Author : Harsh V. Pant

Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

चीन ने क्वॉड की तुलना नेटो से की है. उसने कहा है कि जैसे नेटो यूरोप में अपना दख़ल बढ़ा रहा है, क्वॉड के ज़रिये अमेरिका वही काम हिंद-प्रशांत में करना चाहता है

#Explained यूक्रेन संकट: जो रूस ने किया, क्या चीन भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वही करेगा?
#Explained यूक्रेन संकट: जो रूस ने किया, क्या चीन भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वही करेगा?

जिस तरह के हालात यूक्रेन में बन रहे हैं, उससे कुछ समय से हिंद-प्रशांत के देश चिंतित हैं. पिछले कुछ सालों से अमेरिका और बाकी यूरोपीय देश हिंद-प्रशांत को लेकर अपनी रणनीति मज़बूत कर रहे थे. हो सकता है कि यूक्रेन क्राइसिस की वजह से पश्चिमी देशों का, ख़ासतौर पर अमेरिका का ध्यान बंट जाए. इस इलाके में चीन की जो चुनौती उभरकर आ रही है, उससे सबका ध्यान हटकर रूस की ओर चला जाए. चीन का जो ताजा बयान आया है, उसे देखते हुए यही लगता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जिस तरह की उथल-पुथल रूस और चीन की दोस्ती से बन रही थी, उसमें कोई कमी नहीं आएगी.

यूक्रेन क्राइसिस से चीन भले ही थोड़ा परेशान हो, लेकिन एक बार फिर उसने दुनिया का ध्यान इस ओर दिलाया है कि वह हिंद-प्रशांत में अपनी पोजिशन को लेकर नई रणनीति बना रहा है.

हिंद-प्रशांत को लेकर चीन की नई रणनीति 

यूक्रेन क्राइसिस से चीन भले ही थोड़ा परेशान हो, लेकिन एक बार फिर उसने दुनिया का ध्यान इस ओर दिलाया है कि वह हिंद-प्रशांत में अपनी पोजिशन को लेकर नई रणनीति बना रहा है. इसीलिए उसने फिर से यह बात कही है कि जिस तरह से नेटो एक्सपैंशन ने यूरोप में युद्ध के हालात पैदा किए हैं, उसी तरह हिंद-प्रशांत में अमेरिका का आना इस इलाके में और उथल-पुथल बढ़ाएगा. चीन के इस बयान से इस क्षेत्र के अन्य देशों की परेशानी बढ़ेगी क्योंकि चीन की वजह से उन्हें पहले ही दिक्कत हो रही थी. चीन की वजह से इस क्षेत्र में अस्थिरता के हालात बने हैं और लगता नहीं है कि उसमें कोई कमी आएगी.

चीन ने इस बयान से बाइडन सरकार की उस हिंद-प्रशांत नीति पर निशाना साधा है, जिसे इस साल फरवरी में पेश किया गया था. जिस तरह से चीन बार-बार यह बताने की कोशिश कर रहा है कि जो यूरोप में हो रहा है, वैसी ही स्थिति हिंद-प्रशांत में अमेरिका के आने से बन सकती है, यह एक तरह से धमकी है. यह धमकी वह अमेरिका और पश्चिमी देशों सहित इस इलाके में मौजूद देशों को दे रहा है. वह उन्हें संदेश दे रहा है कि वे अमेरिका या पश्चिमी देशों के क़रीब ना जाएं. चीन अपना दबदबा और बढ़ाना चाहता है और हिंद-प्रशांत में अमेरिका का दख़ल बढ़ने पर उथल-पुथल की बात कहकर वह एक तरह से लकीर खींच रहा है.

हिंद-प्रशांत की जो भी कॉमन समस्याएं हैं, जो सारे देशों को परेशान करती हैं चाहे वो हेल्थ की हों, तकनीक की हों, इन्फ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी की हों, क्लाइमेट चेंज की हो, रीजनल गवर्नमेंट की हो, उनसे निपटने में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत जैसे चार बड़े देश किस तरह से योगदान दे सकते हैं. 

पिछले कुछ समय से हिंद-प्रशांत इलाके में नए अलायंस बन रहे थे. कई देशों ने इस क्षेत्र को लेकर अपनी नीति पेश की. इनमें भारत तो शामिल है ही. यूरोपियन यूनियन, अमेरिका, आसियान, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने अपनी-अपनी नीतियों को सार्वजनिक किया था. इनमें इसी बात पर जोर रहा है कि चीन के आक्रामक रुख़ से दूसरे देशों की जो परेशानी बढ़ी है, उसे लेकर बाकी देशों के पास क्या उपाय हैं. एक उपाय इस क्षेत्र में समान सोच वाले देशों के साथ आने का था. ये देश चाहते हैं कि हिंद-प्रशांत में कानून का शासन रहे. ये देश नहीं चाहते कि जिसके पास अधिक ताक़त है, वह इसके जोर पर अपना काम निकाले और दूसरों को धमकाए. इसी मकसद से पिछले कुछ सालों में ये देश एक साथ आए हैं. इसमें चीन ख़ासख़ासतौर पर क्वॉड से परेशान है. क्वॉड में भारत के अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. इन देशों के बीच इस क्षेत्र की सुरक्षा मज़बूत करने को लेकर बातचीत चल रही है. उनके बीच सहयोग बढ़ा है.

एक समय चीन मान रहा था कि क्वॉड कुछ नहीं है. यह कभी बनेगा ही नहीं और बन भी गया तो यह मज़बूत अलायंस नहीं होगा. उसकी यह बात ग़लत निकली. इसे लेकर 2021 में बाइडन सरकार ने ख़ासख़ास पहल की. उसने क्वॉड में जान डालने का प्रयास किया. बाकी के तीन अन्य सदस्य देशों ने भी इस पर राजनयिक स्तर पर काफी काम किया है. उन्होंने एक अजेंडा भी बनाया है. यह अजेंडा दूसरे देशों के लिए काफी लुभावना है क्योंकि यह सिर्फ चीन को ही टारगेट नहीं करता. इसमें कहा गया है कि हिंद-प्रशांत की जो भी कॉमन समस्याएं हैं, जो सारे देशों को परेशान करती हैं चाहे वो हेल्थ की हों, तकनीक की हों, इन्फ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी की हों, क्लाइमेट चेंज की हो, रीजनल गवर्नमेंट की हो, उनसे निपटने में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत जैसे चार बड़े देश किस तरह से योगदान दे सकते हैं. चीन इसी से घबराया हुआ है. उसे लग रहा है कि अगर यह अजेंडा काम कर जाता है तो वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हाशिये पर चला जाएगा. इसलिए वह बेचैन है.

ऐसी कई रिपोर्ट आई हैं, जिनके अनुसार रूस ने चीन से सैन्य और अर्थव्यवस्था  को लेकर मदद मांगी है. अगर चीन इसे मान लेता है तो रूस उसका जूनियर पार्टनर बन जाएगा.

सवाल है कि यूक्रेन में जो हो रहा है, उसका प्रभाव हिंद-प्रशांत में होगा? मुझे लगता है कि यह अपने आप में बड़ा डिवेलपमेंट है और जिस तरह से रूस के साथ चीन खड़ा है, उसे देखते हुए बाकी देशों के लिए सवाल खड़े हो रहे हैं. ख़ासकर भारत के लिए. भारत के रूस से अच्छे संबंध हैं और भारत ने अभी तक यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की  सार्वजनिक रूप से आलोचना भी नहीं की है. अगर रूस चीन के क़रीब चला जाता है और रूस पर लगे प्रतिबंधों पर उसे चीन से मदद मिलती है, तो मुसीबत और भी बढ़ जाएगी.

यह भारत के लिए भी अच्छी ख़बर नहीं है. हमारा पहले से ही उसके साथ विवाद चल रहा है. हिमालय में हमारी फौजें आमने-सामने खड़ी हैं.

क्या रूस चीन का जूनियर पार्टनर बन जाएगा?

ऐसी कई रिपोर्ट आई हैं, जिनके अनुसार रूस ने चीन से सैन्य और अर्थव्यवस्था  को लेकर मदद मांगी है. अगर चीन इसे मान लेता है तो रूस उसका जूनियर पार्टनर बन जाएगा. चीन पर रूस की निर्भरता बढ़ती जाएगी. अगर ऐसा होता है तो भारत की रक्षा क्षेत्र को लेकर रूस पर जो निर्भरता है, उस पर क्या असर पड़ेगा? भारत को कूटनीतिक स्तर पर इसका जवाब तलाशना होगा. असल में, चीन ने हिंद-प्रशांत में अमेरिका की तुलना यूरोप के नेटो एक्सपेंशन से करके यह दिखा दिया है कि वह यहां अपना दबदबा कायम करने की नीति पर आगे बढ़ता रहेगा. इसका अर्थ यह भी है कि जैसे-जैसे अमेरिका हिंद-प्रशांत में आगे बढ़ेगा, चीन उसे टारगेट करेगा. यह भारत के लिए भी अच्छी ख़बर नहीं है. हमारा पहले से ही उसके साथ विवाद चल रहा है. हिमालय में हमारी फौजें आमने-सामने खड़ी हैं.

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यह लेख मूल रूप से नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.

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