प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट ने पिछले दिनों राष्ट्रीय क्वांटम मिशन को मंज़ूरी दी. इस मिशन को पहले नेशनल मिशन ऑन क्वांटम टेक्नोलॉजी एंड एप्लीकेशन का नाम दिया गया था. बजट में राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के लिए 2023-24 से लेकर 2030-31 तक 6,003.65 करोड़ रुपये (लगभग 734.35 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का आवंटन किया गया है. मिशन की कोशिश क्वांटम से जुड़ी वैज्ञानिक और औद्योगिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) को तेज़ करना और भारत को क्वांटम की अगुवाई वाले आर्थिक विकास के युग में ले जाना है.
क्वांटम मिशन का मक़सद भारत की दीर्घकालीन तकनीकी महत्वाकांक्षा के साथ जुड़ा हुआ है लेकिन कुछ चिंताएं भी हैं जिनका समाधान मिशन की योजना बनाने वालों को ज़रूर करना चाहिए ताकि भारत में चौतरफ़ा क्वांटम तकनीकी विकास को सुनिश्चित किया जा सके.
वैसे तो क्वांटम मिशन का मक़सद भारत की दीर्घकालीन तकनीकी महत्वाकांक्षा के साथ जुड़ा हुआ है लेकिन कुछ चिंताएं भी हैं जिनका समाधान मिशन की योजना बनाने वालों को ज़रूर करना चाहिए ताकि भारत में चौतरफ़ा क्वांटम तकनीकी विकास को सुनिश्चित किया जा सके. भारत में क्वांटम की शुरुआत के साथ ये उपाय सुनिश्चित करेंगे कि भारत भी क्वांटम के लिए तैयार है.
राष्ट्रीय क्वांटम मिशन में क्या तैयारी है?
नेशनल मिशन ऑन क्वांटम टेक्नोलॉजी एंड एप्लीकेशन (NM-QTA) का ऐलान 2020 के बजट भाषण में किया गया था. इसके लिए पांच वर्षों की अवधि के दौरान 8,000 करोड़ रुपये के खर्च का प्रावधान किया गया था. पिछले तीन वर्षों के दौरान मिशन का ब्यौरा और नज़रिया कई तरह की समीक्षा के दौर से गुज़रा जिसका नतीजा अप्रैल 2023 में राष्ट्रीय क्वांटम मिशन को मंज़ूरी के रूप में निकला. मिशन के मक़सद और नतीजे पहले की तुलना में ज़्यादा बेहतर हैं. क्वांटम कंप्यूटर बनाने के लिए महत्वपूर्ण प्रोत्साहन दिया गया है. मिशन में की गई घोषणा के मुताबिक़ भारत आयन ट्रैप्स, फोटोनिक्स और सुपरकंडक्टिंग तकनीक जैसी अलग-अलग पद्धतियों पर आधारित 50-1000 क्यूबिट क्वांटम कंप्यूटर बनाने का लक्ष्य रखेगा. इसके लिए क्वांटम हार्डवेयर की क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत होगी. इसके अलावा मिशन में क्वांटम हार्डवेयर की क्षमता को विकसित करने की परिकल्पना भी की गई है. उदाहरण के लिए, मिशन के अलग-अलग उद्देश्यों में से एक है कम्युनिकेशन, प्रिसिज़न टाइमिंग और नेविगेशन सिस्टम के बेहतर इस्तेमाल के लिए एटॉमिक क्लॉक के साथ संवेदनशील मैग्नेटोमीटर बनाना. ये क्वांटम मटेरियल बनाने के लिए सुपरकंडक्टिंग मटेरियल और टोपोलॉजिकल मटेरियल का विकास करने वाले रिसर्चर्स और वैज्ञानिकों को भी समर्थन की पेशकश करेगा.
क्वांटम मिशन का एक और प्रमुख उद्देश्य क्वांटम कम्युनिकेशन को बढ़ाना है. क्वांटम मिशन क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन (QKD) को विकसित करने और पूरे भारत एवं वैश्विक स्तर पर क्वांटम -सिक्योर कम्युनिकेशन को स्थापित करने पर काफ़ी ज़ोर देता है. सैटेलाइट आधारित सुरक्षित क्वांटम कम्युनिकेशन की क्षमता विकसित करने पर भी ध्यान दिया जाएगा जो भारत के भीतर अलग-अलग ग्राउंड स्टेशन के बीच 2,000 किलोमीटर की रेंज को कवर करेगा. भारत की क्वांटम रिसर्च को ज़्यादा सुलभ बनाने के लिए मिशन में चार डेडिकेटेड थीमेटिक हब्स (T-हब्स) बनाने की बात कही गई है. इनकी स्थापना प्रमुख R&D एकेडमिक इंस्टीट्यूट में की जाएगी ताकि क्वांटम विज्ञान, जिसमें क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम कम्युनिकेशन, क्वांटम सेंसिंग एवं मेट्रोलॉजी और क्वांटम मटेरियल एवं डिवाइस शामिल हैं, के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर- दोनों पहलुओं के विकास को बढ़ावा दिया जाए. क्वांटम सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर के विकास के अलावा क्वांटम मिशन भारत में एक क्वांटम इकोसिस्टम की स्थापना और उसको विकसित करना चाहता है.
क्वांटम मिशन का एक और प्रमुख उद्देश्य क्वांटम कम्युनिकेशन को बढ़ाना है. क्वांटम मिशन क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन (QKD) को विकसित करने और पूरे भारत एवं वैश्विक स्तर पर क्वांटम -सिक्योर कम्युनिकेशन को स्थापित करने पर काफ़ी ज़ोर देता है.
इस मिशन के साथ भारत वैश्विक स्तर पर क्वांटम तकनीक के विकास का नेतृत्व करने और आने वाले वर्षों में ख़ुद के लिए एक विशेष जगह तैयार करने की योजना बना रहा है. क्वांटम क्रांति के साथ लगभग सभी उद्योग बदलाव की लहर देखेंगे. नये एप्लिकेशन से लेकर अनुकूल बिज़नेस सॉल्यूशन और क्वांटम सिक्योर कम्युनिकेशन तक ये बदलाव दिखेगा. इससे इन तकनीकों को लगातार अपनाने की ज़रूरत का संकेत मिलेगा.
और क्या किया जा सकता है?
चूंकि मिशन एक ज़मीनी वास्तविकता बन रहा है, ऐसे में भारतीय सरकार और दूसरी उचित एजेंसियों को कुछ चिंताओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि न सिर्फ़ मिशन की सफलता को सुनिश्चित किया जा सके बल्कि इस क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्थिति को भी स्थापित किया जा सके. पहला बुनियादी रिसर्च की ओर निवेश पर ध्यान देना हो सकता है. वैसे तो मिशन के तहत क्वांटम क्षमता के विकास के लिए अच्छा बजट है लेकिन भारत को हर हाल में ये सुनिश्चित करना चाहिए कि बुनियादी रिसर्च एंड डेवलपमेंट को बजट का महत्वपूर्ण हिस्सा मिले. भारत को सबसे महत्वपूर्ण रिसर्च पर भारी-भरकम निवेश को जारी रखना चाहिए ताकि क्वांटम इकोसिस्टम के लिए एक मज़बूत बुनियाद का निर्माण किया जा सके. इसमें क्वांटम इन्फॉर्मेशन साइंस, क्वांटम हार्डवेयर डेवलपमेंट, क्वांटम ऑप्टिक्स, क्वांटम क्रायोजेनिक्स और अन्य पर पर्याप्त संसाधनों का आवंटन शामिल है.
मिशन की सफलता को सुनिश्चित करने का एक और पैमाना शिक्षा जगत और उद्योग के बीच सहयोग को बढ़ावा देना हो सकता है. पिछले कुछ वर्षों में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) बॉम्बे, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IIIT) हैदराबाद और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) बैंगलोर जैसे भारतीय संस्थानों ने IBM, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न वेब सर्विसेज़, इंफोसिस, इत्यादि के साथ क्वांटम क्षमता विकसित करने के लिए समझौता ज्ञापन (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) पर दस्तख़त किए हैं. लेकिन ये पर्याप्त नहीं हैं और मिशन की सफलता के लिए उद्योग एवं शिक्षा जगह के बीच इस तरह की कई और साझेदारी होनी चाहिए. साथ ही, दूसरी श्रेणी और तीसरी श्रेणी की यूनिवर्सिटी और कॉलेज को शामिल करने के लिए इस तरह के सहयोग का विस्तार भी होना चाहिए. इससे रिसर्च और व्यावसायीकरण के बीच दूरी को भरने में भी मदद मिलेगी. साझा रिसर्च प्रोग्राम, इन्क्यूबेशन सेंटर और उद्योग-शिक्षा जगत के बीच साझेदारी जैसी पहल की जा सकती है. साथ ही, भारत के क्वांटम वर्कफोर्स को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की कोशिशों को सुव्यवस्थित बनाया जा सकता है.
भारत का इनोवेशन इकोसिस्टम तभी कामयाब हो सकता है जब उचित रेगुलेशन हों. भारत को क्वांटम तकनीकों के विकास के लिए एक मददगार रेगुलेटरी माहौल तैयार करना चाहिए.
मिशन का व्यापक उद्देश्य सामने होने के साथ उपयुक्त एजेंसियों और उद्योग को उभरती तकनीक में हुनरमंद वर्कफोर्स विकसित करने की तरफ़ काम करना चाहिए. विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम और कोर्स की पेशकश के ज़रिए, रिसर्च के मौक़े मुहैया करा कर और स्टार्टअप्स के शुरुआती समय में समर्थन के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है. भारत का इनोवेशन इकोसिस्टम तभी कामयाब हो सकता है जब उचित रेगुलेशन हों. भारत को क्वांटम तकनीकों के विकास के लिए एक मददगार रेगुलेटरी माहौल तैयार करना चाहिए. इसमें बौद्धिक संपदा अधिकारों (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स) की रक्षा, क्वांटम तकनीकों के विकास एवं उसके इस्तेमाल पर नज़र रखने के लिए रेगुलेटरी संस्थानों की स्थापना और क्वांटम तकनीकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्टैंडर्ड के विकास को बढ़ावा देना शामिल है. साथ ही, भारत को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए. अतीत में भारतीय कंपनियों और रिसर्च लैब ने वैश्विक क्वांटम क्रांति की अगुवाई करने और इस उभरती हुई तकनीक में अपनी जगह दिखाने के लिए ऑस्ट्रेलिया, इज़रायल और फिनलैंड की कंपनियों और रिसर्च लैब के साथ MoU पर दस्तख़त किए. इन भारतीय कंपनियों और रिसर्च लैब को क्वांटम रिसर्च और विकास के क्षेत्र में दूसरे प्रमुख देशों और संगठनों के साथ सहयोग को जारी रखना चाहिए. ऐसा करने से जानकारी को साझा करने, सीमा पार रिसर्च सहयोग और सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों के आदान-प्रदान में मदद मिल सकती है.
इस तरह के क़दम उठाकर भारत ख़ुद को क्वांटम तकनीक के मामले में दुनिया का नेतृत्व करने की स्थिति में रख सकता है और भविष्य में क्वांटम तकनीकों के सफल व्यवसायीकरण के लिए रास्ता खोल सकता है.
निष्कर्ष
भारत में राष्ट्रीय क्वांटम मिशन की मंज़ूरी का एकेडमी से जुड़े लोगों, उद्योग और सिविल सोसायटी ने समान रूप से स्वागत किया है. लेकिन मिशन की सफलता की सुनिश्चित करने के लिए कई प्रमुख चिंताएं हैं जिनका समाधान भारत को समय पर करने की ज़रूरत है. योजना और नीति बनाने वालों को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि इस तकनीक के व्यवसायीकरण की ओर बढ़ने के बदले बुनियादी विज्ञान और विकास की तरफ़ फंड को सुनिश्चित किया जाना चाहिए. इसके अलावा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय- दोनों स्तरों पर सहयोग और पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इसके साथ-साथ भारत में बड़ी तकनीकी कंपनियों को ऐसा वर्कफोर्स विकसित करने में मदद करना चाहिए जो आने वाले क्वांटम युग को चला सके. इस तरह के उपायों से भारत क्वांटम की शुरुआत के दौर से आगे बढ़कर क्वांटम के लिए पूरी तरह से तैयार होने के रास्ते की कोशिश करेगा.
प्राची मिश्रा शिकागो यूनिवर्सिटी में टेक पॉलिसी फेलो में यंग लीडर हैं. इस समय वो ORF के सेंटर फॉर सिक्योरिटी स्ट्रेटजी एंड टेक्नोलॉजी के क्वांटम मेटा-एथिक्स प्रोजेक्ट के लिए काम कर रही हैं.
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