हाल ही में, न्यूयॉर्क शहर (NYC) द्वारा प्रस्ताव किया गया कि चूहों के साथ गर्भनिरोधक इस्तेमाल का परीक्षण किया जाये. ये खबर पूरी दुनिया में फैल गयी. इस कदम को न्यूयॉर्क शहर के महापौर ने “शहरी चूहा प्रबंधन क्षेत्र में नए प्रतिमान” कहा. शहरी नगर परिषद ने हाल ही में कॉन्ट्रापेस्ट, जो कि एक तरह का चूहों के जन्म के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला नियंत्रण टूल है, उसकी तैनाती शहर के सीमित क्षेत्रों में किए जाने की मंज़ूरी प्रदान की. इसका निर्माण करने वाले, अमेरिकी बायोटेक्नोलॉजी कंपनी सेनेसटेक, ने अपने दावे में कहा कि लंबी अवधि के लिये चूहों के प्रबंधन की दिशा में उनका ये उत्पाद एक मानवीय एवं टिकाऊ विकल्प प्रदान करता है. शहर में किए गए प्रयोग की सफलता के आधार पर, NYC द्वारा 3 मिलियन चूहों से निपटने के संदर्भ में एक नए नज़रिए के साथ पहल की जा सकती है. इस प्रयोग के सफल होने की स्थिति में, चूहों के नियंत्रण के पारंपरिक तरीके से निजात पाए जाने की आशा ज़ोर पकड़ती है.
चूहों का अस्तित्व सदियों से शहरों में मनुष्यों के साथ सह-अस्तित्व के तौर पर जाना जाता है. विश्व के लगभग ज्य़ादातर शहरों में इन्होंने काफी उपद्रव मचा रखा है.
चूहों का अस्तित्व सदियों से शहरों में मनुष्यों के साथ सह-अस्तित्व के तौर पर जाना जाता है. विश्व के लगभग ज्य़ादातर शहरों में इन्होंने काफी उपद्रव मचा रखा है. ये मानव स्वास्थ्य के लिए, और ढांचों के निर्माण, बिजली के तार, एवं पार्क किये गये कारों के लिए एक खतरा हैं. ये अनाज के भंडारण में अनाज को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. उदाहरण के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार, सिर्फ़ मुंबई शहर के भीतर ही चूहों पर नियंत्रण लागू किए जाने से वार्षिक तौर पर 90,000 लोगों को खिलाए जा सकने योग्य अनाज की बचत की जा सकती है. भारत में कराए गए एक शोध के अनुसार, भारत में एक साल में जमा किये कुल खाद्यान्न का 2.5 प्रतिशत तो चूहों के वजह से नष्ट हो जाता है. एक रूढ़िवादी विश्लेषण में लगाए गए अनुमान के अनुसार 1930 और 2022 के दौरान, चूहों ने अपने आतंक से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को अमेरिकी डॉलर मूल्य में लगभग 3.6$ मूल्य की हानि पहुंचाई है. चूहों द्वारा भोजन एवं पशु आहार को दूषित किए जाने की वजह से इंसानों के रहने की जगहों में पिस्सू, जूएं, एवं चिचड़ी जैसे अवांछित परजीवी पैदा होते हैं. इनसे एलर्जी, चूहों के काटने से होने वाले बुख़ार, स्क्रब टाइफस, लीशमैनिया, और प्लेग जैसी बीमारियां पैदा होने का खतरा बनता है. कभी कभी, उनकी गतिविधियों से सलमोनेलोसिस (फूड पॉइज़निंग) भी हो सकती है.
कोविड-19 महामारी ने चूहों को भोजन के नए स्रोतों की खोज करने को विवश किया है. रॉडेंटोलॉजिस्टों द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार महामारी के कारण हज़ारों-लाखों की संख्या में चूहे मारे गए हैं. परंतु, व्यापार एवं होटलों के खुलने से, चूहे फिर से वापिस आ गए हैं और दुनियाभर के शहरों में इनकी आबादी दोबारा बढ़ती जा रही है. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन, जिसने गरम तापमान को लंबे वक्त के लिए ला खड़ा किया है, उसने भी इन चूहों को प्रजनन के लिए काफी लंबा समय देने का काम किया है.
कोविड-19 महामारी ने चूहों को भोजन के नए स्रोतों की खोज करने को विवश किया है. रॉडेंटोलॉजिस्टों द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार महामारी के कारण हज़ारों-लाखों की संख्या में चूहे मारे गए हैं.
चूहों से निपटना कभी भी आसान नहीं रहा है. वे काफी कट्जीव, दृढ़, अनुकूलनीय, और काफी उर्वर प्रजननकर्ता के तौर पर जाने जाते हैं. पहले भी NYC ने इस समस्या से निजात पाने के काफी सारे प्रयास किए हैं. साल 2023 में, शहर के परिषद ने एक नए कानून को पारित किया जिसके तहत निर्माण परियोजनाओं में शामिल ठेकेदारों को, चूहों से निजात पाने के अभियान में आने वाली लागत को वहन करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया है. इस कानून के तहत प्रतिक्रिया की जगह रोकथाम पर ज़ोर दिया गया है और चूहों पर नियंत्रण के लिये उचित रणनीति निर्धारित किया गया है, जिनमें नियमित निरीक्षण, चूहों के भीतर आने के तमाम संभावित रास्तों (दीवारों एवं फ़र्शों के बीच के अंतराल, खाली स्थान) की पहचान कर उन्हें बंद करना, इससे होने वाले किसी भी प्रकार के संभावित संक्रमण के संकेतों को समझना एवं इन्हे तुरंत प्रभाव से समाप्त करना, कचरों के पर्याप्त भंडारण एवं इसके सुरक्षित निपटारे की व्यवस्था करना आदि शामिल है. इसके अलावा, चूहों को पनपने से रोकने के उद्देश्य से सड़क पर बड़े लंबे समय तक पड़े रहने वाले कचरे के जल्द से जल्द हटाये का आदेश दिया गया है. NYC ने व्यापारियों और स्थानीय निवासियों द्वारा निकाले जाने वाले कचरे के समय को भी बदल दिया गया है ताकि वो कम से कम समय तक बाहर खुले में पड़े न रहे. इस समस्या से बचाव के लिये अब शहरों में भोजन व्यवसाय से जुड़े व्यवसायियों को कहा गया है कि वे इन कचरों को थैलों के बजाये सुरक्षित कंटेनरों में डाल कर इसका निपटारण करें. आम नागरिकों एवं घरों को प्रोत्साहित करने के लिए, NYC को 3.4 मिलियन डॉलर की लागत पर स्थानीय निवासियों के कचरे के डब्बों को बड़े डब्बों से बदले जाने का भी निर्णय लिया गया है.
भारतीय शहरों में चूहे
एक लंबे समय से भारत के तमाम शहरों में चूहों की भारी आबादी रही है और इन चूहों को नियंत्रित करना और करते रहना, भारतीय शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) की सालों पुरानी ज़िम्मेदारी रही है. चूहों से निजात पाने की ये व्यवस्था, पारंपरिक तौर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग में नियुक्त किट नियंत्रण अधिकारियों को सौंपा जाता रहा है. मूल रूप से एक बंदरगाह शहर होने की वजह से मुंबई, विशेष रूप से प्लेग से पैदा होने वाले खतरों के प्रति काफी संवेदनशील रहा है. 19वीं शताब्दी के अंत के दौरान, शहर में प्लेग की घटना के दौरान 2,00,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे. 1994 में हुए प्लेग के हमले के दौरान, इस महामारी से निपटने के लिए हाफकिन इंस्टीट्यूट में निर्मित प्लेग वैक्सीन का इस्तेमाल मुंबई में किया गया था. शहर के विभिन्न वार्डों को ‘मूषक श्रम सीमाओं’ में बांट कर, इनके निरीक्षण एवं रोकथाम के लिए बीट अधिकारियों को दे दिया गया था. चूहों पर नियंत्रण पाने का सबसे आम तरीका फिज़िकल व रासायनिक था. इसके अलावा, रात के वक्त चूहों को मारना, चूहों के नियंत्रण का एक अनूठा तरीका था, जिसका इस्तेमालमुंबई में किया गया था.
दिल्ली में भी, चूहों की काफी भारी एवं घनी आबादी है, खासकर के जो भूमिगत या ज़मीन के अंदर रहते हैं, जहां उन्होंने सीवेरेज की लाइन, पानी के पाइप, फ़ाइबर आप्टिक एवं गैस पाइपलाइनों में अपना घर बना रखा है.
दिल्ली में भी, चूहों की काफी भारी एवं घनी आबादी है, खासकर के जो भूमिगत या ज़मीन के अंदर रहते हैं, जहां उन्होंने सीवेरेज की लाइन, पानी के पाइप, फ़ाइबर आप्टिक एवं गैस पाइपलाइनों में अपना घर बना रखा है. इस प्रकार से, दिल्ली के चूहों, इन भूमिगत स्थानों पर चूहों का बसेरा बना लिया है. वे एक जटिल नेटवर्क बना पाने में सफल हुए है. कोलकाता भी चूहों के आतंक से जूझ रहा है जो कि शहर में निर्मित तमाम फ्लाईओवरों की ठोस नींव में जाकर वहां से सुरंग बनाते हुए शहर के महत्वपूर्ण सीवरेज, एवं केबल लाइनों को काट डालते हैं. इन्हे झुग्गी झोपड़ियों, भोजनालयों, एवं ऐतिहासिक एवं औपनिवेशिक स्थलों एवं इमारतों में भी देखा गया है. कोलकाता महानगरपालिका कॉर्पोरेशन, बाकी अन्य ULB से कई प्रकार से सलाह एवं मशविरा लेती रही है और चूहों की बढ़ती आबादी से निपटने के लिए विभिन्न तरीकों की खोज कर रही है. पटना में पाया गया था कि, चूहों ने रेलवे प्लेटफॉर्म के नीचे ज़मीन खोद कर अपना बिल बना रखा था जिस वजह से ये ढह गए थे. एक समय पर तो पटना यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी को भी चूहों से निपटने की प्रक्रिया में तब बंद कर दिया गया था, हालांकि, विश्व भर के कई शहरों ने चूहों के प्रजनन एवं उनके विकास को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने का दावा भी किया है, वहीं चंद जगहों पर, चूहे बच पाने में सफल रहे है एवं हमेशा की तरह ही आज भी सक्रिय हैं.
चूहों के नियंत्रण में जटिलताएं
पिछले कई सालों से, कई प्रकार के मूष प्रबंधन इस्तेमाल में लाए जाते रहे है. चूहों को पकड़ना सबसे पहले इस्तेमाल में लाए जाने वाले तरीकों मे से एक रहा है. चूहों को मारने वाली ज़हरीली दवा का इस्तेमाल भी आम बात रही है. हालांकि, चूहों ने भी समय के साथ-साथ इन इस्तेमाल में लाए जाने वाले दवाओं के प्रति अपनी प्रतिरोध क्षमता को विकसित कर लिया है. चूहों के मारने वाले ज़हर का विशेषज्ञों द्वारा विरोध भी किया जाता रहा है, चूंकि इसके इस्तेमाल से अक्सर भोजन श्रृंखला में बायो-एक्यूम्यूलेशन या जैव-संचयन का जन्म हो जाता है.
ऐसा देखा गया है कि एनकैप्सूलेटेड बेट फॉर्म्युलेशन को अपेक्षित सफलता प्राप्त हुई है. हालांकि, इनका नुकसान ये है कि ये लक्ष्यों से अलग यानी चूहों के बजाये अन्य जीवों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. रॉडेंटोलॉजिस्ट्स के अनुसार, शहरी परिस्थिति में, रासायनिक नियंत्रण , चूहों का नियंत्रण करने की संभवतः सबसे प्रभावकारी तरीका है. हालांकि, इसके असर की भी कुछ सीमाएं हैं. भले ही शहरी चूहे व्यापक रूप हर जगह पाये जाते हैं, और शहर के बुनियादी ढांचों के साथ ही स्थानीय नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करते हैं, और शहरी वातावरण अथवा परिस्थिति में, सबसे कम शोध किए गए वन्यप्राणियों में से एक हैं. इसके परिणामस्वरूप, इनकी इकोलॉजी के बारे में काफी कम जानकारी है. इसके बावजूद, कि शहरी परिस्थिति में चूहा नियंत्रण के पारंपरिक तरीकों ने वांछित परिणाम नहीं दिए है, रैट कंट्रोल अनुसंधान में यह उदासीनता, इस व्यापक रियायत के बावजूद, मौजूद है. वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से प्रेरित होकर, जिस वेग से मानवीय शहरीकरण हो रही है, उसी गति से चूहों से संबंधित खतरों का प्रसार भी हो रहा है. इसके अलावा, भारत जैसे देश में शहरीकरण के साथ ही शहरों की बढ़ती आबादी भी शर्तिया तौर पर ऐसी परिस्थिति पैदा कर रही है, जो चूहों की आबादी में होने वाली वृद्धि का सहयोग करेगी.
शहरी चूहों के अध्ययन की प्रक्रिया, काफी कठिनाइयों से भरी हुई है, क्योंकि चूहों ने निजी एवं सार्वजनिक, दोनों ही संस्थाओं के अधीन वाले स्थानों पर अपना अतिक्रमण बना रखा है, जो अपने प्रवेश के साथ ही परेशानियां पैदा कर देती है और चूहों के व्यवहार का लंबे समय तक आकलन करने में बाधा डालती है. एक उपयुक्त शहरी चूहा अनुसंधान साइट, जो कि सार्वजनिक स्थलों, कमर्शियल और व्यावसायिक स्थलों के साथ ही आवासीय क्षेत्रों का एक मिश्रण है, जो कि लंबे समय तक बिना किसी बाधा के इस संदर्भ में शोध करने की सुविधा प्रदान करे, ताकि एक मज़बूत वैज्ञानिक पद्धति का निर्माण हो, वो पाना काफी मुश्किल है. यह समस्या स्पष्ट तौर पर कुछ खास नॉलेज गैप के लिए ज़िम्मेदार है, जो चूहों की इकोलॉजी से जुड़े जानकारियों या दस्तावेज़ों में पाये जाते हैं.
अब जिस चीज़ कि ज़रूरत है वो ये कि जीवित स्थिति में उनके असर का आकलन किया जाये. NYC ने शहरी क्षेत्रों को चिन्हित करने का बीड़ा उठाया है जहां ये गर्भनिरोधक वितरित किया जाएगा.
हालांकि, इम्यूनो – कॉन्ट्रासेप्टिव जिसे गर्भ निरोधक भी कहा जाता है, के ज़रिये फर्टिलिटी कंट्रोल या प्रजनन नियंत्रण के शोधकार्यों में हाल फिलहाल कुछ सफलता मिली है. अब जिस चीज़ कि ज़रूरत है वो ये कि जीवित स्थिति में उनके असर का आकलन किया जाये. NYC ने शहरी क्षेत्रों को चिन्हित करने का बीड़ा उठाया है जहां ये गर्भनिरोधक वितरित किया जाएगा. ये कदम कारगर होने की स्थिति में, शहरों में चूहों के खिलाफ़ जंग में काफी अमूल्य साबित होगा. अगर ये परीक्षण सफल हुआ तो, ये फिर एक नई प्रकार की पद्धति खोलेगी जो वैश्विक स्तर पर चूहों के नियंत्रण की दिशा में एक अति महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली तंत्र खड़ा कर सकता है.
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