Published on Aug 05, 2021 Updated 0 Hours ago

ओआरएफ़ द्वारा आयोजित ब्रिक्स अकादेमिक फ़ोरम 2021 के उद्घाटन सत्र में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का संबोधन

ब्रिक्स अकादमिक फ़ोरम 2021 में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का उद्घाटन भाषण

डॉक्टर समीर सरन, डॉक्टर सचिन चतुर्वेदी, प्रिय दोस्तों,

1. 2021 में ब्रिक्स के 15 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इंसानों से तुलना करें, तो ये उम्र युवावस्था की ओर बढ़ने की होती है. जब विचारों का ख़ाका खिंचता है और दुनिया को लेकर नज़रिया मज़बूत होता है, और इसके साथ ही अपनी ज़िम्मेदारियों का भी एहसास होता है. इस तरह से देखें, तो भारत को ब्रिक्स की अध्यक्षता ऐसे ही मोड़ पर मिल रही है. 

2. लेकिन, ये दौर वैश्विक व्यवस्था के मौजूदा हालात के लिहाज़ से भी बहुत अहम है. हम ये बात उस महामारी के ज़रिए समझ सकते हैं, जिसने दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाओं और समुदायों को बर्बाद कर डाला है. इस मोड़ पर अगर हमारे सामने चुनौतियां हैं, तो मौक़े भी कम नहीं. ब्रिक्स देश जिन विचारों, रणनीतियों और नीतियों के ज़रिए दुनिया में अपना योगदान देते हैं, उनके हिसाब से आज ब्रिक्स की भूमिका और भी अहम हो गई है.

3. ब्रिक्स का गठन इस बात की तस्दीक़ थी कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था का दौर ख़त्म हो चुका है. उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को आगे आकर विकास के एक नए ढांचे का निर्माण करना था. हममें से हर देश ऐसा करने की मज़बूत स्थिति में था. हम अपने साझीदार देशों के साथ अपने तजुर्बे किसी न किसी रूप में साझा कर सकते थे. लेकिन, ये सहयोग केवल दक्षिणी दुनिया तक सीमित नहीं रहना था. हमे इस बात का भी एहसास था कि शीत युद्ध के ख़ात्मे के बाद से प्रभुत्व का जो दौर चल रहा था, वो अब आगे नहीं चल सकता था. ब्रिक्स का गठन, विश्व व्यवस्था में विविधता तलाशने की चुनौती का समाधान था; कई तरह से ये आने वाले दौर की बहुपक्षीय व्यवस्था का सटीक पूर्वानुमान था.

ब्रिक्स का गठन इस बात की तस्दीक़ थी कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था का दौर ख़त्म हो चुका है. उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को आगे आकर विकास के एक नए ढांचे का निर्माण करना था. 

4. तो, हम सबको ये याद रखना चाहिए कि, प्रभुत्व के विकल्प की ख़ूबी और हर रूप में बहुपक्षीय व्यवस्था के प्रति सैद्धांतिक प्रतिबद्धता- फिर चाहे वो राजनीतिक, आर्थिक, अकादमिक और संस्थागत हो या सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता- ये ब्रिक्स के डीएनए का अटूट हिस्सा है. आज़ादी और एक दूसरे के पूरक बनने की यही भावना थी, जिसके चलते भारत ने अन्य देशों के साथ मिलकर ब्रिक्स की स्थापना की थी. हमें ये यक़ीन है कि यही जज़्बात आगे भी न केवल ब्रिक्स को परिभाषित करते रहेंगे, बल्कि इक्कीसवीं सदी के आने वाले दशकों के लिए भी मिसाल का काम करेंगे. ब्रिक्स वैश्विक संतुलन को नए सिरे से बनाने की कोशिशों की ऐसी मिसाल है, जिसकी बुनियाद विविधता और अनेकता है.

5. ब्रिक्स में भारत की अध्यक्षता के चार मुख्य स्तंभ हैं- बहुपक्षीय व्यवस्था का सुधार; आतंकवाद से मुक़ाबला करने में सहयोग; स्थायी विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए तकनीकी और डिजिटल समाधान की तलाश; और लोगों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देना. हो सकता है कि ये सिद्धांत न केवल ख़याली, बल्कि ऐसे भी लगें, जिन्हें अक्सर दोहराया जाता हो. लेकिन, इनमें से हर एक के हक़ीक़त की दुनिया से वाबस्ता स्पष्ट मायने भी हैं.

6. दूसरे विश्व युद्ध के बाद की बहुपक्षीय व्यवस्था में सुधार और इसके नए सिरे से गठन को अब और टाला नहीं जा सकता है. महामारी और उसके चलते नियमों पर आधारित व्यवस्था के बिखरने ने हमें ये एहसास कराया है कि जो संस्थान 1940 के दशक की चुनौतियों का सामना करने के लिए बनाए गए थे, उनकी मरम्मत करके उन्हें हमारी सदी की ज़रूरतों के हिसाब से तैयार करना होगा.

7. इसका एक अहम पहलू, सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का विस्तार करना है. लेकिन, ये अपने आप में पर्याप्त क़दम नहीं होगा. अपनी बनावट की जड़ता, होड़ लगाने की चुनौतियों, असमान संसाधन और काम-काज में ख़ास तरह के झुकाव के चलते बहुपक्षीय संस्थाएं अब उतनी कारगर नहीं रह गई हैं. यही वजह है कि इस कमी को पूरा करने के लिए नए और छोटे मंचों के विस्तार हो रहा है. इनमें विविधतापूर्ण बहुपक्षीय और क्षेत्रीय संगठन शामिल हैं. ब्रिक्स भी ऐसी ही कमी को पूरा करने की शुरुआती कोशिशों में से एक था. अक्सर हम किसी ख़ास क़दम को लेकर जुनूनी हो जाते हैं; लेकिन, सच यही है कि इस कमी को पूरा करने के लिए और क़दम उठाने की ज़रूरत है.

भारत की 800/400 की उपलब्धि, मतलब 80 करोड़ लोगों को खाने का राशन और 40 करोड़ लोगों को नक़द आर्थिक मदद- डिजिटल तकनीक की मदद से ही पहुंचाई जा सकी है. 

8.  इसी कमी का फ़ायदा उठाकर आतंकवाद अपना पांव पसार रहा है. आतंकवाद की पौधशाला असल में संघर्ष के शिकार इलाक़ों में है, जहां कमज़ोर पक्ष और कई सरकारों द्वारा कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया जाता है. आज अफ़ग़ानिस्तान में हम जो बदलाव और वहां की जनता पर फिर से थोपा गया युद्ध देख रहे हैं, उसने आतंकवाद की चुनौती को और गंभीर बना दिया है. अगर इससे निपटा नहीं गया, तो इसका असर न केवल अफ़ग़ानिस्तान और उसके पास-पड़ोस में, बल्कि दूर-दराज़ तक दिखेगा. इसीलिए, आतंकवाद से निपटने की एक स्पष्ट, आपसी सहयोग वाली एक जैसी रणनीति बनाने में हम सबकी भूमिका अहम हो जाती है. इक्कीसवीं सदी में, बड़े पैमाने पर हिंसा, बर्बरता से डराने या छुपे हुए एजेंडे से ख़ुद को वाजिब नहीं ठहराया जा सकता है. हर वर्ग की नुमाइंदगी, सबको साथ लेकर चलना, शांति और स्थिरता की शर्तें इससे अटूट रूप से जुड़ी हैं.

9. उभरती हुई तकनीकें, और सबसे अहम डिजिटल तकनीक और इंटरनेट की ताक़त आज इंसानी कोशिशों को कई गुना बढ़ाने की ताक़त रखती हैं. हमने भारी क़ीमत देकर ये सबक़ भी सीखा है कि ये तकनीकें उग्रवाद और ख़ास मक़सद से फैलाई जाने वाली ग़लत सूचना का माध्यम भी बन सकती हैं. भारत में हमारे लिए डिजिटल औज़ार, महामारी से लड़ने में बेहद मूल्यवान साबित हुए हैं. कोविड-19 के साए में रहकर इससे लड़ते हुए पिछले डेढ़ वर्षों में इन तकनीकों ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, लोगों तक टीके पहुंचाने, ऑनलाइन ओर मोबाइल पर आधारित निदान की सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं; और इनके ज़रिए सही ज़रूरतमंदों तक कल्याणकारी योजनाएं भी पहुंची हैं. भारत की 800/400 की उपलब्धि, मतलब 80 करोड़ लोगों को खाने का राशन और 40 करोड़ लोगों को नक़द आर्थिक मदद- डिजिटल तकनीक की मदद से ही पहुंचाई जा सकी है. ऑनलाइन शिक्षा में हुई वृद्धि भी उल्लेखनीय है.

10. इनमें से सीखे गए ऐसे बहुत से तजुर्बे हैं, जो महामारी के बाद भी हमारे साथ रहेंगे. उदाहरण के लिए स्थायी विकास के लक्ष्य हासिल करने में तकनीक के उत्प्रेरक प्रभाव हमारे सामने हैं. महामारी ने हमसे आर्थिक विकास की शक्ल में एक क़ीमत वसूली है और इसने स्थायी विकास के लक्ष्यों को भी चुनौती दी है. अब तकनीक हमें इन लक्ष्यों को हासिल करने में हुई देरी की भरपाई करने में मदद कर सकती है. इस मामले में भारत को काफ़ी उम्मीदें हैं और हम अपने अनुभवों, इनोवेशन और सीखे गए सबक़ का लाभ दूसरे देशों से साझा करने को तैयार हैं.

भारत की 800/400 की उपलब्धि, मतलब 80 करोड़ लोगों को खाने का राशन और 40 करोड़ लोगों को नक़द आर्थिक मदद- डिजिटल तकनीक की मदद से ही पहुंचाई जा सकी है. 

11. और आख़िर में, बात हमारे नागरिकों की, जो ब्रिक्स के सबसे अहम और ज़रूरी भागीदार हैं, बल्कि जनता तो विकास संबंधी हमारी व्यापक कोशिशों की अहम किरदार है. पिछले कुछ वर्षों के अनुभवों ने हमें उस आर्थिक मॉडल की सीमाओं का एहसास कराया है, जो कुशलता और क़ीमत को आम जनता और समुदाय या फिर लोगों की रोज़ी-रोटी और टिकाऊ विकास के बरक्स खड़ा करता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब मानव आधारित भूमंडलीकरण का आह्वान किया था, तो वो केवल महामारी से हुई उठा-पटक को स्वीकार करना भर नहीं था, बल्कि असमानता की व्यापक चुनौतियों को मानकर उनसे निपटने की अपील थी. लोगों, परिवारों और समुदायों का कल्याण और उनकी बेहतरी को वैश्विक व्यवस्था के नवनिर्माण और उस लचीलेपन से अलग करके नहीं देखा जा सकता है, जो लंबे समय से चल रही कोविड-19 महामारी के असर से हो रही है.

12. इसकी एक मिसाल फार्मास्यूटिकल उद्योग में बौद्धिक संपदा के अधिकारों पर ज़ोर देने और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लक्ष्य हासिल करने में असंतुलन के रूप में देख सकते हैं. अगर आज इन्हें ऐसे ही रहने दिया गया तो, मौजूदा तौर तरीक़ों के चलते हमें महामारी से उबरने में अभी कई साल और लग जाएंगे. ये बात हमें क़तई मंज़ूर नहीं है. लेकिन, स्वास्थ्य से भी आगे, इस महामारी से दुनिया को एक बड़ा आर्थिक सबक़ भी मिला है. आज वैश्विक अर्थव्यवस्था में लोगों का भरोसा बढ़ाने के लिए ज़्यादा भरोसेमंद और लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण बेहद ज़रूरी हो गया है. बल्कि भविष्य में ऐसी महामारियों के ख़तरे से अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए तो ये और भी अहम हो गया है. इस संदर्भ में विकासशील देश ख़ास तौर से कमज़ोर स्थिति में हैं. आज निवेश में विविधता लाने की ज़रूरत है, जिससे परिवारों और समुदायों की रोज़ी-रोटी को कुछ हद तक टिकाऊ और भरोसेमंद बनाया जा सके और प्राकृतिक माहौल में स्थायित्व आ सके

आज वैश्विक अर्थव्यवस्था में लोगों का भरोसा बढ़ाने के लिए ज़्यादा भरोसेमंद और लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण बेहद ज़रूरी हो गया है. 

13. इस वर्ष के दौरान, ब्रिक्स अकादमिक फ़ोरम के इस सफर में विश्वविद्यालयों के विद्वानों और थिंक टैंक ने इन मुद्दों पर परिचर्चाएं की हैं- ख़ास तौर से वैश्विक स्वास्थ्य, कामकाज के भविष्य, जलवायु परिवर्तन, दुनिया की अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने, हरित ऊर्जा, व्यापार और डिजिटल सार्वजनिक भलाई और महिलाओं के नेतृत्व में आर्थिक विकास के मुद्दों पर. ये सम्मेलन एक समृद्ध और व्यापक बौद्धिक अभ्यास का समापन है. मैं ऐसे नीतिगत सुझावों की उम्मीद करता हूं, जो ब्रिक्स को ज़्यादा असरदार और हमारी दुनिया को ज़्यादा सुरक्षित बनाएंगे. ये दोनों ही अपेक्षाएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं. तमाम क्षेत्रों में शांतिपूर्ण और संतुलित विश्व से ब्रिक्स की क्षमता भी बेहतर होगी. और, ब्रिक्स की ये बढ़ी हुई क्षमता निश्चित रूप से दुनिया की भलाई में योगदान देगी.

तो, मैं एक बार फिर से आप सबका शुक्रिया अदा करता हूं, और बाक़ी बचे फ़ोरम के लिए आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं.

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