Author : Angad Singh

Published on May 22, 2019 Updated 0 Hours ago

सभी लड़ाकू हेलीकॉप्टरों को सेना को स्थानांतरित करना सेना और वायुसेना दोनों के काम करने के तरीक़ों को पूरी तरह से फिर से लिखने की ज़रूरत बता रहा है. अगर कमांड और कंट्रोल के मुद्दे हैं तो उनका निवारण प्रासंगिक स्तर पर होना चाहिए न कि अवांछित परिणाम से संबंधित परेशानी के बदले पूरे ऑपरेटिंग कॉन्सेप्ट को बदल कर.

लड़ाकू हेलीकॉप्टरों को सेना को सौंपना, संपत्ति और प्रयास के दोहराव जैसा है!

पिछले हफ़्ते भारतीय वायुसेना को 22 बोइंग AH-64E (I) लड़ाकू हेलीकॉप्टरों की पहली खेप सौंपे जाने पर काफ़ी बात हो चुकी है. एक बार फिर, ऐसे लेख़ की बाढ़ आ गई है जो यह सुझाव देते हैं कि हमें लड़ाकू हेलीकॉप्टरों को सेना को सौंप दिया जाना चाहिए. यह एक संकीर्ण नज़रिया है जो हेलीकॉप्टरों को सिर्फ़ ज़मीनी लड़ाई के विस्तार के रूप में देखता है और इन महंगे सैन्य साजो-सामान को आत्मसात करने और उनके ज़्यादा इस्तेमाल करने की सेना की क्षमता को ज़्यादा आंकता है.

हालांकि, अपाचे जैसे हेलीकॉप्टर — टैंक को मार गिराने में दक्ष हैं और आम तौर पर युद्ध के मैदान में काफ़ी तबाही मचाते हैं. अपाचे हेलीकॉप्टर और भी बहुत कुछ कर सकते हैं, जब वो बड़े पैमाने पर बख़्तरबंद हमले या ज़मीनी लड़ाई के साथ नहीं होते यानि जब वो युद्ध के मैदान से बाहर होते हैं. भारतीय वायुसेना के ख़ुद के ऑपरेशन के सिद्धांतों (CONOPS) के मुताबिक़ लड़ाई के मैदान से परे लड़ाकू हेलीकॉप्टरों की कई भूमिकाएं हैं, जिसमें युद्ध के मोर्चे से अलग दुश्मन के लक्ष्य (रेंज) पर हवाई पाबंदी भी शामिल है. जबकि, डिस्ट्रक्शन ऑफ़ एनिमी एयर डिफ़ेंस (DEAD) में लड़ाकू हेलीकॉप्टरों की उपयोगिता पर बहस की जा सकती है, वायुसेना का एक और ख़ास टास्क है जो इन लड़ाकू हेलीकॉप्टरों को सौंपा गया है — जिनके साथ बहुत कम ऊंचाई पर उड़ान भरने पर भी पहचान से बचने की विशेषता है. फिर, निश्चित रूप से, एयर-टू-एयर और हेलीकॉप्टर एस्कॉर्ट की भूमिकाएं हैं, जिन्हें भारतीय वायुसेना द्वारा नियंत्रित किया जाता है. लड़ाकू हेलीकॉप्टरों को पूरी तरह सेना को सौंपना एक बेहद उपयोगी प्लेटफ़ॉर्म को ज़ंजीर में जकड़कर संकीर्ण कामों के लिए सीमित करने जैसा होगा.

हालांकि अपाचे जैसे हेलीकॉप्टर टैंक को मार गिराने में दक्ष हैं और आम तौर पर युद्ध के मैदान में काफ़ी तबाही मचाते हैं. अपाचे हेलीकॉप्टर और भी बहुत कुछ कर सकते हैं जब वो बड़े पैमाने पर बख़्तरबंद हमले या ज़मीनी लड़ाई के साथ नहीं होते यानि जब वो युद्ध के मैदान से बाहर होते हैं.

मोर्चे पर लड़ाकू हेलीकॉप्टरों के इस्तेमाल के लिए हमेशा मिसाल के तौर पर पेश की जाने वाली अमेरिकी सेना पूरी तरह यूनाइटेड स्टेट्स एयर फ़ोर्स (USAF) के तहत काम करती है, जिसका हवाई क्षेत्र में पूरा दबदबा है. यह भारत में लागू नहीं होता, जहां हवाई क्षेत्र की प्रधानता सुनिश्चत नहीं की जाती है और लड़ाकू हेलीकॉप्टरों को विषम हवाई समस्याओं के साथ सामना करना होगा, उनके साथ एकीकृत करना होगा. साथ ही परिस्थितियों के मुताबिक़ ख़ुद की तैयारी को बढ़ाने के लिए अलग-अलग प्लेटफ़ॉर्म्स से जानकारी हासिल करने में सक्षम भी होना होगा और कमांड लेवल पर उपलब्ध हवाई तस्वीर को बेहतर बनाने के लिए ख़ुद के सेंसर इन्फ़ॉर्मेशन को आगे भेजना होगा. यहां तक कि खाड़ी युद्ध में भी जब अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल एयर डिफ़ेंस एलिमेंट के ख़िलाफ़ शुरुआती हमले के लिए किया गया था, तब उनकी अगुवाई USAF MH-53 ने की थी. उदाहरण के लिए इज़रायल में अपाचे (वास्तव में सभी हेलीकॉप्टर) वायु सेना के नियंत्रण में ही हैं.

वायु सेना जितने हेलीकॉप्टर ऑपरेट करती है, उसके आधे हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल भारतीय सेना करती है और पायलटों की क़रीब दोगुनी संख्या को प्रशिक्षित करती है. सेना में (जैसे कि नौ सेना में) कभी भी करियर एविएटर (विमान चालक) नहीं होता — एविएशन ब्रांच के बाहर नियमित तैनाती एक नॉर्म है, न कि अपवाद. इसका मतलब ये है कि जिन लोगों को फ़्लाइंग ड्यूटी से वापस बुलाया जाना है, उनकी जगह ज़्यादा एयर-क्रू को ट्रेनिंग देनी होगी, इससे तैयारी और विशेषज्ञता पर असर पड़ता है क्योंकि स्क्वाड्रन में एयर क्रू का बारी-बारी से आना होता है. भारतीय वायुसेना में यह विशिष्ट ज्ञान कहीं काम नहीं आता है, 20 सालों के लिए एक ही काम करना होता है, उड़ान भरना. जहां तक हेलीकॉप्टरों की कॉम्बैट तैनाती में सर्वश्रेष्ठ की बात है तो — टैक्टिक्स ऐंड एयर कॉम्बैट डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (TACDE) में हेलीकॉप्टर कॉम्बैट लीडर कोर्स में — कोई भी आर्मी पायलट ग्रैजुएट नहीं है. HCL कोर्स इसी पर आधारित है कि भारतीय वायु सेना कैसे लड़ती है और किस तरह लड़ने की योजना बनाती है — एक सामंजस्य में ऑपरेट कर रहे अलग-अलग एयरक्राफ़्ट के जटिल पैकेज के साथ. HCL ग्रैजुएट्स को इस तरह प्रशिक्षित किया जाता है कि जिन हेलीकॉप्टरों को वो उड़ाते हैं, उससे जितना संभव हो उतना सीख लें. बिना किसी HCL के सेवा में हुए और TACDE में मांगों की संभावना के बिना, तार्किक धारणा यह है कि सेना अपने लड़ाकू हेलीकॉप्टरों का उस स्तर तक इस्तेमाल करने में असमर्थ होगी, जितना कि भारतीय वायु सेना करती है. यहां तक कि अगर ट्रेनिंग के मुद्दों का समाधान कर लिया जाता है तो मैनपॉवर मैनेजमेंट का मुद्दा बना रहेगा — सेना एयर क्रू का कम इस्तेमाल जारी रखेगी और पायलटों की बड़ी संख्या को प्रशिक्षित करने के लिए मजबूर होगी.

भारतीय वायुसेना के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों का समूचा बेड़ा, जिनमें ध्रुव लाइट हेलीकॉप्टर से बना HAL रुद्र गनशिप, सोवियत मूल का Mi-35 और अब अपाचे शामिल हैं, ये सब पहले से ही सेना के स्ट्राइक कॉर्प्स के ऑपरेशनल कंट्रोल में हैं.

भारतीय वायुसेना के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों का समूचा बेड़ा, जिनमें ध्रुव लाइट हेलीकॉप्टर से बना HAL रुद्र गनशिप, सोवियत मूल का Mi-35 और अब अपाचे शामिल हैं, ये सब पहले से ही सेना के स्ट्राइक कॉर्प्स के ऑपरेशनल कंट्रोल में हैं. जब HAL का लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (LCH) सेना के बेड़े में शामिल किया जाएगा, तब इसका संचालन भी वायु सेना ही करेगी लेकिन नियंत्रण सेना का होगा. सेना HAL रुद्र को जल्द से जल्द बेड़े में शामिल करने जा रही है, अपने लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (LCH) का ऑर्डर दे दिया है और हाल ही में छह AH-64 को ख़रीदने के लिए मंज़ूरी दे दी गई है. भारत के खोख़ले रक्षा बजट ने आधुनिकीकरण के किसी भी प्रयास को रोक दिया है, यह संपत्तियों और प्रयासों के दोहराव जैसा है, जिसे किसी भी क़ीमत पर टाला जाना चाहिए.

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