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जब पेरिस समझौता हुआ तब दुनिया ने कार्बन तो गिना लेकिन खाने को भूल गई. अब बढ़ते तापमान के साथ खेत सूख रहे हैं, पैदावार घट रही है और भूख बढ़ रही है. COP30 इस मोड़ पर है जहाँ अब तय होगा कि जलवायु की लड़ाई खेतों से लड़ी जाएगी या काग़ज़ों पर.
Image Source: Getty Images
यह लेख "COP30 से उम्मीदें" निबंध श्रृंखला का हिस्सा है.
2015 में जब पेरिस समझौते को अपनाया गया तो खाद्य प्रणालियों पर चर्चा ना के बराबर हुई. ये मुद्दा हाशिए पर रह गया लेकिन पिछले एक दशक में मिले सबक से इसकी अहमियत समझ आ गई. दुनिया को समझ आ गया कि तापमान वृद्धि पर नियंत्रण पाने (अनुच्छेद 2) लचीलापन और अनुकूलन क्षमता को मज़बूत करने (अनुच्छेद 7) के साथ-साथ विकास, व्यापार और भोजन की खपत भी इसका ज़रूरी हिस्सा है. कृषि क्षेत्र वर्तमान में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन के लगभग एक-तिहाई के लिए ज़िम्मेदार है. इतना ही नहीं, जलवायु प्रभाव से पैदावार कम हो रही है, आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा उत्पन्न हो रही है, जिससे खाद्य असुरक्षा बढ़ रही है. ये समस्या विशेष रूप से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में दिख रही है और कम कृषि भूमि वाले किसान इससे ज़्यादा परेशान हैं. इसीलिए, पिछले दशक में एक खाद्य सुरक्षा को लेकर दुनिया का रवैया बदला.
पहले कृषि को जलवायु परिवर्तन के शिकार के रूप में देखा जाता था, अब इसे जलवायु व्यवस्था में अनुकूलन और शमन दोनों के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मान्यता मिल रही है. बेलेम में हो रहे COP30 सम्मेलन के सामने एक चुनौती ये भी है कि वो कृषि को मिल रही मान्यता को संस्थागत रूप दे. राजनीतिक घोषणाओं को पेरिस ढांचे के तहत एक व्यवस्थित कार्यक्रम में बदलना होगा. अनुच्छेद 9 में जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ाने, खाद्य सुरक्षा बढ़ाने और गर्म होती दुनिया में आजीविका की रक्षा करने की बात कही गई है. इसके लिए वित्तीय प्रवाह को इन लक्ष्यों के हिसाब से ढालना होगा. COP28 में, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने सतत कृषि, लचीली खाद्य प्रणाली और जलवायु कार्रवाई पर घोषणा में भोजन और कृषि को जलवायु एजेंडे के केंद्र में रखा. 150 से ज़्यादा देशों ने इसका समर्थन किया. इसमें कहा गया है कि "पेरिस समझौते के दीर्घकालिक लक्ष्यों को हासिल करने के किसी भी रास्ते में कृषि और खाद्य प्रणालियां शामिल होनी चाहिए". 2025 तक इन क्षेत्रों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी), राष्ट्रीय अनुकूलन योजना (एनएपी) और दीर्घकालिक रणनीतियों में एकीकृत करने की अपील की गई. खाद्य प्रणालियों को राजनीतिक मान्यता देना एक महत्वपूर्ण मोड़ था. इसमें ये माना गया कि पेरिस समझौते के तापमान और अनुकूलन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए खाद्य सुरक्षा भी अनिवार्य है.
कृषि क्षेत्र वर्तमान में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन के लगभग एक-तिहाई के लिए ज़िम्मेदार है.
हालांकि, राजनीतिक घोषणाओं को अब जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के भीतर संस्थागत ढांचा कार्यक्रमों में विकसित होना चाहिए. जैसे ही बेलेम में COP30 का समय नजदीक आया, इसने दुबई जलवायु सम्मेलन में तय एजेंडे को रफ्तार देने का अवसर पेश किया. दिसंबर 2023 में दुबई में हुए सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा को व्यवस्थित, संसाधनयुक्त और जवाबदेह कार्रवाई में बदलने की बात कही गई थी, और उसका मौका अब सामने आया है.
कृषि और खाद्य प्रणालियों को संस्थागतकरण करने की प्रक्रिया एक समर्पित यूएनएफसीसीसी कार्य योजना के साथ शुरू होती है. ये अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (जीजीए) ढांचे के अनुरूप भी है. हालांकि, इसकी सफलता सीधे तौर पर शमन और अनुकूलन परिणामों से जुड़ी है. ये कार्यक्रम सहायक संस्थाओं के माध्यम से एक स्पष्ट आदेश, समयरेखा (2025-2030), और रिपोर्टिंग चैनल स्थापित करके यूएई घोषणा के एजेंडे को औपचारिक रूप देगा. ये ग्लोबल स्टॉकटेक के साथ कृषि से जुड़े कामों का तालमेल बिठाएगा. ऐसा करने से इस बात का पता चल सकेगा कि व्यवस्थित मूल्यांकन करने में ये कितना सक्षम होगा. साथ ही, इस बात की भी जानकारी मिलेगी कि खाद्य प्रणालियां, उत्सर्जन और अनुकूलन के अंतर को कम करने में कैसे योगदान देती हैं. ये कार्य योजना तीन मुख्य बिंदुओं पर आधारित होना चाहिए: खाद्य प्रणालियों को राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में एकीकृत करना, छोटे धारकों के लिए अनुकूलन वित्त जुटाना, और कृषि लचीलेपन के लिए माप, रिपोर्टिंग और सत्यापन (एमआरवी) प्रणालियों को मज़बूत करना. यूएई प्रेसीडेंसी के तहत शुरू किया गया तकनीकी सहयोग भागीदारों के बीच समन्वय और कार्यान्वयन पर नज़र रखने के लिए एक प्रारंभिक मॉडल प्रदान करता है.
वर्तमान में, वैश्विक जलवायु वित्त का 4 प्रतिशत से भी कम हिस्सा कृषि खाद्य प्रणालियों का समर्थन करता है, और सिर्फ 1.7 प्रतिशत छोटे स्तर के उत्पादकों तक पहुंचता है.
जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ाने की नीयत ही काफ़ी नहीं है. इरादे को ठोस प्रभाव में बदलने के लिए COP30 को अनुच्छेद 9 के तहत जलवायु वित्त प्रवाह का पुनर्गठन करना चाहिए. ये सुनिश्चित किया जाए तो वित्तीय मदद स्पष्ट रूप से कृषि से जुड़े कामों और छोटे धारकों तक पहुंचे. वर्तमान में, वैश्विक जलवायु वित्त का 4 प्रतिशत से भी कम हिस्सा कृषि खाद्य प्रणालियों का समर्थन करता है, और सिर्फ 1.7 प्रतिशत छोटे स्तर के उत्पादकों तक पहुंचता है. ये वित्तीय असंतुलन अनुकूलन और शमन दोनों को कमज़ोर करता है. छोटे धारकों के लिए बड़े ऋण या कार्बन-क्रेडिट बाज़ार तक पहुंच पाना तकरीबन असंभव होता है. COP30 को वित्त तक प्रत्यक्ष पहुंच के तौर-तरीकों का आसान बनाने के लिए इसे संस्थागत रूप देना चाहिए. ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए, जो राष्ट्रीय संस्थाओं, सहकारी समितियों और ग्रामीण वित्तीय संस्थानों के माध्यम से धन मुहैया कराती हो. मिश्रित-वित्त तंत्र, पहले नुकसान की गारंटी और जलवायु-ज़ोखिम जैसे बीमा किसानों को कर्ज़ के जाल से बचाते हुए कृषि में निवेश को ख़तरों से मुक्त कर सकते हैं.
जलवायु स्मार्ट कृषि (सीएसए) को बढ़ावा देना भी बहुत महत्वपूर्ण है. इसके लिए खेती के स्तर पर ही हस्तक्षेप करने की ज़रूरत होती है. ऐसी पहल की सफलता मज़बूत ग्रामीण बुनियादी ढांचे, अनुसंधान, विस्तार और डिजिटल सेवाओं पर निर्भर करता है. सार्वजनिक निवेश में किसानों की आवश्यकता के हिसाब से बनी बीज प्रणालियों, मिट्टी और जल संरक्षण, कृषि-मौसम नेटवर्क और बाजार पहुंच के बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता देनी चाहिए. इससे फसल पकने के बाद होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है और जलवायु-अनुकूल उपज के लिए बाज़ार में आकर्षण भी पैदा होगा. ऐसे निवेश के बिना जलवायु स्मार्ट कृषि अस्थिर बनी रहेगी. यूएई घोषणापत्र में स्पष्ट रूप से ये कहा गया है कि कृषि में अनुकूलन और शमन में तेज़ी लाने के लिए "नवाचार, अनुसंधान और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ाना होगा."
यूएई घोषणापत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कृषि में अनुकूलन और शमन में तेज़ी लाने के लिए "नवाचार, अनुसंधान और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ाना होगा."
सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में महिलाएं, युवा और स्वदेशी उत्पादक छोटी जोत वाली कृषि की रीढ़ हैं. फिर भी, उन्हें ऋण, भूमि और अपने काम के विस्तार में काफ़ी बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इसीलिए, यूएई घोषणापत्र में "कमज़ोर समूहों के लिए खाद्य सुरक्षा और पोषण" को प्राथमिकता देने का वचन देनी की बात कही गई है. COP30 सभी खाद्य-प्रणाली में वित्तीय और लैंगिक समानता के समावेशी शासन मानदंडों को अनिवार्य कर सकता है. सीधी पहुंच वाली संस्थाओं में लैंगिक समानता और सामाजिक-समावेशी परिणाम दिखने चाहिए. इसके अलावा, स्थानीय और क्षेत्रीय किसान संगठनों को अनुकूलन परियोजनाओं को डिजाइन और प्रबंधित करने में सक्षम बनाना चाहिए. स्वामित्व और जवाबदेही को मज़बूत करने के लिए उन्हें सशक्त करना ज़रूरी है.
अनुच्छेद 2 और 7 के लक्ष्यों को वैश्विक खाद्य प्रणालियों के डीकार्बोनाइजिंग और विविधीकरण किए बिना हासिल करना संभव नहीं है.
आखिर में यही कहा जा सकता है कि COP30 को कृषि सब्सिडी, व्यापार और खाद्य-सुरक्षा उपायों को जलवायु लक्ष्यों हिसाब ढालना चाहिए. इसके लिए राष्ट्रीय नीति समीक्षा की मांग करनी चाहिए. कई मौजूदा प्रोत्साहन उच्च-ग्रीनहाउस गैस वाली खेती और मोनोकल्चर क्रॉपिंग को बढ़ावा देते हैं. मोनोकल्चर क्रॉपिंग का अर्थ साल दर साल एक ही फसल का उत्पादन करना है. इसे कृषि विविधता और ज़मीन के उपजाऊपने के लिए सही नहीं समझा जाता. कृषि-पारिस्थितिकी में विविधता लाने और ऐसे कार्यक्रमों का समर्थन करने से शमन और अनुकूलन दोनों लाभ मिल सकते हैं. यूएई घोषणापत्र पहले से ही सरकारों से इस उद्देश्य के लिए "नीतियों और सार्वजनिक समर्थन पर फिर से विचार करने" की अपील करता है.
संक्षेप में कहें, तो अनुच्छेद 2 और 7 के लक्ष्यों को वैश्विक खाद्य प्रणालियों के डीकार्बोनाइजिंग और विविधीकरण किए बिना हासिल करना संभव नहीं है. कृषि कार्य करने और इसे बनाए रखने वाले छोटे किसानों को मज़बूत करना ही इस लक्ष्य को पाने का सबसे बेहतर रास्ता है. पेरिस समझौते के भीतर औपचारिक रूप से खाद्य प्रणालियों को शामिल करके और मापने योग्य लक्ष्य निर्धारित करना ही आगे का रास्ता है. जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ाने के लिए संसाधन जुटाना और वैश्विक समुदाय के लचीला रुख़ अपनाने से ही खाद्य-सुरक्षित भविष्य के वादे को पूरा किया जा सकता है. इसका फायदा इंसानों को भी मिलेगा और पर्यावरण का भी संरक्षण होगा.
शोभा सूरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.
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Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...
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