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G20 ने जहां साइबर सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर डिजिटल अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से ध्यान दिया है, वहीं साइबर सुरक्षा और कानून पर अमल से इसके जुड़ाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है.
जुलाई के मध्य में भारत के गृह मंत्रालय (MHA) ने G20 की भारत की मौजूदा अध्यक्षता के हिस्से के रूप में “NFT, AI और मेटावर्स के युग में अपराध और सुरक्षा पर G20 सम्मेलन” का आयोजन किया. अपनी तरह के इस पहले सम्मेलन में G20 के सदस्य देशों में कानून लागू करने वाली एजेंसियों के वरिष्ठ अधिकारी एवं प्रतिनिधि, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा संगठन और भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े लोग एक जगह जमा हुए. बैठक में अलग-अलग मुद्दों जैसे कि डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को सुरक्षित करना, डार्कनेट एवं क्रिप्टोकरेंसी के द्वारा खड़ी की गई चुनौतियों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के अवसरों की चर्चा हुई. आम तौर पर वित्त, विकास और वैश्विक शासन व्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर G20 के फोकस को देखते हुए ये बैठक महत्वपूर्ण है क्योंकि ये G20 के द्वारा साइबर सुरक्षा की चुनौतियों और नये दौर के अपराधों के समाधान के दायरे का विस्तार करती है.
दुनिया भर की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले कुछ समय से साइबर स्पेस के ख़तरों का सामना किया है. लेकिन रैंसमवेयर, डार्कनेट, क्रिप्टोकरेंसी और मेटावर्स के रूप में तकनीक़ में लगातार तरक्की ने कानून लागू करने वाली एजेंसियों के लिए ख़तरे के परिदृश्य को जटिल बना दिया है.
जैसा कि सम्मेलन के दौरान गृह मंत्री अमित शाह के उद्घाटन भाषण में ज़ोर दिया गया, तकनीक़ आज दोधारी तलवार है. हालांकि टेक्नोलॉजी साफ तौर पर फायदे लेकर आई है और इसने लोगों को जोड़ा है लेकिन गलत इरादे से खराब किरदारों ने भी नुकसान पहुंचाने और हिंसा को अंजाम देने के लिए तकनीक़ का इस्तेमाल किया है. दुनिया भर की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले कुछ समय से साइबर स्पेस के ख़तरों का सामना किया है. लेकिन रैंसमवेयर, डार्कनेट, क्रिप्टोकरेंसी और मेटावर्स के रूप में तकनीक़ में लगातार तरक्की ने कानून लागू करने वाली एजेंसियों के लिए ख़तरे के परिदृश्य को जटिल बना दिया है.
सबसे महत्वपूर्ण चुनौती डार्कनेट से मिलती है. जेनेसिस मार्केट और हाइड्रा (अब दोनों बंद हो चुकी हैं) जैसी वेबसाइट, जिन्हें दी ऑनियन रूटर टेक्नोलॉजी ने सक्षम बनाया है, ने आपराधिक तत्वों की तरफ से मादक पदार्थ, तस्करी के सामान, चुराये गये पर्सनल एवं फाइनेंशियल डेटा के साथ-साथ साइबर अपराध करने के औजारों के लिए एक गुमनाम लेकिन फलता-फूलता साइबर स्पेस मुहैया कराया है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानून लागू करने वाली एजेंसियों ने इस तरह के कई अड्डों पर कार्रवाई की है और उन्हें बंद कराया है. इससे निश्चित तौर पर डार्कनेट के द्वारा पैसा जमा करने की क्षमता पर असर पड़ा है. चेनेलिसिस के अनुसार 2022 में डार्कनेट बाज़ार ने 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर का राजस्व जुटाया जो 2021 के 3.1 अरब अमेरिकी डॉलर की तुलना में कम है. लेकिन अतीत में एजेंसियों के द्वारा इस तरह की कार्रवाई अस्थायी झटका साबित हुई हैं क्योंकि आम तौर पर पुराने डार्कनेट बाज़ार की जगह लेने के लिए नये बाज़ार सामने आ गए और ये अधिक मुश्किल साइबर अपराध करने के लिए और भी ज़्यादा प्रतिबंधित सामान बेचने लगे.
हाल के वर्षों में व्यवसायों और महत्वपूर्ण राष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाने बनाने वाले साइबर अपराधों में बेतहाशा बढ़ोतरी के पीछे मुख्य रूप से रैंसमवेयर ज़िम्मेदार है. इसके तहत साइबर अपराधियों और हैकिंग सिंडिकेट ने सरकारों और कंपनियों के द्वारा अपने कंप्यूटर नेटवर्क के लगातार काम करने की ज़रूरत का फायदा उठाया है. रैंसम (फिरौती) पेमेंट की बढ़ती मात्रा के साथ साइबर अपराधियों के लिए रैंसमवेयर अटैक एक आकर्षक धंधा बन गया है. इसने ‘RaaS’ (रैंसमवेयर-एज़-ए-सर्विस) जैसी सेवाओं को भी बढ़ाया है जहां मालवेयर कोडर रैंसमवेयर और इसके कंट्रोल इंफ्रास्ट्रक्चर को साइबर क्रिमिनल्स को अटैक और डेटा भंग (ब्रीच) के लिए किराये पर देते हैं.
डार्कनेट मार्केटप्लेस और रैंसमवेयर की घटनाओं के लिए भुगतान बिटकॉइन, इथेरियम और मोनेरो जैसी क्रिप्टोकरेंसी में किया जाता है जो कि अब साइबर क्रिमिनल्स के लिए एक पसंदीदा ज़रिया बन गई है. क्रिप्टोकरेंसी के विकेंद्रित स्वरूप (डिसेंट्रलाइज़्ड नेचर), इसके ज़रिए लेनदेन में गुमनामी और इसकी बेहद उतार-चढ़ाव वाली वैल्यू ने गलत लोगों को साइबर क्राइम के लिए इनके इस्तेमाल की तरफ आकर्षित किया है. क्रिप्टोकरेंसी की इन ख़ासियतों की वजह से कानून लागू करने वाली एजेंसियों के लिए भी इन पर नज़र रख पाना मुश्किल हो जाता है.
डार्कनेट मार्केटप्लेस और रैंसमवेयर की घटनाओं के लिए भुगतान बिटकॉइन, इथेरियम और मोनेरो जैसी क्रिप्टोकरेंसी में किया जाता है जो कि अब साइबर क्रिमिनल्स के लिए एक पसंदीदा ज़रिया बन गई है.
इनके अलावा आपराधिक गतिविधियों के नये उभरते आयाम भी हैं जैसे कि ऑनलाइन गेमिंग जो कि हैकिंग, आइडेंटिटी थेफ्ट, साइबर स्टॉकिंग, डॉक्सिंग और सोशल इंजीनियरिंग अटैक के लिए फलता-फूलता पनाहगाह साबित हुई है. फिर नॉन-फंजिबल टोकन (NFT) है जो कि आपराधिक भुगतान और वॉश ट्रेडिंग (मनी लॉन्ड्रिंग का एक तरीका) से जुड़ा है. दूसरे छोर पर मेटावर्स है जो कि ऑनलाइन इमर्सिव एनवायरमेंट (डूबने वाला माहौल) है और जो बच्चों की सुरक्षा और सिमुलेटेड अटैक सिनेरियो (नकली हमले का परिदृश्य) जैसी चिंताओं को बढ़ा रहा है. यूरोपियन यूनियन के पुलिस संगठन यूरोपोल ने पहले ही आतंकी संगठनों के द्वारा दुष्प्रचार, भर्ती और ट्रेनिंग के लिए मेटावर्स के संभावित इस्तेमाल के बारे में आगाह किया है.
ये तकनीकी प्रगति नये ज़माने के अपराधों से निपटने और उन्हें रोकने में कानून लागू करने वाली एजेंसियों के बीच अंतर्राष्ट्रीय ताल-मेल के महत्व पर ज़ोर देती है क्योंकि ऐसे अपराधों का नतीजा और असर किसी एक देश की सीमा तक सीमित नहीं है. इस अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के तीन पहलू हैं: सूचना साझा करना, फॉरेंसिक छानबीन और कौशल एवं क्षमता निर्माण.
घरेलू स्तर पर भारत ने आतंकवाद और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय अपराधों से निपटने के लिए अलग-अलग देशों की एजेंसियों के बीच जानकारी के आदान-प्रदान पर बहुत ज़ोर दिया है. उदाहरण के तौर पर, गृह मंत्रालय ने नैटग्रिड, क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम और इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर जैसी पहल पर अमल को तेज़ किया है जिसकी वजह से राष्ट्रीय और राज्य स्तर की कानून लागू करने वाली एजेंसियों के बीच सूचना साझा करने का काम आसान हुआ है. इसके साथ ही सरकार ने साइबर फॉरेंसिक क्षमताओं को बढ़ाने की तरफ भी ध्यान दिया है. गृह मंत्रालय के द्वारा पूरे भारत में साइबर फॉरेंसिक लैबोरेटरी सह ट्रेनिंग सेंटर को स्थापित करने का काम अच्छी तरह से चल रहा है और 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (UT) में ये काम पहले ही हो चुका है.
भारत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्व पर ज़ोर देकर अब इस ढांचे को विश्व स्तर पर दोहराने की कोशिश कर रहा है. पिछले साल नवंबर में दिल्ली में तीसरा मंत्रिस्तरीय ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन आयोजित हुआ जहां भारतीय अधिकारियों ने आतंकवादियों को पैसा मुहैया कराने के आधुनिक तौर-तरीकों से निपटने की ज़रूरत के बारे में बताया. इस बैठक के पहले अक्टूबर 2022 में भारत में दो और महत्वपूर्ण सम्मेलन आयोजित हुए थे: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की काउंटर-टेररिज़्म कमेटी की विशेष बैठक और इंटरपोल (इंटरनेशनल क्रिमिनल पुलिस ऑर्गेनाइज़ेशन) की 90वीं जनरल असेंबली. इन दोनों बैठकों के दौरान सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों का फायदा उठाकर और एक-दूसरे से सबक सीखकर एक मिला-जुला दृष्टिकोण तैयार करने पर चर्चा हुई. इन बैठकों ने उभरती तकनीकों के स्याह पहलू और कानून पर अमल में उनके असर की तरफ ध्यान खींचने में मदद की है.
गृह मंत्रालय के द्वारा पूरे भारत में साइबर फॉरेंसिक लैबोरेटरी सह ट्रेनिंग सेंटर को स्थापित करने का काम अच्छी तरह से चल रहा है और 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (UT) में ये काम पहले ही हो चुका है.
जुलाई के मध्य में भारत के गृह मंत्रालय के द्वारा G20 की बैठक की मेजबानी को इस पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए. कानून लागू करने और साइबर सुरक्षा से जुड़े मजबूत रेगुलेशन पर उभरती प्रौद्योगिकी के असर के बारे में बातचीत शुरू करके इस सम्मेलन ने नये ज़माने के अपराधों से निपटने के लिए G20 की उपयोगिता का प्रदर्शन किया है. अभी तक G20 ने साइबर सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर डिजिटल अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से नज़र डाली है. वैसे तो ये एक महत्वपूर्ण परिप्रेक्ष्य बना हुआ है लेकिन तेज़ी से डिजिटल होती दुनिया में साइबर सुरक्षा और कानून पर अमल से इसके संबंध को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. पूर्वी और पश्चिमी खेमों के बीच भूराजनीतिक ध्रुवीकरण (जियोपॉलिटिकल पोलराइज़ेशन) की वजह से वैश्विक साइबर सहयोग अधर में है, ऐसे में ये वास्तव में G20 की ज़िम्मेदारी है कि वो साइबर सुरक्षा का दायित्व खुद उठाए और कानून लागू करने के पहलू पर ध्यान देकर सदस्य देशों की सुरक्षा में योगदान दे.
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