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पीएम मोदी की यूक्रेन यात्रा वैश्विक मसलों पर भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को ही ज़ाहिर नहीं करती है, बल्कि रूस, पश्चिमी देशों एवं ग्लोबल साउथ के देशों के साथ रिश्तों में संतुलन बनाए रखने की कोशिशों को भी प्रकट करती है.
Image Source: Getty
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 21 से 23 अगस्त तक पोलैंड एवं यूक्रेन की यात्रा पर हैं. इसी महीने की 10 तारीख को भारत के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पवन कपूर और यूक्रेन के राष्ट्रपति के चीफ ऑफ स्टाफ एंड्री यरमक के बीच कीव में एक बैठक हुई थी. इस बैठक में यरमक ने यूक्रेन के लिए न्यायसंगत तरीक़े से अमन स्थापित करने और इस शांति प्रक्रिया में भारत की भागीदारी के महत्व पर बल दिया था. इस बैठक में हुई बातचीत ने यह साबित कर दिया था कि पीएम मोदी का यूक्रेन दौरा कितना महत्वपूर्ण होने वाला है. पीएम मोदी की यह यात्रा यूक्रेन की स्वतंत्रता के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा है. देखा जाए तो इस यात्रा का समय काफ़ी अहम है, क्योंकि मोदी ऐसे वक़्त में यूक्रेन का दौर कर रहे हैं, जब वो युद्ध से पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है. ज़ाहिर है कि पीएम मोदी ने 2019 में रूस की यात्रा की थी और उसके पांच साल बाद यानी क़रीब डेढ़ महीने पहले उन्होंने दोबारा से रूस की यात्रा की थी. रूस की यात्रा के कुछ दिनों बाद ही अब पीएम मोदी यूक्रेन के दौरे पर हैं. ऐसे में पीएम मोदी की इस यूक्रेन यात्रा के पीछे की असल वजहों के बारे में पता लगाना बेहद अहम हो जाता है, साथ ही यह भी समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में एक मध्यस्थ के तौर पर भारत किस प्रकार से अपनी भूमिका निभा सकता है.
पीएम मोदी यूक्रेन क्यों जा रहे हैं?
प्रधानमंत्री मोदी की कीव यात्रा के पीछे कई वजहें हो सकती हैं. इनमें से एक वजह पीएम मोदी की हालिया मास्को यात्रा भी हो सकती है. ज़ाहिर है कि तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी की यह न सिर्फ़ पहली रूस यात्रा थी, बल्कि नाटो समिट से ठीक पहले की गई थी. ज़ाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पांच साल के अंतराल के बाद किए गए इस रूस दौरे की अमेरिका एवं यूरोपीय देशों ने खुलकर आलोचना की थी. भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने पीएम मोदी की रूस यात्रा की निंदा करते हुए भारत से सख़्त लहजे में कहा था कि वह भारत-अमेरिका संबंधों को इस रूप में न ले कि वे किसी भी सूरत में अडिग रहेंगे. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि रणनीतिक स्वतंत्रता बहुत अहम होती है, लेकिन युद्ध के दौरान रणनीतिक स्वायतत्ता के लिए कोई जगह नहीं होती है. इतना ही नहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने भी प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा की आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि जिस समय रूसी सेनाएं यूक्रेन में बच्चों के अस्पताल पर मिसाइलें दाग रही हैं, उसी वक़्त विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राष्ट्रपति पुतिन को गले लगाते हुए देखना बेहद निराशाजनक है. ज़ेलेंस्की ने पीएम मोदी के इस बर्ताव को रूस के आक्रमण के ख़िलाफ़ किए जा रहे शांति प्रयासों के लिए एक बड़ा झटका भी बताया था. राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का यह बयान भारत को काफ़ी नागवार लगा था और इसके बाद भारत में तैनात यूक्रेनी राजदूत को नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय ने तलब किया था.
प्रधानमंत्री मोदी की कीव यात्रा के पीछे कई वजहें हो सकती हैं. इनमें से एक वजह पीएम मोदी की हालिया मास्को यात्रा भी हो सकती है.
प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा के पीछे कुछ और कारण भी हो सकते हैं. जैसे कि हो सकता है कि पीएम मोदी अपनी इस यात्रा के ज़रिए भारत-रूस रिश्तों को लेकर जी7 की ग़लतफ़हीम की दूर करना चाहते हैं. इसके अलावा, हो सकता है कि पीएम मोदी अपनी इस यूक्रेन यात्रा के माध्यम से यह भी बताना चाहते हैं कि भारत की विदेश नीति में रणनीतिक स्वायत्तता बेहद महत्वपूर्ण है और वो किसी भी दबाव में बदलने वाली नहीं है. मोदी की इस यात्रा के पीछे एक और वजह भी हो सकती है, जो काफ़ी अहम भी है, यानी रूस-यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने और दोनों पक्षों के बीच शांति की बहाली के प्रयासों में भारत की भूमिका. दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने में भारत की दिलचस्पी बढ़ रही है, इसके साथ ही भारत यूरोप की सुरक्षा से जुड़े मसलों में सक्रीय भूमिका निभाना चाहता है. ऐसे में भारत इस युद्ध का समाधान निकालने में मध्यस्थ बनने की पेशकश कर सकता है. जहां तक कीव की बात है, तो वो पीएम मोदी की इस यात्रा को यूक्रेन की संप्रभुता के लिए भारतीय समर्थन के रूप में देख रही है. इसका कारण है कि पीएम मोदी की यह यात्रा यूक्रेन के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर हो रही है. यूक्रेन द्वारा इसे नई दिल्ली की ओर से एक अच्छे संकेत के तौर पर देखा जा रहा है. रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध से पहले भारत और यूक्रेन के बीच द्विपक्षीय व्यापार क़रीब 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था. पीएम मोदी की इस यात्रा के पीछे इस द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने का भी मकसद है और यह तभी संभव हो सकता है जब यह युद्ध समाप्त हो और शांति की बहाली हो. ऐसे में उम्मीद है कि यूक्रेन यात्रा के दौरान पीएम मोदी इस युद्ध की समाप्ति और स्थाई रूप से शांति स्थापित करने के समाधानों पर चर्चा करेंगे. ज़ाहिर है कि इन दिनों वैश्विक स्तर पर रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को बातचीत के माध्यम से समाप्त करने के बारे में चर्चाएं ज़ोरों पर हैं. ऐसी चर्चाओं के पीछे बड़ी वजह अमेरिकी चुनाव में राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प को इस मुद्दे पर अमेरिकी जनमानस का मिला ज़बरदस्त समर्थन भी है. कहने का मतलब है कि अगर अमेरिकी चुनावों में ट्रम्प की जीत होती है, तो रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को बातचीत के ज़रिए समाप्त करने में अमेरिका अपनी सशक्त भूमिका निभाएगा.
जिस तरह से हाल ही में यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने चीन की यात्रा की थी और अब प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन पहुंच रहे हैं, उससे साफ ज़ाहिर होता है कि कीव रूस के साथ जंग को रोकने की क़वायद में जुटा है और इसके लिए एक मज़बूत व सक्षम मध्यस्थ की तलाश कर रहा है.
हालांकि, एक सच्चाई यह भी है कि 16 जून को बर्गेनस्टॉक में आयोजित शांति सम्मेलन यूक्रेन के लिए बहुत लाभदायक नहीं था, बल्कि एक झटके की तरह था. इस शांति सम्मेलन में यूक्रेन को ग्लोबल साउथ और एशिया के बड़े देशों का समर्थन हासिल नहीं हो पाया था. भारत, इंडोनेशिया, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे देशों ने इस सम्मेलन के आख़िर में जारी की गई संयुक्त विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर नहीं किए थे. इस देशों द्वारा हस्ताक्षर नहीं करने की वजह यह थी कि इस शांति प्रक्रिया में रूस शामिल नहीं था. यही कारण है कि रूस के मुद्दे पर ज़्यादातर पश्चिमी देशों का समर्थन हासिल करने के बाद यूक्रेन ने अब ग्लोबल साउथ और एशियाई देशों की ओर रुख किया है और इस मुद्दे पर इन देशों का समर्थन हासिल करने के लिए अपनी कोशिशों को बढ़ा दिया है. राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने कहा है कि यूक्रेन द्वारा दूसरा शांति सम्मेलन ग्लोबल साउथ के किसी देश में आयोजित किया जा सकता है.
जिस तरह से हाल ही में यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने चीन की यात्रा की थी और अब प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन पहुंच रहे हैं, उससे साफ ज़ाहिर होता है कि कीव रूस के साथ जंग को रोकने की क़वायद में जुटा है और इसके लिए एक मज़बूत व सक्षम मध्यस्थ की तलाश कर रहा है. यूक्रेन के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज की मुख्य सलाहकार एलिना हीत्सेंको के मुताबिक़ जी7, रूस और ग्लोबल साउथ के देशों के साथ भारत के राजनीतिक संबंध और नज़दीकी बीजिंग की तुलना में अधिक है. ज़ाहिर है कि पश्चिमी देशों द्वारा चीन को जहां एक विस्तारवादी देश माना जाता है, वहीं ग्लोबल साउथ के राष्ट्र चीन को अपना वर्चस्व क़ायम करने वाला देश मानते हैं. इसके अलावा, इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि चीन पिछले एक दशक में रूस का सबसे बड़ा साझीदार बनकर उभरा है. ये सभी परिस्थितियां वर्तमान में रूस-यूक्रेन टकराव को रोकने के लिए नई दिल्ली को एक भरोसेमंद एवं उपयुक्त मध्यस्थ बनाती हैं. एलिना हीत्सेंको ने आगे कहा कि भारत में रूस-यूक्रेन के बीच शांति बहाली की किसी भी प्रक्रिया में ग्लोबल साउथ के देशों को शामिल करने की क्षमता है.
एक मध्यस्थ के रूप में नई दिल्ली
माना जाता है कि हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने जब रूस का दौरा किया था, तब राष्ट्रपति पुतिन के साथ हुई बैठक में यूक्रेन के साथ शांति की शर्तों पर विस्तार से चर्चा हुई होगी, साथ ही मास्को किस हद तक समझौता कर सकता है, उसके बारे में भी विमर्श हुआ होगा. अगर ऐसा है, तो रूस को भी पीएम मोदी की यूक्रेन यात्रा का बेसब्री से इंतज़ार होगा और वो इस पर नज़र बनाए रखेगा. इसके अलावा, पीएम मोदी के रूस दौरे के बाद दोनों देशों ने एक संयुक्त वक्तव्य ज़ारी किया था और उसमें भी इसका साफ संकेत मिलता है कि मास्को को यूक्रेन के साथ जारी गतिरोध दूर करने में भारत की मध्यस्थता मंजूर है. भारत-रूस संयुक्त वक्तव्य के पैराग्राफ 74 में लिखा गया है कि दोनों देशों ने "बातचीत और कूटनीति के माध्यम से युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून एवं संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मुताबिक़ इसके लिए मध्यस्थता की कोशिशों का स्वागत किया."
इन ताज़ा हालातों के बीच यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के लिए क्या संदेश लेकर पहुंचे हैं और वे उनसे क्या अपील करेंगे.
गौरतलब है कि वर्ष 2022 की शुरुआत में तुर्किये और बेलारूस ने रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता की कोशिश की थी. इन प्रयासों के तहत रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधियों ने आमने-सामने बैठककर विभिन्न मुद्दों और शर्तों पर खुलकर चर्चा की थी और इसके बाद एक समझौता दस्तावेज़ तैयार किया गया था. इस दस्तावेज़ को इस्तांबुल घोषणा का नाम दिया गया था. बताया जा रहा है कि यूक्रेन ने इस समझौता दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने का पूरा मन बना लिया था, लेकिन ऐन मौक़े पर G7 ने उस पर दबाव डाला और इसके बाद यूक्रेन ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए. कहा जा रहा है अगर तभी यूक्रेन उस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कर देता तो यह युद्ध समाप्त हो जाता. यही वजह है कि नई दिल्ली की अगुवाई में यूक्रेन और रूस के बीच शांति वार्ता की सफलता की संभावना बहुत अधिक नहीं दिखाई देती है, क्योंकि विवाद के कई बुनियादी मुद्दों पर दोनों देशों के विचार अलग-अलग हैं और वे उन पर टस-से-मस होने को तैयार नहीं हैं. एक और बात यह है कि रूस यह चाहेगा कि डोनेट्स्क, लुगांस्क, खेरसॉन और ज़ापोरिज्जिया पर उसका कब्ज़ा क़ायम रहे, साथ ही वह इन क्षेत्रों से यूक्रेनी सेनाओं की वापसी चाहता है. ज़ाहिर है कि कीव रूस की ऐसी मांगों पर कभी भी राज़ी नहीं होगा, यानी वो रूस की ऐसी किसी भी मांग को स्वीकर नहीं कर सकता है, जिससे उसे अपने किसी भी इलाक़े को रूस के कब्ज़े में देना पड़े. रूस की तरफ से जो भी मांगे रखी गई हैं, वो बेहद महत्वपूर्ण हैं. रूस चाहता है कि यूक्रेन में सेना का दबदबा कम हो और पूर्वी यूरोप में नाटो का वर्चस्व समाप्त हो. ऐसे में यह स्पष्ट है कि भारत इस तरह की मांगों को लेकर अपनी ओर से ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता है, बल्कि इसके लिए रूस को अमेरिका या फिर नाटो के साथ बातचीत करनी होगी.
निष्कर्ष
रूस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़े हुए ढाई साल से ज़्यादा का समय हो चुका है और इसे समाप्त करने के प्रयासों के लिहाज़ से प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन की यह आधे दिन की यात्रा बेहद महत्वपूर्ण है. पीएम मोदी का यह यूक्रेन दौरा भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की हदों को ज़ाहिर करता है. यह दौरा बताता है कि भारत दोनों देशों के बीच जारी युद्ध में किसी एक के पक्ष में नहीं खड़ा है. इसे साबित करने के लिए ही पीएम मोदी रूस की यात्रा के बाद पोलैंड से ट्रेन पर सवार होकर यूक्रेन के दौरे पर जा रहे हैं. तमाम वैश्विक नेताओं द्वारा पोलैंड से यूक्रेन तक ट्रेन के जरिए यात्रा करने को "आयरन डिप्लोमेसी" के रूप में भी जाना जाता है. यूक्रेन रेलवे के सीईओ ओलेक्सांद्र कामिशिन ने "आयरन डिप्लोमेसी" शब्द का पहली बार उपयोग किया था. ज़ाहिर है कि युद्ध की वजह से हवाई क्षेत्र पूरी तरह से बंद है और रेलगाड़ी के ज़रिए ही विश्व के तमाम नेता कीव पहुंचते हैं और जताते हैं कि वे यूक्रेन के साथ मज़बूती से खड़े हैं. जहां तक प्रधानमंत्री मोदी की ट्रेन यात्रा का सवाल है, तो वे शांति पर चर्चा के लिए यूक्रेन पहुंच रहे हैं. हालांकि, देखा जाए तो रूस-यूक्रेन युद्ध में हाल-फिलहाल में एक नया घटनाक्रम जुड़ा है और यूक्रेनी सेनाओं ने रूस के कुर्क्स इलाक़े पर कब्ज़ा कर लिया है. इन ताज़ा हालातों के बीच यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के लिए क्या संदेश लेकर पहुंचे हैं और वे उनसे क्या अपील करेंगे.
राजोली सिद्धार्थ जयप्रकाश ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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Rajoli Siddharth Jayaprakash is a Junior Fellow with the ORF Strategic Studies programme, focusing on Russia’s foreign policy and economy, and India-Russia relations. Siddharth is a ...
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