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देशों के आर-पार ज़बरदस्ती जुर्म कराने की घटनाएं बहुत तेज़ी से बढ़ रही हैं और दक्षिणी पूर्वी एशिया इन आपराधिक गतिविधियों का गढ़ बनकर उभरा है. ज़बरन जुर्म कराने का मतलब इंसानों की धोखाधड़ी या ज़ोर ज़रबदस्ती से तस्करी करके फिर उनका आपराधिक शोषण करना होता है. फिर ऐसे जुर्मों के शिकार लोगों को तस्करों के फ़ायदे के लिए अवैध गतिविधियां करने को मजबूर होना पड़ता है और उनको लगातार धमकियां मिलती रहती हैं. इस साल भारत में जितने साइबर अपराधों की शिकायत दर्ज कराई गई, उनमें से लगभग आधे का केंद्र दक्षिणी पूर्वी एशिया के देश थे. 19वें ईस्ट एशिया शिखर सम्मेलन से पहले भारत ने आसियान की केंद्रीय भूमिका को लेकर तो अपनी प्रतिबद्धता जताई है. लेकिन भारत को चाहिए कि वो इस शिखर सम्मेलन के मौक़े का लाभ उठाए और आसियान (ASEAN) देशों के साथ साझेदारी करके भारतीयों को निशाना बनाने के लिए चलाए जा रहे, तमाम देशों में फैले इन आपराधिक नेटवर्कों के उभार से निपट सके.
इन आपराधिक नेटवर्कों से वित्तीय नुक़सान की भारी आशंका और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरों को देखते हुए इससे निपटने के लिए एक क्षेत्रीय मंच के ज़रिए निर्याणक प्रतिक्रिया देने की ज़रूरत है.
इंडियन क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) की रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिणी पूर्वी एशिया से संचालित किए जा रहे साइबर अपराध के नेटवर्कों की वजह से भारत को इस साल की पहली तिमाही में ही 1776 करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ था. दुबई और बैंकॉक जैसे शहरों में आकर्षक नौकरियों के लुभावने मगर झूठे विज्ञापन, रोज़गार की तलाश रहे युवाओं को आकर्षित करते हैं. मगर, एक बार इनके जाल में फंस जाने के बाद उन्हें दक्षिणी पूर्वी एशिया में आपराधिक गतिविधियां चलाने वाली ज़िंदगी जीने को मजबूर होना पड़ता है. पिछले कुछ समय के दौरान भारत ने इस आपराधिक जंजाल में फंसे कुछ लोगों को बाहर निकाला था. लेकिन, इन आपराधिक नेटवर्कों से वित्तीय नुक़सान की भारी आशंका और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरों को देखते हुए इससे निपटने के लिए एक क्षेत्रीय मंच के ज़रिए निर्याणक प्रतिक्रिया देने की ज़रूरत है. चीन ने मूलभूत ढांचे की परियोजनाओं के साथ साथ जुएबाज़ी और बढ़ते संगठित अपराधों के प्रति कड़ा रुख़ अपनाया है. इसी वजह से अपराध के इन केंद्रों में इज़ाफ़ा हो रहा है. अब घोटालों के इन केंद्रों के ज़रिए जो आपराधिक गतिविधियां चलाई जा रही हैं, उनके ख़तरों को कम करने के निपटने के लिए भारत और चीन आसियान के साथ एक लक्ष्य आधारित रणनीति के ज़रिए आपस में सहयोग कर सकते हैं.
झूठे वादे और फिर जुर्म वाली ज़िंदगी
आसियान का इलाक़ा अब मानव तस्करी के एक नए रैकेट का गढ़ बन गया है. ये आपराधिक नेटवर्क मार्केटिंग, कस्टमर सर्विस, अनुवाद और कंस्ट्रक्शन सेक्टर की नौकरियों के विज्ञापन देते हैं, ताकि कुशल कामगारों को अपने जाल में फंसा सकें. फिर उन्हें साइबर अपराधों के केंद्रों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. ये घोटालेबाज़ मुख्य रूप से तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार के युवा भारतीयों को अपना निशाना बनाते हैं. रोज़गार की तलाश करने वालों को नौकरी के इन अवसरों के नाम पर फंसाकर फिर दूसरे देशों में लोगों के साथ संपर्क जोड़ने और अवैध गतिविधियों में शामिल होने के लिए बाध्य किया जाता है. इंटरपोल ने इस आपराधिक नेटवर्क को ऐसा चलन बताया है, जो क्षेत्रीय आपराधिक नेटवर्क से बढ़ते हुए अब ‘मानव तस्करी के वैश्विक संकट’ में तब्दील हो चुका है. नौकरियों के इस घोटाले का शिकार होने वाले रंगरूट मानव तस्करी के पीड़ित हैं. वो अक्सर शारीरिक शोषण, क़र्ज़ के बंधुआ और ज़बरन मज़दूरी के शिकार बन जाते हैं और उन्हें विदेशी नागरिकों को क्रिप्टोकरेंसी के फ़र्ज़ी लेन-देन का शिकार बनाने जैसे साइबर अपराध करने के लिए मजबूर किया जाता है.
इंटरपोल ने इस आपराधिक नेटवर्क को ऐसा चलन बताया है, जो क्षेत्रीय आपराधिक नेटवर्क से बढ़ते हुए अब ‘मानव तस्करी के वैश्विक संकट’ में तब्दील हो चुका है.
कैसीनो और बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI)
जो हालात, मुख्य रूप से लाओस, कंबोडिया, म्यांमार और फिलीपींस में स्थित घोटाले के इन केंद्रों के संचालन को मुफ़ीद बनाते हैं, उनमें चीन की जुएबाज़ी की सुविधाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी और चीन के नागरिकों द्वारा चलाए जा रहे वसूली के छोटे छोटे गिरोह शामिल हैं. वैसे तो चीन में जुआ खेलना अवैध है. लेकिन, चीनियों की जुआ खेलने की लत असीमित है. नतीजा ये हुआ है कि चीनियों की जुएबाज़ी की मांग उसके दक्षिणी पूर्वी एशियाई पड़ोसी देश पूरी करते हैं. इस क्षेत्र में जो नए नए कैसीनो संचालित किए जा रहे हैं, वो कुछ वैध तो कुछ अवैध की श्रेणी में आते हैं. ये कैसीनो विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) में स्थापित किए जाते हैं. इनको विदेशी चलाते हैं और यहां पर अवैध गतिविधियां भी चलती हैं. लाओस के गोल्डेन ट्राएंगल SEZ में स्थित किंग्स रोमन कैसीनो को चीन के एक उद्यमी ने 75 साल के लिए पट्टे पर लिया है. इस चीनी नागरिक का इंसानों, ड्रग्स और दुर्लभ जानवरों की तस्करी, मनी लॉन्डरिंग और घूसखोरी जैसे संगठित जुर्मों में शामिल होने का लंबा इतिहास रहा है. इन कैसीनो को ‘सुरक्षित ठिकाने’ माना जाता है, क्योंकि ये विशेष आर्थिक क्षेत्रों में स्थित होते हैं, जिनकी न्यायिक शक्तियां अलग होती हैं और जहां पर क़ानून को लागू कराने में आम तौर पर सख़्ती नहीं बरती जाती है. इन्हीं वजहों से इन कैसीनो में घोटाले के केंद्र भी चलाए जा रहे हैं, जो ख़ुद को क्रिप्टोकरेंसी बेचने के कॉल सेंटर के नाम पर संचालित करते हैं.
कंबोडिया में तो घोटालों के इन केंद्रों का संबंध BRI की परियोजनाओं से भी पाया गया है. मूलभूत ढांचों पर आधारित विकास की परियोजनाओं और अपराध के बीच साठ-गांठ कोई नई बात नहीं है. हालांकि, BRI में कनेक्टिविटी और आर्थिक समृद्धि बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं. लेकिन, जब इसकी परियोजनाएं कमज़ोर प्रशासनिक क्षमताओं, सीमित विनियमन व्यवस्थाओं और आम तौर पर असंगठित अर्थव्यवस्था वाले देशों में चलाई जाती हैं, तो आपराधिक गतिविधियों का शिकार होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं. कंबोडिया में सिहानूकविल, बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव की मुख्य परियोजना है. इसके अंतर्गत 2016 से अब तक बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हुए हैं और 100 कैसीनो या तो बना लिए गए हैं, या फिर उन्हें बनाए जाने की योजना है. महामारी के दौरान जब पर्यटन पर बुरा असर पड़ा और कैसीनो के अड्डों को ख़ाली कर दिया गया था, जो जुए के उद्योग और अपराध के बीच संपर्क और बढ़ गया था. क्योंकि इस दौरान संगठित अपराध चलाने वाले गिरोहों ने मूलभूत ढांचे के ठिकानों पर क़ब्ज़ा जमा लिया था. महामारी से पहले कैसीनो निजी तौर पर और ऑनलाइन जुएबाज़ी के ज़रिए ख़ूब फले फूले थे. लेकिन, जब चीन के दबाव में कंबोडिया ने ऑनलाइन गैंबलिंग पर पाबंदी लगाई और 2021 में चीन ने क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगा दिया और लॉकडाउन के दौरान आवाजाही पर रोक लगी हुई थी, तब ख़ाली कैसीनो को घोटालों के केंद्र में तब्दील कर दिया गया. सिहानूकविल का संबंध पहले ही हाथी दांत और पैंगोलिन के कांटों जैसे पर्यावरण के संसाधनों की तस्करी से जोड़ा जाता रहा है और अब ये बड़ी तेज़ी से आपराधिक गतिविधियों के गढ़ में तब्दील होता जा रहा है.
जब चीन के दबाव में कंबोडिया ने ऑनलाइन गैंबलिंग पर पाबंदी लगाई और 2021 में चीन ने क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगा दिया और लॉकडाउन के दौरान आवाजाही पर रोक लगी हुई थी, तब ख़ाली कैसीनो को घोटालों के केंद्र में तब्दील कर दिया गया.
म्यांमार का यताई श्वे कोक्को विशेष आर्थिक क्षेत्र, पहले BRI का हिस्सा था. हालांकि, बाद में करेन सीमा सुरक्षा बल (BGF) री मदद से एक चीनी कारोबारी ने इसे ऑनलाइन जुएबाज़ी का अड्डा बना दिया गया. फरवरी 2021 में म्यांमार में तख़्तापलट के बाद, आपराधिक गिरोहों ने जुएबाज़ी के केंद्रों को घोटालों के अड्डों में तब्दील कर दिया. उसके बाद से चीन ने ख़ुद को इस SEZ से अलग कर लिया है और अधिकारी दावा करते हैं कि अब ये क्षेत्र BRI का हिस्सा नहीं है. हालांकि, चीन की BRI से जुड़ी चुनौतियां इतने पर ही ख़त्म नहीं हो गई हैं. घोटालों के गिरोह चलाने चीन और म्यांमार के बीच आर्थिक गलियारे (CMEC) के मूलभूत ढांचे का दुरुपयोग या तो स्थानीय उच्च वर्ग के साथ मिलकर या फिर चीन की सरकारी कंपनियों को इस झूठे दावे से वरगलाकर कर रहे हैं, उन्हें BRI से मदद मिलती है. इस तरह क़ानून व्यवस्था की एजेंसियां भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखती हैं. इसके अतिरिक्त फिलीपींस, लाओस और कंबोडिया में जुए खिलाने वाले अड्डों के ऊपर कार्रवाई ने भी घोटालों के इन केंद्रों को म्यांमार मे डेरा जमाने के लिए मजबूर किया है, जिससे इस क्षेत्र की समस्याएं और बढ़ गई हैं.
दक्षिणी पूर्वी एशिया की जवाबी कार्रवाई
महामारी के बाद से घोटालों के केंद्रों में ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी ने अधिकारियों के लिए ख़तरे की घंटी बजा दी है. विश्लेषकों का आकलन है कि दक्षिणी पूर्वी एशियाई देश धोखाधड़ी के ज़रिए सालाना 7.5 अरब डॉलर से 12.5 अरब डॉलर की रक़म पैदा करते हैं; प्रति शिकार इसका औसत एक लाख 73 हज़ार डॉलर बैठता है. इनमें से ज़्यादातर नेटवर्क चीन के नागरिकों को अपना शिकार बनाते हैं. लेकिन, महामारी के बाद से ये घोटालेबाज़ अब भारतीय नागरिकों को भी निशाना बना रहे हैं. भारत का विदेश मंत्रालय, कंबोडिया, लाओस और थाईलैंड में इन गिरोहों के जाल में फंसे अपने नागरिकों को निकालने के कई प्रयासों में शामिल रहा है. वहां से बचाए गए लोग बताते हैं कि स्कैम केंद्रों में काम करने के हालात बेहद बुरे हैं और उनके साथ इतनी ज़ोर ज़बरदस्ती होती है, जिसकी वजह से वहां फंसे लोगों के लिए निकलना दुश्वार हो जाता है. बाद में विदेश मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों के लिए एडवाइज़री जारी की थी कि इन नेटवर्कों के शिकार होने वालों को किस तरह ‘शारीरिक और मानसिक टॉर्चर’ झेलना पड़ता है और मंत्रालय ने नागरिकों को नौकरी के संदिग्ध विज्ञापनों के जाल में फंसने से भी आगाह किया था. I4C ने दक्षिणी पूर्वी एशिया से जुड़े इन मसलों को देखने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का भी गठन किया है. इसके अलावा, लाओस और चीन के क़ानूनी अधिकारियों ने भी इन घोटालों को संचालित करने वाले कई लोगों को गिरफ़्तार किया है. वहीं, भारत की नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने भी छापेमारी करके घोटालेबाज़ों को गिरफ़्तार किया है.
और क्या किया जा सकता है?
इन कार्रवाइयों के बावजूद, दूसरे देशों से चलाए जा रहे धोखाधड़ी के इन नेटवर्कों में लोगों का शोषण और मानव तस्करी की जाती है, जो नीति निर्माताओं के लिए कई तरह की चुनौतियां पेश करती हैं. घोटाले के केंद्रों, कैसीनो और BRI की परियोजनाओं के बीच आपसी संबंध भी तस्करी रोकने के उपायों को जटिल बना देते हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पहले कहा था कि BRI की परियोजनाओं को अक्सर ‘संघर्ष, उथल-पुथल, संकट और चुनौतियों’ से जोड़कर देखा जाता है. BRI से जुड़ी विकास संबंधी गतिविधियों की वजह से आपराधिक गिरोहों के लिए भी एक मौक़ा होता है कि वो बुनियादी ढांचों और व्यापारिक मार्गों का दुरुपयोग अपनी ग़लत गतिविधियों के लिए कर सकें. ये चुनौतियां BRI परियोजना का हिस्सा बनने वाले देशों के लिए दुविधाएं खड़ी करता है. इन देशों को आर्थिक और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के लिए BRI की परियोजनाओं की ज़रूरत है. लेकिन, उनके पास इन अवसरों का दुरुपयोग करके आपराधिक गतिविधियां चलाने वालों से निपटने के लिए ठोस संसाधन और ढांचे नहीं होते. इस वजह से ऐसे गिरोहों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयत्न करने की ज़रूरत है. भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने आसियान रीजनल फोरम और बिम्सटेक (BIMSTEC) के विदेश मंत्रियों की बैठक में इस मुद्दे को उठाया था और उन्होंने क्षेत्रीय सुरक्षा की ज़रूरत पर बल दिया था. शंघाई सहयोग संगठन के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक की तैयारी के लिए हाल ही में हुई SCO की विदेश मंत्रियों की बैठक में तीन साझा विषयों- आपसी सम्मान, आपसी संवेदनशीलता और आपसी हित- पर काफ़ी ज़ोर दिया गया था. इस मुद्दे के क्षेत्रीय सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों को देखते हुए अब आसियान के मंच के अंतर्गत संवाद और सहयोग की ज़रूरत है जिसकी अगुवाई और भारत और चीन को करनी चाहिए.
भारत और चीन के लिए ज़रूरी है कि वो अप्रवास के कारणों की पड़ताल करें, और सुरक्षित अप्रवास को बढ़ावा देने वाले नए नए उपायों को विकसित करें. मानव तस्करी की समस्या से निपटने के लिए कुछ दक्षिणी पूर्वी देशों के साथ सरकारों की अगुवाई वाली द्विपक्षीय प्रक्रियाएं और समझौते तो हैं. लेकिन, आसियान की व्यक्तियों की तस्करी से निपटने की संधि, इस इलाक़े में शोषण वाली गतिविधियों की रोकथाम के लिए एक, एकीकृत और ठोस क़ानूनी ढांचा खड़ा करने में काफ़ी काम आ सकती है. ये ज़रूरी भी है. क्योंकि, ख़बरें बताती हैं कि इन आपराधिक गतिविधियों में क़ानून व्यवस्था से जुड़े लोग, और ख़ास तौर से म्यांमार के विशेष आर्थिक क्षेत्र में तैनात सरकारी कर्मचारी भी शामिल हो सकते हैं. क्योंकि, म्यांमार की राजनीतिक स्थिरता एक चिंता का विषय बनी हुई है. इसके अलावा, चूंकि ये अपराध ऑनलाइन ज़्यादा होते हैं. ऐसे में पीड़ितों की मानव तस्करी से पैदा होने वाले मसलों से निपटने के लिए आसियान की इंसानों की तस्करी से निपटने की संधि में तकनीक के दुरुपयोग का बिंदु भी जोड़ा जा सकता है और इस तरह पीड़ितों के क़ानूनी मदद लेने की राह को आसान बनाया जा सकता है. इस इलाक़े के एक और क्षेत्रीय साझीदार ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिणी पूर्वी एशिया में साइबर घोटालों के पांच नेटवर्कों के ख़िलाफ़ सफल अभियान चलाए हैं. जिससे आसियान के लिए ख़ास तौर से गोपनीय सूचनाएं जुटाने और ऑनलाइन धोखाधड़ी से निपटने के लिए साइबर सुरक्षा के उपाय लागू करने के मामले में सहयोग का एक और मौक़ा निकलता है.
इस इलाक़े के एक और क्षेत्रीय साझीदार ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिणी पूर्वी एशिया में साइबर घोटालों के पांच नेटवर्कों के ख़िलाफ़ सफल अभियान चलाए हैं.
घोटालों के ऑपरेशन, संगठित अपराधों के एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का हिस्सा हैं और इनसे निपटने के लिए एक क्षेत्रीय जवाब की ज़रूरत है. भारत, चीन और ऑस्ट्रेलिया के साथ सहयोग करके आसियान इससे निपटने के लिए उपाय लागू करने की पहल कर सकता है. इनमें अप्रवास के सुरक्षित तौर तरीक़ों को बढ़ावा देना, आपराधिक नेटवर्कों के आगे कमज़ोर साबित हो रहे विशेष आर्थिक क्षेत्रों में सख़्ती से क़ानून लागू करना और गोपनीय सूचनाओं के आधार पर अभियान चलाना शामिल है. सब मिलाकर इन क़दमों से शोषण करने वाले इन नेटवर्कों का विस्तार और इंसानों की तस्करी को आसियान के अपने तरीक़े से रोका जा सकेगा.
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