वर्तमान समय में वैश्विक राजनीति की दिशा तय करने में हिंद-प्रशांत की भूमिका महत्वपूर्ण रही है और भारत को इस क्षेत्र में एक अहम साझेदार के तौर पर देखा जा रहा है. यह वह क्षेत्र है, जहां अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ और आसियान (एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस) जैसे ज्यादातर देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को अपनी विदेश नीति के लिए प्रमुख माना है, और इसमें नई दिल्ली की केन्द्रीय भूमिका है.
भारत की हिंद-प्रशांत नीति का उद्देश्य क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी को मज़बूत करना और क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण समझे वाले मुद्दों को केंद्र में रखते हुए नए गठजोड़ बनाना रहा है ताकि नई रणनीतिक और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का समाधान ढूंढा जा सके.
भारत की हिंद-प्रशांत नीति का उद्देश्य क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी को मज़बूत करना और क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण समझे वाले मुद्दों को केंद्र में रखते हुए नए गठजोड़ बनाना रहा है ताकि नई रणनीतिक और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का समाधान ढूंढा जा सके. अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी के साथ इसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. उदाहरण के लिए, क्वॉड जैसे क्षेत्रीय मंचों पर भारत और इन देशों के बीच बढ़ती भागीदारी स्पष्ट है, लेकिन पिछले कुछ सैलून में इन देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध बहुत तेज़ी से आगे बढ़े हैं. हिंद-प्रशांत से जुड़े मुद्दों और क्षेत्र में भारत का जो महत्त्व है (यह देखते हुए कि भारत की भौगोलिक अवस्थिति रणनीतिक रूप से काफ़ी महत्वपूर्ण है और विश्व राजनीति में उसका कद बढ़ता जा रहा है), उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इन सभी कारणों इस क्षेत्र में भारत की भूमिका बहुत बढ़ गई है. हालांकि यह देख जाना ज़रूरी है कि मौजूदा समय में भारत की हिंद-प्रशांत नीति किस दिशा में आगे बढ़ रही है लेकिन दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण प्रशांत में भारत की पहुंच विशेष रूप से उल्लेखनीय है. यह लेख भारत के उन नीतिगत फैसलों पर गौर करेगा जिसे उसने दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण प्रशांत में अपने प्रभाव के विस्तार के लिए लागू किया है. और इसके अलावा यह लेख इस बात पर भी विचार करेगा कि किस तरह से इन नीतियों ने भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक विश्वसनीय और उभरती हुई शक्ति के रूप में आगे बढ़ने में योगदान दिया है.
दक्षिण-पूर्व एशिया
भारत दक्षिण-पूर्व एशिया में एक रणनीतिक ताकत के रूप में धीरे-धीरे अपनी जड़ें मज़बूत कर रहा है. आसियान के ज्यादातर सदस्य देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध मधुर रहे हैं. लंबे समय से भारत की मुख्य पहचान यही रही है कि उसने सॉफ्ट पॉवर क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं और उसका इस क्षेत्र के साथ पुराना सांस्कृतिक और सभ्यतागत जुड़ाव भी है. हालांकि, इस जुड़ाव के अभी भी बहुत मायने हैं, लेकिन भारत इस क्षेत्र में एक ऐसे सुरक्षा एवं रणनीतिक साझेदार के रूप में अपनी पहचान बना रहा है, जिस पर भरोसा किया जा सकता है. भारत ने वियतनाम को एक मिसाइल वाहक युद्धपोत आईएनएस कृपाण उपहार के तौर पर दिया है. यह खुकरी श्रेणी का युद्धपोत है, जिसका वजन 1450 टन है और इसे 12 अधिकारियों और 100 जहाज़कर्मियों द्वारा संचालित किया जाता है. देश के लिए 32 साल की सेवा पूरी करने के बाद भारतीय नौसेना ने इसे सेवामुक्त कर दिया था. पिछले महीने जब वियतनाम के रक्षा मंत्री फ़ान वान गियांग भारत दौरे पर आए थे, तो पनडुब्बियों और लड़ाकू विमानों का संचालन करने वाले वियतनामी सैन्य अधिकारियों के प्रशिक्षण और साइबर सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध जैसे क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ावा देने पर भी चर्चा हुई. ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि जनवरी 2022 में फिलीपींस के साथ हुए समझौते की तरह जल्द ही वियतनाम के साथ भी ब्रह्मोस समझौता किया जा सकता है. निकट भविष्य में
दोनों देशों के बीच एक संभावित व्यापार समझौते को लेकर भी बातचीत जारी है.
भारत ने वियतनाम को एक मिसाइल वाहक युद्धपोत आईएनएस कृपाण उपहार के तौर पर दिया है. यह खुकरी श्रेणी का युद्धपोत है, जिसका वजन 1450 टन है और इसे 12 अधिकारियों और 100 जहाज़कर्मियों द्वारा संचालित किया जाता है.
जनवरी 2022 में फिलीपींस ने ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड के साथ 37.49 करोड़ अमेरिकी डॉलर के एक समझौते पर हस्ताक्षर किया, जिसके बाद से फिलीपींस के साथ भी द्विपक्षीय संबंध लगातार और बेहतर हुए हैं. जून 2023 में फिलीपींस के विदेश सचिव एनरिक ए. मनालो की भारत यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने द्विपक्षीय सहयोग पर पांचवें भारत-फिलीपींस संयुक्त आयोग की बैठक (जहां उन्होंने अपने भारतीय समकक्ष एस. जयशंकर के साथ वार्ता की) के बाद संयुक्त वक्तव्य जारी किया, जिसमें भारत ने पहली बार स्थाई मध्यस्थता अदालत (हेग) के 2016 के फैसले को मान्यता दी है, जिसके तहत दक्षिणी चीन सागर में समुद्री क्षेत्र की सीमा को लेकर फिलीपींस के दावे को सही ठहराया गया था. इस यात्रा के दौरान, भारतीय रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए फिलीपींस को ऋण सहायता देने की भी पेशकश की गई. साथ ही बहुत जल्द मनीला में एक भारतीय रक्षा विशेषज्ञ को भेजने की संभावना और दोनों देशों की रक्षा एजेंसियों के बीच आपसी भागीदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर विचार किया गया.
भारत ने मई 2023 में दक्षिणी चीन सागर में हुए पहले आसियान-भारत समुद्री अभ्यास की सह-मेज़बानी भी की. स्वदेशी जहाजों (जैसे डिस्ट्रॉयर आईएनएस दिल्ली और स्टील्थ फ्रिगेट आईएनएस सतपुड़ा और समुद्री गश्ती विमान P8I और इंटीग्रल हेलीकॉप्टर) ने ब्रुनेई, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम से आए समुद्री जहाजों के साथ समुद्री अभ्यास में भाग लिया. इसके अलावा, इंडोनेशिया के साथ भारत की रक्षा साझेदारी भी बढ़ रही है, जहां किलो-श्रेणी की भारतीय पनडुब्बी फ़रवरी 2023 में पहली बार इंडोनेशिया पहुंची.
प्रधानमंत्री मोदी की पेरिस यात्रा के दौरान, भारत और फ्रांस ने प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक समझौता भी किया है. दोनों पक्ष हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक समझौते पर सहमत हुए हैं जिसमें प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग और पहलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ज्यादा ज़ोर दिया गया है.
दक्षिण एशिया
भारत के अनुसार “हिंद-प्रशांत क्षेत्र” का विस्तार अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर दक्षिण प्रशांत द्वीपों तक है. सोलोमन द्वीप समूहों के साथ चीन ने एक सुरक्षा समझौता करके इस क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार किया है, जिसके बाद दक्षिण प्रशांत (या प्रशांत द्वीपीय समूह) में कई बड़ी शक्तियों के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है, इसी क्रम में अमेरिका प्रशांत द्वीप समूह के देशों को बीजिंग के साथ सुरक्षा समझौता करने से रोकने की कोशिश कर रहा है. हाल ही में अमेरिका ने पापुआ न्यू गिनी (PNG) के साथ एक रक्षा समझौता किया है. भारत पहले से ही प्रशांत क्षेत्र में अपनी पहुंच का विस्तार करने की कोशिश करता रहा है. फिजी में भारतीय प्रवासियों की बड़ी आबादी और फिपिक (भारत-प्रशांत द्वीप समूह सहयोग मंच) जैसी पहलों से इस दिशा में किए गए प्रयासों का पता चलता है. लेकिन इस साल भारत की तरफ़ से दो उच्च-स्तरीय यात्राएं की गईं. प्रधानमंत्री मोदी ने मई 2023 में फिजी का दौरा किया और तीसरे फिपिक शिखर सम्मेलन के मौके पर उन्होंने फिजी के प्रधानमंत्री सीटिवेनी लिगामामादा रबुका से मुलाकात की. इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री राबुका ने फिजी के राष्ट्रपति रातू विलियामे मैवलीली काटोनिवेरे की ओर से प्रधानमंत्री मोदी को फिजी के सर्वोच्च नागरिक सम्मान (द चैंपियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ फिजी) से सम्मानित किया. मई 2023 में, प्रधानमंत्री मोदी ने पापुआ न्यू गिनी का भी दौरा किया और इसी महीने ईस्टर्न नेवल कमांड के अधीन दो भारतीय नौसेना जहाजों ने (आईएनएस सहयाद्रि और आईएनएस कोलकाता) मोरेस्बी बंदरगाह पर रुकने का फैसला किया, जिसे पापुआ न्यू गिनी के साथ समुद्री क्षेत्र में आपसी भागीदारी और सहयोग को बढ़ावा देने से जुड़े कार्यक्रमों के एक हिस्से के रूप में देखा जा सकता है. पिछले महीने प्रधानमंत्री मोदी की पेरिस यात्रा के दौरान, भारत और फ्रांस ने प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक समझौता भी किया है. दोनों पक्ष हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक समझौते पर सहमत हुए हैं जिसमें प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग और पहलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ज्यादा ज़ोर दिया गया है.
भारत एक मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए लगातार प्रयास कर रहा है. फिर भी इस बात को लेकर चिंताएं व्यक्त की गईं कि क्या भारत पूर्वी हिंद महासागर और प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर पाएगा जबकि भारत की विदेश एवं सुरक्षा नीतियों के केंद्र में पश्चिमी हिंद महासागर और दक्षिण एशिया है? लेकिन, समय के साथ भारत ने पूर्वी हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी का विस्तार किया है और समूचे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक बड़े रणनीतिक साझेदार के रूप में उभर रहा है.
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