कोविड-19 महामारी और यूक्रेन युद्ध ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में ख़लल डाला है. वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की पारस्परिक निर्भरताओं का स्तर आज बेहद ऊंचा है, लिहाज़ा मौजूदा हालात उनकी कमज़ोरियां को बेपर्दा करने लगे हैं. रूस और चीन ऊर्जा क्षेत्र और बाज़ारों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में यूरोप अपने व्यापार सहभागियों में विविधता लाकर नए वैश्विक हिस्सेदारों की तलाश में जुट गया है. यूरोपीय देश मौजूदा निर्भरताओं को ख़त्म कर नाज़ुक उत्पादों के लिए नई आपूर्ति श्रृंखलाएं सुरक्षित कर लेना चाहते हैं. वो आर्थिक लोच में मज़बूती लाने की क़वायदों में भी जुट गए हैं. लिहाज़ा यूरोप के भावी मुक्त व्यापार सौदों को लेकर सुचारू वार्ताओं के भूसामरिक कारक और मज़बूत होते जा रहे हैं.
यूरोप व्यापार सौदों को कैसे आगे बढ़ा रहा है
यूरोप दुनिया का सबसे बड़ा एकल बाज़ार क्षेत्र होने के साथ-साथ बहिर्मुखी स्वभाव वाली सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. मुक्त व्यापार, यूरोपीय संघ (EU) के बुनियादी सिद्धांतों में शुमार है. हक़ीक़त ये है कि यूरोपीय संघ दुनिया के तक़रीबन 80 देशों का शीर्ष वैश्विक व्यापार सहयोगी है. अमेरिका को केवल 20 देशों के साथ ही इस तरह का दर्जा हासिल है. इस साल अक्टूबर में जारी यूरोपीय आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक मुक्त व्यापार क़रारों (FTA) के तहत यूरोपीय संघ का निर्यात पहली बार 1 खरब यूरो के पार चला गया. हालांकि, आज के दौर में आर्थिक गतिविधियों का केंद्र अटलांटिक से परे एशिया-प्रशांत की ओर मुड़ता जा रहा है. ऐसे में वैश्विक व्यापार में यूरोपीय संघ का हिस्सा घटने लगा है. इन हालातों में FTA और भी ज़्यादा अहम हो गए हैं.
यूरोप दुनिया का सबसे बड़ा एकल बाज़ार क्षेत्र होने के साथ-साथ बहिर्मुखी स्वभाव वाली सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. मुक्त व्यापार, यूरोपीय संघ (EU) के बुनियादी सिद्धांतों में शुमार है. हक़ीक़त ये है कि यूरोपीय संघ दुनिया के तक़रीबन 80 देशों का शीर्ष वैश्विक व्यापार सहयोगी है.
बाहरी व्यापार (EU के दायरे से बाहर होने वाला व्यापार) “यूरोपीय संघ की ख़ास ज़िम्मेदारी” है. दूसरे शब्दों में, अपने 27 सदस्य देशों की ओर से किसी तीसरे देश के साथ मुक्त व्यापार समझौते के लिए वार्ता करने की शक्ति सिर्फ़ यूरोपीय संघ को हासिल है. यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की राष्ट्रीय सरकारों के पास इस तरह की शक्तियां नहीं हैं. इसकी वजह ये है कि अलग-अलग सदस्य देशों की बजाए, एक इकाई के तौर पर यूरोपीय संघ के पास वार्ताओं में सौदेबाज़ी करने का ज़्यादा रसूख़ होता है.
यूरोपीय संघ 2006 से अन्य देशों के साथ व्यापार क़रारों पर वार्ताएं करता आ रहा है. इससे EU के निर्यात बढ़ते हैं, कस्टम शुल्क और ग़ैर-कर बाधाएं दूर होती हैं, और संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करने में मदद मिलती है. EU की ओर से यूरोपीय आयोग अपने व्यापार सहयोगी के साथ सौदों पर वार्ताएं करता है. हालांकि इस क़वायद से पहले परिषद से प्राधिकार हासिल करना ज़रूरी होता है. वार्ता प्रक्रियाएं पूरी होने के बाद आयोग द्वारा पेश किए गए सौदे को परिषद और यूरोपीय संसद के अनुमोदन के बाद ही मंज़ूरी दी जाती है. इसके बाद व्यापार भागीदार को दस्तख़त किए गए सौदे को अनुमोदित करना होता है.
चीन के साथ भारत और ऑस्ट्रेलिया, दोनों के ही रिश्ते तनावपूर्ण हैं. उथल-पुथल भरे भू-राजनीतिक समीकरण समाजवादी और लोकतंत्रवादी समूहों (मध्यममार्गी-वामपंथी और यूरोपीय संसद की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी) के बीच भी मुक्त व्यापार से जुड़ी क़वायद को हवा दे देते हैं.
किसी भी देश के लिए मुक्त व्यापार सौदों पर दस्तख़त की प्रक्रिया थकाऊ और बेहद तकनीकी होती है. किसी सौदे को अनुमोदित करने के लिए तक़रीबन 40 राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संसदों से मंज़ूरी की दरकार पड़ने पर ये क़वायद पहाड़ जैसी चुनौती बन जाती है. यूरोपीय संघ के मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) में भी ऐसा ही देखने को मिलता है. अगर सौदे के दायरे में ऐसे क्षेत्र आ रहे हों, जिनपर सदस्य देशों की ज़िम्मेदारी हो तो इनके लिए राष्ट्रीय अनुमोदन प्रक्रिया की जद्दोजहद भरी क़वायद से गुज़रना पड़ता है.
यूरोपीय मुक्त व्यापार एजेंडे में रफ़्तार भरना
यूक्रेन के साथ रूस के जंग ने ब्रुसेल्स में मुक्त व्यापार के प्रति भूख बढ़ा दी है क्योंकि इसके ज़रिए व्यापार प्रवाहों में विविधता लाई जा सकती है. यूरोपीय संघ के व्यापार आयुक्त वाल्दिस डोम्ब्रोविस्किस ने ये बात दोहराई है. दूसरे देशों के साथ व्यापार सहयोग को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया के ना सिर्फ़ स्पष्ट आर्थिक फ़ायदे हैं बल्कि ये व्यापक भू-राजनीतिक रणनीति के हिसाब से भी सटीक है. भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ यूरोपीय संघ के प्रस्तावित FTAs, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग स्थापित करने की यूरोपीय संघ की रणनीति के हिसाब से मुफ़ीद हैं क्योंकि इनसे चीन के साथ संतुलन क़ायम करने की गरज पूरी होती है. चीन के साथ भारत और ऑस्ट्रेलिया, दोनों के ही रिश्ते तनावपूर्ण हैं. उथल-पुथल भरे भू-राजनीतिक समीकरण समाजवादी और लोकतंत्रवादी समूहों (मध्यममार्गी-वामपंथी और यूरोपीय संसद की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी) के बीच भी मुक्त व्यापार से जुड़ी क़वायद को हवा दे देते हैं. ये दल अब व्यापार सौदों की वक़ालत करने लगे हैं. हालांकि पारंपरिक रूप से सतत विकास से जुड़ी क़वायद इनकी प्राथमिकताओं में शुमार रही है.
दुनिया के साथ यूरोप के मुक्त व्यापार को आगे बढ़ाने का ये माकूल वक़्त है. फ़िलहाल EU की परिषद की अध्यक्षता चेक रिपब्लिक के पास है, जो जनवरी 2023 में स्वीडन के पास जाने वाली है. ग़ौरतलब है कि ये दोनों ही मुल्क यूरोपीय संघ में मुक्त व्यापार के सबसे बड़े पैरोकारों में शुमार हैं. ज़ाहिर है मौजूदा हालात फ़्रांस की अध्यक्षता वाले दौर से बिल्कुल जुदा हैं. दरअसल, फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रां अप्रैल में अपने देश में राष्ट्रपति चुनाव से पहले किसी तरह के व्यापार सौदे के ख़िलाफ़ थे क्योंकि उन्हें किसानों और दूसरे मतदाताओं के बीच अपनी लोकप्रियता घटने का डर सता रहा था.
यूरोपीय संघ और सिंगापुर के व्यापार सौदे पर यूरोपीय न्यायिक अदालत द्वारा 2017 में एक अहम फ़ैसला सुनाया गया था. व्यापार सौदों से जुड़े रुख़ में ताज़ा बदलाव का आधार यही निर्णय है.
चीन और अमेरिका, यूरोपीय संघ के सबसे बड़े व्यापार साझीदार हैं, लेकिन इनके साथ व्यापार सौदे ठंडे बस्ते में पड़े हैं. ऐसे में सबका ध्यान दूसरी ओर चला गया है. कई दूसरे समझौते वार्ता प्रक्रियाओं के अलग-अलग दौर में हैं. यूरोप को उम्मीद है कि वो ऑस्ट्रेलिया, चिली, मैक्सिको और कनाडा के साथ क़रारों को अंतिम रूप दे देगा. भारत के साथ 2013 से अटकी वार्ता प्रक्रियाओं को इस साल नए सिरे से शुरू किया गया है. वार्ताओं के 2 दौर पूरे भी किए जा चुके हैं.
तेज़ी भरा रुख़: अलग-अलग राष्ट्रों की बात दरकिनार?
जैसा कि पहले ज़िक्र किया गया है, ज़्यादातर मामलों में व्यापार सौदे तभी पूर्ण हो सकते हैं जब यूरोपीय संघ के सदस्य राष्ट्रों की राष्ट्रीय (और कुछ मामलों में क्षेत्रीय) संसद भी इसपर दस्तख़त कर इसको अनुमोदित कर दे. 2016 में वालोनिया (बेल्जियम के दक्षिण में फ्रेंच ज़ुबान वाला छोटा इलाक़ा) की क्षेत्रीय संसद ने निवेश संरक्षण शर्तों पर EU-कनाडा समग्र आर्थिक और व्यापार समझौते (CETA) को लगभग तबाह कर दिया था. इस वाक़ये ने EU की आंखें खोल दी थीं. दरअसल कनाडा जैसे विकसित (और समान सोच वाले साथी) और पश्चिमी उदारवादी लोकतांत्रिक देश के साथ व्यापार क़रार अपेक्षाकृत आसान होना चाहिए था, लेकिन वालोनिया के वाक़ये ने इस रास्ते की दुश्वारियों को बेपर्दा कर दिया. पूरे क़रार को तो अबतक कई यूरोपीय देशों की संसदों का अनुमोदन हासिल नहीं हो सका है.
यही वजह है कि 2017 में आयोग के पूर्ववर्ती अध्यक्ष जीन-क्लाउड जुंकर के नेतृत्व वाले दौर से ब्रुसेल्स तेज़ रफ़्तार वाले रुख़ पर विचार करता रहा है. इसके तहत राष्ट्रीय संसदों से मशविरे के बग़ैर ही सौदों के अनुमोदन की छूट मिल जाएगी. इसके लिए सौदे को अलग-अलग खंडों में बांट दिया जाएगा. व्यापार के मुख्य घटकों को सिर्फ़ परिषद और ब्रुसेल्स के स्तर पर यूरोपीय संसद के अनुमोदन की दरकार होगी. ग़ौरतलब है कि मिश्रित स्वरूप वाले समझौतों को यूरोपीय संघ की संस्थाओं और राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संसदों के अनुमोदन की दरकार होती है. इसके अलावा निवेश और राजनीतिक सहयोग से जुड़े खंडों को भी राष्ट्रीय संसदों की हरी झंडी की ज़रूरत पड़ती है.
यूरोपीय संघ और सिंगापुर के व्यापार सौदे पर यूरोपीय न्यायिक अदालत द्वारा 2017 में एक अहम फ़ैसला सुनाया गया था. व्यापार सौदों से जुड़े रुख़ में ताज़ा बदलाव का आधार यही निर्णय है. फ़ैसले के मुताबिक सौदे के कुछ निश्चित हिस्से (जैसे निवेश से जड़े मसले) सदस्य राष्ट्रों के साथ यूरोपीय संघ की साझा पात्रता के दायरे में आते हैं. इससे इस व्याख्या की छूट मिल गई कि सौदे के व्यापारिक हिस्से को सिर्फ़ ब्रुसेल्स के स्तर पर मंज़ूरी की दरकार होगी. EU-वियतनाम सौदे को इसी तरीक़े से 2020 में पूरा किया गया था. इसमें सौदे के व्यापार से जुड़े हिस्से को निवेश संरक्षण समझौते से अलग रखा गया था.
मैक्सिको लैटिन अमेरिका में यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा व्यापार साझीदार है. कहा जा रहा है कि मैक्सिको के साथ अत्याधुनिक व्यापार क़रार (जिसे पिछले साल मंज़ूरी दी गई थी) के जल्द अनुमोदन के लिए सिंगापुर सौदे की मिसाल अपनाई जाएगी. हालांकि, इस सौदे को EU के सदस्य राष्ट्रों द्वारा नियत किए गए “मिश्रित समझौते” के तौर पर पेश किया जा रहा है. इसके बावजूद इस क़रार की मंज़ूरी के लिए ऊपर बताया गया तौर-तरीक़ा अमल में लाए जाने की बात कही जा रही है. ऐसे में आलोचक इस बात से चिंतित हैं कि ताज़ा क़वायद से भविष्य में यूरोपीय संघ के दूसरे व्यापार समझौतों के लिए नई तरह की मिसाल क़ायम हो जाएगी. वैसे सौदे भी मिश्रित क़रार के तौर पर पेश किए गए हैं और उनपर पहले से ज़्यादा विवाद है.
इस सिलसिले में EU-मर्कोसुर व्यापार सौदे को लेकर ख़ासतौर से चिंता जताई जा रही है. ये सौदा पर्यावरणीय मसलों (जैसे अमेज़न वर्षा वन में पेड़ों की कटाई) की वजह से 2019 से अटका हुआ है. ब्राज़ील, अर्जेंटीना, पराग्वे और उरुग्वे का समूह 26 करोड़ उपभोक्ताओं और 2.2 खरब यूरो की सालाना जीडीपी वाला एक अपेक्षाकृत बंद बाज़ार है. इस इलाक़े में आर्थिक पैठ बनाने के लिए व्यापार सौदा, यूरोप का एक अहम् औज़ार बन सकता है. मुक्त व्यापार पर यूरोपीय संघ नए सिरे से यथार्थवादी रुख़ अपना रहा है. आलोचकों को इस बात का डर सता रहा है कि व्यापार के मोर्चे पर यूरोप की इन क़वायदों से पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं, सतत विकास से जुड़े मसलों और लोकतांत्रिक विचारों पर कुठाराघात हो सकता है. लिहाज़ा मिश्रित स्वरूप की बजाए सिर्फ़ यूरोपीय संघ को केंद्रित कर की जाने वाली संधियों की वैधानिकता पर तमाम तरह के सवाल खड़े किए जाने लगे हैं.
मुक्त व्यापार पर यूरोपीय संघ नए सिरे से यथार्थवादी रुख़ अपना रहा है. आलोचकों को इस बात का डर सता रहा है कि व्यापार के मोर्चे पर यूरोप की इन क़वायदों से पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं, सतत विकास से जुड़े मसलों और लोकतांत्रिक विचारों पर कुठाराघात हो सकता है.
सदस्य राष्ट्रों के भीतर, अंतरराष्ट्रीय स्वरूप वाले यूरोपीय संघ की छवि बिगड़ने लगी है. EU को राष्ट्रीय राजधानियों से निर्णय लेने की क्षमता छीनने वाली इकाई के तौर पर देखा जाने लगा है. हालिया वक़्त में आयोग ने सदस्य राष्ट्रों की ओर से बेहद असरदार नीतियों पर तालमेल की क़वायदों को अंजाम तक पहुचाया है. इस कड़ी में महामारी के गंभीर दौर में साझा वैक्सीन नीति और यूक्रेन युद्ध के दौरान रूसी ऊर्जा पर यूरोप द्वारा लगाई गई पाबंदी और तमाम दूसरे प्रतिबंध शामिल हैं. रूस पर यूरोपीय पाबंदियों की वजह से महंगाई में उछाल आया है और जीवन-यापन की लागत बढ़ गई है. ज़ाहिर है यूरोप की जनता दुश्वारियों से जूझ रही है. ऐसे में व्यापार नीति में यूरोपीय संघ द्वारा ज़रूरत से ज़्यादा दख़ल दिए जाने से जुड़े सवाल ज़ोर पकड़ सकते हैं.
यूरोप की राजनीति पहले से ही वैश्वीकरण के ख़िलाफ़ लोकप्रियतावादी थपेड़ों की गरमाहट झेल रही है. ऐसे में व्यापार क़रारों के मिश्रित स्वरूप को तिलांजलि देने से ब्रुसेल्स में बैठे आकाओं द्वारा लोकतंत्र के ख़िलाफ़ जाकर सत्ता हथियाने और यूरोपीय व्यापार नीतियों में पारदर्शिता के तथाकथित अभाव से जुड़े इल्ज़ामों में तेज़ी आ सकती है. राष्ट्रीय संसदों को दरकिनार करने, जैसे क़दमों से लोकप्रियतावाद को और हवा मिल सकती है. दरअसल यूरोप में दक्षिणपंथी आंदोलन, EU-विरोधी भावनाओं और राष्ट्रों की राजधानियों पर ब्रुसेल्स के बढ़ते शिकंजे जैसे मसलों की बुनियाद पर फलता-फूलता रहा है. सतत विकास से जुड़े मसलों और जलवायु परिवर्तन से जुड़े एजेंडे का समर्थन करने वाले यूरोपीय नागरिक भी ऐसे सौदों के विरोध में सुर से सुर मिला सकते हैं. अमेरिका के साथ ट्रांसअटलांटिक कारोबार और निवेश हिस्सेदारी (TTIP) पर वार्ताओं के दौरान ऐसा ही रुख़ देखने को मिला था और आगे चलकर ये प्रक्रिया भारी जनविरोध की भेंट चढ़ गई थी.
रूस और चीन के साथ यूरोप अपने रिश्तों को नया आयाम दे रहा है. इन हालातों में उसे अन्य मौजूदा और नए साथियों के साथ व्यापारिक रिश्तों में निश्चित रूप से गहराई लानी होगी. 27 सदस्य राष्ट्रों के संघ के रूप में इन तमाम भूसामरिक और भूआर्थिक कारकों में संतुलन बिठाना होगा. हालांकि इस प्रक्रिया में उसे सदस्य राष्ट्रों को अलग-थलग करने की क़वायद से परहेज़ करना होगा.
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