी एकजुटता का संदेश देंगे वहीं दूसरी ओर फिनलैंड और स्वीडन पर भी चर्चा हो सकती है. G7 और NATO की बैठक के बीच कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या इस युद्ध को रोकने के लिए कोई कूटनीतिक पहल हो सकती है. एक और सवाल कि क्या इसकी आंच भारत तक आ सकती है. इन तमाम सवालों पर क्या कहते हैं प्रो. हर्ष वी पंत? आइये जानते हैं कि G7 और NATO की इस बैठक के क्या मायने हैं.
ओआरएफ़ के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ के प्रमुख प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि रूस यूक्रेन जंग को देखते हुए पहले G7 और इसके बाद नाटो का सम्मेलन काफी अहम है. रूस और चीन की नज़र इस पर टिकी होंगी. इन बैठकों पर रूस यूक्रेन जंग को रोकने की रूपरेखा तय हो सकती है. यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि पश्चिमी देश और अमेरिका रूस के खिलाफ़ और सख्त़ कदम उठा सकते हैं. रूस को नियंत्रित करने के लिए नाटो और G7 के सदस्य देश और कठोर प्रतिबंध लगा सकते हैं. युद्ध को रोकने के लिए नाटो कुछ बड़े कदम उठा सकता है. रूस यूक्रेन जंग को देखते हुए इन संगठनों की बैठक बेहद अहम है.
कयास लगाए जा रहे हैं कि पश्चिमी देश और अमेरिका रूस के खिलाफ़ और सख्त़ कदम उठा सकते हैं. रूस को नियंत्रित करने के लिए नाटो और G7 के सदस्य देश और कठोर प्रतिबंध लगा सकते हैं. युद्ध को रोकने के लिए नाटो कुछ बड़े कदम उठा सकता है. रूस यूक्रेन जंग को देखते हुए इन संगठनों की बैठक बेहद अहम है.
प्रो. पंत ने कहा कि G7 और नाटो की इस बैठक में यह देखना दिलचस्प होगा कि रूस यूक्रेन जंग को रोकने के लिए क्या कोई कूटनीतिक कदम उठाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि यूक्रेन जंग में रूस अभी तक आक्रामक रुख़ अपनाए हुए है. इस जंग में रूस ने हर तरह के हथियारों का इस्तेमाल किया है. अभी तक अमेरिका और पश्चिमी देशों का प्रतिबंध उस पर बेअसर रहा है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या युद्ध को रोकने के लिए कुछ कूटनीतिक कदम उठाए जा सकते हैं.
प्रो. पंत ने कहा कि इस सम्मेलन में दिखाने की कोशिश होगी कि नाटो केवल अमेरिका और यूरोप का ही सैन्य संगठन नहीं है, बल्कि यह पूरे विश्व में दखल रखता है. यह सम्मेलन रूस ही नहीं चीन को भी संदेश देगा। यह पश्चिमी देशों और अमेरिकी एकजुटता का प्रतीक होगा. इस सम्मेलन में इस बात का पूरा प्रदर्शन होगा कि रूस को अपनी सीमा में रहना चाहिए. नाटो के किसी देश पर युद्ध थोपना उसके लिए हानिकारक होगा. इस बैठक में फिनलैंड, स्वीडन और अन्य नाटो देशों की सुरक्षा का पूरा आश्वासन दिया जाएगा.
यह सम्मेलन रूस ही नहीं चीन को भी संदेश देगा। यह पश्चिमी देशों और अमेरिकी एकजुटता का प्रतीक होगा. इस सम्मेलन में इस बात का पूरा प्रदर्शन होगा कि रूस को अपनी सीमा में रहना चाहिए. नाटो के किसी देश पर युद्ध थोपना उसके लिए हानिकारक होगा.
गौरतलब है कि चालू वर्ष में G7 की अध्यक्षता की जिम्मेदारी जर्मनी के पास है. G7 की बैठक के बाद इसके सभी नेता 30 देशों की सदस्यता वाले सैन्य गठबंधन नाटो के सम्मेलन में भाग लेने के लिएस्पेन की राजधानी मैड्रिड जाएंगे. नाटो का सदस्य न होने के बावजूद जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया इस सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. यूरोप में चंद रोज में होने वाली विश्वस्तरीय दो महत्वपूर्ण बैठकों में यूक्रेन युद्ध के भविष्य, रूसी गैस कटौती से पैदा हुई स्थिति और विश्व राजनीति पर विचार किया जाएगा. इन बैठकों में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन सहयोगी देशों के नेताओं के साथ विचार-विमर्श करेंगे. दुनिया के सात संपन्न देशों के समूह G7 की बैठक जर्मनी के बावेरियन एल्प्स में रविवार को शुरू होकर मंगलवार तक चलेगी. इस बैठक में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान के नेता भाग लेंगे.
यूरोप में चंद रोज में होने वाली विश्वस्तरीय दो महत्वपूर्ण बैठकों में यूक्रेन युद्ध के भविष्य, रूसी गैस कटौती से पैदा हुई स्थिति और विश्व राजनीति पर विचार किया जाएगा.
बता दें कि द नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन यानी NATO एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो 1949 में 28 यूरोपीय देशों और दो उत्तरी अमेरिकी देशों के बीच बनाया गया है. नाटो का उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य साधनों के माध्यम से अपने सदस्य देशों को स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना है, साथ ही रक्षा और सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर सहयोग के माध्यम से देशों के बीच संघर्ष को रोकना है. इसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनाया गया था. नाटो का हेडक्वार्टर ब्रसेल्स, बेल्जियम में स्थित है. नाटो की मान्यता है कि नाटो के किसी भी एक देश पर आक्रमण पूरे संगठन पर आक्रमण होगा. यानी किसी के एक देश पर आक्रमण का जवाब नाटो के सभी देश देंगे. नाटो की अपनी कोई सेना या अन्य कोई रक्षा सूत्र नहीं है, बल्कि नाटो के सभी सदस्य देश म्युचल अंडरस्टेंडिंग के आधार पर अपनी-अपनी सेनाओं के साथ योगदान देंगे. ख़ास बात है कि केवल नाटो के सदस्य देश ही उसके सरंक्षण का लाभ ले सकते हैं. अन्य देश जो नाटो के सदस्य नहीं है उनके प्रति नाटो की कोई जवाबदेही नहीं होगी.
यह लेख दैनिक जागरण में प्रकाशित हो चुका है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.