दुनिया भर में केंद्रीय बैंकों द्वारा जारी डिजिटल करेंसी में ज़बरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है. दुनिया की 98 प्रतिशत GDP का प्रतिनिधित्व करने वाले 130 देश, इससे जुड़ी गतिविधियों में बड़ी सक्रियता से भाग ले रहे हैं. CBDCs की संभावनाएं बहुत व्यापक हैं. इसमें इनोवेशन करने, वित्तीय समावेश को बढ़ावा देने, भुगतान के उन्नत एप्लिकेशन और डिजिटल कारोबार के उभार को प्रोत्साहित करने की काफ़ी उम्मीदें दिखती हैं.
भारत ने भी बड़ी उम्मीदों के साथ डिजिटल करेंसी (CBDC) के सफ़र का आग़ाज़ किया है, जो अभी शुरुआती दौर में है.
हालांकि, केंद्रीय बैंकों द्वारा डिजिटल करेंसी जारी करने के वित्तीय और भुगतान व्यवस्था की स्थिरता पर गहरे प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं. किसी केंद्रीय बैंक को डिजिटल करेंसी जारी करने से पहले बड़ी सावधानी से इसकी डिज़ाइन तैयार करनी होगी. क्योंकि इसके प्रदर्शन से जुड़े जोखिमों, अन्य देशों की डिजिटल करेंसी के साथ लेन-देन, निजता और सुरक्षा के मसले भी जुड़े होंगे. CBDC को लागू करने से लेकर इसके उपयोग तक के पूरे जीवन चक्र के दौरान जोखिम के प्रबंधन की बहुत सावधानी से तैयारी करनी होगी, फिर चाहे वो रिसर्च हो या डिजिटल करेंसी का संचालन. भारत ने भी बड़ी उम्मीदों के साथ डिजिटल करेंसी (CBDC) के सफ़र का आग़ाज़ किया है, जो अभी शुरुआती दौर में है. हालांकि, अभी भारत को इस मामले में बड़ी सफलता नहीं हासिल हुई है. सरकारी डिजिटल मुद्रा अपनाने की अहम कड़ी, इस नई डिजिटल करेंसी से जुड़े जोखिमों से जुड़ी हुई है.
CBDC से जुड़े ख़तरे क्या हैं?
डिजिटल करेंसी को सफलता से लागू करने का पहला क़दम, समस्याओं की पहचान करना है, जिससे इस मुद्रा को बड़े पैमाने पर अपनाए जाने की ज़मीन तैयार होगी. हालांकि, CBDC के मामले में हम ये कह सकते हैं कि आप जैसे जैसे इसे लागू करने की दिशा में आगे बढ़ते हैं, वैसे वैसे नए सबक़ सीखने को मिलते हैं. हाल ही में आई बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स की एक रिपोर्ट दुनिया के तमाम देशों की CBDCs से जुड़े संभावित जोखिमों को उजागर करती है. वैसे तो केंद्रीय बैंकों की डिजिटल मुद्रा एकदम नई तकनीक है, जो वित्त के क्षेत्र में सबसे नई तकनीकी प्रगति की नुमाइंदगी करती है. लेकिन, देशों को चाहिए कि वो डिजिटल करेंसियों के विकास और उन्हें लागू करने का काम बहुत सावधानी से करें. CBDC का सफ़र बिल्कुल अनजाना है. इन्हें लागू करने के दौरान संरचनात्मक बदलाव देखने को मिल सकते हैं. जिससे देशों के लिए ये बहुत ज़रूरी हो जाता है कि वो इस आविष्कार को लेकर बहुत सावधानी और सोच-समझकर आगे बढ़ने वाला रवैया अपनाएं.
इस मामले में सबसे अहम तो साइबर सुरक्षा का मसला है, विशेष रूप से CBDC के संदर्भ में. क्योंकि, इनके लिए तमाम तरह के ख़तरे पैदा होने की आशंका है. यहां तक कि अगर कोई छोटा मोटा साइबर हमला भी कामयाब हो जाता है, तो जनता के बीच इस व्यवस्था पर से भरोसा उठ जाएगा. वैसे तो अब तक CBDCs पर किसी साइबर हमले की जानकारी सामने नहीं आई है. लेकिन, इसकी हैकिंग और किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा जारी डिजिटल मुद्रा पर हैकर्स द्वारा नियंत्रण स्थापित करने की आशंका, एक व्यापक और चिंताजनक चुनौती पेश करती है.
अगर कोई छोटा मोटा साइबर हमला भी कामयाब हो जाता है, तो जनता के बीच इस व्यवस्था पर से भरोसा उठ जाएगा. वैसे तो अब तक CBDCs पर किसी साइबर हमले की जानकारी सामने नहीं आई है..
डिजिटल करेंसी लागू करने के साथ ही जो सबसे अहम संरचनात्मक चुनौती पैदा हो सकती है वो डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर तकनीक (DLT) को बड़े स्तर पर लागू करने की है. तमाम देशों द्वारा डिजिटल करेंसी के जो पायलट प्रोजेक्ट किए गए हैं, उन सब में देखा गया है कि CBDC की उपलब्धता के मामले में काफ़ी जोखिम हैं. इससे CBDC की किसी भी परियोजना की शुरुआत करते वक़्त, इसके पूरे जीवन चक्र में तकनीक की सीमाओं से जुड़े मसलों से निपटने की अहमियत ख़ुद ब ख़ुद उजागर होती है. बैंक ऑफ इंग्लैंड ने तो पहले ही CBDC के लिए DLT के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल को लेकर चिंता ज़ाहिर की है. बैंक ने कहा है कि ये तकनीक इतनी भारी भरकम है कि किसी केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी के लिए इसको भरोसे के साथ इस्तेमाल करना संभव नहीं है.
CBDC के तकनीकी मूलभूत ढांचे की जटिलता और इसके आकार की वजह से सुरक्षा की ऐसी कमज़ोरियां पैदा हो सकती हैं, जो अब तक देखी नहीं गई हैं. तमाम केंद्रीय बैंकों द्वारा इनोवेशन और डिजिटल विस्तार के लिए अभी जो डिजिटल बदलाव किए जा रहे हैं, उनसे इस व्यवस्था को लोग तेज़ी से अपना रहे हैं. तकनीक को इतनी तेज़ी से अपनाने की वजह से संचालन के दौरान सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और सुरक्षा के मसले खड़े होते हैं. वैसे तो CBDC को हम DLT नहीं मान सकते हैं. लेकिन, कुछ केंद्रीय बैंकों ने डिजिटल करेंसी पर रिसर्च और लागू करने के चरणों के दौरान DLT की संभावनाएं भी तलाशी थीं. इससे DLT तकनीक के विकास और प्रक्रियाओं के दौरान नई चुनौतियां सामने आई थीं.
तकनीक से मानवीय पहलू को पूरी तरह से जुदा कर देना एक बहुत बड़ी चुनौती है. इसीलिए, हमें ये मान कर चलना होगा कि डिजिटल करेंसी अपनाने के दौरान मानवीय भूल होने की आशंका बनी रहेगी. ख़ास तौर से फिसिंग के हमलों के संदर्भ में. जिन्हें सोशल इंजीनियरिंग के बहाने किया जाता है, मगर जिनका असल मक़सद डेटा हासिल करना होता है. इसमें लॉग इन से जुड़ी जानकारी भी शामिल है. सरकारी डिजिटल करेंसी को वित्त व्यवस्था में अपनाने के साथ ही प्रीटेक्स्टिंग, टेलगेटिंग या विशिंग जैसे तरीक़ों से यूज़र्स को धोखा देकर सुरक्षा की चारदीवारी में सेंध लगाने की आशंकाएं बढ़ती जाएंगी.
आशंकाएं और उनका निवारण
भारत में CBDC की शुरुआत के पीछे कई कारण थे. एक तो दुनिया भर में केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी विकसित कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ देशों के बीच डिजिटल समाधान अपनाने को लेकर उत्साह ने भी बड़ी भूमिका अदा की है. भारत में केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी या डिजिटल रुपया लागू करने का फ़ैसला शायद कुछ हद तक क्रिप्टोकरेंसी और विशेष रूप से स्टेबलकॉइन्स के बढ़ते चलन की वजह से लिया गया था. रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर ने ऐसी व्यवस्थाएं लागू करने में सावधानी बरतने पर ज़ोर दिया था. वैसे तो, स्टेबलकॉइन के कई फ़ायदे हैं. मगर वो कुछ गिने चुने विकसित देशों में ही लागू किए जा सके हैं.
भारत में UPI की सफलता ने देश में सरकारी डिजिटल करेंसी लागू करने की ज़रूरत को लेकर सवाल उठाए हैं. उनकी नज़र में सरकारी डिजिटल करेंसी, पहले से ही विकसित भुगतान व्यवस्था में एक ग़ैरज़रूरी चीज़ है. रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर ने क्रिप्टोकरेंसियों के बढ़ते चलन की तरफ़ इशारा करते हुए कहा था कि नीतिगत संप्रभुता को लेकर चिंता की वजह से भी भारत ने डिजिटल लेन-देन सुधारने के साथ साथ CBDC लागू करने का भी फ़ैसला किया था. हालांकि, भारत का मामला एकदम अनूठा है, जहां डिजिटल लेन-देन की बेहद मज़बूत व्यवस्था पहले से ही लागू है. ग्राहकों द्वारा तुरंत भुगतान की व्यवस्था वाला UPI, बिना खातों का खुलासा किए हुए एक बैंक से दूसरे बैंक को पैसे का भुगतान करता है. इसकी वजह से भारत में डिजिटल भुगतान बहुत अधिक बढ़ गया है. ऐसे में ई-रूपए के ख़ुदरा इस्तेमाल के सामने UPI एक बड़ी चुनौती पेश करता है. UPI से लेन-देन के प्रत्यक्ष फ़ायदों ने ही इसकी लोकप्रियता को बहुत अधिक बढ़ा दिया है. जब देश में बिना किसी बाधा के लेन-देन की डिजिटल व्यवस्था पहले से मौजूद है, तो सरकारी डिजिटल रुपए को अपने आप तो नहीं अपनाया जाएगा और ऐसी सूरत में ग्राहकों द्वारा थोक मात्रा में डिजिटल करेंसी से लेन-देन को लेकर उत्साह बहुत कम रहने की आशंका है.
भारत में अभी CBDC का पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसमें बहुत ज़्यादा कामयाबी नहीं मिली है. ख़ास तौर से देश में UPI की कामयाबी और दबदबे को देखते हुए इन नई तकनीकी तरक़्क़ियों को अपनाने के लिए जनता की राय बनाने में समय लगेगा.
ये कहना कि ग़लत होगा कि रिज़र्व बैंक ने ई-रुपये जारी करने से पहले इन जोखिमों और डिजिटल रुपए को बड़े पैमाने पर अपनाए जाने की राह में आने वाली इन चुनौतियों का आकलन पहले से नहीं किया होगा. डिजिटल रुपए को लेकर रिज़र्व बैंक द्वारा जारी कॉन्सेप्ट नोट में इसको लागू करने के लिए DLT के इस्तेमाल और इसको बड़े पैमाने पर लेन-देन को करने में सक्षम होने की क्षमता का मूल्यांकन करने की बात कही गई थी. इसके अतिरिक्त इस नोट में ई-रूपया लागू करने के लिए आने वाले समय की तकनीकों पर विचार करने की ज़रूरत पर भी बल दिया गया था, जिसमें मज़बूत साइबर सुरक्षा, तकनीकी स्थिरता, लचीलापन और तकनीकी प्रशासन के मज़बूत मानक शामिल थे. इसीलिए, ये स्वीकार करने में बुद्धिमानी होगी कि ई-रुपए की योजना बनाने और शुरुआती दौर में इसे लागू करने के दौरान इन बातों पर विचार ज़रूर किया गया हो. बाद में ई-रूपया लागू करने के पायलट कार्यक्रम के मूल्यांकन के बाद हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि इन चुनौतियों के मज़बूत समाधान भी लागू किए जाएंगे.
भविष्य पर निगाह
CBDCs को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए चुनौतियों की पहचान करना और उनका पहले से अंदाज़ा लगाना महत्वपूर्ण है. जब समस्याएं पैदा होती हैं, तो उनके समाधान, पहले के अनुभवों के आधार पर विकसित किए जा सकते हैं; हालांकि, जिन मुद्दों को भविष्य के लिहाज़ से उत्साह में अनदेखा किया जाता है, उन पर कम ध्यान दिया जाता है. इस मामले में ये बात सकारात्मक कही जा सकती है. संस्थागत समस्याओं की पहचान पहले से करके उन्हें स्वीकार करके, CBDC लागू करने का इरादा रखने वाले देश अब सक्रियता से ऐसे समाधान तैयार करने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जिससे इन्हें लागू करने की प्रक्रिया आसान हो.
भारत में अभी CBDC का पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसमें बहुत ज़्यादा कामयाबी नहीं मिली है. ख़ास तौर से देश में UPI की कामयाबी और दबदबे को देखते हुए इन नई तकनीकी तरक़्क़ियों को अपनाने के लिए जनता की राय बनाने में समय लगेगा. हालांकि, इसका ये मतलब नहीं है कि भारत में डिजिटल रुपए के लिए कोई गुंजाइश नहीं है. अपनाने और इस्तेमाल बढ़ने में समय लगेगा. इस बीच अधिकारियों को CBDC लागू करने से जुड़े जोखिमों को कम करने की व्यवस्थाएं स्थापित करनी चाहिए. CBDC से कई ख़तरे जुड़े हैं, अभी इनके मामले में न केवल भारत बल्कि CBDC के प्रयोग कर रहे बाक़ी देशों के लिए भी ये शुरुआती दिन हैं. इसलिए कामयाब होना है, तो उन्हें इन चुनौतियों को दूर करना होगा. ऐसा किए बग़ैर, डर इस बात का है कि CBDC लागू करने की कोशिशें पूरी तरह से बेकार और अनुत्पादक साबित होंगी.
CBDC का क्षेत्र अभी नया है और तेज़ी से विकसित हो रहा है. इसीलिए, इस मामले में तकनीकी तरक़्क़ी पर नज़र रखने के साथ साथ दुनिया भर में इसके नियामक पहलू की निगरानी भी ज़रूरी है. तकनीक का लगातार बदलता स्वरूप ही इसकी धड़कन होती है. भले ही इसमें सुधार की गति अस्थिर हो, और भारत में भी CBDC का सफर ऐसा ही रहने वाला है.
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