Author : Kabir Taneja

Published on Sep 26, 2017 Updated 0 Hours ago

डेयर एजोर को आईएसआईएस से खाली करवा लिए जाने के बाद की स्थिति क्या होगी इस बारे में अभी कुछ भी कहना आसान नहीं है और यह बात पूरे सीरिया पर ही लागू होती है।

भारत-चीन सहयोग स्थल से आईएस की शरणस्थली तक

सीरिया के मध्य क्षेत्र के डेयर एजोर इलाके में हाल में सीरियाई सेना ने काफी अहम कामयाबी हासिल की है। बेहद झीनी आबादी वाला यह इलाका ज्यादातर सुनसान रेगिस्तान से भरा है और साथ ही देश का तेल का अधिकांश भंडार भी इसी इलाके में दबा है। इस इलाके पर तीन साल लंबे कब्जे को दूर करने में सीरियाई सेना की कामयाबी राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार के लिए सीरिया के अंदर मौजूद इस दूसरी सत्ता से कब्जा वापस लेने के लिहाज से संभवतः अंतिम बड़ी लड़ाई होगी।

इस्लामिक स्टेट के कब्जे वाले भूभाग पर दुबारा अधिकार जमाने के अभियान में सीरियाई सेना और उसकी मदद कर रही रूसी सेना के लिए यह प्रगति आईएसआईएस को उसके प्रभुत्व के आखिरी गढ़ से बेदखल कर देने जैसा होगा। बताया तो यह भी जा रहा है कि इस अभियान में सीरियाई सेना को ईरान समर्थित ​शिया मिलिशिया का भी सहयोग हासिल है। अगर इस अभियान में इसे कामयाबी मिलती है तो फिर आईएसआईएस गुरिल्ला लड़ाके की अपनी असली भूमिका में वापस लौट आएगा, जिसके पास किसी बड़े भू-भाग या आबादी पर कब्जा नहीं होगा। पिछले 24 घंटों में बताया जा रहा है कि रूसी हवाई हमले में युफरात्स नदी के आसपास 34 नागरिक मारे गए हैं। उधर, असद के सैनिक दक्षिण और पूर्व से बढ़ रहे हैं, जबकि सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेस (एसडीएफ), जिसमें कई मूल के लोग शामिल हैं और ज्यादा संख्या कुर्दों की है (कुछ आंकड़े इसमें अरब लड़ाकों की संख्या ज्यादा होने का दावा भी करते हैं) वह उत्तर की ओर से बढ़ रही है ताकि रेगिस्तानी इलाके में आईएसआईएस को किनारे किया जा सके। इसे अमेरिका का भी सहयोग हासिल है।

हालांकि, जरूरी नहीं है कि डेयर एजोर में आईएसआईेस की हार से इस हिंसा का अंत हो जाए। चूंकि सीरियाई सेना और एसडीएफ दोनों ही आगे बढ़ रहे हैं, ऐसे में अगर आईएसआईएस का प्रभुत्व खत्म होता भी है तो उनके कब्जे से आजाद होने वाले भू-भाग पर शासन को ले कर विवाद होगा। जैसा कि नीचे तालिका-1 में दिखाया गया है, सीरियाई सेना (लाल में) और एसडीएफ (पीले में) एक-दूसरे से कुछ मील की दूरी पर ही हैं और एक ही लक्ष्य में शामिल हैं जो है इस्लामिक स्टेट को पराजित करना। यही वह इलाका है जहां प्रचूर मात्रा में तेल और गैस के भंडार हैं, साथ ही तेल की तस्करी के कुछ पुराने मार्ग भी हैं, जिन पर आईएस ने सीरिया के तेल और गैस भंडार पर कब्जे की योजना के तहत अधिकार जमाया था। आईएस इन भंडार और रिफाइनरीज पर कब्जा होने का पूरा फायदा उठाने में कामयाब नहीं हुआ, क्योंकि उसके पास विशेषज्ञता का अभाव था। यहां तक कि उसने इंजीनियर के लिए एक लाख अमेरिकी डॉलर तक के वेतन का विज्ञापन दिया, फिर भी अपने तात्कालिक ढांचे के जरिए हर रोज 1.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर ही कमाने में कामयाब हुआ।

सीरिया में शांतिकाल के दौरान यूफरात्स नदी के पास के इस इलाके में तेल और गैस निकालने की भारत-चीन की एक साझा परियोजना भी चल रही थी। 2013 की शुरुआत में भारत के ओएनजीसी विदेश (ओवीएल) ने अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी ओएनजीसी निल गंगा बी.वी. और चीन की चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन इंटरनेशनल (सीएनपीसीआई) ने अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली फुलिन इनवेस्टमेंट्स सार्ल के साथ मिल कर अल फुरात पेट्रोलियम कंपनी (एएफपीसी) का गठन किया, जिसमें प्रत्येक की 50 -50 प्रतिशत की साझेदारी थी। हिमालय एनर्जी सीरिया बी.वी. के नाम से नीदरलैंड में एक अलग कंपनी गठित की गई ताकि परियोजना की निगरानी की जा सके और इसके लिए वित्तीय लेन-देन की व्यवस्था कर सके। 2005 में हुए सौदे के मुताबिक गैस फिल्ड में कार्यसंचालन में सीरियाई सरकारी कंपनियां लगी हुई थीं। एएफपीसी के अलावा भारत ने ब्लॉक 24 में भी 60 % निवेश किया था जो तेल और गैस की खोज और निष्कासन के 2004 के सौदे के तहत एक ब्लॉक है। दिसंबर 2012 में सुरक्षा परिस्थिति को देखते हुए एएफपीसी का काम रोका गया तो ब्लॉक 24 का काम भी अप्रैल 2012 में ही स्थगित कर दिया गया। भारत-चीन कंसोर्टियम ने दुबई की राह पकड़ी जहां से इसे भविष्य की संभावनाओं को तलाशना था।

ब्लॉक 24 (देखें तालिका 2) डेयर एजोर पर आईएसआईएस के कब्जे के बीच स्थित था और वहां से मिल रही खबरों के मुताबिक आईएसआईस प्राचीन कालीन तकनीक का सहारा ले कर तेल के कुओं से कच्चा पेट्रोल और डीजल तैयार कर रहा था। हालांकि नई दिल्ली या बीजिंग में से किसी का भी इनमें निवेश बहुत ज्यादा नहीं था और न ही बहुत नुकसान झेलना पड़ा था। इसके बावजूद एशिया के दो सबसे बड़े तेल आयातक बाजारों का पश्चिम एशिया की सुरक्षा और शांति में बहुत बड़ा हित जुड़ा है। दोनों ही देशों ने अपने तेल और गैस के आयात में बहुत से स्रोत शामिल किए हुए हैं। ऐसी किसी विषम स्थिति के पैदा होने की संभावना को ध्यान में रखते हुए कुछ टिप्पणीकारों ने एशियाई तेल आयातकों के भी ओपेक जैसे संगठन की कल्पना की है, जो उनके सामूहिक हितों की बात कर सके और एशियाई ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने का जिम्मा उठा सके। लेकिन जब एशिया के प्रमुख तेल आयातकों में भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश शामिल हों तो इस लिहाज से व्यापक सहमति हासिल करने की कोशिश करना एक व्यर्थ प्रयास ही है।

भारत और चीन दोनों ही एशिया के दो सबसे बड़े तेल आयातकों में से हैं और नवीकरणीय ऊर्जा को ले कर भारी जोर के बावजूद उम्मीद है कि दोनों देशों के ऊर्जा व्यय का अहम हिस्सा पनबिजली ही होने वाली है। पश्चिमी एशिया में स्थायित्व एक गंभीर मसला बना रहेगा और इस क्षेत्र में पश्चिमी शक्तियों व खास कर अमेरिका की घटती दिलचस्पी के साथ भारत और चीन व्यापक कूटनीतिक भूमिका निभा सकते हैं। जबकि इन दोनों देशों के अपने हित भी बिल्कुल अलग-अलग हैं और दोनों के बीच हाल के डोकलाम जैसे सीमा विवाद की आशंका खत्म नहीं हुई है।

डेयर एजोर के लिए आईएसआईएस के बाद के काल की स्थिति की अभी पहचान की जानी बाकी है और यह तो वास्तव में पूरे सीरिया के लिए ही सच है। हालांकि अब असद सरकार के पास देश का बड़ा हिस्सा वापस आ गया है फिर भी इस समय उत्तरी हिस्सा अब तक कुर्दों के नियंत्रण में है, जो खुद ही 25 सितंबर को एक जनमत संग्रह करवाने जा रहे हैं। कुर्दिस्तान की क्षेत्रीय सरकार ने घोषणा की है कि इसका नतीजा बाध्यकारी होगा, हालांकि लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय पक्षों ने इसकी आलोचना की है (जबकि इसी बीच मास्को ने कहा है कि जनमत संग्रह कुर्द लोगों की मांग को प्रदर्शित करता है) और बांग्लादेश ने इस कदम को लापरवाही भरा बताया है और वायुमार्ग को बंद करने की धमकी दी है। इस बीच दक्षिण सीरिया में अमेरिका और ईरान समर्थित मिलिशिया अब भी अल तनफ क्षेत्र पर कब्जे के लिए लड़ रहे हैं जबकि हयात तहरीर अल शाम, जो अल कायदा नेतृत्व वाले जभातअल-नुसरा का ही एक बचा-खुचा संगठन है, अब-बाब की सीमा पर स्थित इदिब क्षेत्र में अपना खुद का छोटे स्तर का राज्य कायम करना चाहती है, जहां तुर्की समर्थित मिलिशिया कुर्दों को बेदखल करने के प्रयास में है।

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