Author : Kavitha Sairam

Published on Dec 10, 2020 Updated 0 Hours ago

कृषि और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में रिसर्च का भविष्य फिलहाल अपने शिखर पर है और अगले दशक में ये और महत्वाकांक्षी बन जाएगा.

FIB-SOL लाइफ़ टेक्नोलॉजीज़: नैनो टेक्नोलॉजी के ज़रिए कृषि क्षेत्र को मिल रही मदद की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश

ORF: FIB-SOL उर्वरक उद्योग में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है. इस बेहद आवश्यक समाधान तक आप कैसे पहुंचीं?

Kavitha Sairam: FIB-SOL फिलहाल नैनो फाइबर के ज़रिए कृषि में मदद के उत्पाद को विकसित और उनका व्यावसायीकरण कर रही है. ये उत्पाद 5 ग्राम का फाइबर है जो पानी में घुल जाता है और खेतों में परंपरागत या आधुनिक सिंचाई की पद्धति से इस्तेमाल में लाया जा सकता है. ये उत्पाद मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए जिंदा बैक्टीरिया की मांग का समाधान करता है. ये पोषक तत्वों के इस्तेमाल की क्षमता को भी बढ़ा सकता है जिससे पौधे बेहतर तरीक़े से पोषक तत्वों को मिला सकेंगे.

ये उत्पाद मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए जिंदा बैक्टीरिया की मांग का समाधान करता है. ये पोषक तत्वों के इस्तेमाल की क्षमता को भी बढ़ा सकता है जिससे पौधे बेहतर तरीक़े से पोषक तत्वों को मिला सकेंगे.

कुछ साल पहले जब मैंने अपनी डॉक्टरेट पूरी की ही थी, तब मुझे कृषि के लिए महत्वपूर्ण जीवाणुओं के इस्तेमाल का विचार आया. मैं फंगल सिस्टम में कम महत्व के छोटे कणों के उत्पाद को बेहतर करने पर काम कर रही थी. उस वक़्त मैं विज्ञान के विषय में अपने कारोबार को शुरू करने के लिए उत्सुक थी और कई तरह के आइडिया की जांच-पड़ताल में जुटी थी जिनमें बायोमार्कर की छान-बीन को विकसित करने का आइडिया भी शामिल था. उसी वक़्त मेरे पीएचडी गाइड और गुरु, प्रोफेसर टी. एस. चंद्रा ने ज़ोर दिया कि हमें कृषि के क्षेत्र की समस्याओं के समाधान को लेकर कोई तकनीक विकसित करनी चाहिए.

तब जाकर मैंने कृषि पद्धतियों पर जांच-पड़ताल शुरू की. मैंने पाया कि मिट्टी पोषक तत्वों के इस्तेमाल की अपनी क्षमता खो चुकी है जिसकी बड़ी वजह मिट्टी में जीवाणुओं की कमी है. रसायन के अंधाधुंध इस्तेमाल ने मिट्टी में जीवाणु कम कर दिए हैं. ये जीवाणु पौधों के द्वारा पोषक तत्वों को उचित ढंग से ग्रहण करने के लिए ज़रूरी हैं. मिट्टी में मौजूद  जीवाणु जैविक खाद को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम (या NPK) में बदलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जो पौधों के विकास के लिए ज़रूरी हैं. इस तरह मैंने पता लगाया कि रसायनिक और जैविक- दोनों तरह की खेती में मिट्टी में रहने वाले जीवाणु या बायोफर्टिलाइज़र की कमी है.

रसायन के अंधाधुंध इस्तेमाल ने मिट्टी में जीवाणु कम कर दिए हैं. ये जीवाणु पौधों के द्वारा पोषक तत्वों को उचित ढंग से ग्रहण करने के लिए ज़रूरी हैं.

लंबे वक़्त से बायोफर्टिलाइज़र की आपूर्ति गांधी कृषि विज्ञान केंद्र (GKVK) जैसे कृषि विश्वविद्यालय करते रहे हैं. लेकिन कृषि विश्वविद्यालय जो आपूर्ति करते हैं उनमें वो रसायनिक चीज़ें जैसे भूरा कोयला, नरम कोयला और टैल्क मिलाते हैं जो जीवाणुओं के लिए ठीक नहीं हैं. मैंने महसूस किया कि इन जीवाणुओं को बनाए रखने का तरीक़ा ही समाधान होगा. इसके लिए फ्रीज़ ड्राइंग जैसी तकनीक तो है लेकिन वो काफ़ी महंगी है. इसलिए मैंने जीव विज्ञान पर गौर करने के बारे में सोचा जहां जीवाणुओं को बनाए रखने के लिए कुछ जोड़ा जा सकता है. इसके विकल्प के तौर पर इलेक्ट्रो स्पिनिंग और इनकैप्सुलेशन समाधान हो सकता है. मेरे जूनियर और सह-संस्थापक डॉक्टर अनंत रहेजा नैनो फाइबर टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे थे और हमने इसकी और छान-बीन के लिए साझेदारी की. हमने समझा कि स्टैबिलाइज़ेशन के अलावा हम इस तकनीक के इस्तेमाल के ज़रिए सेल्स/यूनिट का भार भी बढ़ा सकते हैं. इससे हम कैरियर को हज़ार गुना छोटा करके आकार को छोटा कर सकते हैं. ये फ़ायदा वितरकों और इस्तेमाल करने वालों के लिए लॉजिस्टिक के मामले में बड़ी बचत होगी. तौर-तरीक़ा बेहतर होने से खेत में कार्यक्षमता भी काफ़ी बढ़ गई. इस तकनीक का दूसरा फ़ायदा ये है कि कणों के कई प्रकार, जैविक और अजैविक दोनों, फंस सकते हैं. इस तरह ये तकनीक कई तरह के कृषि सहयोग के पूर्ण इस्तेमाल के लिए अच्छा मंच है. हालांकि, जब नये उत्पादों को इसमें जोड़ा जाएगा तो कुछ रिसर्च और डेवलपमेंट की कोशिश करने की ज़रूरत होगी लेकिन हमारा मानना है कि एक दिन ऐसा आएगा जब ज़्यादातर कृषि सहयोग को इस तकनीक के इस्तेमाल से फिर से परिभाषित किया जाएगा.

ORF: हमें ये बताइए कि आपने भारत में नैनो फाइबर के सबसे बड़े स्वदेशी उत्पादन की स्थापना कैसे की और आप इस बाज़ार को आगे बढ़ाने के लिए क्या कर रही हैं?

Kavitha Sairam: एक सेक्टर के रूप में कृषि में मदद देने वाले उत्पादों को अभी तक नज़रअंदाज़ किया गया है और इसमें बहुत ज़्यादा रिसर्च और डेवलपमेंट नहीं हुआ है. इसकी वजह ये है कि इसमें मुनाफ़ा काफ़ी कम है. लेकिन कृषि में मदद देने वाले उत्पादों को बेहतर करके उन्हें सुरक्षित और ज़्यादा सक्षम बनाना ज़रूरी है. आबादी में बढ़ोतरी के साथ खाद्यान्न की मांग बढ़ेगी. मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरा शक्ति का लगातार दोहन नहीं किया जा सकता है. इन समस्याओं को देखते हुए कृषि में मदद देने वाले उत्पादों को फिर से परिभाषित करना महत्वपूर्ण है.

आबादी में बढ़ोतरी के साथ खाद्यान्न की मांग बढ़ेगी. मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरा शक्ति का लगातार दोहन नहीं किया जा सकता है. इन समस्याओं को देखते हुए कृषि में मदद देने वाले उत्पादों को फिर से परिभाषित करना महत्वपूर्ण है.

इसी संदर्भ में FIB-SOL नैनो फाइबर में इलेक्ट्रो स्पिनिंग की नियंत्रित प्रक्रिया के ज़रिए जीवाणुओं को स्टैबिलाइज़ करने में सबसे प्रगतिशील तकनीक की पेशकश करने की कोशिश कर रही है. वैसे तो इलेक्ट्रो स्पिनिंग और नैनो फाइबर की तकनीक पिछले चार दशकों से अस्तित्व में हैं लेकिन इनका इस्तेमाल जीव विज्ञान में नहीं किया गया है. कृषि जैसे बाज़ार में जहां मात्रा बहुत ज़्यादा है, वहां ऐसी तकनीक की ज़रूरत है जिससे उत्पादन बढ़ाया जा सके. फिलहाल इलेक्ट्रो स्पिनिंग का इस्तेमाल ज़्यादातर छानने वाले मेम्ब्रेन को बनाने में होता है. FIB-SOL के ज़रिए हमने मौजूदा पद्धति में कुछ बदलाव करके जैविक उत्पादन को केंद्र में रखा है. FIB-SOL ने इंजीनियरिंग कंपनियों के साथ साझेदारी की और एक इंजीनियरिंग टीम को भी काम पर रखा जो मशीन के विकास पर ध्यान देगी. जीवाणु युक्त नैनो फाइबर के उत्पादन के लिए ज़रूरी बुनियादी मानदंडों का विस्तार करके बड़े स्तर की मशीन के लायक बनाया गया. अलग-अलग शर्तों को अनुकूल बनाया गया और प्रक्रिया के लिए ज़रूरी चीज़ों को इस तरह से आंतरिक तौर पर बनाया और इकट्ठा किया गया कि अब हमारे पास देश में पानी में घुलने वाले नैनो फाइबर के लिए सबसे ज़्यादा क्षमता है.

स्वदेशी मशीनों के अलावा हमने औद्योगिक स्तर की मशीनों में फेरबदल के तरीक़ों की पहचान भी कर ली है ताकि हमारे उत्पाद का उचित उत्पादन हो सके. इस तरह उत्पादन में किसी भी तरह के अवरोध को हटा लिया गया है.

ORF: आप न सिर्फ़ एक नये उत्पाद को तैयार कर रही हैं बल्कि कृषि में मदद देने वाले उत्पादों के बाज़ार का भी विस्तार कर रही हैं. वैश्विक स्तर पर किन परिवर्तनों की ज़रूरत है ताकि इस महत्वपूर्ण बदलाव को मंज़ूर किया जा सके ?

Kavitha Sairam: कृषि में मदद देने वाले उत्पादों को सामान्य रूप से ठोस और तरल उत्पादों में बांटा जा सकता है. आज प्रभावशाली जीवाणुओं को इकट्ठा करके मिट्टी की गुणवत्ता और पौधे की उपज को बेहतर करने में माइक्रो इनकैप्सुलेशन तकनीक का व्यापक तौर पर इस्तेमाल हो रहा है. FIB-SOL की तकनीक इसके नज़दीक है. नैनो पार्टिकल की भी व्यापक जांच-पड़ताल हो रही है और कई उत्पादों को नैनो पार्टिकुलेट फॉर्म्यूलेशन के तौर पर विकसित किया गया है. ये अभी शुरुआती बाज़ार है और निश्चित दिशा-निर्देश के तहत इन उत्पादों की सुरक्षा ज़रूर जांचनी चाहिए. इसलिए ये सभी हिस्सेदारों- सरकार, कृषि संस्थानों, रिसर्चर्स, कृषि स्टार्टअप- की जिम्मेदारी है कि नैनो आधारित फॉर्म्यूलेशन के लिए नये दिशा-निर्देश को बनाएं. इस संदर्भ में हमें ये कहते हुए गर्व की अनुभूति हो रही है कि FIB-SOL ने इन दिशा-निर्देशों को बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. मेरी कंपनी के सह-संस्थापक अनंत सक्रिय रूप से इन दिशा-निर्देशों को बनाने में पैनल डिस्कशन में भाग ले रहे हैं और ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि हमारी चिंताओं का समाधान हो.

इसी तरह का बदलाव वैश्विक स्तर पर भी होने की उम्मीद है क्योंकि खेती से जुड़ा समुदाय उन फ़ायदों को समझता है जो फिलहाल विकसित की जा रही नई तकनीकों से होंगे. ज़मीनी स्तर पर इन तकनीकों के इस्तेमाल को बढ़ावा न सिर्फ़ किसानों को फ़ायदा पहुंचाएगा बल्कि पर्यावरण और समाज के लिए भी फ़ायदेमंद होगा. यही वजह है कि सभी हिस्सेदारों के लिए ज़रूरी है कि वो इन गतिविधियों में शामिल हों और इसके साथ-साथ किसानों को साक्षर भी करें.

ORF: मेडिकल और कृषि रिसर्च में भारत की मज़बूती और शुरुआती दौर के इनोवेशन की मदद के सिस्टम के बारे में आपका नज़रिया क्या है? साथ ही देश को तेज़ विकास के लिए क्या क़दम उठाने चाहिए ?

Kavitha Sairam: यहां के ज्ञान के भंडार को देखते हुए मुझे यकीन है कि मेडिकल और कृषि के क्षेत्र में आविष्कार की विशाल संभावनाएं हैं. इससे बेहतर माहौल पहले कभी नहीं रहा है. उद्योग और संस्थानों के लिए साझेदारी करने और आविष्कार के हिसाब से कई अवसर मौजूद हैं. BIRAC जैसी सरकारी योजनाएं रिसर्चर्स को अपने आइडिया को व्यावसायिक रूप से सक्षम उत्पाद में विकसित और मंज़ूर करने में बेहद मददगार हैं. देश भर में स्थापित टेक्नोलॉजी बिज़नेस इन्क्यूबेटर सुनिश्चित करते हैं कि इनोवेशन के लिए सभी सुविधाएं मुहैया कराई जाए. इन सुविधाओं में रिसर्च एंड डेवलपमेंट, वित्तीय मदद और रेगुलेटरी दिशा-निर्देश शामिल हैं. इनोवेशन को वैज्ञानिक संस्थान और स्टार्टअप अपनी साझा कोशिशों से विकसित करते हैं.

इस संदर्भ में ऐसा लगता है कि कृषि और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में रिसर्च का भविष्य फिलहाल अपने शिखर पर है और अगले दशक में ये और महत्वाकांक्षी बन जाएगा. शुरुआती चरण के इनोवेशन के लिए मदद का सिस्टम भी अच्छी तरह स्थापित है और आने वाले वर्षों में देश को इसका फ़ायदा होगा.

कृषि और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में नये उत्पादों को हमेशा रेगुलेटरी बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इंसानों की जिंदगी में इनकी अहमियत को देखते हुए वैसे तो हमें इन क्षेत्रों में सख़्त रेगुलेशन की ज़रूरत है लेकिन ये सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वो इन रेगुलेशन के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाए.

लेकिन इसके साथ ही रेगुलेटरी मुद्दों का समाधान अभी भी एक चुनौती है. कृषि और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में नये उत्पादों को हमेशा रेगुलेटरी बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इंसानों की जिंदगी में इनकी अहमियत को देखते हुए वैसे तो हमें इन क्षेत्रों में सख़्त रेगुलेशन की ज़रूरत है लेकिन ये सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वो इन रेगुलेशन के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाए. ऐसा करने से ये सुनिश्चित होगा कि समाज के फ़ायदे के लिए उचित सुरक्षा की पद्धति के साथ नई तकनीकें जल्दी आएंगी.

इस प्लेटफॉर्म की स्थापना के साथ मुझे यकीन है कि अगले दशक में हम देखेंगे कि भारत स्वास्थ्य देखभाल और कृषि के क्षेत्र में कई तरह के नये आविष्कार करेगा और उनका सफलतापूर्वक व्क इस्तेमाल होगा.

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