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सहयोग बनाने के कुछ वर्षों बाद CEE देशों में असंतोष बढ़ता जा रहा है क्योंकि जिस आर्थिक नतीजे की इच्छा थी उसमें देरी हो रही है
चीन तथा मध्य और पूर्वी यूरोप (CEE) के देशों के बीच नौवां शिखर सम्मेलन 2020 की पहली छमाही में बीजिंग में होना प्रस्तावित था लेकिन कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए इसे अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया गया. इस साल के 17+1 सहयोग शिखर सम्मेलन के मेजबान देश के तौर पर चीन को उम्मीद है कि वो इस इलाक़े के देशों के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने और संबंधों को नया आकार देने में कामयाब होगा. लेकिन CEE देश दिनों-दिन चीन के साथ आर्थिक हिस्सेदारी के नतीजे से असंतुष्ट दिख रहे हैं और 17+1 पहल को लेकर उन्हें कई आशंकाएं भी हैं. अमेरिका-चीन तकनीकी प्रतिस्पर्धा को देखते हुए सहयोग को लेकर फिर से विचार ज़रूरी है.
2012 में इस पहल की शुरुआत के साथ CEE देशों को लगा कि चीन के साथ सहयोग करने से यूरोप के संतुलित विकास में मदद मिलेगी. चीन ने वादा किया कि निवेश, व्यापार सहयोग और बुनियादी ढांचे के विकास से क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के विकास को नई रफ़्तार मिलेगी. लेकिन सहयोग बनाने के कुछ वर्षों बाद CEE देशों में असंतोष बढ़ता जा रहा है क्योंकि जिस आर्थिक नतीजे की इच्छा थी उसमें देरी हो रही है. चीन के कई निवेश और परियोजनाएं अभी भी चर्चा के स्तर पर हैं, उनमें देरी हो चुकी है या वो रद्द हो चुकी हैं. इसकी वजह से 17+1 पहल के भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. CEE देशों में क्षेत्र के विकास को लेकर चीन की भूमिका के बारे में आशंका बढ़ती जा रही है. महामारी की वजह से ये मनमुटाव और बढ़ रहा है.
17+1 पहल चीन की अगुवाई वाला एक समूह है जिसकी स्थापना 2012 में बुडापेस्ट में हुई थी और इसका मक़सद चीन और CEE के सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना था.
17+1 पहल चीन की अगुवाई वाला एक समूह है जिसकी स्थापना 2012 में बुडापेस्ट में हुई थी और इसका मक़सद चीन और CEE के सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना था. CEE क्षेत्र के विकास के लिए निवेश और व्यापार का इस्तेमाल होना था. इस व्यवस्था के तहत सदस्य देशों में बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं जैसे पुल, मोटरवे, रेलवे लाइन और बंदरगाहों के आधुनिकीकरण पर ध्यान देना था. इस पहल में EU के 12 सदस्य देश और पांच बाल्कन देश शामिल हैं- अल्बानिया, बोस्निया और हर्ज़ेगोविना, बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, एस्टोनिया, ग्रीस, हंगरी, लात्विया, लिथुआनिया, मैसिडोनिया, मोंटेनीग्रो, पोलैंड, रोमानिया, सर्बिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया. इस मंच को मुख्य रूप से चीन की प्रमुख परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के विस्तार के तौर पर देखा जा रहा है.
17+1 पहल को लेकर चीन की सोच रही है कि वो इसके ज़रिए यूरोप के उन देशों के साथ अपने संबंध बेहतर करेगा जो पश्चिमी यूरोप के देशों के मुक़ाबले कम विकसित हैं. चीन CEE क्षेत्र में परस्पर जुड़े रिश्तों की व्यवस्था करने के लिए उत्सुक था. चीन ने 2012 में ही मध्य और पूर्वी यूरोप में निवेश के लिए 10 अरब डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट का एलान किया. चीन और CEE देशों के बीच व्यापारिक संबंध साधारण बने रहे जिसकी वजह से ही स्थापना के समय से ही दोनों पक्षों के बीच व्यापार घाटा बढ़ता रहा.
शुरुआत में चीन की तरफ़ से CEE देशों में निवेश के जो वादे किए गए वो उम्मीद दिलाने वाले थे लेकिन वक़्त बीतने के साथ जो एलान चीन ने किए थे उनमें काफ़ी कमी देखी गई. पूर्वी यूरोप के देशों जैसे ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, चेक गणराज्य, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया और स्लोवाकिया में चीन ने कुल निवेश का सिर्फ़ 2% हिस्सा लगाया जबकि निवेश का बड़ा हिस्सा पश्चिमी यूरोप के देशों में गया.
वास्तव में 17+1 पहल के तहत अलग-अलग शिखर सम्मेलनों में कई परियोजनाओं का प्रस्ताव रखा गया था लेकिन अभी तक उनमें से सिर्फ़ कुछ परियोजनाएं पूरी हुई हैं. CEE देशों में चीन के साथ भविष्य की साझेदारी को लेकर निराशा का भाव है. उदाहरण के लिए, चीन के साथ रोमानिया की सक्रिय हिस्सेदारी की वजह से 17+1 पहल के तहत कई निवेश के प्रस्तावों का वादा किया गया लेकिन उनमें से किसी को अभी तक पूरा नहीं किया गया है. तीन बड़ी परियोजनाओं पर 2013 में दस्तख़त किए गए- सर्नावोडा परमाणु पावर प्लांट, रोविनारी में पावर प्लांट और और तर्निता-लापुसतेस्ती जल बिजली परियोजना. सर्नावोडा परमाणु पावर प्लांट पर 8 अरब यूरो की लागत का अनुमान लगाया गया लेकिन क़रीब छह साल की बातचीत के बाद भी सिर्फ़ एक ज्वाइंट वेंचर पर आख़िरी सहमति बन पाई और ये परियोजना अपने प्रस्तावित समय से काफ़ी पीछे भी चल रही है. मई 2020 में रोमानिया की सरकार ने सरकारी कंपनी से कहा कि वो चीन के साथ बातचीत ख़त्म कर नये साझेदार की तलाश करे. चीन के 1 अरब डॉलर के निवेश के साथ रोविनारी थर्मल पावर प्लांट परियोजना अब तक ख़त्म नहीं हो पाई है. तर्निता-लापुसतेस्ती जल बिजली परियोजना को 2015 में पोंटा सरकार के पतन के साथ ही ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. इस परियोजना के लिए सरकार की तरफ़ से बोली की प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हो पाई है.
वास्तव में 17+1 पहल के तहत अलग-अलग शिखर सम्मेलनों में कई परियोजनाओं का प्रस्ताव रखा गया था लेकिन अभी तक उनमें से सिर्फ़ कुछ परियोजनाएं पूरी हुई हैं. CEE देशों में चीन के साथ भविष्य की साझेदारी को लेकर निराशा का भाव है.
इसी तरह बुडापेस्ट-बेलग्राड हाई स्पीड रेल लाइन हंगरी और सर्बिया- दोनों देशों के लिए बुनियादी ढांचे की एक बड़ी परियोजना है लेकिन इसका काम अभी तक शुरू नहीं हो पाया है. परियोजना में देरी इन दोनों देशों और चीन के लिए शुभ संकेत नहीं है क्योंकि ये 17+1 पहल की प्रमुख परियोजना है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि किसी मामले में कामयाबी नहीं मिली है. सर्बिया में कोस्टोलैक थर्मल पावर प्लांट का विस्तार और प्यूपिन पुल, मोंटेनीग्रो हाईवे और ग्रीस में पिरायूस बंदरगाह यूरोप में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की सफलता के बारे में बताते हैं लेकिन CEE के देशों में बड़ी परियोजनाओं को लागू करने में नाकामी की वजह से चीन और इन देशों के बीच भरोसे में कमी आई हैं.
वास्तविक निवेश में कमी का उदाहरण देकर 17+1 पहल के नौवें शिखर सम्मेलन से दूर रहने के चेक गणराज्य के राष्ट्रपति मिलोस ज़ेमन के फ़ैसले ने चीन और चेक गणराज्य के बीच मतभेदों को उजागर किया है. कारोबार को बढ़ावा देने के लिए पिछले महीने चेक गणराज्य के सीनेट स्पीकर मिलोस विस्ट्रसिल की ताइवान यात्रा ने चीन को नाराज़ कर दिया. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने धमकी दी कि सीनेट के स्पीकर को अपने ताइवान दौरे की “भारी क़ीमत” चुकानी पड़ेगी. विस्ट्रसिल ने बाद में बयान दिया कि चेक गणराज्य चीन के एतराज़ के आगे नहीं झुकेगा. पिछले साल प्राग सिटी काउंसिल ने बीजिंग के साथ साझेदारी का समझौता रद्द कर दिया. ये फ़ैसला प्राग सिटी काउंसिल ने ‘एक चीन’ के सिद्धांत पर सवाल उठाने वाले एक लेख को नहीं हटाने के बाद लिया.
कारोबार को बढ़ावा देने के लिए पिछले महीने चेक गणराज्य के सीनेट स्पीकर मिलोस विस्ट्रसिल की ताइवान यात्रा ने चीन को नाराज़ कर दिया. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने धमकी दी कि सीनेट के स्पीकर को अपने ताइवान दौरे की “भारी क़ीमत” चुकानी पड़ेगी.
जून 2020 में बेल्ट एंड रोड अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के तहत हुए वर्चुअल सम्मेलन में सिर्फ़ सर्बिया, हंगरी और ग्रीस के प्रतिनिधि आए. 17+1 पहल में शामिल दूसरे सदस्य देशों ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया. इससे पता चलता है कि चीन और CEE देशों के बीच रिश्ते किस कदर बिगड़ गए हैं.
मई 2020 में लातविया की इंटेलिजेंस सर्विस, कॉन्स्टीट्यूशन प्रोटेक्शन ब्यूरो ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर अपनी सालाना रिपोर्ट में NATO और EU के लिए चीन को साइबर ख़तरा बताया. इसी महीने में लिथुआनिया ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से कहा कि वो महामारी के ख़िलाफ़ वैश्विक जवाब पर चर्चा करने के लिए आयोजित होने वाली बैठक में ताइवान को बुलाए. ताइवान की भागीदारी का चीन ने विरोध किया था जबकि अमेरिका ने समर्थन किया था. CEE के सांसद और नीति निर्माता हांगकांग में विवादित राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लाने के ख़िलाफ़ जारी बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल थे. एस्टोनिया भी 17+1 पहल में शामिल किए जाने के अपने फ़ैसले पर फिर से विचार कर रहा है. इसकी वजह चीन के तौर-तरीक़ों से पश्चिमी मूल्यों को ख़तरे और चीन में उइगरों के मानवाधिकारों के भारी उल्लंघन को बताया गया है.
अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो का हाल में CEE देशों का दौरा मुख्य रूप से इस इलाक़े में चीन की 5जी रणनीति पर केंद्रित था क्योंकि टेलीकॉम सेक्टर में चीन की विशालकाय कंपनी हुवावे मध्य और पूर्वी यूरोप में 5जी नेटवर्क के विस्तार के काम में प्रतिस्पर्धा में है. हुवावे को अमेरिका के द्वारा सुरक्षा ख़तरा बताए जाने के बाद अमेरिका-चीन के बीच तकनीकी मुक़ाबला हाल के दिनों में तेज़ हो गया है. अपने दौरे के पहले ठिकाने प्राग में पॉम्पियो ने चेक सरकार से गुज़ारिश की कि चीन की कंपनी हुवावे को ख़ारिज़ कर दें. पॉम्पियो ने इस बात की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया कि अमेरिका 5जी नेटवर्क के विकास में मदद कर सकता है. स्लोवेनिया ने तो अमेरिका के साथ एक साझा घोषणापत्र पर भी दस्तख़त किया जिसके तहत 5जी नेटवर्क के विकास में असुरक्षित कंपनियों पर पाबंदी लगाई गई है. इस इलाक़े में अमेरिका अपने सहयोगियों को इस बात के लिए तैयार कर रहा है कि वो साइबर नीति के मामले में ‘क्लीन नेटवर्क कार्यक्रम’ में शामिल हों ताकि प्राइवेसी की रक्षा हो सके और उन आंकड़ों को सुरक्षित रखा जा सके जिनसे राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ता हो.
ताज़ा घटनाक्रम में पोलैंड के डिजिटल मामलों के मंत्रालय ने एक बिल का मसौदा जारी किया है जिसमें 5जी नेटवर्क में शामिल उन वेंडर्स को क़ानूनी तौर पर बाहर रखा गया है जो देश की साइबर सुरक्षा के लिए एक संभावित ख़तरा हैं. जनवरी में EU अपने सदस्य देशों के लिए एक टूल बॉक्स लेकर आया जिसकी मदद से वो 5जी नेटवर्क बिछाने से जुड़े जोखिम की पहचान कर सकें और उन चुनौतियों का जवाब देने के लिए क़दम उठा सकें.
इस इलाक़े में अमेरिका अपने सहयोगियों को इस बात के लिए तैयार कर रहा है कि वो साइबर नीति के मामले में ‘क्लीन नेटवर्क कार्यक्रम’ में शामिल हों ताकि प्राइवेसी की रक्षा हो सके और उन आंकड़ों को सुरक्षित रखा जा सके जिनसे राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ता हो.
कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि 17+1 पहल के ज़रिए CEE देशों के साथ चीन की साझेदारी की परत खुल रही है. यूरोप के लिए चीन की जो चूल थी उसे भविष्य की रूपरेखा के सुस्त नतीजों की वजह से शक की नज़र से देखा जा रहा है. इस इलाक़े में चीन की चालबाज़ी को अब दिनों-दिन सिर्फ़ प्रतीकात्मक तौर पर देखा जा रहा है, महामारी की वजह से इसमें और बढ़ोतरी हुई है.
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Pritish Gupta is a graduate of Jindal School of International Affairs. Heformerly worked as a research intern with ORFs Eurasian Studies initiative.His research focuses on ...
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