Author : Manoj Joshi

Published on Jun 01, 2021 Updated 0 Hours ago

इत्तिफ़ाक़ से अगर लैब लीक की थ्योरी से जुड़े ठोस सबूत हाथ लग जाते हैं, तो पूरी दुनिया के लिए इसके नतीजे बेहद भयावाह होंगे.

कोविड-19 की उत्पत्ति का स्पष्टीकरण और 'जीन ऑफ़ फ़ीचर'

अभी तक हम में से किसी को भी ये नहीं मालूम कि सार्स कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) या कोविड-19 का वायरस, चीन की वुहान स्थित प्रयोगशाला से ग़लती से लीक हो गया, या फिर किसी अन्य जानवर से इंसानों तक पहुंच गया. लेकिन, कोरोना वायरस के किसी प्रयोगशाला से निकलने की जो परिकल्पना कभी इससे जुड़े विचारों के हाशिए पर पड़ी हुई थी, वो इन दिनों वायरस की उत्पत्ति के तमाम अनुमानों की मुख्यधारा में आ गई है.

पिछले सप्ताह, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कोविड-19 महामारी की उत्पत्ति की और जांच करने का आदेश जारी किया. एक बयान में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि, ‘अमेरिका के ख़ुफ़िया समुदाय से जुड़े अधिकतर लोग ये मानते हैं कि इस बारे में किसी यक़ीनी नतीजे पर पहुंचने के लिए अभी हमारे पास बहुत कम सबूत हैं. लेकिन, खुफ़िया विभाग से जुड़े कई लोगों का ये मानना है कि ये वायरस प्रयोगशाला में किसी हादसे की वजह से बाहर आया. इसीलिए, अब जो बाइडेन ने अपनी खुफ़िया एजेंसियों और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं को ये काम सौंपा है कि वो अगले 90 दिनों में उन्हें एक रिपोर्ट दें, जिसकी मदद से कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर ‘एक निश्चित नतीजे के क़रीब पहुंचा जा सके’.

ये एक ख़तरनाक अटकलबाज़ी साबित हो सकती है. अगर वास्तव में वायरस के लैब से निकलने के आकलन की पुष्टि की जा सकती है, तो इससे चीन के बाक़ी दुनिया से संबंधों पर असर डालने वाले राजनीतिक परिणाम तबाही लाने वाले होंगे. लेकिन, इस बात की संभावना बहुत कम है. क्योंकि, चीन के ये मान लेने की उम्मीद न के बराबर है कि वायरस ग़लती से उसकी लैब से निकला, और बिना चीन के सहयोग के इस बात की पुष्टि कर पाना क़रीब क़रीब असंभव काम होगा.

वायरस की उत्पत्ति को लेकर मौजूदा अटकलें

महामारी के इस मोड़ पर, वायरस की उत्पत्ति को लेकर मौजूदा अटकलों के इस दौर की शुरुआत कई मायनों में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस के उस बयान से हुई थी, जो उन्होंने 30 मार्च को इस मामले में चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन की जांच रिपोर्ट आने के बाद दिया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैज्ञानिकों ने वुहान का दौरा करने के बाद जो रिपोर्ट तैयार की थी, उसमें कहा गया था कि महामारी के लैब से उत्पन्न होने की परिकल्पना के सच होने की आशंकाएं ‘अत्यंत कम’ हैं. इसकी तुलना में WHO की रिपोर्ट ने कहा था कि इस वायरस के किसी जानवर से इंसानों तक पहुंचने की परिकल्पना के सही साबित होने की संभावना काफ़ी ज़्यादा है. लेकिन, वुहान का दौरा करने वाली विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम ने अपने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के पीछे के कारणों की कोई ख़ास जानकारी नहीं दी थी कि आख़िर वायरस कैसे इंसानों तक पहुंचा.

इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि डॉक्टर टेड्रोस के मुताबिक़, विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम ने, वायरस को लेकर कच्चे आंकड़ों तक पहुंच बनाने की राह में अड़चनों का सामना करने की शिकायत की थी. WHO के महानिदेशक ने 30 मार्च के अपने बयान में कहा था कि, ‘मुझे नहीं लगता है कि उनकी टीम का ये आकलन पर्याप्त रूप से व्यापक था. इस बारे मे अधिक ठोस निष्कर्षों तक पहुंचने के लिए और आंकड़ों और अध्ययनों की ज़रूरत पड़ेगी.’ डॉक्टर टेड्रोस की इस बात के लिए आलोचना की जाती रही है कि उन्होंने चीन के प्रति नरम रुख़ अपनाया था. ऐसे में चीन को कठघरे में खड़ा करने वाला उनका ये बयान काफ़ी मायने रखता है.

जिस दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक का ये बयान आया, उसी दिन अमेरिका व 13 अन्य देशों ने एक बयान जारी किया जिसमें जापान, ब्रिटेन, कनाडा और डेनमार्क भी शामिल थे. इस बयान में विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के इस अध्ययन की आलोचना की गई थी कि क्योंकि इस स्टडी में, ‘संपूर्ण मूलभूत आंकड़ों और नमूनों की कमी थी.’ इन देशों ने अपने बयान में कहा कि ‘इस जांच को और पारदर्शी और निष्पक्ष विश्लेषण और मूल्यांकन के ज़रिए आगे बढ़ाने की ज़रूरत है. कोविड-19 महामारी की उत्पत्ति का ये विश्लेषण किसी दख़लंदाज़ी और बेवजह के प्रभाव से मुक्त होना चाहिए.’

चीन की सरकार काफ़ी दिनों से इस विचार को बढ़ावा दे रही है कि कोरोना वायरस, उसके यहां कहीं और से आया. कई बार तो चीन की सरकार ये भी कह चुकी है कि ये वायरस अमेरिका का वो प्रतिनिधिमंडल चीन लेकर आया, जो अक्टूबर 2019 में वुहान में हुए वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स में हिस्सा लेने पहुंचा था. 

यूरोपीय संघ ने भी इस बारे में एक समानांतर बयान जारी किया. इसमें संघ ने कहा कि, ‘चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन का ये अध्ययन ऐसा पहला क़दम है, जो काफ़ी मददगार है. लेकिन, इस अध्ययन के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन को चाहिए कि वो सभी प्रासंगिक स्थानों तक सही समय पर पहुंच बनाकर और समस्त प्रासंगिक इंसानों, जानवरों और पर्यावरणों से जुड़े आंकड़े हासिल करके इस अध्ययन को आगे बढ़ाए.’

अगर चीन के पास छुपाने वाली कोई बात नहीं थी, तो उन्हें भी इस बयान का स्वागत करना चाहिए था. लेकिन, कम से कम अब तक चीन की तरफ़ से आक्रामक बयान ही आए हैं. हाल ही में एक आधिकारिक प्रेस ब्रीफ़िंग में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने इन बयानों पर पलटवार करते हुए कहा कि, ‘अगर अमेरिका एक पारदर्शी जांच करना चाहता है, तो उसे अपनी फोर्ट डेट्रिक और बाक़ी दुनिया में स्थित जैविक प्रयोगशालाओं के दरवाज़े बाक़ी दुनिया के लिए खोलने चाहिए.’ लिजियन ने आगे कहा कि, ‘ऐसी तमाम ख़बरें, संकेत और रिसर्च हैं जो ये कहते हैं कि वर्ष 2019 के दूसरे हिस्से के दौरान कोविड-19 की महामारी दुनिया के तमाम स्थानों पर देखी गई थी.’ दूसरे शब्दों में कहें तो, चीन ये कह रहा है कि वायरस की उत्पत्ति उसके यहां से होनी तो दूर की बात है, वो ख़ुद इस वायरस के प्रकोप का शिकार हुआ है.

चीन की सरकार काफ़ी दिनों से इस विचार को बढ़ावा दे रही है कि कोरोना वायरस, उसके यहां कहीं और से आया. कई बार तो चीन की सरकार ये भी कह चुकी है कि ये वायरस अमेरिका का वो प्रतिनिधिमंडल चीन लेकर आया, जो अक्टूबर 2019 में वुहान में हुए वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स में हिस्सा लेने पहुंचा था. सच तो ये है कि चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस साझा अध्ययन में भी इस ख़याल की पड़ताल की गई थी. लेकिन, जैसा कि WHO की रिपोर्ट के साथ नत्थी परिशिष्ट में लिखा गया है कि, ‘इस बात के कोई सबूत नहीं मिले कि इन खेलों के दौरान जो क्लिनिक मेडिकल सेवाएं दे रही थीं, वहां कोविड-19 से मिलता जुलता कोई लक्षण नहीं देखा गया.’

अगर ये वायरस लैब से उत्पन्न हुआ, तो इसका दोष केवल चीन के अधिकारियों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसके लपेटे में अमेरिका के भी कई नामी गिरामी लोग आएंगे.

इन परिस्थितियों को देखते हुए, इस बात की संभावना कम ही है कि कोई ठोस सबूत उभरकर सामने आएंगे. वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने की ये चुनौती इस वजह से और बढ़ गई क्योंकि, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने चीन पर हमले के लिए इस वायरस का सहारा लिया. ट्रंप प्रशासन, चीन पर आरोप मढ़कर, अपने देश में महामारी से निपटने में नाकाम रहने की आलोचनाओं से बचने की कोशिश कर रहा था. एक रिपोर्ट के अनुसार, माइक पॉम्पियो के विदेश मंत्री रहते हुए, अमेरिकी विदेश विभाग ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर अपनी एक गोपनीय जांच शुरू की थी. जो बाइडेन प्रशासन ने सत्ता में आने के बाद इस जांच की रिपोर्ट देखकर, इसे रोक दिया था. ऐसे में जो बाइडेन का ये हालिया क़दम शायद इस बात से अधिक प्रेरित है कि वो चीन के मुद्दे पर कहीं ट्रंप से पिछड़ न जाएं, न कि सच का पता लगाने के लिए. सच तो ये है कि जो बाइडेन के शपथ ग्रहण से ठीक पहले माइक पॉम्पियो के नेतृत्व में अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने सार्वजनिक किए गए ख़ुफ़िया दस्तावेज़ों के आधार पर एक फैक्ट शीट जारी की थी. इस फैक्ट शीट में कहा गया था कि ऐसी तीन बातें हैं, जिनकी और बारीक़ी से पड़ताल किए जाने की ज़रूरत है: पहला तो ये कि क्या 2019 के पतझड़ के दिनों में वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी के भीतर कुछ लोग बीमार पड़े थे; दूसरी बात ये कि वुहान के इस इंस्टीट्यूट के भीतर क्या रिसर्च हो रही थी और क्या इस प्रयोगशाला में वो अनुसंधान भी हो रहे थे, जिन्हें वैज्ञानिक भाषा में, ‘गेन ऑफ़ फंक़्शन’ के अध्ययन कहा जाता है. ऐसे अध्ययनों में ख़तरनाक वायरसों की बनावट में हेर-फेर करके उनकी स्टडी की जाती है; तीसरी बात जिसकी जांच की जानी चाहिए, वो ये है कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी के भीतर क्या सैन्य गतिविधियां चलाई जा रही थीं. कहा जा रहा है कि यहां पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लिए कोई बेहद गोपनीय रिसर्च हो रही थी.

चीन में बैट लेडी के नाम से मशहूर शी झेंगली ने फरवरी 2020 में कोरोना वायरस के वुहान स्थित लैब से लीक होने के विचार को बड़ी नाराज़गी जताते हुए ख़ारिज किया था. शी झेंगली, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी में काम करती हैं, और उन्होंने अपनी रिसर्च में दिखाया है कि कोरोना वायरस कैसे चमगादड़ों में पलते हैं. वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी, जिसके पास बीमारी वाले रोगाणुओं और विषाणुओं की काफ़ी बड़ी लाइब्रेरी है, उसी ने इस महामारी के लिए कोरोना वायरस के ज़िम्मेदार होने का पता लगाया था. लेकिन, इस प्रयोगशाला के वुहान में स्थित होने के कारण, इस लैब से वायरस के किसी वजह से बाहर निकलने को लेकर सवाल उठने लाज़मी थे. क्योंकि वायरस ने सबसे पहले वुहान में रहने वाले लोगों को ही संक्रमित किया था.  

मई 2020 में वॉशिंगटन पोस्ट की फैक्ट चेक टीम ने घोषणा की थी कि, ‘वैज्ञानिक सबूतों का संतुलन इस बात की मज़बूती से पुष्टि करते हैं कि नया कोरोना वायरस प्रकृति में ही उत्पन्न हुआ है.’ चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम का निष्कर्ष भी यही था कि वायरस के लैब से निकलने की संभावना सबसे कम है. पूरे साल 2020 के दौरान, कोरोना वायरस के लैब से निकलने के विचार को ख़ारिज किया जाता रहा था. इसकी एक बड़ी वजह ये भी थी कि ट्रंप प्रशासन लगातार इसी बात की वकालत करता रहा था. फिर भी इस बात के सबूत सामने नहीं आ सके कि कोरोना वायरस किसी जानवर से इंसानों तक पहुंचा.

सच तो ये है कि वर्ष 2014 में ओबामा प्रशासन ने अमेरिका में ऐसे रिसर्च करने पर रोक लगा दी थी. लेकिन, इससे निकोलस वेड द्वारा उठाए गए उस सवाल का जवाब नहीं मिलता कि क्या अमेरिका इकोहेल्थ अलायंस नाम के NGO के ज़रिए वुहान की प्रयोगशाला में ऐसे रिसर्च की अप्रत्यक्ष रूप से फंडिंग कर रहा था.

लेकिन, वर्ष 2020 से ही काफ़ी भरोसेमंद लोग इस वायरस के लैब से उत्पन्न होने की बातें लिखने लगे थे. इस साल मई महीने की शुरुआत में, ब्रिटेन के वरिष्ठ विज्ञान पत्रकार और लेखक निकोलस वेड ने बुलेटिन ऑफ़ एटॉमिक साइंसेज़ में एक निबंध लिखा. निकोलस वेड ने अपने इस लेख में वायरस के लैब से उत्पन्न होने से जुड़े कई संकेतों को बेहद शानदार तरीक़े से समाहित किया था. निकोलस वेड ने अपने इस लेख में ये निष्कर्ष निकाला था कि अगर ये वायरस लैब से उत्पन्न हुआ, तो इसका दोष केवल चीन के अधिकारियों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसके लपेटे में अमेरिका के भी कई नामी गिरामी लोग आएंगे.

क्या है गेन ऑफ़ फंक्शन

निकोलस वेड ने कहा कि न ही चीनी अधिकारी और न ही अमेरिका ‘इस तथ्य को उजागर करने को लेकर उत्सुक हैं कि कोरोना वायरस पर शी झेंगली के रिसर्च को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ से अनुदान दिया जा रहा था.’ उन्होंने इस मुद्दे की अनदेखी के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों के मुख्यधारा के मीडिया को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा कि ट्रंप से नफ़रत के चलते ही उन्होंने ऐसा किया. निकोलस वेड ने ‘गेन ऑफ़ फंक्शन’ रिसर्च को लेकर भी सवाल उठाया, जो न सिर्फ़ अमेरिका और चीन में, बल्कि यूरोप में भी नियमित रूप से होता रहा है. इन देशों की प्रयोगशालाओं में ‘गेन ऑफ़ फंक्शन’ रिसर्च के दौरान क़ुदरत में पाए जाने वाले विषाणुओं से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक वायरस तैयार किए जाते हैं, जिससे कि इनकी मदद से भविष्य की चुनौतियों का पूर्वानुमान लगाकर उन्हें रोकने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए जा सकें.

निकोलस वेड का ये लेख प्रकाशित होने के एक हफ़्ते बाद, अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एलर्जी ऐंड इन्फेक्शस डिज़ीज़ेज़ (NIAID) के निदेशक, डॉक्टर एंथनी फाउची अमेरिकी संसद के सामने पेश हुए. डॉक्टर फाउची ने इस बात से सिरे से इनकार कर दिया कि अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ ने कभी भी वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी में ‘गेन ऑफ़ फंक्शन’ रिसर्च को कोई अनुदान या फंड दिया था. सच तो ये है कि वर्ष 2014 में ओबामा प्रशासन ने अमेरिका में ऐसे रिसर्च करने पर रोक लगा दी थी. लेकिन, इससे निकोलस वेड द्वारा उठाए गए उस सवाल का जवाब नहीं मिलता कि क्या अमेरिका इकोहेल्थ अलायंस नाम के NGO के ज़रिए वुहान की प्रयोगशाला में ऐसे रिसर्च की अप्रत्यक्ष रूप से फंडिंग कर रहा था.

ज़रूरी क़दम

अभी 14 मई को कई बड़े महामारी विशेषज्ञों और जीव वैज्ञानिकों ने सम्मानित पत्रिका साइंस में एक चिट्ठी लिखी. इसमें उन्होंने कहा कि अब इस मामले की नए सिरे से जांच किए जाने की ज़रूरत है. क्योंकि, ‘वायरस के लैब से ग़लती से निकलने और किसी जानवर से इंसानों में पहुंचने, दोनों ही परिकल्पनाएं सच होने की संभावनाएं बनी हुई हैं.’ इन वैज्ञानिकों ने कहा कि न जाने किस वजह से, चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में लैब में हादसे से वायरस बाहर निकलने की बात को बहुत हल्के में ही निपटा दिया गया.

कोरोना वायरस किसी जानवर से इंसानों में पहुंचा या लैब से निकला, इसमें से किसी भी निष्कर्ष तक पहुंचने के मुख्य सबूत चीन में हैं. लेकिन, वायरस के लैब से निकलने के किसी भी निष्कर्ष को चीन मानेगा, इस बात की संभावना लगभग न के बराबर है. हम ज़्यादा से ज़्यादा जो उम्मीद कर सकते हैं, वो ये है कि अगर वाक़ई कोई समस्या थी, तो चीन ने इसका पता लगाकर इसका समाधान कर लिया है, जिससे भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो सके. इस उम्मीद को आगे बढ़ाने वाली जो एक और बात हो सकती है, वो ये है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक आगे आकर एकजुट हों और ये कहें कि वो ‘गेन ऑफ़ फंक्शन’ रिसर्च पर प्रतिबंध लगा रहे हैं.

राजनीतिक नज़रिए से देखें, तो अमेरिका द्वारा इस मामले की जो जांच की जा रही है, उससे इस बहस पर जल्द विराम लगने की संभावना है नहीं. हो सकता है कि आने वाले समय में हम अमेरिका द्वारा चीन पर ये दबाव और बनते देखें कि चीन इस मामले की जांच में सहयोग करे. लेकिन, इत्तिफ़ाक़ से अगर लैब लीक की थ्योरी से जुड़े ठोस सबूत हाथ लग जाते हैं, तो पूरी दुनिया के लिए इसके नतीजे बेहद भयावाह होंगे.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.