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नेपाल और भारत के बीच की सीमा 1,700 किलोमीटर से अधिक लंबी है और इसका एक जटिल इतिहास रहा है जिसका विस्तार कई-कई शताब्दियों तक रहा है.
भारत और नेपाल ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक संबंधों के आधार पर एक लंबा रिश्ता साझा करते हैं. दोनों देशों के बीच खुली सीमा होने के साथ-साथ लोगों से लोगों के बीच संबंध भी हैं. हालांकि दोनों देशों के रिश्ते कभी-कभी तनाव और असहमति से भी गुजरते रहे हैं, जो मुख्य रूप से सीमाओं और जल बंटवारे से संबंधित है. [i] भारत ऐतिहासिक रूप से नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार, सहायता देने वाला और निवेशक रहा है, इसके बावज़ूद नेपाल अक्सर भारत पर अपने घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाता है. [ii] वर्षों से नेपाल ने भारत और उसके प्रतिद्वंद्वी, चीन दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की कोशिश की है. [iii] भारत के साथ नेपाल के संबंध उसकी भौगोलिक निकटता और साझा सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों के कारण अहम हैं. [iv] हाल के वर्षों में चीन के साथ नेपाल के बढ़ते जुड़ाव और उस परिप्रेक्ष्य में, भारत की क्षेत्रीय सामरिक चिंताओं ने दोनों देशों के संबंधों में जटिलता पैदा कर दी है. [v]
इसके अलावा पिछले कई वर्षों में भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर तनाव बढ़ा है. ख़ास तौर पर नेपाल के नए संविधान और नेपाली सियासत में भारत के कथित हस्तक्षेप को लेकर. साल 2015 में भारत ने नेपाल के नए स्वीकृत संविधान पर नाराज़गी जताने के मक़सद से नेपाल पर एक तरह का अनौपचारिक आर्थिक प्रतिबंध लगाया था - इससे नेपाल की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई और दोनों देशों के संबंधों में तनाव पैदा हुआ. [vi]भारतीय अधिकारियों का दावा है कि नेपाल की एथनिक माइनॉरीटिज जो नए संविधान के लिए सहमत नहीं थे, उनके द्वारा ट्रांजिट प्वाइंटस पर विरोध प्रदर्शन करने की वज़ह से वाहनों की आवाजाही में बाधा उत्पन्न हुई. [vii] कुछ साल बाद, 2020 में, कालापानी-लिंपियाधुरा-लिपुलेख ट्राय-जंक्शन क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय विवाद पैदा हो गया [viii] और दोनों ही देश इस क्षेत्र पर अपना हक़ जता रहे हैं. [ix] हालांकि, यह विवाद सफल कूटनीतिक चर्चाओं के बाद आगे नहीं बढ़ा लेकिन इसने संबंधों की नाजुकता और दोनों देशों के बीच निरंतर जुड़ाव और सहयोग की आवश्यकता की ओर ध्यान खींचा. [x]
साल 2015 में भारत ने नेपाल के नए स्वीकृत संविधान पर नाराज़गी जताने के मक़सद से नेपाल पर एक तरह का अनौपचारिक आर्थिक प्रतिबंध लगाया था - इससे नेपाल की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई और दोनों देशों के संबंधों में तनाव पैदा हुआ.
भारत और नेपाल के बीच सीमा तनाव को हल करने को लेकर कई चुनौतियां सामने हैं, जिनमें से एक है भरोसे की कमी. [xi] नेपाल के घरेलू मामलों में भारत का कथित हस्तक्षेप और चीन के साथ नेपाल के बढ़ते संबंधों ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है. इसके अलावा दोनों देशों के बीच खुली सीमा का ही यह नतीजा है कि अवैध प्रवास और तस्करी जैसे मामले सामने आए हैं. [xii]
नेपाल और भारत के बीच की सीमा 1,700 किलोमीटर से अधिक लंबी है और इसका एक जटिल इतिहास रहा है जिसका विस्तार कई-कई शताब्दियों तक रहा है. [xiii] दरअसल दोनों देशों की सीमा मुख्य रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल साम्राज्य के बीच हुई 1816 की सुगौली संधि पर आधारित है जिसके बाद एंग्लो-नेपाल युद्ध समाप्त हो गया था. [xiv] इस संधि ने दोनों देशों के बीच की सीमा को परिभाषित किया है और इसके बाद की संधियों और समझौतों ने सीमा को और अधिक वर्णित किया है. [xv] सुगौली संधि के अनुच्छेद 5 में पश्चिमी सीमा के रूप में महाकाली नदी (या संधि में वर्णित काली नदी) का उल्लेख है. [xvi] हालांकि यह संधि महाकाली नदी की उत्पत्ति के बारे में तो कुछ नहीं बताती है लेकिन हाइड्रोग्राफिक अध्ययन से पता चलता है कि लिम्पियाधुरा इसकी उत्पत्ति का केंद्र है, जिससे यह भारत, नेपाल और चीन के बीच ट्राय-जंक्शन बन जाता है. [xvii] और दोनों देशों के बीच इस सीमा को लेकर प्रतिद्वंद्विता जारी है.
वास्तव में भारत और नेपाल दक्षिण एशिया के एकमात्र ऐसे देश नहीं हैं जो अपने पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद का सामना कर रहे हैं. [xviii] इस क्षेत्र में औपनिवेशिक शासन की शुरुआत के साथ 'संप्रभुता' और 'क्षेत्र' की अवधारणाओं में जो परिवर्तन आया और उससे सीमा विवादों में बढ़ोतरी हुई है; इसी तरह सीमा अलगाव ने इस क्षेत्र को 'फ्लूइड कल्चरल ऑर्गेनिज्म' से बदल कर परिभाषित सीमाओं के तहत कर दिया. [xix] रणनीतिक और प्रशासनिक मक़सद की वज़ह से दक्षिण एशिया की पुनर्रचना की लंबी विरासत रही है जो इन मौज़ूदा विवादों को प्रभावित करती है. [xx] उदाहरण के लिए, भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा विवाद और पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान और भारत, चीन के बीच के विवाद औपनिवेशिक काल की विरासत हैं. [xxi] इसी तरह, नेपाल और भारत के बीच सीमा विवाद 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने क्षेत्र का विस्तार करने की कोशिश करते हुए 1816 में नेपाल के साथ सुगौली संधि पर हस्ताक्षर किए. [xxii] इस संधि ने भारत के साथ नेपाल की पश्चिमी सीमा को परिभाषित तो किया लेकिन नेपाल ने संधि की "अस्पष्टता" और "भ्रमात्मकता" का मुद्दा उठाया, जिससे दोनों देशों की सीमा के सटीक सीमांकन पर विवाद पैदा हो गया. [xxiii] इसके बाद तो अंग्रेजों ने एकतरफा सीमा का सीमांकन और रेखांकन कर दिया. [xxiv]
नेपाल और भारत के बीच सीमा विवाद मुख्य रूप से नेपाल के पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्रों में केंद्रित हैं. [xxv] पश्चिम में विवादित क्षेत्र कालापानी-लिम्पियाधुरा-लिपुलेख ट्राय जंक्शन है. [xxvi] नेपाल ने भारत पर "सीमा संबंधी नक्शे को लेकर दबाव" बनाने का आरोप लगाया है; [xxvii] भारत का तर्क है कि यह क्षेत्र उसके इलाक़े का हिस्सा है और 1960 के दशक से ही भारत ने वहां सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है. [xxviii] पूर्व में नेपाल के नवलपरासी ज़िले के दक्षिणी इलाक़े में स्थित सुस्ता क्षेत्र को लेकर भी विवाद है. [xxix] इस इलाक़े पर भारत और नेपाल दोनों दावा करते हैं, लिहाज़ा यह दोनों देश के सीमा बलों के बीच कभी-कभी झड़प की वज़ह बनता रहा है.[xxx]
[xxxi] अन्य सीमाओं पर भी छिटपुट विवाद होते रहे हैं, जैसे मेची और काली नदी के इलाक़े में. [xxxii] ये विवाद अतिक्रमण, भूमि के इस्तेमाल और सीमा पार अपराध के मुद्दों से संबंधित हैं.
पानी का बंटवारा नेपाल और भारत के बीच विवादों का एक दूसरा कारण रहा है. दोनों देश कई नदियों को साझा करते हैं जिनमें कोशी, गंडकी और महाकाली शामिल हैं और इन जल संसाधनों को साझा करने को लेकर कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं. [[xxxiii]] हालांकि नेपाल इन समझौतों की व्याख्या और उनके कार्यान्वयन के तरीक़े पर सवाल उठाता रहा है ख़ास तौर पर पनबिजली परियोजनाओं और इन नदियों से पानी के डायवर्ज़न को लेकर. [[xxxiv]] नेपाल भारत पर ड्राय सीज़न (शुष्क मौसम) के दौरान पानी रोके रखने का आरोप लगाता रहा है जबकि भारत, नेपाल की पनबिजली परियोजनाओं के चलते निचली आबादी पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंतित है. [[xxxv]] हालांकि इन मुद्दों को हल करने के लिए दोनों देशों के बीच निरंतर बातचीत और सहयोग और पारस्परिक तौर पर जो स्वीकार करने योग्य समाधान हैं उसे तलाशने की प्रतिबद्धता की ज़रूरत है जिससे दोनों देशों के हितों पर विचार किया जा सकेगा.
वास्तव में भारत और नेपाल दक्षिण एशिया के एकमात्र ऐसे देश नहीं हैं जो अपने पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद का सामना कर रहे हैं. इस क्षेत्र में औपनिवेशिक शासन की शुरुआत के साथ 'संप्रभुता' और 'क्षेत्र' की अवधारणाओं में जो परिवर्तन आया और उससे सीमा विवादों में बढ़ोतरी हुई है.
इसके अलावा भारत-नेपाल संबंधों में सीमा अतिक्रमण भी एक बार-बार पैदा होने वाला विवाद का विषय रहा है. नेपाल ने भारत पर नेपाल के क्षेत्रों का अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है, ख़ास तौर पर सीमावर्ती क्षेत्रों में जहां सीमा की परिभाषा अस्पष्ट है. [[xxxvi]] इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों की सीमा बलों के बीच कभी-कभी झड़पें होती रहती हैं. नेपाल में भारतीय नागरिकों द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों में भूमि और संपत्ति हासिल करने, भारत विरोधी भावनाओं को हवा देने पर सवाल उठते रहे हैं, जबकि भारत में सीमा पार नेपाली नागरिकों की आवाजाही को लेकर चिंता जताई जाती रही है. नेपाल के विश्लेषकों का यह भी कहना है कि लक्ष्मणपुर, रसियावल-खुरलोटन, महालीसागर, कोहलावास और कुनौली जैसे विभिन्न स्थानों पर भारत निर्मित बांधों और तटबंधों के कारण हर साल यह क्षेत्र मॉनसून के मौसम में भारी बाढ़ का सामना करने पर मज़बूर हैं. [[xxxvii]] हालांकि बाढ़ दोनों देशों के लिए एक मौसमी समस्या बना हुआ है.[[xxxviii]]
दोनों देशों के बीच सीमा पर बने पिलर्स के लापता होने से भी मतभेद बढ़ते हैं. दोनों देशों के बीच की सीमा में 8,000 से अधिक बॉर्डर पिलर्स हैं लेकिन उनमें से कई प्राकृतिक आपदाओं और मानवीय गतिविधियों के कारण लापता हो चुके हैं. [[xxxix]] उदाहरण के लिए सुस्ता, आरा, नाला और ताल बागोंडा जैसे विवादित सीमावर्ती क्षेत्रों में सीमा स्तंभ कहीं नहीं दिखते हैं. [[xl]] इसने दोनों देशों के बीच की सीमा को सटीक रूप से निर्धारित करने में काफी मुश्किलें पैदा की है जिसका नतीज़ा यह है कि इन इलाक़ों में भूमि और संपत्ति के स्वामित्व पर विवाद और दोनों पक्षों की सीमा बलों के बीच कभी-कभी झड़पें होती रहती हैं. लापता सीमा स्तंभों को बदलने की कोशिश तो जारी है लेकिन इसे लेकर प्रगति अब तक काफी धीमी रही है. [[xli]]
इसके अलावा कैलाली में लालबोझी और भजनी, बरदिया में गुलरिया के चौगुरजी, कंचनपुर में परसन परताल, पूर्व-पश्चिम राजमार्ग की ओर कोशी तटबंध का 1.5 किमी, इलम में श्रींतु गुफापाताल, चितवन में सोमेश्वर, बारा में झिटकैया, और डांग में कोईलावास के 10 गज (दशगजा) क्षेत्र में सीमा अतिक्रमण की समस्या बनी हुई है. [[xlii]] भारत के साथ सीमा साझा करने वाले नेपाल के 26 ज़िलों में से 21 जिलों के 54 इलाक़ों पर भारत पर सीमा उल्लंघन का आरोप लगता रहा है. [[xliii]] नेपाली विश्लेषकों का आरोप है कि नेपाल में 60,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर भारतीय पक्ष द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया है. [[xliv]] हालांकि भारतीय दौरे पर आए नेपाली अधिकारियों से भारत ने कहा है कि इन आरोपों को देखा जाएगा और कूटनीतिक तरीक़े से सुलझाया जाएगा.
इसके साथ ही नेपाल के भीतर राजनीतिक अस्थिरता और निरंतर सियासी संघर्ष ने इन क्षेत्रीय विवादों के बार-बार उभरने के पैटर्न में योगदान दिया है. नेपाल के राजनीतिक दलों ने - जनता का समर्थन हासिल करने के लिए उत्सुक - भारत के साथ देश की सीमा विवादों का राजनीतिकरण किया है. [[xlv]], [[xlvi]] लगातार सत्ता संघर्ष के बीच नेपाली राजनीतिक अभिजात वर्ग ने भारत के रूप में एक 'अन्य' बनाने की मांग की है; वे भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काते हैं, 'चीनी कार्ड' खेलते हैं और नेपाली लोगों के बीच लोकप्रिय राष्ट्रवाद (और इसकी अराजक अभिव्यक्ति) की अपील करते हैं.
भारत और नेपाल ने अपने सीमा विवादों के स्वीकार्य समाधान तलाशने के लिए पिछले कई वर्षों में कई दौर की बातचीत की है लेकिन प्रगति धीमी और छिटपुट रही है. 1981 में दोनों देशों ने एक ज्वाइंट टेक्निकल लेवल बाउंड्री कमिटी [[xlvii]] का गठन किया, जिसे सर्वेक्षण करने और सीमा के इलाक़े को तय करने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों का नक्शा बनाने का जिम्मा सौंपा गया था. [[xlviii]] विदेश मंत्रियों के स्तर पर भी कई द्विपक्षीय वार्ताएं हुई हैं; उच्च-स्तरीय दौरे जिनके एज़ेंडे में सीमा विवादों के राजनयिक समाधान पर चर्चा करना; और सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास के प्रयास शामिल रहा है. हालांकि ये पहल सीमा विवादों को हल करने में विफल रही हैं.
बाउंड्री कमिटी का काम भारत और नेपाल की सीमा की अलग-अलग व्याख्याओं से और ज़्यादा जटिल हो गया है, क्योंकि दोनों पक्षों ने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक औचित्य का दावा किया है; कमिटी के काम में प्रशासनिक बाधाएं भी एक सतत चिंता का कारण रही हैं. [[xlix]] 1981 और 2007 के बीच, बाउंड्री कमिटी ने भूमि सीमा के रूप में 1,233 किमी और नदी सीमा के रूप में 647 किमी का सीमांकन किया था. यह कालापानी और सुस्ता क्षेत्रों में विवादों को हल करने में नाकाम रहा था क्योंकि दोनों पक्षों ने परस्पर विरोधी दावे तब किए थे. [[l]] कमिटी ने भारत के महासर्वेक्षक और नेपाल के सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक द्वारा संयुक्त रूप से हस्ताक्षरित 182 स्ट्रिप-नक्शों को तैयार किया, 8,553 बाउंड्री पिलर को भी वर्णित किया था. [[li]]
इसके साथ ही नेपाल के भीतर राजनीतिक अस्थिरता और निरंतर सियासी संघर्ष ने इन क्षेत्रीय विवादों के बार-बार उभरने के पैटर्न में योगदान दिया है. नेपाल के राजनीतिक दलों ने - जनता का समर्थन हासिल करने के लिए उत्सुक - भारत के साथ देश की सीमा विवादों का राजनीतिकरण किया है.
1987 में दोनों पक्षों ने भारत-नेपाल ज्वाइंट कमीशन बनाया, एक उच्च-स्तरीय द्विपक्षीय व्यवस्था, जिसे सीमा विवादों के समाधान सहित पारस्परिक हित के विभिन्न मुद्दों को संबोधित करने के लिए ज़िम्मेदार बनाया गया था. [[lii]] इस ज्वाइंट कमीशन ने सीमा विवादों को हल करने के लिए एक व्यवस्था के रूप में काम करने की मांग की और इसने दोनों पक्षों को रचनात्मक बातचीत में शामिल होने और आपसी सम्मान और समझ की भावना से बातचीत जारी रखने को कहा. [[liii]] कुछ वर्षों तक ज्वाइंट कमीशन समय-समय पर इस दिशा में हुई प्रगति की समीक्षा करने और बाकी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए मिलते रहे लेकिन इससे कुछ फायदा नहीं हुआ और आख़िरकार यह निष्क्रिय हो गया. इसे दो दशक के अंतराल के बाद 2014 में पुनर्जीवित किया गया था और अगस्त 2020 में इसकी आठवीं बैठक आयोजित की गई, जहां दोनों पक्षों ने सीमा विवाद सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की. [[liv]]
1996 में, दोनों देशों ने महाकाली संधि पर हस्ताक्षर किए जिसका मक़सद महाकाली नदी से पानी साझा करना था और इसमें सीमा विवादों को हल करने के लिए एक प्रावधान (अनुच्छेद 9) शामिल किया गया था. [[lv]] इस संधि ने एक ज्वाइंट कमेटी फॉर वाटर रिसोर्सेज (जेसीडब्ल्यूआर) और एक ज्वाइंट टेक्निकल लेवल बाउंड्री ( जेटीएलबी) की स्थापना करके ऐसा करने की कोशिश की [[lvi]] लेकिन इसका कोई साफ परिणाम नहीं निकल पाया.
इन समितियों की स्थापना के अलावा दोनों पक्षों ने कई उच्च-स्तरीय यात्राओं के ज़रिए अपने विवादों के समाधान का रास्ता निकालने की कोशिश की है. इनमें 2018 में भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा और 2020 में नेपाल के प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओली की भारत यात्रा भी शामिल है. [[lvii]] ज्वाइंट टेक्निकल लेवल बाउंड्री कमीटी की बैठकों और दोनों सरकारों के विदेश सचिवों और गृह मंत्रियों के बीच बैठकों सहित दोनों देशों के बीच कई स्तर की वार्ताएं भी आयोजित की गई हैं. [[lviii]]
इस संबंध में एक उल्लेखनीय व्यवस्था एमिनेंट पर्सन्स ग्रुप (ईपीजी) (प्रतिष्ठित व्यक्ति समूह) है, जो 2016 में दोनों देशों द्वारा स्थापित एक उच्च स्तरीय निकाय है जो ख़ास तौर पर 1950 की शांति और मित्रता संधि और सीमा विवादों के संबंध में बचे हुए मुद्दों को हल करने पर सिफारिशें आगे बढ़ाता रहता है. [[lix]] इस समूह में प्रत्येक पक्ष से चार प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल थे जिनकी ज़िम्मेदारी द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं की जांच करना और भविष्य के लिए सिफारिशें करना था. [[lx]] अब निष्क्रिय हो चुके ईपीजी ने जुलाई 2018 में अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया लेकिन अभी तक दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों को ईपीजी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है. [[lxi]]
हालांकि यह रिपोर्ट सीमा विवादों के तत्काल समाधान की दिशा दिखाए ऐसा प्रतीत नहीं होता है, फिर भी यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है. [[lxii]] हालांकि ना तो भारत और ना ही नेपाल ने अपने ख़ुद के कारणों का हवाला देते हुए ईपीजी की रिपोर्ट को आधिकारिक तौर पर अभी तक स्वीकार नहीं किया है. [[lxiii]], [[lxiv]]
इसी तरह काठमांडू-रक्सौल रेलवे, पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय परियोजना और नई सीमा चौकियों के निर्माण जैसी कई बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को संयुक्त रूप से प्रस्तावित किया गया है, जो बेहतर संपर्क बनाकर सीमा विवाद को हल करने में मदद कर सकती हैं. दरअसल दोनों देश सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं. 2018 में नेपाल और भारत ने एक सीमा-पार पेट्रोलियम पाइपलाइन का उद्घाटन किया, जिससे आर्थिक सहयोग बढ़ने और ईंधन के लिए तीसरे देशों पर निर्भरता कम होने की उम्मीद जगी है. [[lxv]] हालांकि कई तरह की बाधाओं ने इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन को रोक रखा है, जिसमें धन संबंधी मुद्दे, नौकरशाही से संबंधित बाधाएं और पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर चिंताएं शामिल हैं. [[lxvi]]
2018 में नेपाल और भारत ने एक सीमा-पार पेट्रोलियम पाइपलाइन का उद्घाटन किया, जिससे आर्थिक सहयोग बढ़ने और ईंधन के लिए तीसरे देशों पर निर्भरता कम होने की उम्मीद जगी है. हालांकि कई तरह की बाधाओं ने इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन को रोक रखा है, जिसमें धन संबंधी मुद्दे, नौकरशाही से संबंधित बाधाएं और पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर चिंताएं शामिल हैं.
मौज़ूदा समय में ऊपर चर्चा किए गए सभी तरह की कोशिशों से आशावादी नतीज़ा नहीं निकल पाया है जिसके कई और कारण हैं.
सबसे पहले, साफ तौर से परिभाषित सीमाओं की स्पष्टता नहीं है. [[lxvii]] दोनों देशों के अलग-अलग दावे, प्रतिदावे और सीमा की व्याख्याएं हैं. [[lxviii]] स्पष्ट रूप से परिभाषित सीमाओं के बिना अवैध तस्करी और पलायन जैसी अवैध सीमा पार गतिविधियों की निगरानी और नियंत्रण करना मुश्किल हो जाता है, जो स्थिति को और ख़राब बनाते हैं. [[lxix]] दूसरा दोनों देशों के नेताओं के पास स्वीकार्य और स्थायी समाधानों की दिशा में काम करने के लिए पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता नहीं है. [[lxx]] कई दौर की बातचीत और समझौतों के बावज़ूद इस दिशा में प्रगति काफी धीमी और अपर्याप्त रही है क्योंकि दोनों पक्षों की ओर से निरंतर प्रयास की कमी रही है.
सीमा पार अपराध और बड़े पैमाने पर अवैध गतिविधियां भी चुनौती को बढ़ाती हैं. बिना रोक टोक की सीमा और ख़राब रेग्युलेटेड बॉर्डर के चलते उन आपराधिक तत्वों की आवाजाही सुगम हो जाती है जो तस्करी और मानव और मादक पदार्थों की तस्करी जैसी गतिविधियों में संलग्न रहते हैं. इस तरह की गतिविधियों के चलते भी दोनों देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ा है क्योंकि दोनों देश इसके लिए एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं. [[lxxi]]
सीमा प्रशासन के लिए एक कानूनी ढांचे की कमी ने भी दिक्कतें बढ़ाई हैं. [[lxxii]] सीमा पार गतिविधियों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों और रेग्युलेशन के बिना, सीमा पार आवाजाही को नियंत्रित करना और विवादों का निपटारा करना मुश्किल हो गया है. एक उचित कानूनी ढांचा सीमाओं को स्पष्ट करने, सीमा पार गतिविधियों को वर्णित करने और विवाद समाधान के लिए व्यवस्था बनाने में मददगार हो सकता है लेकिन क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों सहित बाहरी किरदारों और उनके हितों की भागीदारी, नेपाल-भारत सीमा विवादों को हल करने की कोशिशों को और जटिल बना सकती है. [[lxxiii]] क्योंकि ऐसे किरदारों के एज़ेंडे और अपने हित हो सकते हैं जो बातचीत को प्रभावित कर सकते हैं और पारस्परिक रूप से फायदेमंद समझौते तक पहुंच को और अधिक कठिन बना सकते हैं. इतना ही नहीं, बाहरी हस्तक्षेप और भागीदारी भी तनाव को बढ़ा सकती है और समाधान की सुविधा के बजाय स्थिति को और ख़राब कर सकती है. [[lxxiv]] नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता संघर्ष ने दोनों देशों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
भारत और नेपाल को अपने सीमा विवादों का पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान तलाशने की दिशा में प्रयास जारी रखना चाहिए जो एक दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हों. ऐसे मतभेदों को दूर करने से ना केवल ख़ुद नेपाल और भारत को लाभ होगा बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग को भी बढ़ावा मिलेगा. इन वार्ताओं को सफल बनाने के लिए ऐतिहासिक साक्ष्यों, नक्शों और अन्य प्रासंगिक दस्तावेज़ों को शामिल किया जाना चाहिए.
लंबी अवधि में भारत और नेपाल एक व्यापक सीमा प्रबंधन प्रणाली को लागू करके अपने सीमा विवादों को हल कर सकते हैं, जिसमें ज्वाइंट बाउंड्री सर्वे, सरहद का सीमांकन और सीमा निगरानी शामिल है. इसके अलावा दोनों देश आपसी विश्वास और समझ बनाने के लिए लोगों से लोगों के संपर्क, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आर्थिक सहयोग को बढ़ाने की दिशा में काम कर सकते हैं, जो सीमा विवाद समाधान में योगदान दे सकते हैं.
यह आलेख निम्नलिखित सिद्धांतों को दोहराता है क्योंकि भारत और नेपाल अपने सीमा विवादों को हल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता के लिए सम्मान आवश्यक हैं और दोनों देशों को विवादित क्षेत्र पर एक-दूसरे के वैध दावों को स्वीकार करना चाहिए और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने की दिशा में काम करना चाहिए.[[lxxv]] विवादों का कोई भी समाधान ऐतिहासिक सबूतों के निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन और अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रावधानों दोनों पर आधारित होना चाहिए. एक दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए आपसी समझ और सम्मान किसी भी संभावित संघर्ष को आगे बढ़ने से रोक सकता है, जो क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है. [[lxxvi]] ऐसे में भारत और नेपाल के बीच सीमा विवादों का स्थायी समाधान आपसी सम्मान, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सहयोग के सिद्धांतों को कायम रखकर ही हासिल किया जा सकता है.
किसी भी समझौते तक पहुंचने में बातचीत और कूटनीतिक समाधान अहम भूमिका अदा करते हैं. [[lxxvii]] कूटनीति दोनों देशों को बातचीत की मेज़ पर आने, एक-दूसरे की चिंताओं और हितों को स्वीकार करने और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए प्रेरित कर सकती है. बातचीत के माध्यम से दोनों देश एक स्पष्ट सीमा परिभाषित कर सकते हैं, विवादित क्षेत्रों का सीमांकन कर सकते हैं और प्रभावी सीमा प्रबंधन के लिए एक व्यवस्था बना सकते हैं. [[lxxviii]] एक समझौता अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे कि सीमा पार व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी संबोधित कर सकता है, जो पारस्परिक रूप से फायदेमंद हो सकते हैं.
सीमा परिसीमन और सीमांकन का मतलब है दोनों देशों के बीच एक स्पष्ट सीमा को तय करना. [[lxxix]] इस प्रक्रिया में एक ज्वाइंट बाउंड्री सर्वे, मानचित्र तैयार करना और अन्य प्रासंगिक दस्तावेज़, के साथ-साथ बाऊंड्री मार्कर्स की स्थापना करना भी शामिल है. [[lxxx]] सीमा परिसीमन और सीमांकन के लिए प्रतिबद्ध होकर दोनों देश एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान दिखा सकते हैं. यह प्रक्रिया विवादित क्षेत्र की स्थिति को स्पष्ट करने और सीमा की भविष्य की ग़लतफहमियों या गलत व्याख्याओं को रोकने में मदद कर सकती है.
यही नहीं, सीमा परिसीमन और सीमांकन दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण और स्थिर संबंधों को बढ़ावा देने, प्रभावी सीमा प्रबंधन के लिए एक व्यवस्था भी तैयार कर सकते हैं. [[lxxxi]] यह दोनों देशों को आर्थिक और सामाजिक रूप से लाभान्वित करते हुए, सीमा-पार व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की सुविधा भी प्रदान कर सकता है.
सीमा पार अपराध दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है - इसमें मानव तस्करी, नशीली दवाओं की तस्करी और फायरआर्म्स और गोला-बारूद की अवैध तस्करी शामिल है. [[lxxxii]] इसके अलावा बिना रोक-टोक की सीमा अवैध गतिविधियों जैसे प्रतिबंधित वस्तुओं और मवेशियों की तस्करी, जालसाज़ी और मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा देती है. [[lxxxiii]] इन अपराधों में अक्सर सीमा पार संचालित संगठित सिंडिकेट शामिल रहते हैं जिससे उनका पता लगाना और रोकना मुश्किल हो जाता है. इसके लिए व्यापक सहयोग की आवश्यकता है, जिसमें ज्वाइंट पेट्रोलिंग, ख़ुफ़िया जानकारी साझा करना और सीमा पार सुरक्षा तंत्र को स्थापित करना शामिल हो सकता है,[[lxxxiv]] जो भरोसा कायम करने और सहयोग को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है. सीमा पार अपराध और अन्य चुनौतियों का समाधान करके, दोनों देश आर्थिक और सामाजिक रूप से एक दूसरे को फायदा पहुंचा सकते हैं और क्षेत्र की स्थिरता और विकास में योगदान दे सकते हैं.
प्रभावी ढंग से सीमा प्रबंधन के लिए व्यावहारिक समाधान भी विवादों को सुलझाने में मदद कर सकते हैं. ऐसे उपायों में चौकियों की स्थापना, आधुनिक निगरानी तकनीक़ की शुरुआत और सीमा सुरक्षा बलों की क्षमताओं को बढ़ाना शामिल हो सकता है. [[lxxxv]] इसमें सीमावर्ती क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना भी शामिल है, जैसे कि सीमा पार व्यापार, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को मज़बूत कर सकता है और तनाव कम करने में सहयोग दे सकता है. [[lxxxvi]] व्यावहारिक सीमा प्रबंधन के लिए दोनों देशों को सुचारू और कुशल सीमा प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए अपने प्रयासों में सहयोग और समन्वय की ज़रूरत होती है. दोनों देश अपनी सीमा सुरक्षा बढ़ा सकते हैं, सीमा पार अपराध को रोक सकते हैं और व्यावहारिक उपायों को लागू करके शांतिपूर्ण संबंधों को बढ़ावा दे सकते हैं. व्यावहारिक सीमा प्रबंधन भी रचनात्मक संवाद और बातचीत के लिए अनुकूल वातावरण बनाकर सीमा विवाद के समाधान को तलाशने में अहम योगदान दे सकता है.
इसके अलावा सीमावर्ती इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार के लिए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को लागू करना, जैसे सड़कों और सीमा चौकियों का निर्माण, सीमा प्रबंधन को बढ़ा सकता है और अवैध सीमा पार गतिविधियों को कम कर सकता है.
सीमा-पार बुनियादी ढ़ांचे के विकास दोनों देशों के बीच अंतर्संबंध और अन्योन्याश्रितता को बढ़ाकर सीमा विवाद को हल करने में मदद कर सकता है. [[lxxxvii]] सड़क, पुल, रेलवे और अन्य परिवहन लिंक जैसे बुनियादी ढांचे का विकास, सीमा पार व्यापार और पीपल टू पीपल एक्सचेंज की सहूलियत को बढ़ा सकता है. [[lxxxviii]] यह आर्थिक अवसरों को भी पैदा कर सकता है, जो ग़रीबी को कम करने और सीमावर्ती क्षेत्रों में लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने में मददगार साबित हो सकता है. बुनियादी ढांचे के विकास के कारण बढ़ी हुई परस्पर संबद्धता और अन्योन्याश्रितता, विवादों को सुलझाने के लिए एक अनुकूल माहौल बनाने के साथ-साथ दोनों पक्षों के बीच भरोसा कायम करने और संबंधों को मज़बूत करने में मदद कर सकती है. [[lxxxix]] यह सीमा प्रबंधन और संयुक्त बुनियादी ढांचे के विकास जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दे सकता है, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक और सामाजिक संबंधों को और गहरा कर सकता है.
दोनों देशों को अपने राष्ट्रीय हितों का ध्यान रखते हुए एक-दूसरे की क्षेत्रीय संप्रभुता और अखंडता को स्वीकार करना होगा और उसका सम्मान भी करना होगा. बातचीत के माध्यम से विवादों का कूटनीतिक समाधान निकालना ज़रूरी है, जिससे दोनों देश पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान तलाशने के लिए सकारात्मक चर्चा में शामिल रहें.
बॉर्डर गवर्नेंस के लिए एक बेहतर तरीक़े से परिभाषित कानूनी ढ़ांचा भारत और नेपाल के बीच सीमा विवादों को हल करने में योगदान दे सकता है. [[xc]] ऐसी व्यवस्था व्यापार, पलायन और ज्वाइंट इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के साथ-साथ विवाद समाधान के लिए व्यवस्था सहित सीमा पार गतिविधियों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान कर सकता है. [[xci]] कानूनी ढांचा प्रभावी क्रॉस बॉर्डर लॉ एनफोर्समेंट व्यवस्था तैयार कर सीमा-पार अपराधों और अवैध गतिविधियों को कम करने में मदद कर सकता है. [[xcii]] इसके अलावा यह दोनों देशों के बीच सहयोग और समन्वय को बढ़ा सकता है. इस प्रकार अंतर्संबंध और अन्योन्याश्रितता में बढ़ोतरी हो सकती है. इससे आपसी विश्वास और समझ बढ़ेगी जो आख़िरकार ज़्यादा प्रभावी सीमा प्रबंधन और विवादों के निपटारे को बढ़ावा देगा. इसके अलावा, एक कानूनी ढ़ांचा निवेशकों और निजी क्षेत्रों को सीमा पार बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करने के लिए ज़्यादा भरोसा दे सकता है, जिससे सीमावर्ती क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है.
भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद दोनों देश की सरहद के सीमांकन में अस्पष्टता के इर्द-गिर्द घूमता है, ख़ास तौर पर कालापानी-लिपुलेख क्षेत्र में, जो कभी-कभी तनाव और कूटनीतिक तनाव पैदा करता है. इन सीमा विवादों की जानकारी औपनिवेशिक युग और विभिन्न ऐतिहासिक समझौतों से जुटाई जा सकती है, जिसके अभाव में दोनों देशों के बीच सीमा के सटीक सीमांकन में अस्पष्टता लंबे समय से चली आ रही है. वर्षों से सीमा विवाद को हल करने के प्रयासों में कूटनीतिक वार्ता, उच्च-स्तरीय वार्ता और तकनीक़ी समितियों की भूमिका शामिल रही है. इसके बावज़ूद इस दिशा में प्रगति कुछ ख़ास नहीं रही है और मुद्दे अभी तक अनसुलझे हैं, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और असहमति पैदा होती रही है.
कुल मिलाकर भारत और नेपाल के बीच सीमा विवादों को हल करने में संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता का सम्मान करना सबसे महत्वपूर्ण है. दोनों देशों को अपने राष्ट्रीय हितों का ध्यान रखते हुए एक-दूसरे की क्षेत्रीय संप्रभुता और अखंडता को स्वीकार करना होगा और उसका सम्मान भी करना होगा. बातचीत के माध्यम से विवादों का कूटनीतिक समाधान निकालना ज़रूरी है, जिससे दोनों देश पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान तलाशने के लिए सकारात्मक चर्चा में शामिल रहें. सीमा परिसीमन और सीमांकन को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता और सीमा पार अपराध को ख़त्म करने के लिए सहयोग, भविष्य के विवाद को रोकने और स्थायी शांति को बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी है. व्यावहारिक समाधान को अहमियत देते हुए व्यावहारिक सीमा प्रबंधन असरदार बॉर्डर मैनेजमेंट को सुनिश्चित कर सकता है और तनाव को बढ़ने से रोक सकता है.
Endnotes
[i] Constantino Xavier, “Interpreting the India-Nepal border dispute,” Brookings Institute, June 11, 2020.
[ii] Gaurav Bhattarai, Nepal between China and India: Difficulty of Being Neutral (New York: Palgrave Macmillan, 2022), p. 49.
[iii] Bhattarai, Nepal between China and India: Difficulty of Being Neutral
[iv] Gaurav Bhattarai, “Implications on Nepal’s Foreign Affairs of the Sino-Indian Rapprochement over Lipulekh,” Unity Journal 4, no. 1 (2023).
[v] Bhattarai, “Implications on Nepal’s Foreign Affairs of the Sino-Indian Rapprochement over Lipulekh”
[vi] Bhubaneswar Pant, “Socio-Economic Impact of Undeclared Blockade of India on Nepal,” Research Nepal Journal of Development Studies 1, no. 1 (2018).
[vii] Pant, “Socio-Economic Impact of Undeclared Blockade of India on Nepal”
[viii] Xavier, “Interpreting the India-Nepal border dispute”
[ix] Xavier, “Interpreting the India-Nepal border dispute”
[x] Bharat Khanal, “Geo-Strategic Imperative of North-Western Border: Triangular Region Kalapani – Lipulekh and Limpiadhura of Nepal,” Unity Journal 2, no. 1 (2021).
[xi] Buddhi Narayan Shrestha, International Boundaries of Nepal (New Delhi: Nirala Publication, 2022).
[xii] Shrestha, International Boundaries of Nepal
[xiii] Shrestha, International Boundaries of Nepal
[xiv] Buddhi Narayan Shrestha, Border Management of Nepal (Kathmandu: Bhumichitra Co. Pvt. Ltd., 2003).
[xv] Shrestha, Border Management of Nepal
[xvi] Dwarika Dhungel et al., “North-Western boundary of Nepal,” Journal of International Affairs 3, no. 1 (2020).
[xvii] Dhungel et al., “North-Western boundary of Nepal”
[xviii] Sandip Kumar Mishra, “The Colonial Origins of Territorial Disputes in South Asia,” The Journal of Territorial and Maritime Studies 3, no. 1 (2016).
[xix] Mishra, “The Colonial Origins of Territorial Disputes in South Asia”
[xx] Zaheer Baber, The Science of Empire: Scientific Knowledge, Civilization, and Colonial Rule in India (New York: State University of New York Press, 1996).
[xxi] Mishra, “The Colonial Origins of Territorial Disputes in South Asia”
[xxii] Jagat K. Bhusal, “Evolution of cartographic aggression by India: A study of Limpiadhura to Lipulek,” The Geographic Journal of Nepal 13, no. 1 (2020).
[xxiii] Bhusal, “Evolution of cartographic aggression by India: A study of Limpiadhura to Lipulek”
[xxiv] Shrestha, Border Management of Nepal
[xxv] Shrestha, International Boundaries of Nepal
[xxvi] Sumitra Karki, “A view from Kathmandu: Deciphering the Kalapani-Lipulekh conundrum,” Observer Research Foundation (ORF).
[xxvii] Bhusal, “Evolution of cartographic aggression by India: A study of Limpiadhura to Lipulek”
[xxviii] Raghvendra Pratap Singh, “Geopolitical Position of Nepal and Its Impact on Indian Security,” The Indian Journal of Political Science 7, no. 4 (2010).
[xxix] Shrestha, International Boundaries of Nepal
[xxx] Toya Nath Baral, “Border Disputes and Its Impact on Bilateral Relation: A Case of Nepal-India International Border Management,” Journal of APF Command and Staff College 1, no. 1 (2018).
[xxxi] Baral, “Border Disputes and Its Impact on Bilateral Relation: A Case of Nepal-India International Border Management”
[xxxii] Bhusal, “Evolution of cartographic aggression by India: A study of Limpiadhura to Lipulek”
[xxxiii] Amit Ranjan, “Contours of India – Nepal Relationship and Trans-Boundary Rivers Water Disputes,” Journal of International Affairs 1, no. 1 (2016).
[xxxiv] Ranjan, “Contours of India – Nepal Relationship and Trans-Boundary Rivers Water Disputes”
[xxxv] Ishita Dutta, Samruddhi Pathak and Sonal Mitra, Indo-Nepal Water Sharing and Trade Linkages, New Delhi, The Centre for Security Studies, Jindal School of International Affairs, 2021.
[xxxvi] Gyanendra Paudyal, “Border Dispute between Nepal and India,” Researcher 1, no. 2 (2013).
[xxxvii] Paudyal, “Border Dispute between Nepal and India”
[xxxviii] Ramaswamy R. Iyer, “Floods, Himalayan Rivers, Nepal: Some Heresies,” Economic and Political Weekly 43, no. 46 (2013).
[xxxix] Buddhi Narayan Shrestha, Case Study : International Boundary Survey and Demarcation of South-eastern portion of Nepal with India, Istanbul, FIG Congress, 2018.
[xl] Paudyal, “Border Dispute between Nepal and India”
[xli] Shrestha, Border Management of Nepal
[xlii] Paudyal, “Border Dispute between Nepal and India”
[xliii] Paudyal, “Border Dispute between Nepal and India”
[xliv] Paudyal, “Border Dispute between Nepal and India”
[xlv] Shubhajit Roy, “India: Avoid politicisation of border issue; Nepal seeks bilateral system,” The Indian Express, April 3, 2022.
[xlvi] Saroj Kumar Aryan and Manish Jung Pulami, “The Trajectory Between Territorial Disputes, Nationalism, and Geopolitics: A Case Study of the Kalapani Border Dispute Between India and Nepal,” Geopolitics (2023).
[xlvii] Shrestha, Border Management of Nepal
[xlviii] Shrestha, Border Management of Nepal
[xlix] Bishnu Raj Upreti, “Way to solve India-Nepal border dispute,” MyRepublica, May 29, 2020.
[l] Shrestha, International Boundaries of Nepal
[li] Shrestha, International Boundaries of Nepal
[lii] Upreti, “Way to solve India-Nepal border dispute”
[liii] Keshab Giri, “Indo-Nepal Border Dispute and Myths of International Relations,” Australian Outlook, June 3, 2020.
[liv] Upreti, “Way to solve India-Nepal border dispute”
[lv] Shrestha, Border Management of Nepal
[lvi] Ranjan, “Contours of India – Nepal Relationship and Trans-Boundary Rivers Water Disputes”
[lvii] Mulmi, “What is the way forward in India-Nepal border dispute?”
[lviii] Zehra, “India and Nepal’s Slow-Motion Border Dispute”
[lix] Anil Giri, “Ignored for Three Years, EPG report is losing its Relevance,” The Kathmandu Post, August 5, 2021.
[lx] Giri, “Ignored for Three Years, EPG report is losing its Relevance”
[lxi] Giri, “Ignored for Three Years, EPG report is losing its Relevance”
[lxii] Xavier, “Interpreting India-Nepal Border Dispute”
[lxiii] Giri, “Ignored for Three Years, EPG report is losing its Relevance”
[lxiv] Xavier, “Interpreting India-Nepal Border Dispute”
[lxv] Krishana Prasain, “Second Cors-Border Petroleum Pipeline Project in Jhapa Moves a Step Closer,” The Kathmandu Post, January 8, 2021.
[lxvi] Mukesh Srivastava and Rajeev Kumar, “India-Nepal FuellingTheir Partnership with 1st Cross Border Oil Pipeline,” Diplomatist, January 3, 2020.
[lxvii] Shrestha, Border Management of Nepal
[lxviii] Shrestha, Border Management of Nepal
[lxix] Manish Jung Pulami, “Introducing the Idea of Border Governance for Nepal-India Open Border,” Journal of Political Science 25, no. 1 (2023).
[lxx] Mohak Gambhir, “Boundary Issue With India: Nepal’s New Catalyst for Domestic Politics,” Centre for Land and Warfare Studies, January 31, 2022.
[lxxi] Pulami, “Introducing the Idea of Border Governance for Nepal-India Open Border”
[lxxii] Pulami, “Introducing the Idea of Border Governance for Nepal-India Open Border”
[lxxiii] Bhattarai, “Implications on Nepal’s Foreign Affairs of the Sino-Indian Rapprochement over Lipulekh”
[lxxiv] Bhattarai, “Implications on Nepal’s Foreign Affairs of the Sino-Indian Rapprochement over Lipulekh”
[lxxv] Xavier, “Interpreting India-Nepal Border Dispute”
[lxxvi][lxxvi] Mulmi, “What is the way forward in India-Nepal border dispute?”
[lxxvii] Kallol Bhattacherjee, “Prime Minister Deuba seeks mechanism to resolve India-Nepal border dispute,” The Hindu, April 2, 2022.
[lxxviii] Mulmi, “What is the way forward in India-Nepal border dispute?”
[lxxix] Shrestha, Border Management of Nepal
[lxxx] Shrestha, Border Management of Nepal
[lxxxi] The Hindustan Times, “Length of Indo-Nepal border could change after re-demarcation: Officials,” The Hindustan Times, December 12, 2017.
[lxxxii] Pulami, “Introducing the Idea of Border Governance for Nepal-India Open Border”
[lxxxiii] Dipesh Kumar K.C., “Cross-border crime and its security concerns in Nepal,” Journal of APF Command and Staff College 2, no. 1 (2018).
[lxxxiv] Pulami, “Introducing the Idea of Border Governance for Nepal-India Open Border”
[lxxxv] Pushpita Das, “Managing India’s Land Borders: Lessons from the US Experience,” Strategic Analysis 36, no. 1 (2012).
[lxxxvi] Radhika Halder, “Lockdowns and national borders: How to manage the Nepal-India border crossing during COVID-19,” London School of Economic, May 19, 2020.
[lxxxvii] Pradumna B. Rana and Binod Karmacharya, A Connectivity-Driven Development Strategy for Nepal: From a Landlocked to a Land-Linked State, Asian Development Bank Institute, 2014.
[lxxxviii] “A Connectivity-Driven Development Strategy for Nepal: From a Landlocked to a Land-Linked State”
[lxxxix] Riya Sinha and Constantino Xavier, “Infrastructure across the India-Nepal borderlands: A photo-essay,” Centre for Social and Economic Progress, January 19, 2021.
[xc] Pulami, “Introducing the Idea of Border Governance for Nepal-India Open Border”
[xci] Har Bansha Jha, “Reopening Nepal-India border,” Observer Research Foundation (ORF), November 2, 2021.
[xcii] Jha, “Reopening Nepal-India border”
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Manish Jung Pulami is a PhD researcher at Osaka University, Japan. His areas of expertise include Nepal's foreign policy, Indo-Pacific, small states in IR, and ...
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