Author : Sushil Tanwar

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 31, 2024 Updated 3 Hours ago

कृषि क्षेत्र में पांव पसारकर पाकिस्तानी फ़ौज, अपनी संपन्नता को और बढ़ाने के साथ साथ अपने कारोबारी साम्राज्य को मज़बूत बनाना चाहती है. लेकिन, पैसे का ये जुनून उसको बहुत महंगा पड़ सकता है.

लड़ाई से खेती तक: प्रासंगिकता की तलाश में पाकिस्तान सेना की अविराम यात्रा

23 दिसंबर 2023 को पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर को इस्लामाबाद में राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था. अब ये कल्पना करना जरा मुश्किल हो सकता है कि कोई वर्दीधारी जनरल कृषि क्षेत्र के वैज्ञानिक समुदाय को भला क्या नसीहत दे सकता है. लेकिन, इस मामले में पाकिस्तान एक अपवाद है. पाकिस्तान में जो कुछ भी होता है, उसके केंद्र में हमेशा वहां की फ़ौज ही होती है.

उसने उत्सुक दर्शकों को निराश नहीं किया और सेना की प्रतिबद्धता को दोहराया कि वह देश के संघर्ष कर रहे कृषि क्षेत्र का समर्थन करेगी.

 

कॉरपोरेट कृषि की ओर बढ़ते क़दम

 

पाकिस्तान को अक्सर कृषि आधारित अर्थव्यवस्था कहा जाता है. क्योंकि, पाकिस्तान की GDP में कृषि लगभग 23 प्रतिशत का योगदान देती है और उसमें देश की 37 प्रतिशत कामगार आबादी रोज़गार पाती है. हालांकि, पानी के भयंकर संकट, खेती के घटते क्षेत्र और ज़मीन की कम उत्पादकता जैसे कारणों से पाकिस्तान का कृषि उत्पादों का आयात बड़ी तेज़ी से बढ़ता रहा है और अब ये रक़म 10 अरब डॉलर तक जा पहुंची है. विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ पाकिस्तान की लगभग 37 फ़ीसद आबादी अभी भी खाद्य असुरक्षा की शिकार है. ये बुरे हालात 2022 में तबाही मचाने वाली बाढ़ की वजह से और बिगड़ गए और उसके बाद से ही देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले कृषि क्षेत्र में गंभीर सुधारों की ज़रूरत है.

 

पाकिस्तान, जिसके ग्रामीण इलाक़े कभी बहुत हरे भरे हुआ करते थे, वहां पर आबादी के भयंकर विस्फोट, जलवायु परिवर्तन और सत्ता के भूखे ज़मीन माफ़िया की वजह से ज़मीनों पर भयंकर दबाव बढ़ गया है.

 इस योजना के अंतर्गत योजना बनाई गई है कि किसानों को आसानी से क़र्ज़ और खेती बाड़ी के उन्नत तरीक़े अपनाने जैसी सुविधाएं दी जाएंगी.

इस ख़राब आर्थिक स्थिति में भी पाकिस्तान की फ़ौज ने अपने लिए मौक़ा खोज लिया है और देश में ‘ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव’ की शुरुआत के पीछे प्रमुख ताक़त बन गई है. इस पहल के तहत सरकार कृषि उत्पादन बढ़ाना और खाद्य असुरक्षा को घटाना चाहती है. इस योजना के अंतर्गत योजना बनाई गई है कि किसानों को आसानी से क़र्ज़ और खेती बाड़ी के उन्नत तरीक़े अपनाने जैसी सुविधाएं दी जाएंगी.

 

पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने बार बार ये दोहराया है कि फ़ौज, ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव (GPI) को लेकर प्रतिबद्ध है. इस मक़सद से पाकिस्तान की फ़ौज ने लैंड इन्फॉर्मेशन ऐंड मैनेजमेंट सिस्टम (LIMS) विकसित किया है, ताकि पूरे देश में ख़ाली पड़ी और ऊसर ज़मीन को दोबारा हासिल करके देश के कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण किया जा सके. LIMS की ज़िम्मेदारी फ़ौज के मेजर जनरल रैंक के अधिकारी को दी गई है और उसे सामरिक परियोजनाओं के महानिदेशक (DGSP) पद पर तैनात किया गया है, जिससे वो पूरे मुल्क में सरकार की योजनाबद्ध पहलों के साथ तालमेल कर सके.

 

इस नई व्यवस्था का लक्ष्य मौसम के हालात, सिंचाई की तकनीकों, फ़सलों की उपज और आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल को लेकर किसानों को सीधे तौर पर मार्गदर्शन देना है.

 

फ़ौज का एक घोषित लक्ष्य ख़ाली पड़ी बेकार ज़मीन को दोबारा हासिल करके उसमें खेती की शुरुआत करके अर्थव्यवस्था में दोबारा जान डालना भी है, जिससे पाकिस्तान का सामाजिक आर्थिक विकास किया जा सके. फ़ौज ने पूरे मुल्क में सिंचाई के लिए नहरों के नए नेटवर्क बनाने का प्रस्ताव रखा है, जिसकी मदद से ख़ाली और बेकार पड़ी लगभग नब्बे लाख हेक्टेयर ज़मीन पर दोबारा खेती शुरू की जा सके.

 

सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने इस पहल में असाधारण रूप से दिलचस्पी दिखाई है और वो बार बार तमाम भागीदारों को ये भरोसा देते रहे हैं कि ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव को पाकिस्तानी फ़ौज के मुख्यालय (GHQ) से पूरा सहयोग मिलेगा.

 

इसलिए इन दिनों पाकिस्तान में ‘कॉरपोरेट फार्मिंग’ की काफ़ी चर्चा हो रही है और फ़ौज ने अपने फौजी फाउंडेशन के अंतर्गत फोनग्रो (FonGrow) जैसी कृषि क्षेत्र की नई सहयोगी कंपनियों का भी गठन किया है. जुलाई 2023 में फ़ौज ने पंजाब सूबे के पेरोवाल 2250 एकड़ में फैले ‘स्टेट ऑफ दि आर्ट कॉरपोरेट एग्रीकल्चर पार्क’ का भी उद्घाटन किया था.

 

कृषि से समृद्धि लाने की ऐसी ही योजना चोलिस्तान के बंज़र रेगिस्तानी इलाक़े के लिए भी बनाई गई है, जहां टिकाऊ खेती के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल और कृषि संबंधी कारोबार के लिए एग्री-मॉल की स्थापना पर काम चल रहा है.

 इतनी ढेर सारी ज़मीन पाकिस्तानी फ़ौज के मालिकाना हक़ वाली कंपनी को अगले 20 साल के लिए ‘ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव’ लागू करने के लिए दी जाएगी.

सार्वजनिक रूप से बहुत अधिक आलोचना के बाद सिंध की सरकार भी मेसर्स ग्रीन कॉरपोरेट इनिशिएटिव प्राइवेट लिमिटेड के साथ समझौता करने के लिए राज़ी हो गई. पाकिस्तानी फ़ौज के साये तले बनाई गई इस कंपनी को सिंध की सरकार कॉरपोरेटर फार्मिंग के लिए 52 हज़ार एकड़ ज़मीन देगी, जो छह ज़िलों में फैली है. 52 हज़ार 713 एकड़ की ‘बंज़र’ ज़मीन में से 28 हज़ार एकड़ ख़ैरपुर में, दस हज़ार एकड़ थारपारकर, 9305 एकड़ दादू, एक हज़ार एकड़ थट्टा, 3408 एकड़ सुजावल और एक हज़ार एकड़ ज़मीन बादिन ज़िले में है. इतनी ढेर सारी ज़मीन पाकिस्तानी फ़ौज के मालिकाना हक़ वाली कंपनी को अगले 20 साल के लिए ‘ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव’ लागू करने के लिए दी जाएगी.

 

Image 1: सिंध सरकार द्वारा पाकिस्तानी फ़ौज को ज़मीन का प्रस्तावित आवंटन

 

Fighting To Farming Pakistan Military S Relentless Quest For Relevance

Source: Journalist Miraj Habib’s X/Twitter handle

 

 

वहीं, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा की सूबाई सरकार ने भी पट्टे का एक समझौता किया है, जिसके तहत फ़ौज को दक्षिणी वज़ीरिस्तान में 17 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन का मालिकाना हक़ दिया गया है. पाकिस्तानी फ़ौज की पेशावर स्थित 11वीं कोर ने दक्षिणी वज़ीरिस्तान के ज़ारमलाम इलाक़े में इस ज़मीन के एक हज़ार एकड़ हिस्से में तो खेती शुरू भी कर दी है और वो अगले कुछ वर्षों में खेती की ज़मीन का दायरा बढ़ाकर लगभग 41 हज़ार एकड़ तक पहुंचाने का इरादा रखती है.

 

मार्च 2022 में पाकिस्तानी फ़ौज के ज़मीन निदेशालय ने पंजाब सरकार से ‘गुज़ारिश’ की थी कि वो 45 हज़ार 267 एकड़ ज़मीन कॉरपोरेट फार्मिंग के लिए उसके हवाले कर दे जो, भक्खर (42,724 एकड़), ख़ुशाब (1818 एकड़) और साहीवाल (725) ज़िलों में है. ज़मीन हवाले करने का ये प्रस्ताव असल में तो भविष्य में कुल दस लाख एकड़ ज़मीन फ़ौज के हवाले करने की योजना का एक छोटा सा हिस्सा भर है.

 

ये ज़मीन आख़िर है किसकी?

 

एक के बाद एक ज़मीन हस्तांतरित करने के इन प्रस्तावों ने पाकिस्तान की जनता के बीच कई चिंताजनक सवाल खड़े कर दिए हैं. मिसाल के तौर पर भक्खर ज़िले के गांव चक नंबर 20/ML में दो सौ से ज़्यादा लोगों ने एक क़ानूनी अर्ज़ी पर दस्तख़त करके ज़मीन फ़ौज के हवाले करने का विरोध किया. लाहौर हाई कोर्ट ने भी फ़ौज की ज़मीन की मांग की संवैधानिकता पर सवाल उठाए और पंजाब सरकार को ज़मीनें फ़ौज के हवाले करने से रोकने का आदेश भी दे दिया था. हालांकि, आख़िर में हाई कोर्ट का आदेश निलंबित कर दिया गया और अब पंजाब सूबे की सरकार, फ़ौज के कॉर्पोरेट फार्मिंग करने की योजना को आगे बढ़ा रही है.

 

हालांकि, पाकिस्तानी फ़ौज का ज़मीन के प्रति सनक की हद तक का ये लगाव कोई नया नहीं है. पिछले कई दशकों से पंजाब सूबे के ओकाड़ा ज़िले में सैन्य फॉर्म लोगों के बीच परिचर्चा का विषय बने रहे हैं. 17 हज़ार से ज़्यादा एकड़ में फैले ये फॉर्म 19वीं सदी में अंग्रेज़ों ने कनाल कॉलोनियों के तौर पर विकसित किए थे. पर, जब फ़ौज ने ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर लिया और किसानों से कहा कि उन्हें अब फ़सलों से होने वाली आमदनी का एक हिस्सा फ़ौज को भी देना पड़ेगा, तो ये सैनिक फॉर्म किसानों और फ़ौज के बीच तल्ख़ विवाद की वजह बन गए थे. पाकिस्तानी फ़ौज पर किसानों के ऊपर ज़ुल्म ढाने के इल्ज़ाम भी लगते रहे हैं. जैसे कि जुलाई 2014 में ज़मीन के ठेकों को आगे बढ़ाने को लेकर किसानों और फ़ौज के बीच हुई झड़प में दो किसान मारे गए थे और कई लोग घायल भी हो गए थे.

 पाकिस्तानी फ़ौज पर किसानों के ऊपर ज़ुल्म ढाने के इल्ज़ाम भी लगते रहे हैं. जैसे कि जुलाई 2014 में ज़मीन के ठेकों को आगे बढ़ाने को लेकर किसानों और फ़ौज के बीच हुई झड़प में दो किसान मारे गए थे और कई लोग घायल भी हो गए थे.

हालांकि, ऐसी घटनाओं के बावजूद पाकिस्तान के जनरलों के हौसले कमज़ोर नहीं पड़े हैं, और मुल्क के मौजूदा ख़राब आर्थिक हालात ने फ़ौज को ज़मीन की देख-रेख के मामले में भी दख़ल देने का मौक़ा मुहैया करा दिया है.

 

पाकिस्तानी फ़ौज ने खेती बाड़ी में अपने दख़ल को ये कहते हुए जायज़ ठहराया है कि ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव उसके अधिकार क्षेत्र में आता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और अकाल रोकने समेत पूरी खाद्य सुरक्षा का मामला, राष्ट्रीय सुरक्षा के व्यापक दायरे के अंतर्गत आता है.

 

मर्ज़ और उसका इलाज

 

अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही पाकिस्तान की निर्णय प्रक्रिया में फ़ौज ज़रूरत से ज़्यादा बड़ी भूमिका निभाती रही है. जैसे जैसे समय बीतता गया है, वैसे वैसे राजनीति में दख़लंदाज़ी के अलावा पाकिस्तान के सैन्य बलों ने 50 ज़्यादा कारोबारी कंपनियों के ज़रिए अपने कॉरपोरेट हितों को भी काफ़ी बढ़ा लिया है. आज पाकिस्तानी फ़ौज की कंपनियां अनाज से लेकर सीमेंट का उत्पादन करती हैं और आवासीय कॉलोनियां भी बनाती हैं.  हाल ही में निवेश को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई विशेष परिषद (SFIC) ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में फ़ौज की दख़लंदाज़ी को और भी मज़बूत कर दिया है.

 

कृषि क्षेत्र की ज़मीन में फ़ौज के इस दख़ल की वजह से भविष्य में उसकी युद्ध लड़ने की क्षमता पर असर पड़ने जैसे सवाल भी उठ रहे हैं. वैसे तो इस बात की संभावना कम ही है कि पाकिस्तानी फ़ौज अपने अधिकारियों को खेती करने के लिए कहेगी. लेकिन, ज़मीन पर मालिकाना हक़ के आकर्षक अवसर, रिटायरमेंट के बाद फ़ौज की कारोबारी संस्थाओं में पोस्टिंग के मौक़े और आम लोगों के बीच फ़ौज को लेकर बढ़ती नाराज़गी का पाकिस्तानी फ़ौज के ऊपर दूरगामी नकारात्मक असर पड़ना तय है.

 इन आंकड़ों से पता चला था कि पाकिस्तानी फ़ौज लगभग 40 अरब डॉलर क़ीमत वाली कारोबारी संस्थाएं चलाती है और वो एक ग़रीब मुल्क की सबसे बड़ी कारोबारी घराना है. 

अपने विशाल कारोबारी साम्राज्य के ज़रिए पाकिस्तानी फ़ौज के आर्थिक हित पिछले कुछ दशकों के दौरान कई गुना बढ़ गए हैं. हाल ही में नेशनल असेंबली में परिचर्चा के दौरान पाकिस्तान की सरकार ने आधिकारिक आंकड़े पेश किए थे. इन आंकड़ों से पता चला था कि पाकिस्तानी फ़ौज लगभग 40 अरब डॉलर क़ीमत वाली कारोबारी संस्थाएं चलाती है और वो एक ग़रीब मुल्क की सबसे बड़ी कारोबारी घराना है. पाकिस्तानी फ़ौज के पास 50 से ज़्यादा कंपनियां, औद्योगिक इकाइयां, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और रिहाइशी कॉलोनियां वग़ैरह हैं, जिन्हें फ़ौजी फाउंडेशन, शाहीन फाउंडेशन, बहरिया फाउंडेशन, आर्मी वेल्फेयर ट्रस्ट (AWT) और डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी (DHAs) के ज़रिए संचालित किया जाता है.

 

ऐसे में पाकिस्तानी फ़ौज की कृषि संबंधी महत्वाकांक्षाएं एक स्वाभाविक क़दम हैं, जिनके ज़रिए वो अपनी संपत्ति को और बढ़ाना चाहती है और अपने विशाल कारोबारी साम्राज्य को मज़बूत बनाना चाहती है. हालांकि, लंबी अवधि में पैसे का ये जुनून पाकिस्तान और उसकी फ़ौज दोनों के लिए बहुत महंगा पड़ सकता है.

 

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Sushil Tanwar

Sushil Tanwar

Brig Sushil Tanwar, VSM, is an alumnus of the Military School (Ajmer) and National Defence Academy. Brigadier Sushil Tanwar has had a distinguished career spanning ...

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