जी-20 के कुल सदस्यों में से आधे देश औद्योगिक दृष्टि से अत्यधिक विकसित राष्ट्र (अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, रूस, इटली एवं यूरोपीय संघ) हैं, जबकि अन्य आधे देश उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएं जैसे भारत, चीन, इंडोनेशिया, तुर्की, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, मेक्सिको, दक्षिण कोरिया, अर्जेंटीना और सऊदी अरब हैं। जब से इसका गठन वर्ष 1999 में जी-7 (अमीर देशों के क्लब) की एक शाखा के रूप में हुआ है, तभी से इसमें अमीर देशों का प्रभुत्व रहा है।
वर्ष 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के दस्तक देने के बाद से ही विश्व स्तर पर वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित और मजबूत बनाना जी-20 का मुख्य उद्देश्य एवं जिम्मेदारी थी। नवंबर 2008 में जीएफसी के चरम पर पहुंचने के समय हुए जी-20 के वाशिंगटन शिखर सम्मेलन में इसने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी संभाली थी, ताकि भविष्य में एक और वित्तीय संकट की नौबत न आ जाए। जी-20 की प्रत्येक बैठक से पहले वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक होती है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के प्रमुख को भी आमंत्रित किया जाता है। हैम्बर्ग में हाल ही में आयोजित जी-20 की बैठक से पहले बाडेन बाडेन में इसी तरह की एक बैठक हुई थी। हैम्बर्ग शिखर सम्मेलन में इसके मुख्य फोकस को कमजोर करते हुए जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, रोगाणुरोधी प्रतिरोधी वायरस और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे कई अन्य मुद्दे भी एजेंडे में शामिल किए गए थे।
वर्ष 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के दस्तक देने के बाद से ही विश्व स्तर पर वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित और मजबूत बनाना जी-20 का मुख्य उद्देश्य एवं जिम्मेदारी थी।
वर्ष 2009 में आयोजित जी-20 के लंदन शिखर सम्मेलन में यह तय किया गया था कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) को नया स्वरूप प्रदान किया जाएगा तथा इसे अपेक्षाकृत अधिक धन से लैस किया जाएगा और यह वैश्विक धन प्रवाह पर करीबी नजर रखने की भूमिका फिर से निभाएगा। वर्ष 2010 में आयोजित सियोल शिखर सम्मेलन में जी-20 ने दो चरणों में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में सुधार सुनिश्चित करने का वचन दिया। पहला चरण सदस्य देशों के कोटे को दोगुना करने से संबंधित था, जबकि दूसरा चरण आईएमएफ के गवर्नेंस में सुधार करने और आईएमएफ के कार्यकारी बोर्ड में यूरोप को शामिल न करते हुए सीटों को पुन: वितरित करने से संबंधित था। इसके परिणामस्वरूप आईएमएफ और ज्यादा सुदृढ़ हो गया। यही नहीं, वित्तीय स्थिरता बोर्ड और स्विट्जरलैंड के बेसल स्थित बैंक पर्यवेक्षण पर बेसल समिति के साथ मिलकर उस पर सभी वैश्विक वित्तीय प्रवाहों की देख-रेख की जिम्मेदारी सौंप दी गई है।
पिछले वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से ही विश्व अर्थव्यवस्था के धीमे विकास की वजह से वैश्विक वित्तीय प्रवाह में ठहराव एवं सुस्ती का दौर जारी है। हालांकि, यदि अमेरिका ब्याज दरों में अच्छी-खासी वृद्धि कर देता है और एफआईआई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं को बाय-बाय करके बड़ी तेजी से पुन: अमेरिका का रुख कर लेते हैं तो वैश्विक वित्तीय प्रवाह में तेज उतार-चढ़ाव की समस्या उत्पन्न हो सकती है। वैसे, यह उम्मीद की जाती है कि जी-20 इस तरह के तेज उतार-चढ़ाव अथवा अस्थिरता से वैश्विक अर्थव्यवस्था की रक्षा करेगा।
वर्ष 2013 में आयोजित जी-20 के सेंट पीटर्सबर्ग शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने विशेष जोर देते हुए कहा कि आईएमएफ में कोटा संबंधी सुधार तत्काल लागू किए जाने चाहिए। सदस्य देश दरअसल यह चाहते थे कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की जो मौजूदा अहमियत या प्रभाव (वेटेज) है, उसे कोटा सही अर्थों में प्रतिबिंबित करे। आईएमएफ के 189 सदस्य देशों में से प्रत्येक राष्ट्र के लिए कोटा महत्वपूर्ण है। प्रत्येक सदस्य देश के लिए विशेष कोटा तय किया जाता है जो आईएमएफ के प्रति उसकी अधिकतम वित्तीय प्रतिबद्धता तथा उसकी वोटिंग पावर को निर्धारित करता है और इसके साथ ही आईएमएफ के वित्तपोषण तक उसकी पहुंच पर भी इसका असर पड़ता है। वर्तमान कोटा फॉर्मूला जीडीपी (वेटेज का 50%), अर्थव्यवस्था के खुलेपन (30%), आर्थिक परिवर्तनशीलता (15%) और विदेशी मुद्रा भंडार के आकार (5%) का भारित औसत है। जहां तक जीडीपी का सवाल है उसे बाजार विनिमय दरों (वेटेज का 60%) और क्रय क्षमता समतुल्यता (पीपीपी) की विनिमय दरों (40%) पर आधारित किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मिश्रण के जरिए मापा जाता है। कोटे को विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) के नाम से पुकारा या दर्शाया जाता है जो आईएमएफ के खाते की इकाई है।
अमेरिका 17.7% या 82.99 अरब एसडीआर (113 अरब डॉलर) के साथ सबसे बड़ा कोटा धारक है। भारत का कोटा केवल 2.75% एवं चीन का कोटा 6% है और वह भी महज कुछ माह पहले जनवरी 2016 से ही है। इससे पहले तो भारत का कोटा और भी कम 2.34% तथा चीन का कोटा 3.81% ही था। वर्ष 2010 में सियोल शिखर सम्मेलन के पश्चात छह वर्षों तक प्रतीक्षा करने के बाद वर्ष 2016 में कोटे की 14वीं समीक्षा पूरी होने पर हाल ही में ये संशोधन किए गए हैं। कारण यह था कि अमेरिका ने उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के कोटे में किसी भी वृद्धि को अवरुद्ध कर दिया था। आईएमएफ में एकमात्र अमेरिका को ही वीटो का अधिकार प्राप्त है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में चीनी युआन की विशिष्ट ताकत एवं व्यापक उपयोग को देखते हुए अमेरिका चाह कर भी वर्ष 2016 में चीनी युआन को येन, यूरो, पौंड स्टर्लिंग और डॉलर के साथ एसडीआर करेंसी बास्केट में शामिल करने से नहीं रोक पाया था।
अमेरिका 17.7% या 82.99 अरब एसडीआर (113 अरब डॉलर) के साथ सबसे बड़ा कोटा धारक है। भारत का कोटा केवल 2.75% एवं चीन का कोटा 6% है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की वर्तमान कोटा व्यवस्था में दुनिया भर के तमाम विकासशील देशों के मुकाबले विकसित (ओईसीडी) देशों को आपस में मिलाकर काफी ज्यादा कोटा (63%) प्राप्त है। इसकी बदौलत आईएमएफ की महत्वपूर्ण नीतियों और फैसलों पर विकसित देशों का बड़ा प्रभाव देखा जाता है, जिसका अत्यंत प्रतिकूल असर वैश्विक वित्तीय ढांचे पर पड़ता है।
हैम्बर्ग में जी-20 से यह आग्रह किया गया कि विभिन्न देशों को हासिल कोटे की 15वीं सामान्य समीक्षा जल्द-से-जल्द पूरी की जाए, जिसे पहले तो अक्टूबर 2017 तक ही पूरा किया जाना था, लेकिन अब यह काम वर्ष 2019 में पूरा किया जाना है। 15वीं समीक्षा के दौरान बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में उभरती अर्थव्यवस्थाओं का बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के गवर्नेंस ढांचे में बदलाव लाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। विभिन्न देशों का कोटा तय करने के लिए एक नए फॉर्मूले की भी उम्मीद की जा रही है। कोटा कम रहने पर आईएमएफ के ऋणों तक पहुंच कम हो जाती है।
आईएमएफ से ऋण सशर्त मिलते हैं और विभिन्न देशों को अपनी भुगतान संतुलन की समस्याओं को नियंत्रण में रखने के लिए ही उधार दिया जाता है। सरकारी खर्चों में कटौती एवं मितव्ययिता पर अमल करना, अवमूल्यन, व्यापार उदारीकरण, संतुलित बजट पेश करना, मूल्य नियंत्रण एवं सरकारी सब्सिडी समाप्त करना, निजीकरण, गवर्नेंस में सुधार और राष्ट्रीय कानूनों के सापेक्ष विदेशी निवेशकों के अधिकार बढ़ाना आईएमएफ की शर्तों में शामिल हैं। कड़ी शर्तों के चलते विकासशील देशों के लिए ऋण लेना काफी मुश्किल हो जाता है।
भारत को अब फिर से आईएमएफ का दरवाजा खटखटाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि उसके पास विशाल विदेशी मुद्रा भंडार है। दरअसल, भारत को जरूरत इस बात की है कि बुनियादी ढांचे के लिए विशाल धनराशि का इंतजाम कहां से किया जाए, जिसके लिए ब्रिक्स का शंघाई स्थित नव विकास बैंक (एनडीबी) पर्याप्त है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह खुलासा किया है कि भारत एनडीबी से 2 अरब डॉलर का ऋण लेने की कोशिश कर रहा है जिसके नियम एवं शर्तें भारत के लिए कहीं ज्यादा अनुकूल साबित होंगी। अन्य विकासशील देश भी एनडीबी से ऋण लेने में सक्षम होंगे। भविष्य में दुनिया के समस्त विकासशील देशों के लिए क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय विकास बैंक और अधिक प्रासंगिक हो जाएंगे। जी-20 का भी ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय ढांचे में सुधार का काम सही मायने में केवल तभी पूरा हो सकता है जब उभरती अर्थव्यवस्थाओं या जी-20 के अन्य आधे सदस्य देशों का आईएमएफ की निर्णय लेने की प्रक्रिया और गवर्नेंस में पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व होगा, क्योंकि यह अब भी वैश्विक वित्तीय प्रणाली का मुख्य स्तंभ है। इसी तरह अन्य संस्थानों जैसे कि वित्तीय स्थिरता बोर्ड और बैंक पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (बीसीबीएस) में भी दुनिया के समस्त विकासशील देशों का बेहतर प्रतिनिधित्व होना चाहिए। मालूम हो कि बीसीबीएस ने ही बैंकिंग क्षेत्र के लिए बेसल III मानदंड निर्धारित किए हैं और जिन्हें लागू करने में भारत सहित विकासशील देशों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। हैम्बर्ग घोषणापत्र में इस बात का उल्लेख किया गया है कि बीसीबीएस को बैंकों के लिए पूंजी संबंधी आवश्यकताओं में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी नहीं करनी चाहिए। जब तक जी-20 इन परिवर्तनों पर अमल सुनिश्चित नहीं करेगा तब तक यह आगे भी अमीर देशों का एक ऐसा क्लब बना रहेगा जो साल में एक बार विभिन्न मुद्दों पर महज चर्चा करता है!
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