Author : Sunjoy Joshi

Published on Mar 13, 2024 Updated 0 Hours ago

कहां, किस अवस्था में और कैसे लॉक डाउन खोलना है इसका निर्णय अधिकांश मामलों में दिल्ली से न लेकर राज्यों से ही लिया जाना चाहिए. वास्तव में आज के समय में स्टेट और सेंटर के बीच समन्वय ज्यादा बढ़ गया है, कम से कम वे एक दूसरे  से बातचीत तो कर रहे हैं.Fsunjoy

कोविड-19 से लड़ाई: अब लॉकडाउन के आगे की रणनीति की ज़रूरत!

इस समय देश के हर व्यक्ति के ज़ेहन में यही सवाल चल रहा है कि क्या लॉक डाउन ख़त्म होगा या इसे और भी बढ़ाया जाएगा. यह उस चक्रव्यूह की तरह हो गया है जिससे कि अभी बाहर निकलने का रास्ता समझ में नहीं आ रहा है. इसको लेकर क्या रणनीति बनानी चाहिए, यह कब-तक चल सकता है, क्या इसे अधिक समय तक बनाए रखना मुमकिन है, ये वो सवाल है जो सरकार और आम इंसान दोनों ही सोच रहे हैं? क्योंकि अर्थव्यवस्था पर इसका काफ़ी असर पड़ रहा है. इस लेख़ के माध्यम से हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि आख़िर, किस तरह से हम सब मिलकर इस लॉक डाउन से देश को बाहर निकाल सकते हैं और कैसे इस चिंताजनक स्थिति से हमारी अर्थव्यवस्था को उबार सकते हैं.

सच ये है कि अर्थव्यवस्था का इंजन बंद करना जितना आसान होता है उसे चालू करना उतना ही कठिन होता है. लॉक-डाउन के संबंध में कई राज्यों ने यह घोषणा की है कि हम अभी इसे महीने की आख़िरी तारीख़ तक जारी रखेंगे. लॉक डाउन के संबंध में प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच भी जो चर्चा  हुई उसमें भी इसी बात पर फोकस किया गया है कि  अभी इसे और आगे बढ़ाना चाहिए. लॉक डाउन को आगे बढ़ाना सही पूछिए तो आसान है क्योंकि सभी लोग इस बीमारी यानी कि कोरोना-वायरस के डर से भयभीत हैं.

लॉक-डाउन का निर्माण कर हमने रक्षात्मक कार्रवाई कर तो ली. लेकिन असली लड़ाई आक्रामक कार्रवाई होती है और उसे लड़ना है देश के लड़ाई के मैदानों और ज़िलों में और इसके तीन आयाम हैं- टेस्ट करना, आइसोलेट करना और कंटेन करना

कोरोना वायरस को लेकर प्रधानमंत्री के भाषण को देखा जाए तो वो अपने भाषणों में लगातार यह बात कहते आ रहे हैं कि कोरोना वायरस एक युद्ध है और अगर यह युद्ध है तो युद्ध रक्षात्मक भी होता है और आक्रामक भी. लॉक-डाउन का निर्माण कर हमने रक्षात्मक कार्रवाई कर तो ली. लेकिन असली लड़ाई आक्रामक कार्रवाई होती है और उसे लड़ना है देश के लड़ाई के मैदानों और ज़िलों में और इसके तीन आयाम हैं- टेस्ट करना, आइसोलेट करना और कंटेन करना. लॉक-डाउन एक इमरजेंसी उपाय है. लॉक-डाउन अभी बढ़ेगा  शायद  कुछ हफ्ते,  तो इस अवधि का लाभ उठाते हुए टेस्टिंग हम जितना ज्य़ादा बढ़ा पाए उतना ही  कोरोना वायरस को रोकने में  कारगर सिद्ध होगा. हमने देखा कि अभी उत्तर-प्रदेश सरकार ने 15 जिलों की पहचान कर उसके हॉटस्पॉट वाले इलाकों को सील कर दिया है. और दिल्ली सरकार ने भी ऐसे 20 स्थानों को चिन्हित कर उसके हॉटस्पॉट को सील करने की कार्रवाई पूरी कर ली है. आज  भारत में कुल 400 से अधिक ज़िले हॉटस्पॉट में तब्दील हो गए हैं. और जब हम इन हॉटस्पॉट को पहचानने में सफल हो जाते हैं, तब हमें इन्हें कंटेन करने की रणनीति अपनानी चाहिए.

लॉक-डाउन जितनी देर तक चलेगा उतना ही हमें अर्थव्यवस्था को चालू करने में कठिनाई आएगी और जो इसके भयानक दुष्टपरिणाम होंगे वो लोगों की न सिर्फ़ ज़िंदगी बल्कि उनके स्वास्थ्य पर भी देखने को मिलेंगे. हमने इन पाँच दशकों में जिन लोगों को गरीबी से ऊपर उठाया है वह वापिस फ़िर से उसी दलदल में चले जाएंगे जिससे हमारी अब तक की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा. हमारी अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्त चल रही थी और जो दुनिया का हाल है वही देश का भी हाल है. हमारी अर्थनीति का चक्का अभी जाम है. तो क्या हमें उम्मीद रखनी चाहिए या चिंता करनी चाहिए — क्योंकि हाल ही में जो सर्वे आया है उसमें जो वर्किंग पॉपुलेशन है उसको संभालने को लेकर चिंता जहिर की गई है. विशेषकर हमारे असंगठित क्षेत्र का.

सबसे बड़ी समस्या हमारे असंगठित क्षेत्र में है. खतरा उन पैंतीस करोड़ लोगों पर है जिनके जीवन-यापन में समस्या उत्पन्न हो गई है. इतनी बड़ी आबादी वाले देश में सभी के घर खाना पहुंचाना, उन्हें रिलैक्सेशन देना, इतने बड़े पैमाने पर संभव नहीं है. सभी राज्य इस प्रयास में लगे हुए थे, कि किसी ना किसी तरीके से हमारी जो रुरल इकोनामी है वह चलती रहे. मगर सिर्फ़ रुरल या ग्रमीण इकोनामी को चालू करने से समस्या का हल नहीं होता. इस समय हमारी सबसे बड़ी समस्या सप्लाई चैन की है. जितने ट्रक हमारे सड़कों पर दौड़ते थे उसके महज़ 10% ही आज सड़कों पर चल रहे हैं और जो चल भी रहे हैं उन्हें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हैं. तो ऐसे में हमें यह समझना होगा कि यह जो हमारे डिलीवरी एजेंट है वो भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं,  इस कोरोना महामारी संकट से निपटने में, जितना कि एक बॉर्डर पर तैनात सैनिक. किलेबंदी में सफलता तब मिलती है जब हमारे पास पर्याप्त लॉजिस्टिक्स हो.

सबसे बड़ी समस्या हमारे असंगठित क्षेत्र में है. खतरा उन पैंतीस करोड़ लोगों पर है जिनके जीवन-यापन में समस्या उत्पन्न हो गई है. इतनी बड़ी आबादी वाले देश में सभी के घर खाना पहुंचाना, उन्हें रिलैक्सेशन देना, इतने बड़े पैमाने पर संभव नहीं है

ज़िंदगी ज़रूरी है तो रोज़गार भी ज़रूरी है. और इस समय एक बात बार-बार सामने आ रही है कि जो हमारे मज़दूर वर्ग है, जो माइग्रेंट लेबर है उनको किस तरह से सहायता पहुंचाई जाए. वास्तव में लॉक-डाउन खोलना जोख़िम भरा है और इसके लिए राजनीतिक नेतृत्व की ज़रूरत पड़ेगी और यह राजनीतिक नेतृत्व राज्यों से मिलेगी,  क्षेत्रों से मिलेगी. कहां, किस अवस्था में और कैसे लॉक-डाउन खोलना है इसका निर्णय अधिकांश मामलों में दिल्ली से न लेकर राज्यों से ही लिया जाना चाहिए. वास्तव में आज के समय में केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय ज्य़ादा बढ़ गया है, कम से कम वे एक दूसरे में से बातचीत तो कर रहे हैं. इस तरह से दोनों को विचार-विमर्श करके इस संकट से निकालने की जो रणनीति है उसको तैयार करना होगा. इसके लिए पहले कंटेनमेंट यानी कि रोकथाम किया जाना चाहिए, हॉट-स्पॉट को आईडेंटीफाई किया जाना चाहिए और इन सबके बाद धीरे-धीरे उन सभी इलाकों में टेस्टिंग करके ऐसे लोगों को चिन्हित किया जाना चाहिए जिनमें अभी यह संक्रमण नहीं है, और फिर ऐसा करने के बाद जो हमारी आवश्यक निर्माण व्यवस्थाएं यानी मैन्युफैक्चरिंग चेन है उसे जल्द से जल्द चालू किया जाना चाहिए.

क्योंकि — इस भयानक बीमारी से लड़ने के लिए चाहे आम इंसान हो या हमारी चिकित्सा व्यवस्था, हमारे डॉक्टर्स, फोर्सेज़, प्रशासन उन सभी को दवाईयों से लेकर मास्क और पीपीई की ज़रूरत होगी, जिसे बनाने के लिये हमें मज़दूरों और कामगारों के काम पर लौटने की ज़रूरत को महत्व देना होगा और इसे सुनिश्चित तरीके लागू भी करना होगा. हमें हमारी सप्लाई-चेन को दुरुस्त भी करना होगा और उसे वृहद और समावेशी बनाना होगा. हमें न तो सिर्फ़ किसी एक देश पर निर्भर होना चाहिए और न ही सिर्फ़ अपने देश पर – ये दोनों ही संकट बढ़ाने वाला कदम होगा. इसका सही और सटीक उपाय कहीं न कहीं हमारी सप्लाई चेन को डायवर्सिफाय करके ही हासिल हो सकता है.

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