Author : Trisha Ray

Published on Oct 21, 2021 Updated 0 Hours ago

'क्वॉड क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी वर्किंग ग्रुप' के गठन के साथ ही यह साफ हो गया है कि 'क्वॉड की मूल भावना' का विस्तार नये क्षितिजों तक हो रहा है. इसमें बेहद अहम तकनीकों (क्रिटिकल टेक्नोलॉजीज) के लिए ज्यादा सहयोग भी शामिल है.

बेहद अहम व उभरती तकनीकों के लिए क्वॉड 2.0 का एजेंडा

क्वॉड को एक वक़्त अंतरराष्ट्रीय संबंधों की कब्रगाह के ही एक हिस्से की तरह देखा जा रहा था. लेकिन अब यह एक पुनर्जागरण का साक्षी बन रहा है, जिसकी बुनियाद बनी हैं बेहद अहम और उभरती हुईं तकनीकें (क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज). क्वॉड को एक नयी जिंदगी मिलने की बात रेखांकित हुई मार्च 2021 में इसके पहले शिखर सम्मेलन से, जिसमें सदस्य देशों द्वारा क्वॉड क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी वर्किंग ग्रुप का गठन किया गया.[1]

दुर्लभ मृदा तत्वों (रेयर अर्थ्स) से लेकर समुद्र के नीचे केबल डालने तक- तकनीक के विभिन्न दायरों में चीन के दबदबे को बराबरी की टक्कर देना क्वॉड-कथा का एक प्रमुख हिस्सा होता है. लेकिन अब क्वॉड इस सीमित उद्देश्य वाली छवि को छोड़ना चाहेगा, ख़ासकर तब जबकि वह लगातार इस कोशिश में है कि क्षेत्र, विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) में खुद को मौजूदा कामकाजी ढांचों के मुताबिक गढ़ सके. ऐसा करते हुए, क्वॉड को अपने सुरक्षा-उन्मुख कठोर लक्ष्यों और अपनी ज्यादा बड़ी भूमिका के बीच संतुलन हासिल करना ही होगा. ज्यादा बड़ी भूमिका में डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए सक्षम बनाने वाले का, और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में तकनीकी प्रवाहों व व्यवस्थाओं को आकार देनेवाले का रोल अदा करने जैसे काम शामिल हैं. क्वॉड की यह ज्यादा बड़ी भूमिका भारत और क्षेत्र के अन्य देशों के लिए कहीं ज्यादा मायने रखती है. 

खाक़ से उठ खड़ा हुआ नया क्वॉड

क्वॉड 1.0 को जहां हितों में तालमेल न होने, नेतृत्व में बदलावों, और हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर भिन्न नजरियों का ख़मियाज़ा भुगतना पड़ा, [2] वहीं क्वॉड 2.0 उपयुक्त समय और हितों में अभूतपूर्व समानता की उपज है. हितों के इस एकीकरण में चीन की अपनी समुद्री व जमीनी सीमाओं पर तथा उससे परे जाकर, साथ ही साइबर स्पेस में लगातार आक्रामक कार्रवाइयों की बड़ी भूमिका थी. अंतत:, चीन के साथ आर्थिक रिश्तों के फ़ायदे भी सुरक्षा संबंधों को बिगड़ने से नहीं रोक सके. 2018-19 तक, चारों क्वॉड देशों की राजधानियों में जो विमर्श आकार ले रहा था वह तकनीकी श्रेष्ठता और आत्मनिर्भरता के साथ-साथ, लगातार दुश्मनी पर उतारू बीजिंग से नियंत्रित टेक्नोलॉजी वेंडरों पर अतिनिर्भरता से उपजे संभावित खतरों पर केंद्रित है.[3]

ऑस्ट्रेलिया जब अगस्त 2018 में अपने यहां 5जी लेकर आया, तो उसने ‘उच्च जोखिम वाले वेंडरों’, परोक्ष रूप से हुवेई और ज़ीटीई पर रोक लगा दी. इसके बाद, उसी साल दिसंबर में यही काम जापान ने किया. 2019 में व्हाइट हाउस ने इस संबंध में कई कार्यकारी आदेश जारी किये. और आखिर में भारत ने 2020 में एक नरम किस्म की पाबंदी लगा दी

क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक के मुद्दों पर क्वॉड की गोलबंदी को सबसे अच्छे ढंग से 5जी के मामले में देखा जा सकता है. ऑस्ट्रेलिया जब अगस्त 2018 में अपने यहां 5जी लेकर आया, तो उसने उच्च जोखिम वाले वेंडरों‘, परोक्ष रूप से हुवेई और ज़ीटीई पर रोक लगा दी. इसके बाद, उसी साल दिसंबर में यही काम जापान ने किया. 2019 में व्हाइट हाउस ने इस संबंध में कई कार्यकारी आदेश जारी किये. और आखिर में भारत ने 2020 में एक नरम किस्म की पाबंदी लगा दी.[4] भले ही क्वॉड के हरेक देश ने चीनी वेंडरों पर फैसला अपने-अपने ढंग से लिया और उसकी अपनी-अपनी वजहें थीं- चाहे वह सीमा पर टकराव हो या फिर घरेलू राजनीति में विदेशी दख़लअंदाज़ी, पर इतना तो तय है कि क्वॉड अब भरोसेमंद वेंडरों की ज़रूरत को लेकर एक व्यापक सहमति पर पहुंच गया है. उसे ऐसे वेंडर चाहिए, जो वैश्विक मानदंडों के मुताबिक हों और लोकतांत्रिक मूल्यों से समर्थित हों. हालांकि, क्वॉड के सामने अगली चुनौती चीन को निशाना बनाकर उठाये गये कदमों से परे जाकर यह परिभाषित करने की होगी कि इस संदर्भ में उसके लिए भरोसेमंद के क्या मायने हैं.

अगले शिखर सम्मेलन के लिए आगे की राह

फिलहाल, क्वॉड के भीतर तकनीकी सहयोग का मुख्य जरिया मार्च 2021 में गठित क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी वर्किंग ग्रुप (या क्वॉड वर्किंग ग्रुप) है. वर्किंग ग्रुप की घोषणा में सहयोग के लिए तीन बड़े क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है : 1. दूरसंचार; 2. तकनीकी विकास, डिजाइन, और उनके उपयोग के सिद्धांत; 3. राष्ट्रीय मानकीकरण संस्थानों के बीच तालमेल. इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया के विदेश मामलों और वाणिज्य विभाग द्वारा समर्थित एक ट्रैक 2 पहलकदमी भी है, जिसे क्वॉड टेक नेटवर्क कहा जाता है. यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र को केंद्र करके तकनीकी मुद्दों पर शोध और जन-संवाद को बढ़ावा देता है.[5] 

ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिनमें समूह के भीतर आपसी सहयोग के लिए स्थितियां परिपक्व हो चुकी हैं. इनमें शामिल हैं : 1. बेहद अहम खनिजों, सेमीकंडक्टरों, दूरसंचार उपकरणों और समुद्र के नीचे बिछाये जानेवाले केबलों की भरोसेमंद और लचीली सप्लाई चेन्स; 2. फ्यूचर स्किल्स, साइबर सुरक्षा क्षमता और एपीआई को शामिल करते हुए समावेशी डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन; और 3. डेटा गवर्नेंस, साइबर नॉर्म्स और 5जी मानकों समेत तकनीकों का ग्लोबल गवर्नेंस.[6] इन सभी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा सक्रियता सुरक्षित 5जी तकनीकों को लेकर आपसी सहयोग में दिखती है. इसका सबूत है वर्किंग ग्रुप के तहत एक 5जी सबग्रुप का बनाया जाना, साथ ही जुलाई 2021 में क्वॉड ओपन रैन फोरम का आयोजन.[7] यह भी चर्चा है कि क्वॉड सेमीकंडक्टर्स की सप्लाई चेन्स पर आपसी सहयोग की ओर क़दम बढ़ाने का एलान करेगा. [8]

ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिनमें समूह के भीतर आपसी सहयोग के लिए स्थितियां परिपक्व हो चुकी हैं. इनमें शामिल हैं : 1. बेहद अहम खनिजों, सेमीकंडक्टरों, दूरसंचार उपकरणों और समुद्र के नीचे बिछाये जानेवाले केबलों की भरोसेमंद और लचीली सप्लाई चेन्स; 2. फ्यूचर स्किल्स, साइबर सुरक्षा क्षमता और एपीआई को शामिल करते हुए समावेशी डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन; और 3. डेटा गवर्नेंस, साइबर नॉर्म्स और 5जी मानकों समेत तकनीकों का ग्लोबल गवर्नेंस

अलबत्ता, कुछ मुद्दे हैं जो सितंबर 2021 के शिखर सम्मेलन को लेकर भारत की सक्रियता पर मंडराते रह सकते हैं. पहला है ऑकस (AUKUS) – तकनीक और सुरक्षा पर ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन (यूके) और अमेरिका (यूएस) की साझेदारी- जिसका एलान शिखर सम्मेलन से महज हफ्ते भर पहले किया गया.[9] यह नयी व्यवस्था इसलिए अहम नहीं है कि एक मुख्य सहयोगी यानी फ्रांस के साथ कूटनीतिक रिश्ते बिगड़ गये हैं, बल्कि इसलिए अहम है कि यह भारत को अमेरिका और उसके संधि भागीदारों (ट्रीटी पार्टनर्स) के चारों और मौजूद एक अदृश्य बाड़ की याद फिर से दिलाता है. शीत युद्ध के दौर में भारत-अमेरिका संबंध सबसे निचले स्तर पर थे. उस वक्त के मुकाबले ये संबंध बहुत आगे बढ़ चुके हैं, और भारत की अब अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया के साथ रणनीतिक साझेदारी भी है. इसके बावजूद, संधि के स्तर की व्यवस्था न होने और रूस के साथ भारत के करीबी रिश्ते को लेकर मनमुटाव के चलते भारत और अमेरिका के बीच और गहरा सुरक्षा सहयोग सीमित ही रहेगा.[10]

दबाव का दूसरा बिंदु भारत के 5जीआइ (भारत में विकसित 5जी तकनीक) मानक हैं. 5जीआइ सभी के लिए कनेक्टिविटी के भारत के नजरिये का ही एक हिस्सा है, लेकिन यह भारत के 5जी इकोसिस्टम को दूसरी जगहों के 5जी बाजारों को नियंत्रित करने वाले मानकों से अलग कर देगा.[11] नतीजतन, यह ताजा घटनाक्रम घरेलू स्तर पर विकसित किसी भारतीय 5जी वेंडर या सेवा प्रदाता की बिग फाइव का वैश्विक-प्रतिस्पर्धी विकल्प बनने की उसकी किसी भी महत्वाकांक्षा को फीका कर देगा.[a] 5जीआइ नयी दिल्ली के भीतर चल रही उस बड़ी जद्दोजहद को दिखाता है, जिसे आत्मनिर्भरता और वैश्विक तकनीकी मानदंडों व व्यवस्थाओं को आकार देने में अहम भूमिका अदा करने की भारत की महत्वाकांक्षा के बीच संतुलन की तलाश है.  

अंत में, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लगातार बदलते स्वरूप के साथ क्वॉड को अपनी गति बनाये रखनी होगी. हिंद-प्रशांत समुद्री सुरक्षा के मूल से परे जाकर परिपक्व हो चुका है: यह अपने भौगोलिक दायरे के भीतर और बाहर के देशों की भिन्न-भिन्न व्याख्याओं को ग्रहण करता है और अब चिरस्थायी विकास, व्यापार, बुनियादी ढांचे और समावेशी डिजिटल रूपांतरण जैसे मुद्दों को समाहित करता है. इस बदलाव की चाबी है, ‘हिंद प्रशांत का क्वॉड का पर्याय बन जाने से लेकर एक बड़े इकोसिस्टम में रूपांतरण जिसका क्वॉड एक हिस्सा भर है। मार्च 2021 में क्वॉड की मूलभावना पर क्वॉड नेताओं के साझा बयान में इस जज्बे का साफ तौर पर इजहार किया गया था.[12]

क्वॉड को टकरावों के बीच अपनी जड़ें फैलाने के लिए, उभरती तकनीक के एजेंडे को आगे बढ़ने की जरूरत होगी.

साथ ही यह भी कहा गया : हम हिंद-प्रशांत क्षेत्र में और उससे परे भी मंडरा रहे खतरों का मुकाबला करने के लिए और सुरक्षा एवं समृद्धि को आगे बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों पर आधारित एक मुक्त, खुली नियम-आधारित व्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं… हम आसियान की एकता व केंद्रीयता के साथ ही हिंद-प्रशांत पर आसियान के नजरिये को अपना मजबूत समर्थन दोहराते हैं. संभावनाओं से भरा हुआ क्वॉड भविष्य की ओर देख रहा है; यह शांति और समृद्धि को बनाये रखने और सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित लोकतांत्रिक लचीलेपन को मजबूत करने के लिए प्रयासरत है.

अंतत: क्वॉड को टकरावों के बीच अपनी जड़ें फैलाने के लिए, उभरती तकनीक के एजेंडे को आगे बढ़ने की जरूरत होगी. यह किसी भी निर्वाचित सरकार और अल्पकालिक रुझानों से कहीं ज्यादा टिकाऊ होगा. यह एजेंडा केवल किसी देश को अलग-थलग रखने पर नहीं, बल्कि एक समग्र सुरक्षा ढांचा, टेक्नोलॉजी सप्लाई चेन्स में लचीलेपन व जीवंतता और इकोसिस्टम खड़े करने पर केंद्रित होना चाहिए.

(यह लेख ओआरएफ की विशेष रिपोर्ट संख्या 161, The Rise and Rise of the ‘Quad’: Setting an Agenda for India | ORF (orfonline.org) का हिस्सा है.


Endnotes

[a] The term refers to the major 5G vendors: Ericsson, Nokia, Huawei, Samsung and NEC.

[1] “Fact Sheet: Quad Summit”, White House, March 12, 2021.

[2] Girish Luthra, “The Indo-Pacific Quest for the Quad’s Spirit,” ORF Issue Brief No. 473, July 2021, Observer Research Foundation. Jeff Smith, “The Quad 2.0: A Foundation for a Free and Open Indo–Pacific”, Heritage Foundation, July 6, 2020,

[3] “An India Economic Strategy to 2035”, Department of Foreign Affairs and Trade (2018), “India’s Trillion Dollar Digital Opportunity”, Ministry of Electronics and Information Technology, December 15, 2018, “第5世代移動通信システム(5G)の導入のための 特定基地局の開設計画の認定(概要)”, April 31, 2019. pp. 15, “Securing the Information and Communications Technology and Services Supply Chain”, E.O. 13873, Federal Register, May 15, 2019,

[4] “Telecommunications and Other Legislation Amendment (Assistance and Access) Bill 2018”, Yoshiyasu Shida and Yoshifumi Takemoto, “Japan government to halt buying Huawei, ZTE equipment: sources”, Reuters, December 7, 2018, Executive Order on Securing the Information and Communications Technology and Services Supply Chain (Executive Order 13873), “Bid to keep Huawei out of 5G trials”, Telegraph, June 6, 2020.

[5] “Quad Tech Network”, National Security College, Crawford School of Public Policy, ANU College of Asia & the Pacific.

[6] Trisha Ray, Sangeet Jain, Arjun Jayakumar and Anurag Reddy, “The Digital Indo-Pacific: Regional Connectivity and Resilience”, Observer Research Foundation (February 2021) Lisa Curtis and Martijn Rasser, “A Techno-Diplomacy Strategy for Telecommunications in the Indo-Pacific”, Center for New American Security (September 2021) Note: Both papers were published as part of the Quad Tech Network.

[7] “The Quad Open RAN Forum”, Open RAN Policy Coalition.

[8] “Quad tightens rare-earth cooperation to counter China”, Nikkei Asia, March 11, 2021. “Quad leaders to call for securing chip supply chain”, Nikkei Asia, September 18, 2021.

[9] “Remarks by President Biden, Prime Minister Morrison of Australia, and Prime Minister Johnson of the United Kingdom Announcing the Creation of AUKUS”, White House, September 15, 2021.

[10] Trisha Ray, “Beyond an India-EU-U.S. Shared Vision on Emerging Technologies”, ORF America, February 19, 2021.

[11] “TSDSI’s 5G Radio Interface Technology “5Gi” approved by SG5 of ITU-R as part of upcoming ITU-R Recommendation M. [IMT-2020.SPECS]”, Telecommunications Standards Development Society, India, December 2, 2020.

[12] Quad Leaders’ Joint Statement: “The Spirit of the Quad”, Ministry of External Affairs, March 12, 2021.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.