Published on Mar 18, 2021 Updated 0 Hours ago

पीयर प्रेशर यानी साथियों का दबाव, सफल माध्यमों के निर्माण के लिए सबसे प्रभावी उपकरण है, जो महिलाओं को बिना किसी डर सोशल मीडिया माध्यमों पर भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करता है.

सोशल मीडिया पर विषैले टॉक्सिक ट्रोल्स से महिलाओं को सुरक्षित करने के पाँच तरीके!

कोविड-19 की महामारी ने, सामाजिक दूरी के नियमों और लॉकडाउन के बीच, लोगों को बड़े पैमाने पर वास्तविक दुनिया से आभासी दुनिया में प्रवासन के लिए प्रेरित किया क्योंकि लोगों ने खुद को एक दूसरे से जुड़ा रखने और अपने आस-पास की जानकारियों से लैस रखने के लिए इंटरनेट माध्यमों का रुख़ किया. सूचनाओं तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाने के लिए इंटरनेट की जितनी सराहना की गई है और इसने आम व्यक्ति को अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान किया है, उसके साथ ही डिजिटल क्षेत्र ने उन मुद्दों और समस्याओं को भी प्रतिबिंबित किया है, जो वास्तविक दुनिया को प्रभावित करते हैं. वास्तविक दुनिया में हाशिए पर रहने वाले अब डिजिटल क्षेत्र में भी हाशिए पर हैं. वित्तीय धोखाधड़ी और धमकाने से लेकर स्वास्थ्य सुविधाओं के ख़िलाफ़ साइबर हमले तक हो रहे हैं. महामारी ने लोगों और विशेष रूप से समाज के कमज़ोर वर्गों और संस्थानों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए मौजूद तंत्र की ख़ामियों और कमियों को उजागर किया है. महिलाओं को विशेष रूप से, पितृसत्तात्मक मानदंडों, गलतफ़हमी और स्त्रियों के ख़िलाफ़ द्वेष को झेलना पड़ रहा है जो वास्तविक दुनिया से आभासी दुनिया यानी वर्चुअल माध्यमों तक फैल रहा है.

एक मामला फरवरी के आरंभ में अमेरिकी संगीत कलाकार रिहाना द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट का है, जहां उन्होंने भारत के चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन को संबोधित किया था. दिलचस्प बात यह है कि रिहाना के ट्वीट ने इस मुद्दे पर कोई भी रुख़ नहीं लिया था. उन्होंने बस इतना लिखा कि, “हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं?” #FarmersProtest.” इस के साथ जो लिंक उन्होंने पोस्ट किया था, वह था अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह, सीएनएन लेख का था, जिसकी हेडलाइन नई दिल्ली के आसपास लगाए गए इंटरनेट शटडाउन के बारे में थी, जो जनवरी के अंत में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुई झड़पों के बाद लगाया गया था. रिहाना का ट्वीट भले ही परोक्ष रूप से सरकार के ख़िलाफ़ था या वह सीधे भारत सरकार पर निशाना साध रही थीं, यह पूरी तरह से अनुमान का विषय का हो सकता है. यहां तक कि अगर हम यह मामला बनाते हैं कि उन्होंने किसानों के विरोध का समर्थन किया है, तब भी उनके ट्वीट के वायरल होने के बाद, उनके ख़िलाफ़ ऑनलाइन चलाए गए अभियान, ट्रोलिंग या उन के उत्पीड़न का औचित्य साबित नहीं करता है. साल 2009 में अपने पूर्व प्रेमी क्रिस ब्राउन द्वारा रिहाना के साथ मारपीट किए जाने के बाद, उनके साथ हुई गाली-गलौज को उनके ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया गया और उन्हें बुरा भला कहने की बाढ़ आ गई. दिलचस्प बात यह है कि यह लगभग एक दशक पहले उन पर हुई घरेलू हिंसा की ख़बर अमेरिकी मीडिया चैनलों पर सामने आने के बाद हुई ट्रोलिंग से अलग नहीं था. चोट खाई और हिंसा की शिकार रिहाना की ग्राफिक छवियों को इस बार भी उनके ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया गया. फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि इस बार यह भारतीय ट्विटर पर हो रहा था जहां उनके ट्वीट से नाराज़ लोगों ने उनका चरित्र हनन करने की कोशिश की.

महिलाओं को विशेष रूप से, पितृसत्तात्मक मानदंडों, गलतफ़हमी और स्त्रियों के ख़िलाफ़ द्वेष को झेलना पड़ रहा है जो वास्तविक दुनिया से आभासी दुनिया यानी वर्चुअल माध्यमों तक फैल रहा है. 

ध्यान देने योग्य बात यह है कि व्यक्ति का राजनीतिक झुकाव चाहे जो भी हो, लेकिन यदि आप एक महिला हैं, तो इस बात की बहुत हद तक संभावना है कि आपके ख़िलाफ़ प्रतिक्रिया अपमानजनक होगी. भारत में राजनीतिक विषयों पर ट्रेंड करने वाले ट्वीट्स को लेकर किए गए ओआरएफ के एक अध्ययन में पाया गया कि पुरुषों के 33 प्रतिशत से 55 प्रतिशत के विपरीत राजनीतिक विषयों पर महिलाओं की भागीदारी चार प्रतिशत से 12 प्रतिशत के बीच थी. यह दिखाता है कि राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं का किस तरह बहिष्कार किया जाता है और वास्तविक दुनिया किस तरह ऑनलाइन परिलिक्षित होती है.

दुनिया में अपनी जगह निश्चित करने वाली महिलाएं, या खुद को साबित करने की जज़्बा रखने वाली महिलाएं, सार्वजनिक स्थानों पर दुर्व्यवहार, घृणा और गाली-गलौज का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्रों में, जैसे राजनीति. मानवाधिकार संगठन, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में महिला राजनेताओं द्वारा सामना किए जाने वाले ऑनलाइन दुर्व्यवहार पर एक अध्ययन जारी किया, जिसमें 114,716 ट्वीट्स में 95 भारतीय महिला राजनेताओं का विश्लेषण किया गया था, जो साल 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान और उसके तुरंत बाद, तीन महीने की अवधि में विश्लेषित किया गया था. इस अध्ययन में यह पाया गया कि भारत में महिला राजनेताओं का उल्लेख करने वाले प्रत्येक सात ट्वीट्स में से एक ‘समस्याग्रस्त’ या ‘अपमानजनक’ था, जबकि इन ट्वीट्स में हर पांच में से एक सेक्सिस्ट यानि महिलाओं को नीचा दिखाने वाला था.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने साल 2017 के चुनावों में ब्रिटेन में महिला राजनेताओं के बीच एक समान अध्ययन किया. उसमें एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि महिला राजनेताओं के ख़िलाफ़ दुर्व्यवहार सभी राजनीतिक दलों की महिलाओं के साथ किया जाता है और सभी पार्टी लाइनों में इसकी मौजूदगी है. हालांकि दुर्व्यवहार, विशेष रूप से अल्पसंख्यक और गैर-श्वेत समुदायों के लोगों पर लक्षित किया गया था. इनमें से लगभग आधे यानी 45.15 प्रतिशत दुर्व्यवहार के मामले अकेले जमैका-मूल की सांसद, डायने एबॉट के ख़िलाफ़ थे. डायने एबॉट को छोड़कर, एशियाई और अश्वेत महिला सांसदों को उनके गोरे समकक्षों की तुलना में 35 प्रतिशत अधिक अपमानजनक ट्वीट भेजे गए. यही वजह है कि इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि साल 2019 में ब्रिटेन में 18 महिला सांसदों ने दोबारा चुने जाने से इंकार किया और इसका एकमात्र कारण उन्होंने ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों के साथ दुर्व्यवहार को माना.

दुनिया में अपनी जगह निश्चित करने वाली महिलाएं, या खुद को साबित करने की जज़्बा रखने वाली महिलाएं, सार्वजनिक स्थानों पर दुर्व्यवहार, घृणा और गाली-गलौज का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्रों में, जैसे राजनीति. 

राजनीतिज्ञों और सेलिब्रिटी महिलाओं से इतर एक साधारण महिला को भी ऑनलाइन, इसी तरह के भयानक दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है. प्यू रिसर्च के एक सर्वे में पता चलता है कि 18 से 29 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं, विशेष रूप से युवा महिलाओं ने यौन उत्पीड़न की उच्च दर के साथ आधे से अधिक यानी 53 प्रतिशत मामलों की सूचना दी. यह स्पष्ट रूप से आपत्तिजनक या ग्राफिक छवियां प्राप्त करने का मामला था.

क्या किया जा सकता है?

सबसे पहले, सोशल मीडिया माध्यमों और कंपनियों को अधिक सक्रिय होने की आवश्यकता होगी, जब बात दुरुपयोग से निपटने के लिए उनके निवारण तंत्र की हो. उदाहरण के लिए, प्लान इंटरनेशनल के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 23 प्रतिशत महिलाओं ने इंस्टाग्राम पर ट्रोल होने और हमला करने का हवाला दिया; फिर भी, इंस्टाग्राम के रिपोर्टिंग तंत्रों में लैंगिक दुर्व्यवहार को सूचिबद्ध नहीं किया गया है, और आप इस माध्यम पर किसी प्रोफ़ाइल को लैंगिक यानी लिंग आधारित दुर्व्यवहार के लिए रिपोर्ट नहीं कर सकते हैं. सामान्य तौर पर “बुलींग या उत्पीड़न” के अंतर्गत महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार को दर्ज करने की बाध्यता इस तथ्य को संबोधित करने में विफल रहती है कि यह ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें इन माध्यमों पर अलग-थलग रूप से दुर्व्यवहार का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है, और इनके लिंग के चलते उनके साथ यह व्यवहार किया जाता है. एक ऐसा समर्पित तंत्र जो महिलाओं को ऑनलाइन सुरक्षित महसूस कराए इस दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है. लिंग-आधारित उत्पीड़न, आचरण संबंधी चेतावनियों, निलंबन और माध्यमों से निरस्त किए जाने (deplatforming) के लिए वैध कारण होना चाहिए.

दूसरा, न केवल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा/शोषण के लिए समर्पित नीतियां होनी चाहिए, बल्कि वे स्थानीय भाषाओं में भी उपलब्ध होनी चाहिए.

तीसरा, महामारी के युग में दुर्व्यवहार और लैंगिक हिंसा महिलाओं को आजीविका के उनके अधिकार से वंचित करती है, यह देखते हुए कि अधिकांश कार्यस्थल और अवसर अब डिजिटल क्षेत्र से जुड़े हैं. महिलाओं को इंटरनेट पर सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराने से वंचित किए जाने का परिणाम, महिलाओं को उनके काम के अधिकार से दूर करना है, जो एक ऐसा अधिकार है, जिसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता है. इसके लिए, महिलाओं के ख़िलाफ़ साइबर अपराधों के लिए विशिष्ट क़ानूनों को काग़जों पर और भावना में लागू किया जाना चाहिए. साइबर अपराध के लिए कम सज़ा दर महिलाओं को ऑनलाइन दुर्व्यवहार के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग करने से हतोत्साहित करता है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, साल 2017 में दर्ज किए गए 170 साइबर अपराध मामलों में से केवल एक में ही दोष-सिद्ध हो पाया. यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत में साइबर अपराधों के लिए कोई लिंगविच्छेदित डेटा उपलब्ध नहीं है.

चौथा, सामग्री की निगरानी कैसे की जाती है इसे लेकर पारदर्शिता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म महिलाओं के प्रति हिंसक सामग्री को कैसे पहचानता है, रोकता है और हटाता है, इस पर एक पारदर्शी नीति, प्लेटफॉर्म यानी माध्यम पर महिलाओं के विश्वास को बढ़ावा देने में सकारात्मक भूमिका निभाएगा. प्लेटफ़ॉर्म यह अनुकूलित कर सकते हैं कि वह अपने उपयोगकर्ताओं के बीच से ट्रोल्स को कैसे हटाएंगे. उदाहरण के लिए, डेटिंग ऐप बंबल (Bumble) की वीआईबी (VIBee) सुविधा तक केवल तभी पहुंचा जा सकता है, जब आपको रिपोर्ट नहीं किया गया हो, और आपको किसी भी रूप में ऐप की नीतियों का उल्लंघन करने का दोषी न पाया गया हो.

महामारी के युग में दुर्व्यवहार और लैंगिक हिंसा महिलाओं को आजीविका के उनके अधिकार से वंचित करती है, यह देखते हुए कि अधिकांश कार्यस्थल और अवसर अब डिजिटल क्षेत्र से जुड़े हैं. 

पाँचवां, सोशल मीडिया कंपनियों को यह दिखाने के लिए कि महिलाओं को ऑनलाइन किस तरह सुरक्षा प्रदान की जा सकती है, और वह अपनी नीतियों को कैसे लागू करते हैं, केस स्टडीज़ विकसित करनी चाहिए जो अन्य कंपनियों के लिए भी उपयोगी हो सकती हैं.

सोशल मीडिया कंपनियों को ऑनलाइन माध्यमों पर होने वाले लिंग आधारित दुर्व्यवहार से निपटने के लिए पहल करनी चाहिए और महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थान बनाने के लिए खुद चैंपियन बनना चाहिए. पीयर प्रेशर यानी साथियों का दबाव, सफल माध्यमों के निर्माण के लिए सबसे प्रभावी उपकरण है, जो महिलाओं को बिना किसी डर सोशल मीडिया माध्यमों पर भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करता है.

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