Expert Speak Raisina Debates
Published on Jan 13, 2025 Updated 2 Days ago

अनिश्चितता और उससे निपटने के लिए खुद में बदलाव लाने की कुशलता से ही नए वैश्विक युग में राष्ट्रों की स्थिति तय होगी. अमेरिका और यूरोपीय देशों को भी अपने जटिल संबंधों में संतुलन बनाकर चलना होगा.

बदलते समीकरण: ट्रंप 2.0 के साथ यूरोप का अस्थिर गठबंधन

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ये लेख निबंध श्रृंखला “बुडापेस्ट एडिट” का हिस्सा है. 


दुनिया इस वक्त एक चौराहे पर खड़ी है. विश्व व्यवस्था में विरोधाभास दिख रहा है. हालांकि दुनिया अभी भी पुरानी संस्थाओं और स्थापित नियमों के हिसाब से ही नियंत्रित हो रही है लेकिन इसके नतीजे वैसे नहीं मिल रहे हैं, जिनकी उम्मीद की जाती है. स्थापित नियमों और बदलती चुनौतियों में एक द्वंद दिख रहा है. हालात एक रूबिक क्यूब जैसे हैं. अगर एक समस्या का समाधान खोजा जाता है तो उससे कोई दूसरा पहलू बाधित होता है. अनिश्चितता की स्थिति मौजूदा दौर की सबसे बड़ी विशेषता बन गई है. अब तक कुछ देशों का दुनिया पर प्रभुत्व दिखता था, लेकिन अब समय आ गया है कि ऐसे देश खुद को बदलें. सतत विकास का रास्ता अपनाएं. अब उन्हें अपने सख्त स्टैंड की बजाए अपने रुख़ पर लचीलापन लाने पर ज़ोर

 अब तक कुछ देशों का दुनिया पर प्रभुत्व दिखता था, लेकिन अब समय आ गया है कि ऐसे देश खुद को बदलें. सतत विकास का रास्ता अपनाएं.

20 जनवरी 2025 के बाद डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर व्हाइट हाउस में लौटेंगे. शायद इसके बाद ही ट्रांस-अटलांटिक संबंधों (अमेरिका और यूरोप के संबंध) का पुनर्मूल्यांकन होगा. ये तय होगा कि इनके बीच दरार बढ़ेगी या सहयोग मज़बूत होगा. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पश्चिमी गठबंधन नहीं टूटेगा, लेकिन इसमें जो अंदरूनी तनाव हैं, वो उजागर होंगे. सबसे बड़ी चुनौती नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) को लेकर है. ट्रंप कई बार इस संगठन के कामकाज को लेकर अपनी नाराज़गी जता चुके हैं. इसके अलावा भी अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच ऐसे कई मुद्दे हैं, जिनका आने वाले समय में परीक्षण होगा. यूरोप पहले से ही औद्योगिकीकरण की बुरी स्थिति, डीकार्बोनाइजेशन की समस्या और बिगड़ते भू-राजनीतिक तनाव की त्रिस्तरीय मुश्किलों से जूझ रहा है. ऐसे में आने वाले दिनों में अमेरिका पर यूरोप की निर्भरता बढ़ सकती है. ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति और ज़्यादातर मुद्दों पर लेन-देन की कूटनीति अमेरिका-यूरोपियन यूनियन के संबंधों के समीकरण बदल सकती है. अमेरिका ये कह सकता है कि यूरोप को अपनी सुरक्षा की ज़्यादा जिम्मेदारी उठानी चाहिए. हालांकि इसके साथ ही अमेरिका से यूरोप को मदद का आश्वासन मिलता रहेगा. यूरोपीय संघ के सुरक्षा प्रदाता, औद्योगिक भागीदार और ऊर्जा आपूर्तिकर्ता के रूप में अमेरिका की भूमिका पहले ही तरह जारी रहेगा. रिश्तों को लेकर ये बदलते समीकरण यूरोपीय देशों को इस बात पर मज़बूर करेंगे कि अमेरिका को लेकर वो अपना रुख़ ज़्यादा व्यावहारिक बनाएं. अमेरिका पर बढ़ती निर्भरता के बावजूद अपने रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखें.

ट्रप 2.0 प्रशासन भी अमेरिका फर्स्ट नीति के साथ-साथ खंडित वैश्विक व्यवस्था में अपनी नेतृत्व वाली भूमिका में संतुलन बिठाने की कोशिश करेगा.

 
मौजूदा दौर में जिस तरह की वैश्विक व्यवस्था उभर रही है, उसमें राष्ट्रों के साथ-साथ नैरेटिव भी अहम भूमिका अदा करेगा. ट्रंप की ये कोशिश होगी कि वैश्विक भूमिका को नया आकार देने में अमेरिका की महत्वपूर्ण भूमिका हो. ऐसे में इस बात की काफ़ी अहमियत होगी कि भू-राजनीति में नई कहानी गढ़ने को अमेरिका कैसे पेश करता है. नैरेटिव बिल्डिंग के लिए सूचना पर नियंत्रण बहुत ज़रूरी होता है, क्योंकि इसी के आधार पर नए गठबंधन बनेंगे और उसी से तय होगा कि नई नीतियों के क्या नतीजे निकलेंगे. हालांकि दुनिया के सभी देश एक-दूसरे से इतनी मज़बूती से जुड़े चुके हैं (हाइपर-कनेक्टेड) कि किसी भी नीति के कुछ अपेक्षित नतीजों के साथ-साथ कुछ अनपेक्षित परिणाम भी दिख सकते हैं. फिर चाहे वो नीतियां गठबंधन को लेकर हों या फिर प्रतिबंधों को लेकर. ज़ाहिर है इससे नीति निर्धारण करना दोधारी तलवार बन जाएगा. ऐसे में यूरोप और अमेरिका को आपसी संबंधों को सावधानीपूर्वक से आगे बढ़ाना होगा. ये सुनिश्चित करना होगा कि नई नीतिगत पहल रिश्तों में पहले से मौजूद आपसी कमज़ोरियों को और ना बढ़ाएं.

 
जलवायु परिवर्तन, व्यापार और सुरक्षा की प्रतिस्पर्धी मांगों के समाधान के लिए एक जटिल लेकिन विरोधाभासी मानसिकता की ज़रूरत होगी. इसके लिए वैश्विक सोच, क्षेत्रीय कार्रवाई और स्थानीय संचार की नीति को अपनाना होगा. जैसे-जैसे यूरोपीय संघ और अमेरिका वैश्वीकरण के बाद के युग में प्रवेश कर रहे हैं, उन्हें ये समझना होगा कि एक-दूसरे पर अत्यधिक निर्भरता के बावजूद वो किस तरह इसका प्रबंधन करते हैं. इसमें सामंजस्य बिठाना काफ़ी जटिल काम होगा लेकिन इसी से इनके आगे के संबंध तय होंगे. फिलहाल ऐसा लग रहा है कि यूरोप डीकार्बोनाइजेशन और औद्योगिक क्षेत्र के फिर से उद्धार की अपनी कोशिशें जारी रखेगा, भले ही ऊर्जा और सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर हो. वहीं ट्रप 2.0 प्रशासन भी अमेरिका फर्स्ट नीति के साथ-साथ खंडित वैश्विक व्यवस्था में अपनी नेतृत्व वाली भूमिका में संतुलन बिठाने की कोशिश करेगा.

 


वेलिना चाकारोवा FACE की जियो-पॉलिटिकल स्ट्रैटेजिस्ट और ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में विजिटिंग फेलो हैं.

 

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