Published on Feb 06, 2021 Updated 0 Hours ago

वैश्वीकरण के उभरते रुझान पर कब्ज़े और राज्यों की निर्यात संभावना को समझने के लिए भारत के पास अनूठा अवसर है.

भारत में निर्यात आधारित विकास के लिए राज्य स्तर पर नीतियों में बदलाव ज़रूरी

कोविड-19 महामारी के बीच में, 2020 की पहली छमाही में विश्व व्यापार ने तेज गिरावट देखी क्योंकि दुनिया भर की अर्थव्यवस्था लॉकडाउन के दौर से गुज़र रही थी और उपभोक्ताओं की मांग में ऐतिहासिक कमी आ गई. अपनी-अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को बचाने और महत्वपूर्ण और ज़रूरी सप्लाई को बनाए रखने के लिए दुनिया भर के देशों ने अपने उद्योगों में तेज़ी लाने की कवायद शुरू कर दी है. वैश्विक सप्लाई चेन में महामारी की बाधा से भी पहले एकतरफ़ा और मनमाने कार्रवाई की वजह से वैश्विक व्यापार नीति के माहौल में दिक़्क़तें आ रही थीं. इन कार्रवाइयों में दुनिया भर में जेनरलाइज़्ड सिस्टम ऑफ प्रीफरेंस (जीएसपी) को वापस लेना और मुक्त व्यापार समझौते पर फिर से सौदेबाज़ी शामिल हैं.

हालांकि भारत ने ख़ुद को निर्यात और आयात आधारित संतुलित अर्थव्यवस्था के तौर पर पेश किया है लेकिन क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते में शामिल होने में झिझक राष्ट्रीय व्यापार नीति में रुढ़िवादी दृष्टिकोण को ज़ाहिर करता है. इससे भी बढ़कर, भारत में इस समय सबसे ज़्यादा टैरिफ लगाए जाते हैं और दुनिया में सबसे ज़्यादा पाबंदी वाली व्यापार कार्यप्रणाली यहीं पर है. वैसे तो भारत निर्यात आधारित विकास की इच्छा रखता है लेकिन इसके बावजूद 1991 का आर्थिक सुधार इसे निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था में बदल नहीं पाया. 2024 तक भारत के 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को अर्थशास्त्री असंभव बता रहे थे क्योंकि वित्त वर्ष 2020 में जीडीपी गिरकर 4.2% पर पहुंच गई. उसके बाद महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए हालात और मुश्किल कर दिए. अब 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए विकास दर दोहरे अंक में होना चाहिए.

वैसे तो भारत निर्यात आधारित विकास की इच्छा रखता है लेकिन इसके बावजूद 1991 का आर्थिक सुधार इसे निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था में बदल नहीं पाया. 2024 तक भारत के 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को अर्थशास्त्री असंभव बता रहे थे क्योंकि वित्त वर्ष 2020 में जीडीपी गिरकर 4.2% पर पहुंच गई. उसके बाद महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए हालात और मुश्किल कर दिए. 

कोविड-19 महामारी की वजह से कारोबारी गतिविधियों में आई रुकावट के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान की परिकल्पना की. घरेलू उत्पादकों और छोटे कारोबार को बढ़ावा देने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक और विस्तृत पैकेज का एलान किया गया जिसकी सख़्त ज़रूरत थी. इस योजना का लक्ष्य मेक इन इंडिया उत्पादन को बढ़ावा देना भी है जिसके तहत चीन जैसे देशों से निम्न तकनीक वाले सामान के आयात को बदलना है और कम क़ीमत वाले स्थानीय उत्पाद को प्रोत्साहन देना है. जहां दूसरे देश भीतर की तरफ़ देख रहे हैं, वहीं भारत के लिए ज़रूरी है कि वो दुनिया के बड़े सप्लाई चेन के साथ ख़ुद को जोड़ने के लिए नीतियों में बदलाव करे और निर्यात में बढ़ोतरी करे. ये क़दम भविष्य में वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए भारत की उत्पादन क्षमता बनाने में प्रमुख रणनीति है. इसलिए मौजूदा माहौल भारत के लिए मुसीबत में वरदान की तरह है जिससे कि वो निर्यात आधारित विकास पर ध्यान केंद्रित करके अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अपने निर्यात को और प्रतिस्पर्धी बना सके और 2024 तक सिर्फ़ अमेरिका और चीन से पीछे दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बन सके.

इस विकास को हासिल करने के लिए भारत की महत्वाकांक्षा के साथ खड़े होते हुए नीति आयोग ने हाल में एक रिपोर्ट जारी की. एक्सपोर्ट प्रीपेयर्डनेस इंडेक्स (ईपीआई) नाम की इस रिपोर्ट में हर राज्य की निर्यात संभावना और वैश्विक व्यापार में भारत का हिस्सा बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय स्तर की अर्थव्यवस्था की भूमिका की चर्चा की गई है. ये रिपोर्ट कई तरह के फैक्टर जैसे कारोबारी इकोसिस्टम, मौजूदा नीतिगत उपायों और निर्यात प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है जिससे कि हर राज्य की मज़बूती और कमज़ोरी के बारे में सलाह दी जा सके. ईपीआई 2020 में अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और भारत में उत्पादन का स्तर बढ़ाने में निर्यात के महत्व को दिखाया गया है. इस इंडेक्स में गुजरात को पहले पायदान पर रखा गया है क्योंकि उसने कई मामलों जैसे निर्यात प्रोत्साहन नीति, कारोबारी माहौल और बुनियादी ढांचे में मज़बूती दिखाई है. गुजरात के बाद महाराष्ट्र दूसरे और तमिलनाडु तीसरे पायदान पर है


मौजूदा माहौल भारत के लिए मुसीबत में वरदान की तरह है जिससे कि वो निर्यात आधारित विकास पर ध्यान केंद्रित करके अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अपने निर्यात को और प्रतिस्पर्धी बना सके और 2024 तक सिर्फ़ अमेरिका और चीन से पीछे दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बन सके.

इसी के साथ, निर्यात आधारित विकास को हासिल करने के लिए ईपीआई 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ रुकावटों का भी ज़िक्र किया गया है जिन पर राज्य स्तर पर नीति निर्माताओं को ध्यान देने की ज़रूरत है. इनमें निर्यात के बुनियादी ढांचे में क्षेत्रीय स्तर पर असमानता शामिल हैं क्योंकि तटीय राज्यों ने निर्यात प्रोत्साहन पार्क और केंद्र विकसित करने में बिना समुद्र वाले राज्यों के मुक़ाबले काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया है. दूसरी रुकावट राज्यों के बीच ख़राब व्यापार समर्थन और विकास नीति है. उत्तराखंड और तटीय राज्यों को छोड़कर बाक़ी राज्यों में गुणवत्ता और मात्रा बेहतर करने में राज्य सरकारों की तरफ़ से निर्यातकों को मज़बूत समर्थन नहीं है. आख़िर रुकावट है जटिल और अनूठे निर्यात को बढ़ावा देने के लिए ख़राब रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर. ज़्यादा रिसर्च संस्थान या एनएबीएल मान्यता प्राप्त संस्थानों वाले राज्यों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य सामानों के उत्पादन में बेहतरीन प्रदर्शन किया है और उन्होंने अपने निर्यात की गुणवत्ता बढ़ाई है. दूसरी तरफ़, हिमालय की मौजूदगी वाले राज्यों ने इस मामले में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है क्योंकि वहां रिसर्च और गुणवत्ता की परख करने वाले संस्थानों की कमी है. इस तरह रिसर्च संस्थानों की संख्या में कमी और राज्यों के स्तर पर बड़ी असमानता ने राज्य स्तर पर इनोवेटिव रुझान को रोका है.

भारत जैसे विशाल और भौगोलिक रूप से विविधतापूर्ण देश के लिए ये बेहद ज़रूरी है कि इस तरह की रुकावटों का समाधान केंद्र सरकार के समर्थन और देखरेख में क्षेत्रीय स्तर पर किया जाए. हर राज्य के लिए ज़रूरी है कि वो अपने निर्यात के मौक़ों को समझे और सही इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करे ताकि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को दोहरे अंक का विकास हासिल करने में मदद हो जिससे देश को आगे ले जाया जा सके.

भारत जैसे विशाल और भौगोलिक रूप से विविधतापूर्ण देश के लिए ये बेहद ज़रूरी है कि इस तरह की रुकावटों का समाधान केंद्र सरकार के समर्थन और देखरेख में क्षेत्रीय स्तर पर किया जाए. हर राज्य के लिए ज़रूरी है कि वो अपने निर्यात के मौक़ों को समझे और सही इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करे ताकि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को दोहरे अंक का विकास हासिल करने में मदद हो जिससे देश को आगे ले जाया जा सके.

क्रम संख्या राज्य कुल निर्यात का हिस्सा (प्रतिशत में)
1. महाराष्ट्र 22.99
2. गुजरात 22.02
3. तमिलनाडु 9.81
4. कर्नाटक 5.95
5. उत्तर प्रदेश 4.55
6. हरियाणा 4.37
7. आंध्र प्रदेश 4.29
8. पश्चिम बंगाल 3.02
9. दिल्ली 2.87
10. केरल 2.41

Source: Directorate General of Commercial Intelligence and Statistics (2017-18)

निर्यात इंफ्रास्ट्रक्चर में क्षेत्रीय असमानता

वाणिज्य मंत्रालय की एक बड़ी पहल निर्यात योजना के लिए व्यापार इंफ्रास्ट्रक्चर (टीआईईएस) को 2017 में शुरू किया गया था ताकि सभी राज्यों में मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी का समाधान किया जा सके. इस पहल का मक़सद केंद्र के फंड को राज्यों की तरफ़ भेजना था ताकि निर्यात के लिए मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर बन सके और निर्यात की कड़ी की स्थापना हो सके. अभी तक सिर्फ़ नौ राज्यों ने टीआईईएस के तहत परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है. निर्यात में प्रतिस्पर्धा नज़दीकी तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी हुई है क्योंकि विकसित देश आसानी से उत्पादन करते हैं और तैयार सामान को ज़्यादा कार्यकुशलता के साथ भेजते हैं. इसका नतीजा कम लागत के रूप में सामने आता है. केंद्र शासित प्रदेशों और हिमालय की मौजूदगी वाले राज्यों में निर्यात के मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने के लिए वहां की सरकारों के केंद्रित रूप से ध्यान देने की ज़रूरत है. ये राज्य महाराष्ट्र को अपना आदर्श बना सकते हैं जिसने निर्यात प्रोत्साहन केंद्रों के विकास को बढ़ावा देने में काफ़ी अच्छा काम किया है और अब देश में सबसे ज़्यादा निर्यात प्रोत्साहन ज़ोन होने का गौरव इस हासिल है. व्यापक दृष्टिकोण से देखें तो राज्य सरकारों के फ़ैसला लेने में विकेंद्रीकरण की ज़रूरत है ताकि इंफ्रास्ट्रक्चर में ज़्यादा निवेश हो सके. राष्ट्रीय विकास योजना के साथ क्षेत्रीय स्तर पर निर्यात इंफ्रास्ट्रक्चर का साझा विकास और निर्यात प्रोत्साहन में महत्वपूर्ण क़दम उठाने के लिए राज्यों को पुरस्कार से दूसरे राज्यों को भी उसी तरह के क़दम उठाने की प्रेरणा मिलेगी.

राज्यों के बीच ख़राब व्यापार समर्थन और विकास नीति

व्यापार को मज़बूत समर्थन निर्यातकों को उनकी क्षमता बढ़ाकर रास्ता दिखाता है और कुल निर्यात को बढ़ाता है. भारत में ज़्यादातर राज्यों में निर्यातकों के लिए व्यापार के सही मार्गदर्शन में कमी है. इसकी वजह से सूचनाओं की कमी है जिसके कारण निर्यातक वैश्विक बाज़ार के बड़े हिस्से तक पहुंचने में नाकाम रहते हैं. इसके लिए राज्यों में रणनीतिक नीतिगत दखल की ज़रूरत है जो निर्यातकों को अपना उत्पाद दिखाने और वैश्विक बाज़ार में नये साझेदारों के साथ बातचीत का मंच मुहैया करा सकता है. व्यापार मेलों को आयोजित करने और निर्यातकों की क्षमता को बढ़ाने के लिए ट्रेनिंग वर्कशॉप आयोजित करने में उत्तराखंड और ओडिशा सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से हैं. इसके उलट केंद्र शासित प्रदेश निर्यातकों को पर्याप्त मदद मुहैया काने में नाकाम रहे हैं. इसकी वजह से निर्यात इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने के लिए सीमित वित्तीय सहायता मिली. हालांकि ज़्यादातर राज्यों को इस मामले में अपनी रूपरेखा बेहतर करने की ज़रूरत है. निर्यातकों को राज्य निर्यात परिषद का हिस्सा बनने और उन्हें सक्रिय सदस्य की भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करके ऐसा किया जा सकता है. चूंकि ज़्यादातर उत्पादकों के पास अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में जटिल निर्यात सौदा करने के लिए ज़रूरी हुनर की कमी है, ऐसे में राज्य सरकारों को विदेशी व्यापार और प्रबंधन संस्थानों के साथ साझेदारी में ज़्यादा क्षमता निर्माण की वर्कशॉप आयोजित करने की ज़रूरत है ताकि निर्यातकों को संभावित निर्यात बाज़ार के मौक़ों का फ़ायदा उठाने में मदद मिल सके.

ईपीआई 2020 इस बात को ख़ास तौर पर बताता है कि रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में क्षेत्रीय असमानता काफ़ी ज़्यादा है और ये सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है जिसका समाधान करना है. ये बेहतरी की काफ़ी गुंजाइश भी छोड़ता है.

अनूठे और जटिल निर्यात को बढ़ावा देने के लिए ख़राब रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर     

रिसर्च एंड डेवलपमेंट में प्रत्यक्ष रणनीतिक निवेश से उत्पादन इनोवेशन में मदद मिलती है जो बदले में एक निर्यातक के अनूठा और जटिल निर्यात करने की क्षमता बढ़ाता है. इससे कुल निर्यात बढ़ोतरी में योगदान मिलता है. निष्कर्ष ये है कि ईपीआई के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों ने इंडिया इनोवेशन इंडेक्स में भी अच्छा स्कोर दर्ज किया है. ईपीआई 2020 इस बात को ख़ास तौर पर बताता है कि रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में क्षेत्रीय असमानता काफ़ी ज़्यादा है और ये सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है जिसका समाधान करना है. ये बेहतरी की काफ़ी गुंजाइश भी छोड़ता है. लागत के मामले में बेहतर स्थिति भारत के लिए अब पर्याप्त नहीं है जिससे कि वो ख़ुद को वैश्विक बाज़ार में स्थापित कर सके. इसकी वजह एशिया की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं का उभार है जैसे वियतनाम और बांग्लादेश. नतीजतन, रिसर्च एंड डेवलपमेंट में थोड़ा सा भी सुधार करने से उत्पादकों को फ़ायदा मिलेगा. उनका उच्च गुणवत्ता वाला उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारत के निर्यात को ज़्यादा प्रतिस्पर्धी बना सकता है. गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु इनोवेशन के रूझान को बढ़ाने में बाक़ी देश के लिए मिसाल बन सकते हैं. इन राज्यों ने औद्योगिक क्लस्टर की स्थापना की है ताकि उत्पादक प्रतिस्पर्धा बरकरार रख सकें. साथ ही कुल निर्यात के आंकड़े को बढ़ाने में इनोवेटिव रुझान को बढ़ा सकें.

केंद्र शासित प्रदेशों और हिमालय की मौजूदगी वाले राज्यों में निर्यात के मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने के लिए वहां की सरकारों के केंद्रित रूप से ध्यान देने की ज़रूरत है. 

अंत में, अभूतपूर्व कोविड-19 महामारी के द्वारा लाई गई अनगिनत विपत्ति के सामने भारत के पास एक अनूठा अवसर है जिसके ज़रिए वो वैश्वीकरण के उभरते रुझान पर कब्ज़ा कर सकता है और राज्यों की निर्यात क्षमता को समझ सकता है.

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