यूरोपीय संघ (EU) के विदेश नीति प्रमुख के लिए दुनिया भर में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रेंड करना बेहद असामान्य है लेकिन यूरोपियन एक्सटर्नल एक्शन सर्विस (EEAS) के प्रमुख जोसेफ बोरेल (JOSEPH BORRELL)मौज़ूदा समय में सभी ग़लत कारणों के चलते अंतर्राष्ट्रीय सुर्ख़ियां बटोर रहे हैं.
ईईएएस यूरोपीय संघ की राजनयिक कोर और आधिकारिक विदेश नीति शाखा है-अपनी तरह का एकमात्र ऐसा संगठन जो नेशन-स्टेट द्वारा नहीं बनाया गया है-जो यूरोपीय संघ की सामान्य विदेश और सुरक्षा नीति का प्रभारी है, जिसके दुनिया भर में 6,200 अधिकारी और 143 प्रतिनिधिमंडल हैं. 2019 में यूरोपीय संसद के चुनावों के साथ-साथ नया यूरोपियन कमीशन तैयार हो रहा था, जिसमें शीर्ष पदों के लिए हर पांच साल में आम तौर पर बदलाव होना था.बोरेल,2018-2019 तक स्पेन के पूर्व विदेश मंत्री रहे और 2004-2007के बीच यूरोपीय संसद के प्रमुख जिन्हें आयोग के अध्यक्ष वॉन डेर लेयेन के नए महत्वाकांक्षी “भू राजनीतिक आयोग” के हिस्से के रूप में ईईएएस के प्रमुख के तौर पर नियुक्त किया गया.
बोरेल की तुलना में, उनकी पूर्ववर्ती फेडेरिका मोघेरिनी को अपेक्षाकृत आसान वैश्विक परिस्थितियां विरासत में मिली और 2015 के ईरान परमाणु समझौते जैसे मुद्दों पर उन्हें अधिक ध्यान केंद्रित करना पड़ा, ना कि 2014 में क्रीमिया के रूसी कब्ज़े जैसे तात्कालिक मुद्दों पर. रूस और चीन की दोहरी चुनौतियों के साथ, यूरोपीय सुरक्षा व्यवस्था के पुनर्गठन के बीच बोरेल को मौज़ूदा वक़्त में ज़्यादा अस्तित्व से जुड़े संकटों का सामना करना पड़ रहा है.
रूस के खिलाफ़ प्रतिबंध
अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में बोरेल ने दो भाषण दिए – पहला दुनिया भर में यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडलों को संबोधित किया, दूसरा ब्रुग्स, बेल्जियम में यूरोप के प्रतिष्ठित कॉलेज में यूरोपीय राजनयिक अकादमी के उद्घाटन के दौरान उन्होंने वक्तव्य दिया. यह भाषण ऐसे वक्त पर दिया गया जब यूरोपियन यूनियन ने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की पुतिन की धमकियों और यूक्रेन में उनके दिखावटी जनमत संग्रह के बीच रूस के ख़िलाफ़आठवीं बार प्रतिबंधों को अमल में लाया था.
आमतौर पर यूरोप में भी, ‘आंतरिक घटना’ मानकर इन भाषणों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है. इसके बजाय, यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख की तीखी टिप्पणी, जहां उन्होंने यूरोप को एक बगीचे के रूप में और बाकी दुनिया को बगीचे पर आक्रमण करने के लिए इंतज़ार कर रहे जंगल के रूप में बताया, इस टिप्पणी ने दुनिया भर में विवाद खड़ा कर दिया है. इस आक्रामक भू-राजनीतिक रूपक ने अपने ग़लत सर्वोच्चतावादी अंडरटोन के साथ ना सिर्फ ग्लोबल साउथ के नागरिकों को बल्कि पूरे महाद्वीप को कठघरे में खड़ा कर दिया है. जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल एंड एरिया स्टडीज के मोहम्मद फ़ोरो जैसे विद्वानों ने ठीक ही बताया है कि कैसे यूरोपीय समृद्धि की नींव महाद्वीप के पूर्व उपनिवेशों की बर्बर लूट और शोषण पर आधारित है. इथियोपिया से कनाडा और संयुक्त अरब अमीरात के सरकारी अधिकारियों ने इस भेदभावपूर्ण टिप्पणियों पर शिकायत दर्ज़ की है. अप्रत्याशित रूप से इस आलोचना ने भारत में भी अपनी ज़मीन तलाश ली है, जैसा कि विद्वान अतुल मिश्रा के साथ द हिंदू के अमित बरुआ द्वारा इस पॉडकास्ट में स्पष्ट है.
वास्तव में, रूस द्वारा यूरोप की ऊर्जा निर्भरता का शस्त्रीकरण, चीन द्वारा बाज़ारों और आपूर्ति श्रृंखलाओं का शस्त्रीकरण और अमेरिकी सुरक्षा को लेकर यूरोप का अप्रत्याशित भरोसा यूरोप की सीमाओं, कमजोरियों और बिजनेस-ओवर-ऑल-एल्स अप्रोच के जोख़िम को उजागर करता है.
अपनी विज्ञप्ति में बोरेल ने इन सभी बातों का जिक्र किया – मौज़ूदा राजनीति में विनिंग नैरेटिव की अहमियत और पहचान के डिफाइनिंग फैक्टर होने से लेकर ऊर्जा, बाज़ार और सुरक्षा नीति पर यूरोप की ग़लत धारणा और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में ताक़तवर होने की आवश्यकता. वास्तव में, रूस द्वारा यूरोप की ऊर्जा निर्भरता का शस्त्रीकरण, चीन द्वारा बाज़ारों और आपूर्ति श्रृंखलाओं का शस्त्रीकरण और अमेरिकी सुरक्षा को लेकर यूरोप का अप्रत्याशित भरोसा यूरोप की सीमाओं, कमजोरियों और बिजनेस-ओवर-ऑल-एल्स अप्रोच के जोख़िम को उजागर करता है.
जैसा कि यूरोप भू-राजनीति से भू-अर्थशास्त्र के त्रुटिपूर्ण अलगाव के नतीजों से जूझ रहा है, बोरेल ने गंभीर भू-राजनीतिक उथल-पुथल और प्रतिस्पर्द्धी हितों और असुरक्षा के युग में वर्तमान यूरोप की बिना सेंसर की वास्तविकताओं को सामने रखा है लेकिन एक अनुशासनहीन रूपक (सादृश्य) उनके बाकी भाषण पर हावी हो गया.
वास्तव में उनके भाषण में कई दूसरी अच्छी बातें भी थीं, जिन पर ग्रहण लग गया.
बोरेल ने अपने मेजबान देशों के प्रति सम्मान और सहानुभूति की कमी के लिए यूरोपीय संघ के राजनयिकों को फटकार लगाई. जहां उन्होंने ‘नैरेटिव की लड़ाई’ के बारे में बात की, जिसे रूस और चीन साफ तौर पर जीतते दिख रहे हैं, दूसरों से यूरोपीय भाषाएं बोलने की अपेक्षा करने के बजाय, उन्होंने यूरोपीय राजनयिकों के महत्व पर बल दिया जो यूरोप के संदेश को स्थानीय भाषाओं के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित कर रहे थे. विश्व स्तर पर लताड़ने और व्याख्यान देने के नियमित यूरोपीय रवैये के बजाय, उन्होंने एक वास्तविक समझ व्यक्त की, कि मध्य शक्तियाँ जैसे भारत, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, तुर्की, मैक्सिको, इंडोनेशिया जो संभवतः ‘जंगल’ हैं और अपने लिए मौक़ा देख रहे हैं. उन्होंने ग्लोबल साउथ में लोगों की व्यापक भावनाओं को स्वीकार किया जो महसूस करते हैं कि “वे अपनी जनसंख्या और आर्थिक दबदबे के अनुसार अपना हिस्सा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं और एक वैश्विक प्रणाली जो कुछ भी नहीं दे पा रही है”.
वैश्विक समर्थन की ज़रूरत
“लोकतंत्र बनाम अधिनायकवादी” विभाजन का उल्लेख करते हुए, बोरेल ने यूरोप की ओर सत्तावादी शासन की उपस्थिति को भी स्वीकार किया. क्या उनका मतलब विक्टर ओरबान के हंगरी जैसे शासन से है जो यूरोपीय संघ के सदस्य राज्य हैं जो ब्रसेल्स के साथ अधिनायकवाद और नियमों के विवाद के कगार पर हैं, या उनका मतलब दुनिया भर के सत्तावादी तीसरे देशों से है जिनके साथ यूरोपीय संघ सहयोग करता है, यह स्पष्ट नहीं है. लेकिन यहां तक कि ट्रेंडी लेकिन पाखंडी यूरोपीय “वैल्यू ओवर इंटरेस्ट (हितों पर मूल्य)” बयानबाज़ी के सामने इन्हें स्वीकार करना उपन्यास जैसा था.
यूरोप अपनी कूटनीति में विध्वंसकारी ग़लतियों को बर्दाश्त नहीं कर सकता है और न ही वह दुनिया के कुछ हिस्सों को अलग करके ख़ुद पर कोई एहसान कर रहा है.
फिर भी ऐसे समय में इस तरह की सकारात्मकता पर ध्यान नहीं दिया गया जब यूरोप को यूक्रेन में रूस के युद्ध के ख़िलाफ़ वैश्विक समर्थन की सख़्त ज़रूरत है और विशेष रूप से ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्र में और भारत-प्रशांत क्षेत्र में नई अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी की तलाश में है. भू-राजनीति में, जहां शब्द उतना ही मायने रखता है जितना कि एक्शन, इस तरह की बयानबाजी यूरोप के रणनीतिक हितों के ख़िलाफ़ जाती है और इस धारणा को पुष्ट करती है कि यूरोपीय नागरिक अभी भी ख़ुद को बाकी लोगों से बेहतर समझते हैं, जबकि रूस और चीन दूसरों को समान मानते हैं, जिससे उन्हें उनके बर्बर कृत्यों के बावज़ूद ‘बैटल ऑफ नैरेटिव’ को जीतने का मौक़ा मिल जाता है.यूरोप संयुक्त राष्ट्र में रूस की आलोचना से दूर रहने वाले दुनिया के दूसरे हिस्सों को लेकर चिंतित हो सकता है लेकिन एक बार फिर ऐसी बयानबाजी अन्य देशों को अलग करने से रोकने में मदद नहीं करती है, और क्रेमलिन के प्रोपेगैंडा को आगे बढ़ाने के लिए इससे एक मौक़ा मिलता है. वास्तव में, रूसी सरकार की प्रवक्ता मारिया झाखारोवा, इस पल का फायदा उठाने में सबसे आगे थीं और बोरेल के भाषण के संबंध में यूरोप के नकारात्मक औपनिवेशिक इतिहास की दुनिया को याद दिलाने वाली पहली शख़्सियत थीं. इसके अलावा, इस तरह की टिप्पणी यूरोप में दक्षिणपंथी नेताओं के नैरेटिव के सांचे में सही बैठती है और उन्हें ऐसे बयान देने के लिए प्रोत्साहित करती हैजो अक्सर यूरोपीय संघ के विरोधी हैं और बोरेल का प्रतिनिधित्व करने वाले संस्थानों के ख़िलाफ़ रहते हैं.
हालांकि, मुख्य रूप से लेकिन विरोधाभासी रूप से, उपनिवेशवादी अंडरटोन के लिबास के नीचे भी एक ईमानदार और आत्मनिरीक्षण मूल्यांकन था, जो ब्रसेल्स नौकरशाही में दुर्लभ हैऔर दुनिया में यूरोप की चौंका देने वाली स्थिति को दिखाता है. लेकिन यह इंसानों की प्रवृति है जो नकारात्मक को बड़ा करती है और सकारात्मक को कम करती है और अपने निजी ब्लॉग में बोरेल के स्पष्टीकरण ने उनके बयान से हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर पाया.
बोरेल के भाषणों के कुछ ही दिन पहले, ब्रिटेन में गंभीर आर्थिक संकट के बीच तत्कालीन ब्रिटिश गृह सचिव सुएला ब्रेवरमैन की ब्रिटेन में भारतीय प्रवासियों पर भड़काऊ टिप्पणियों के बाद भारत-इंग्लैंड मुक्त व्यापार सौदे के लिए वार्ता खटाई में पड़ गई थी.
अपनी वैश्विक बातचीत और व्यवहार में, यूरोप अपने उपनिवेशवादी अतीत और विरासत के प्रति उदासीनता नहीं दिखा सकता है, जिसे लेकर कई दूसरे देश मुक्त हैं. जैसा कि ब्रसेल्स स्थित प्रभावशाली टिप्पणीकार शादा इस्लाम बताते हैं, “यूरोप का साम्राज्य और उपनिवेशवाद का इतिहास वास्तव में प्रभावशाली भू-राजनीतिक यूरोप बनाने में एक महत्वपूर्ण बाधा बना हुआ है”, और विभाजनकारी “अस एंड देम’ (हम और वे) नैरेटिव इसमें मददगार नहीं हो सकता है.
यूरोपीय संघ और उसके सदस्य राष्ट्रों के लिए जो बेहद ख़तरनाक वक़्त से गुजर रहे हैं, लोकप्रिय मुहावरे के विपरीत, सभी प्रचार बेहतर प्रचार नहीं हो सकते हैं. इस मोड़ पर, यूरोप अपनी कूटनीति में विध्वंसकारी ग़लतियों को बर्दाश्त नहीं कर सकता है और न ही वह दुनिया के कुछ हिस्सों को अलग करके ख़ुद पर कोई एहसान कर रहा है.
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