Author : Pratnashree Basu

Published on Mar 29, 2024 Updated 0 Hours ago

जापान अपनी साइबर सुरक्षा को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत है. इस दिशा में जापान द्वारा की जा रही कोशिशें ज़मीन, समुद्र, हवा और बाह्य अंतरिक्ष में उसकी रक्षा क्षमताओं को सशक्त कर रही हैं. इससे जापान की राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सुरक्षा रणनीति में बदलाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है.

ख़तरे से पहले की सक्रियता: साइबर सुरक्षा और साइबर रक्षा रणनीतियों को लेकर जापान के बढ़ते क़दम!

जापान की सरकार ने जब वर्ष 2000 में साइबर सुरक्षा के मुद्दे की गंभीरता को पहली बार समझा और स्वीकारा, साथ ही सूचना प्रणाली संरक्षण की कार्य योजना में इसे शामिल किया, तभी से वहां साइबर सिक्योरिटी को लेकर विभिन्न गतिविधियों ने ज़ोर पकड़ा और इस दिशा में तमाम पहलों को शुरू किया गया. देखा जाए तो साइबर सुरक्षा के मुद्दे की गंभीरता को स्वीकर करने के बाद से जापान के साइबर डिफेंस को सशक्त करने के मकसद से कई क़दम उठाए गए हैं. इन क़दमों में साइबर-आतंकवाद पर विशेष कार्य योजना बनाना और सूचना संरक्षण को लेकर राष्ट्रीय रणनीति की शुरुआत किया जाना शामिल हैं. इस राष्ट्रीय रणनीति का प्राथमिक मकसद अपराधों पर लगाम लगाना और आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास करना है. जापान में वर्ष 2014 में साइबर सुरक्षा पर बुनियादी अधिनियम को बनाकर केवल वहां साइबर सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर की नींव को और अधिक सशक्त किया गया, बल्कि इसी अधिनियम की बदौलत वहां साइबर सुरक्षा रणनीतिक हेडक्वार्टर के निर्माण और साइबर सिक्योरिटी काउंसिल यानी साइबर सुरक्षा परिषद के गठन का मार्ग भी प्रशस्त हुआ. इसी के बाद, वर्ष 2015 में साइबर सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी की शुरुआत के बाद से जापान की साइबर सुरक्षा रणनीति के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिला. कहने का तात्पर्य यह है कि इसके पश्चात ही जापान में साइबर सिक्योरिटी के क्षेत्र का तेज़ गति से विकास हुआ और देश की विदेश एवं रक्षा नीतियों में भी इसे प्रमुखता मिली.

जापान का मानना है कि जिस प्रकार से इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) की प्रगति हो रही है, ऐसे में साइबर सुरक्षा टेक्नोलॉजियों का अधिक से अधिक विकास आवश्यक हो जाता है.

टोक्यो की साइबर सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी में जहां एक तरफ विभिन्न प्रकार के साइबर ख़तरों का समाधान तलाशने के लिए अनुसंधान और विकास (R&D) से जुड़ी गतिविधियों पर ख़ास ध्यान दिया गया है, वहीं दूसरी ओर नेटवर्क, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में साइबर सुरक्षा तकनीक़ों को प्रोत्साहित करने के लिए सभी प्रकार के उद्योगों में अलग-अलग हितधारकों के साथ मिलजुल कर आगे बढ़ने की ज़रूरत पर बल दिया गया है. जापान का मानना है कि जिस प्रकार से इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) की प्रगति हो रही है, ऐसे में साइबर सुरक्षा टेक्नोलॉजियों का अधिक से अधिक विकास आवश्यक हो जाता है. गौरतलब है कि जापान की साइबर सुरक्षा रणनीति का मकसद साइबर हमलों की पहचान करने के लिए और ऐसे हमलों का तोड़ निकालने के लिए एक सशक्त तंत्र की स्थापना करना है. इसके अलावा उसकी रणनीति का उद्देश्य इससे जुड़े विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कि क़ानूनी, नीतिगत और तकनीक़ी क्षेत्रों से जुड़ी बहु-विषयक रिसर्च को बढ़ावा देना है. यानी ऐसे शोध को आगे बढ़ाना है, जो साइबर स्पेस और ज़मीनी हक़ीकत के बीच पारस्परिक जुड़ाव को सामने लाने वाला हो. उल्लेखनीय है कि जापान की इस साइबर सुरक्षा रणनीति की प्राथमिकता भविष्य की आवश्यकताओं के मुताबिक़ साइबर सुरक्षा डिफेंस समाधानों को विकसित करने के लिए वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना है, साथ ही साइबर डिफेंस क्षमता की स्थापना के लिए प्रमुख प्रोद्योगिकियों को मज़बूती प्रदान करना है. इतना ही नहीं, इन तमाम प्रयासों के बीच जापान की साइंस, टेक्नोलॉजी एवं इनोवेशन काउंसिल ने बदलते साइबर ख़तरों को बेहतर तरीक़े से समझने और उसे हितधारकों के फायदे से जोड़ने के लिए उद्योग, शैक्षणिक जगत एवं आम लोगों के बीच मेलजोल को प्रोत्साहित किया है.

जापान की साइबर सुरक्षा

ज़ाहिर है कि साइबर सुरक्षा योजनाओं को मज़बूत करने के लिए तमाम तरह के क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है, जिसमें काफ़ी राशि भी ख़र्च होगी. इसके लिए जापान ने अपने रक्षा बजट में अभूतपूर्व बढ़ोतरी की है, ताकि साइबर सुरक्षा क्षमताओं में सुधार किया जा सके और इसमें संलग्न कर्मियों को प्रशिक्षित किया जा सके. जापान द्वारा वित्तीय वर्ष 2020 में साइबर सुरक्षा के लिए लगभग 25.6 बिलियन येन (237.12 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का बजट आवंटित किया गया था. इस साइबर सुरक्षा बजट में नुक़सान पहुंचाने के इरादे से भेज गए ईमेल का पता लगाने और साइबर ख़तरों का आकलन करने के लिए एआई-संचालित प्रणाली विकसित करने हेतु बजट एवं साइबर डिफेंस ग्रुप के कर्मियों की संख्या बढ़ाने का बजट भी शामिल था. जापान में लगातार नौ वर्षों से रक्षा बजट में साइबर सुरक्षा के लिए आवंटित धनराशि में बढ़ोतरी की जा रही है, जो साइबर सिक्योरिटी के मुद्दे पर उसकी गंभीरता को बताती है. इसके अतिरिक्त, जापान द्वारा मार्च 2020 में एक विकसित व्हीकल-माउंटेड नेटवर्क इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम (NEWS) की तैनाती की गई है, साथ ही मार्च 2021 में एक इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमता इकाई की स्थापना की गई है. जापान के इन क़दमों से साफ प्रतीत होता है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम यानी विद्युत चुंबकीय क्षेत्र के महत्व को केवल भली-भांति समझता है, बल्कि उसकी यह पहलें इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं को बढ़ाने के लिए उसकी प्रतिबद्धता को भी ज़ाहिर करती हैं.

वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक (GCI) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइबर सिक्योरिटी को लेकर देशों की प्रतिबद्धता का आकलन करता है. देशों की इस प्रतिबद्धता का आकलन क़ानूनी, तकनीक़ी, संगठनात्मक, क्षमता निर्माण और सहयोग जैसे पांच स्तंभों के ज़रिए किया जाता है और इसके लिए 157 सवालों की एक प्रश्नावली पूछी जाती है. वर्ष 2017 में वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक में 0.786 अंकों के साथ जापान का स्थान 12वां था. यह साइबर सुरक्षा के प्रति जापान की सशक्त राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को प्रकट करता है. यह अलग बात है कि उस वक़्त जापान में साइबर रक्षा क्षमताओं के विकास को प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया था एवं इसे आगे और भी विकसित करने के लिए रणनीतियां बनाई जा रही थीं. हालांकि, जिस प्रकार से जापान द्वारा ग्लोबल साइबर सिक्योरिटी इंडेक्स में शामिल 16 अहम गतिविधियों के अनुरूप रणनीतियों को अमल में लाया गया है, वो साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए उसकी प्रगति को दिखाता है.

जापान की सरकार ने अपनी साइबर रक्षा क्षमताओं को विकसित करने की रणनीति को आगे बढ़ाते हुए तमाम अहम सुरक्षा दस्तावेज़ों को मंजूरी दी है, जिनमें 16 दिसंबर 2022 को नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी (NSS) और डिफेंस बिल्डअप प्रोग्राम (DBP) की स्वीकृति भी शामिल है. 

जापान की सरकार ने अपनी साइबर रक्षा क्षमताओं को विकसित करने की रणनीति को आगे बढ़ाते हुए तमाम अहम सुरक्षा दस्तावेज़ों को मंजूरी दी है, जिनमें 16 दिसंबर 2022 को नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी (NSS) और डिफेंस बिल्डअप प्रोग्राम (DBP) की स्वीकृति भी शामिल है. जापान के ये सुरक्षा उपाय सिर्फ़ आने वाले दशक की ज़रूरतों के हिसाब से जापान की कूटनीतिक और रक्षा रणनीतियों का खाका सामने लाते हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर लगातार बदलते सुरक्षा माहौल, ख़ास तौर पर चीन की ओर से किए जा रहे सैन्य विस्तार का मुक़ाबला करने के लिए उसकी तैयारी को भी दिखाते हैं. नए सिरे से बनाई गई जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में कई मुद्दों पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है. जैसे कि इसमें रक्षा बजट में बढ़ोतरी, अधिक दूरी तक निशाना साधने में सक्षम मिसाइलों की ख़रीद और रक्षा साज़ो-सामान के निर्यात के लिए क़दम उठाने की बात कही गई है. इतना ही नहीं जापान की NSS में ख़ास तौर पर साइबर सुरक्षा को मज़बूत करने, सूचना युद्ध से संबंधित क्षमताओं का विकास करने और साइबर डिफेंस से जुड़े कारगर उपायों को अपनाने पर भी ज़ोर दिया गया है.

जापान की इन पहलों के साथ क़दमताल मिलाते हुए वहां के विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय द्वारा अपनी तरफ से कोशिशें की गई हैं. यानी एक ओर तमाम सूचनाओं पर सटीक नज़र रखने और उनका सूक्ष्म विश्लेषण करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद ली जा रही है, वहीं दूसरी ओर डिफेंस बिल्डअप प्रोग्राम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए साइबर कर्मियों की संख्या बढ़ाने एवं उनके प्रशिक्षण की पुख्ता व्यवस्था की गई है. इतना ही नहीं, जापान सेल्फ-डिफेंस फोर्स (JSDF) और पुलिस के साथ-साथ पॉलिसी एवं कमांड साइबर इकाइयों के बीच समन्वय को सशक्त करने के लिए वर्ष 2015 में नेशनल सेंटर फॉर इंसीडेंट रेडीनेस एंड स्ट्रेटेजी फॉर साइबर सिक्योरिटी (NISC) का गठन किया गया था. जापान की इन पहलों ने व्यापक क़ानूनी फ्रेमवर्क की स्थापना के ज़रिए अपनी साइबर सुरक्षा को सशक्त करने के सरकार के इरादों को ज़ाहिर किया है. इन सभी घटनाक्रमों के बावज़ूद जापान ने अभी तक साइबर डिफेंस के लिए अलग से कोई रणनीति नहीं बनाई है. बजाए इसके, जापान ने रक्षा श्वेत पत्र और नेशनल डिफेंस प्रोग्राम गाइडलाइन्स जैसे बृहद राष्ट्रीय रक्षा फ्रेमवर्क के अंतर्गत इन सारे विचार-विमर्श को समाहित करने का रास्ता चुना है.

 जापान ने न केवल अपने घरेलू नीतिगत ढांचे और रक्षात्मक साइबर सुरक्षा क्षमताओं में इज़ाफा किया है, बल्कि वह साइबर ख़तरों, विशेष रूप से चीन की ओर से आने वाले साइबर ख़तरों से निपटने के लिए, अपने प्रमुख सहयोगी अमेरिका के साथ अपनी रणनीतियों को साझा भी कर रहा है.

उल्लेखनीय है कि जापान भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक काउंटर-साइबर-अटैक ग्रिड स्थापित करने की कोशिशों की अगुवाई कर रहा है. इसके पीछे जापान का उद्देश्य अपने वैश्विक गठबंधनों को मज़बूत करना और साइबर ख़तरों से बचाव करना है. जापान की इस महत्वाकांक्षी पहल का मकसद पूरे पैसिफिक आइलैंड में साइबर रक्षा का एक सहयोगी नेटवर्क स्थापित करना है, साथ ही पड़ोसी देशों के साथ साइबर सुरक्षा सहयोग को बढ़ाना है. जापान की यह कोशिशें उसके स्वतंत्र और मुक्त इंडो-पैसिफिक बनाने के नज़रिए के मुताबिक़ हैं. जापान ने अपने इस दृष्टिकोण को रूस, उत्तर कोरिया और ख़ास तौर पर चीन जैसी ताक़तों के बढ़ते दबदबे को संतुलित करने के लिए तैयार किया है. जापान का लक्ष्य किसी साइबर अटैक की स्थिति में पहले ही उस पर लगाम लगाना है. ऐसा करके जापान सिर्फ़ अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहता है, बल्कि पूरे इलाक़े में स्थिरता क़ायम करना चाहता है. इसी मकसद से जापान के विदेश मंत्रालय ने दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ सशक्त साझेदारी के माध्यम से साइबर क्षमताओं को बढ़ाने के लिए वर्ष 2024 के ड्राफ्ट बजट में 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश प्रस्तावित किया है. ज़ाहिर है कि इस निवेश से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति स्थापित होगी, साथ ही कनेक्टिविटी और सुरक्षा को भी मज़बूती मिलेगी. इतना ही नहीं, जापान क्वाड और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन यानी आसियान में भी अपनी साइबर क्षमताओं का विस्तार कर रहा है. इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों में नाटो के साथ भी जापान की साझेदारी प्रगाढ़ हुई है. जापान द्वारा साइबरस्पेस को सुरक्षित करने और विभिन्न साझा गतिविधियों, सेमिनारों एवं अभ्यासों में अपनी भागीदारी को बढ़ाकर पारस्परिक सहयोग को पुख्ता करने पर फोकस किया गया है. जापान के इन्हीं प्रयासों में वर्ष 2020 में व्यक्तिगत भागीदारी और सहयोग कार्यक्रम पर हस्ताक्षर करना एक अत्यंत महत्वपूर्ण क़दम था. ज़ाहिर है कि यह समझौता साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को लेकर जापान की प्रतिबद्धता का सबसे बेहतर उदाहरण है.

जापान द्वारी की जा रही यह सभी पहलें देखा जाए तो टोक्यो की एक अग्रणी "साइबर ताक़त" बनने की मंशा की ओर इशारा करती हैं. उल्लेखनीय है कि जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की सरकार के दौरान विश्व की प्रमुख साइबर शक्ति बनने के उसके इरादे परवान चढ़े थे. शिंजो आबे के शासन के दौरान ही जापान ने बढ़ते साइबर ख़तरों को पहचाना था और इनसे निपटने के लिए रणनीतिक पहलों को शुरू किया था. जापान ने केवल अपने घरेलू नीतिगत ढांचे और रक्षात्मक साइबर सुरक्षा क्षमताओं में इज़ाफा किया है, बल्कि वह साइबर ख़तरों, विशेष रूप से चीन की ओर से आने वाले साइबर ख़तरों से निपटने के लिए, अपने प्रमुख सहयोगी अमेरिका के साथ अपनी रणनीतियों को साझा भी कर रहा है. साइबर सुरक्षा के मुद्दे पर जापान का बढ़ता फोकस सुरक्षा के क्षेत्र में उसके अहम बदलाव को दिखाता है, जो एक लिहाज़ से रक्षा और रणनीति में साइबर सुरक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है. साइबर सिक्योरिटी से जुड़े हर क्षेत्र में अपनी क्षमता को बढ़ाने एवं उन्हें एकसाथ लाने के उद्देश्य से की गईं पहलों के साथ, जापान के तमाम प्रयास ज़मीन, समुद्र, हवा और बाह्य अंतरिक्ष में उसकी रक्षा क्षमताओं को उल्लेखनीय रूप से सशक्त कर रहे हैं. जापान की यह कोशिशें देखा जाए तो उसकी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सुरक्षा रणनीति में अभूतपूर्व बदलाव की प्रतीक हैं.


प्रत्नाश्री बसु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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