Author : Richard Verma

Published on Jun 28, 2019 Updated 0 Hours ago

भारत और अमेरिका के सामने आज कई रणनीतिक चुनौतियां और मौके हैं, जो व्यापार संबंधी मतभेद के चलते पीछे छूट गए हैं. यह काम भारत और अमेरिका के अधिकारी कर सकते हैं. बस इसके लिए दोनों सरकारों के मुखियाओं को इशारा करना होगा.

G-20 मीटिंग: सारे गिले-शिकवे दूर करें मोदी-ट्रंप

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप इस हफ्त़े जापान के ओसाका में जी-20 सम्मेलन के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने तैयारी कर रहे हैं. पूरी दुनिया को इस बैठक का बेसब्री से इंतजार है. वह जानना चाहती है कि क्या दोनों नेता व्यापार गतिरोध को दूर कर पाते हैं, जिससे ग्लोबल मार्केट्स परेशान हैं. सम्मेलन के दौरान इतनी ही महत्वपूर्ण एक और बैठक ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई है. दोनों देशों के बीच लंबे समय से व्यापार विवाद सुलझाने के लिए बातचीत चल रही थी, जो पिछले महीने टूट गई. अमेरिका ने एक ख़ास प्रोग्राम के ज़रिये भारतीय निर्यात पर दी जा रही छूट वापस ले ली, जिसके बाद भारत ने कई अमेरिकी सामानों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया. रूस से भारत एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीद रहा है, जिससे अमेरिका नाराज़ है और वह जवाबी कार्रवाई कर सकता है. ट्रंप ने भारत पर ईरान से कच्चे तेल का आयात बिल्कुल बंद करने का भी दबाव बना रखा है, जिससे दोनों देशों के बीच तल्ख़ी बढ़ गई है.

इन चुनौतियों के बावजूद ट्रंप और मोदी के पास आपसी सहयोग बढ़ाने का मौका है. पिछले दो दशक से अमेरिका की रिपब्लिकन और डेमोक्रेट सरकारों ने आगे बढ़ने में भारत की मदद की है. इसकी वजह बिल्कुल साफ़ है. अमेरिका मानता है कि ताकतवर और समृद्ध भारत अपने नागरिकों के लिए तो अच्छा है ही, इससे ख़ासतौर पर एशिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाए रखने में भी मदद मिलेगी. इसमें अमेरिका की भलाई भी है. हाल के वर्षों में अमेरिका की रिपब्लिकन और डेमोक्रेट सरकारों ने कई मुद्दों पर भारत का साथ दिया है. दोनों के बीच व्यापार और व्यावसायिक लेनदेन और जनता के बीच मेलजोल भी बढ़ा है. अमेरिका खूब समझता है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र को मुक्त रखने के लिए यह कितना ज़रूरी है.

इन बातों का जी-20 के लिए क्या मतलब है? राष्ट्राध्यक्षों की बैठकें छोटी और रस्मी होती हैं, लेकिन ट्रंप-मोदी की मीटिंग में चार अहम क्षेत्रों पर बातचीत और उनका एजेंडा तय होना चाहिए.

पहली, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार गतिरोध दूर करने के लिए फिर से बातचीत शुरू करना बहुत ज़रूरी है. पिछले दो दशकों में दोनों देशों के बीच जब भी किसी मुद्दे पर असहमति हुई तो उसे बातचीत से सुलझाया गया. यह उनके बीच आपसी सहयोग का अहम पहलू रहा है. भारत और अमेरिका के सामने आज कई रणनीतिक चुनौतियां और मौके हैं, जो व्यापार संबंधी मतभेद के चलते पीछे छूट गए हैं. आयात शुल्क पर दोनों की अनबन दूर की जा सकती है. यह काम भारत और अमेरिका के अधिकारी कर सकते हैं. बस इसके लिए दोनों सरकारों के मुखियाओं को उन्हें निर्देश देना होगा.

मेजर डिफेंस पार्टनर होने के नाते भारत के साथ अमेरिका का सहयोग नेटो के किसी सदस्य देश की तरह होना चाहिए. उसे भारत को आधुनिक तकनीक और हथियार देने चाहिए. रूस से हथियार और ईरान से कच्चा तेल खरीदने पर अमेरिका को प्रतिबंधों की आशंका खत्म करनी चाहिए.

दूसरी, व्यापार विवाद को दूर करने के लिए दोनों को कमिटमेंट दिखानी होगी. इसके लिए बातचीत खुलकर होनी चाहिए और कारोबारी नियमों के मुताबिक समझौता होना चाहिए. इसके लिए पहले दोनों देशों को पिछली गलतियों माननी होंगी. मिसाल के लिए, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर भारतीय स्टील और एल्यूमीनियम पर अमेरिका का आयात शुल्क लगाना बिल्कुल ग़लत है. इसी तरह, भारत का सभी कंपनियों के लिए अपने नागरिकों से जुड़े डेटा देश में ही रखने की शर्त, कुछ चीजों के दाम तय करना और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के लिए बीच में ही नियम बदलना ग़लत है. इससे विदेशी निवेशकों का भरोसा कम हुआ है. स्थिर, भरोसेमंद और पारदर्शी कारोबारी माहौल से दोनों देशों को फायदा होगा. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि चीन के साथ टकराव से अमेरिका की सप्लाई चेन (चीन में बनने वाले ऐसे सामान, जिनकी अमेरिकी उद्योगों को जरूरत है) को लेकर परेशानी बढ़ी है. यह भारत के लिए एक कारोबारी मौका हो सकता है.

तीसरी, दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग बढ़ना चाहिए. अमेरिका ने दुनिया में सिर्फ भारत को ‘मेजर डिफेंस पार्टनर’ का दर्जा दिया है. इसका मतलब यह है कि अमेरिका पारंपरिक गठबंधन के बगैर भारत के साथ रक्षा क्षेत्र में व्यापक सहयोग कर सकता है. मेजर डिफेंस पार्टनर होने के नाते भारत के साथ अमेरिका का सहयोग नेटो के किसी सदस्य देश की तरह होना चाहिए. उसे भारत को आधुनिक तकनीक और हथियार देने चाहिए. रूस से हथियार और ईरान से कच्चा तेल खरीदने पर अमेरिका को प्रतिबंधों की आशंका खत्म करनी चाहिए. राहत और बचाव कार्यों में दोनों के बीच सहयोग या मुश्किल संयुक्त सैन्य अभ्यास के ज़रिये भारत यह संदेश दे सकता है कि वह अमेरिका का बोझ कम करने और उसके साथ मिलकर चलने को तैयार है. इससे दुश्मन देशों को अमेरिका-भारत के बीच संभावित रक्षा सहयोग का भी संदेश मिलेगा.

आखिर में, ट्रंप को इस साल के आखिर तक भारत का दौरा करना चाहिए. इतिहास बताता है कि निजी रिश्ते ख़ासतौर पर राष्ट्राध्यक्षों के आपसी रिश्ते कितने महत्वपूर्ण होते हैं. राष्ट्रपति आइजनहावर, केनेडी, जॉर्ज डब्ल्यू बुश और ओबामा ने भारत के प्रधानमंत्रियों के साथ करीबी रिश्ते बनाए थे. इससे नौकरशाही की अड़चनों से ऊपर उठकर किसी मसले को हल करने में मदद मिलती है. प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका और भारत के रिश्तों को आगे ले जाने के संदर्भ में ‘इतिहास की हिचक से ऊपर उठने’ की बात कही थी और यह काम बिल्कुल शीर्ष से शुरू होना चाहिए. इसलिए ट्रंप की भारत यात्रा ऐतिहासिक हो सकती है.

60 साल पहले जब राष्ट्रपति आइजनहावर दिल्ली आए थे, तब उन्होंने अमेरिकी एंबेसी में आए भारतीय बच्चों से पूछा था, ‘जब आप लोग मेरी उम्र में पहुंचेंगे, तब (2019 में) दुनिया कैसी होगी?’ उस वक्त हम जिस रास्ते पर बढ़ रहे थे, उसे लेकर वह आशंकित थे. आख़िर में उन्होंने कहा था कि – अमेरिका और भारत के लोगों की मिलकर काम करने की उम्मीद से दुनिया सही रास्ते पर आ सकती है. 2019 के लिए आइजनहावर की भविष्यवाणी और लोगों से उनकी उम्मीद बिल्कुल सही निकली. अब उस सपने को सच करने का वक्त आ गया है.

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