Author : Shairee Malhotra

Published on Jan 30, 2024 Updated 0 Hours ago

भले ही अर्थशास्त्र अब भी यूरोप-चीन संबंधों के केंद्र में बना हुआ है, लेकिन इसके साथ अब गहन जांच-पड़ताल और तमाम तरह की शर्तें जुड़ गई हैं.  

धुर दक्षिणपंथ, दूरदर्शी राजनीति और युद्ध की थकान!

साल 2023 यूरोप (ओल्ड कॉन्टिनेंट) के लिए गतिशीलता से भरा रहा है. युद्ध का सामना करने से लेकर चीन के प्रति दृष्टिकोणों में नया तालमेल बिठाने और धुर दक्षिणपंथियों की लोकप्रियता में उछाल तक, ऐसे प्रमुख रुझानों के दूरगामी और गंभीर निहितार्थ होने के आसार हैं. 

‘डी-रिस्किंग यानी जोख़िम से मुक्ति’ मूलमंत्र है 

रूसी ऊर्जा पर यूरोप की अत्यधिक निर्भरता ने उसे चीन पर भी ऐसी ही दूरदर्शिता लागू करने पर मजबूर कर दिया है. लिहाज़ा यूरोप अपने व्यापार में विविधता लाने और ‘समान विचारधारा’ वाले साझेदारों के साथ आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करने के प्रयास करने लगा है. इस संदर्भ में 2023 में यूरोपीय संघ द्वारा चीन से ‘जोख़िम-मुक्त’ होने के प्रयास देखे गए- मिसाल के तौर पर, अहम धातुओं और कच्चे माल जैसे रणनीतिक क्षेत्रों और बैटरियों, सेमीकंडक्टर्स और दवाइयों जैसे उद्योगों में इस इकलौते देश (यानी चीन) पर निर्भरताओं को सीमित करने की कोशिशें की गईं. सुरक्षा पर केंद्रित इस दृष्टिकोण के अनुरूप, यूरोपीय संघ ने अपने नीतिगत उपकरणों का विस्तार करके व्यवस्थाओं की पूरी श्रृंखला तैयार की है. इनमें अहम कच्चा माल अधिनियम और EU चिप्स अधिनियम के साथ-साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती भरी क़वायदों के ख़िलाफ़ उपाय, तकनीकी निर्यात नियंत्रण, और निवेश की दोतरफ़ा जांच-पड़ताल शामिल हैं. 

EU के अनेक सदस्य राष्ट्रों ने भी इस साल ऐसे आधिकारिक दस्तावेज़ जारी किए जो कुछ हद तक EU की व्यापक रणनीति में समाहित हैं. ये चीन की ओर उनके नए दृष्टिकोण की झलक देते हैं.

EU के अनेक सदस्य राष्ट्रों ने भी इस साल ऐसे आधिकारिक दस्तावेज़ जारी किए जो कुछ हद तक EU की व्यापक रणनीति में समाहित हैं. ये चीन की ओर उनके नए दृष्टिकोण की झलक देते हैं. हालांकि, जोख़िम-मुक्ति की ज़रूरत पर व्यापक सर्वसम्मति के बावजूद क्रियान्वयन और परिचालन से जुड़े विवरण अब भी अस्पष्ट हैं. इस बीच, तमाम अन्य मसलों पर कारोबारी हितों को प्राथमिकता देते रहने की चंद पश्चिमी यूरोपीय देशों की प्रवृति से यूरोपीय संघ में इस व्यापक सर्वसम्मति को नुक़सान पहुंचने का ख़तरा है. ये पूरी क़वायद इस बात पर निर्भर है कि यूरोपीय संघ के देश व्यक्तिगत रूप से चीन के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को कैसे आगे बढ़ाते हैं. 

इन प्रतिवादों से परे, चीन को लेकर अतीत में यूरोप द्वारा अपनाए जाने वाले भोले-भाले रुख़ का अंत हो चुका है. भले ही अर्थशास्त्र अब भी यूरोप-चीन संबंधों के केंद्र में बना हुआ है, लेकिन इसके साथ अब गहन जांच-पड़ताल और तमाम तरह की शर्तें जुड़ गई हैं. जैसे-जैसे यूरोप व्यापार में पारस्पारिकता की जद्दोजहद करने लगा है और चीनी ज़ोर-ज़बरदस्ती के ख़िलाफ़ तेवर दिखा रहे हैं, आगे की चुनौती में अपने सबसे बड़े व्यापार भागीदार के साथ अंतर-निर्भरता का प्रबंधन शामिल होगा. ये क़वायद ऐसे ढंग से करनी होगी ताकि सुरक्षा जोख़िम और निर्भरताएं कम हों जबकि आर्थिक अवसरों और पहुंच को अधिकतम स्तर तक ले जाया जा सके- ये एक ऐसा संतुलन है जिसे हासिल करना पेचीदा होगा. 

धुर-दक्षिणपंथ का उदय

पूरे यूरोप में धुर-दक्षिणपंथी पार्टियों को रफ़्तार मिल रही है. वो राष्ट्रीय और स्थानीय चुनावों के ज़रिए गठजोड़ बनाकर सत्ता में आगे बढ़ रही हैं या सत्ता हासिल कर मुख्यधारा में आ रही हैं या कुछ मामलों में मौजूदा सत्ताधारियों को चुनौती दे रही हैं. इटली से हंगरी, स्विट्ज़रलैंड और नीदरलैंड से फिनलैंड, ग्रीस, ऑस्ट्रिया, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और स्वीडन तक तमाम यूरोपीय देशों के राजनीतिक परिदृश्यों से ये बात प्रमाणित हो गई है.

इस कड़ी में एक प्रमुख रुझान धुर दक्षिणपंथ के भीतर यथार्थवादी नरमी आना रहा है. धुर दक्षिणपंथियों ने अपने रूस समर्थक और यूरोप की ओर संदेहवादी शिगूफ़ों में से कुछ में नरमी लाई है.

इस कड़ी में एक प्रमुख रुझान धुर दक्षिणपंथ के भीतर यथार्थवादी नरमी आना रहा है. धुर दक्षिणपंथियों ने अपने रूस समर्थक और यूरोप की ओर संदेहवादी शिगूफ़ों में से कुछ में नरमी लाई है. इटली की प्रधानमंत्री जियॉर्जिया मेलोनी इसका स्पष्ट उदाहरण हैं. इसी समय, दक्षिणपंथी मध्यमार्गियों ने उग्र दक्षिणपंथी मतदाताओं को रिझाने के लिए धुर-दक्षिणपंथियों द्वारा उठाए जाने वाले कुछ मसलों को आत्मसात कर लिया है, जिनमें आप्रवास पर पहले से ज़्यादा कट्टर रुख़ शामिल है. 

कुछ झटकों (जैसे अक्टूबर में पोलैंड में मिली चुनावी हार) के बावजूद धुर-दक्षिणपंथ की व्यापक सफलता का 2024 में यूरोपीय संघ के लिए होने वाले आगामी चुनावों के लिए निहितार्थ है. यूरोपीय संघ के कानून के राज और सर्वसम्मत निर्णय प्रक्रिया के संदर्भ में आप्रवास और हरित संक्रमण जैसे अहम क्षेत्रों में नुक़सानदेह प्रभाव हो सकते हैं. 

यूक्रेन युद्ध की थकान

फरवरी 2022 से रूस से लड़ाई लड़ रहा यूक्रेन वित्त और सैन्य सहायता के लिए पश्चिमी गठजोड़ के अपने साथियों पर निर्भर रहा है. युद्ध के दो साल पूरे होने वाले हैं. यूरोप 2023 में यूक्रेन को "जब तक युद्ध चले तब तक समर्थन देने" के शिगूफ़े से दूर जाने लगा, जो युद्ध से जुड़ी थकान के बेपर्दा होने का पहली निशानी है.

जून में यूक्रेन का बहुप्रचारित पलटवार ठोस कामयाबी दिलाने में नाकाम रहा. मुद्रास्फीति की ऊंची दर और जीवनयापन की बढ़ती लागत के साथ-साथ लंबे गतिरोध का डर सरकारों पर युद्ध को ख़त्म करने के लिए वार्ता और सौदेबाज़ी करने का दबाव बढ़ा रहा है. 

यूक्रेन को एफ-16 विमानों की आपूर्ति करने के प्रयासों की अगुवाई करने वाले नीदरलैंड में धुर-दक्षिणपंथी राजनेता गीर्ट वाइल्डर्स की पार्टी ने नवंबर के चुनावों में दबदबा दिखाया. ये पार्टी यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति रोकने की समर्थक है.

चुनावों के ज़रिए जनवादी ताक़तों के जड़े जमाने के साथ यूरोपीय देश (जो पहले यूक्रेन के उत्साही समर्थक थे) अब आगे यूक्रेन को आर्थिक मदद देने के इच्छुक नहीं रह गए हैं. यूक्रेन को एफ-16 विमानों की आपूर्ति करने के प्रयासों की अगुवाई करने वाले नीदरलैंड में धुर-दक्षिणपंथी राजनेता गीर्ट वाइल्डर्स की पार्टी ने नवंबर के चुनावों में दबदबा दिखाया. ये पार्टी यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति रोकने की समर्थक है. स्लोवाकिया में, रॉबर्ट फिको की नई वामपंथी जनवादी सरकार यूक्रेन को समर्थन देने का विरोध कर रही है; और पोलैंड में, यूक्रेनी अनाज निर्यात पर विवाद को लेकर कड़वाहट भरे चुनाव ने सैन्य मदद के ख़ात्मे का ख़तरा पैदा कर दिया है. हंगरी भी जाने-पहचाने अंदाज़ में रंग में भंग डालने वाली भूमिका निभा रहा है. उसने यूरोपीय संघ के 50 अरब यूरो वाले ताज़ा सहायता पैकेज को अटका दिया है. क़ानून के राज से जुड़ी चिंताओं के चलते हंगरी ने यूरोपीय संघ के कोष को जारी करने की क़वायद पर विराम लगा रखा है.  

अहम बात ये है कि यूक्रेन को अब तक 75 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता मुहैया कराने वाला अमेरिका में 2024 में चुनाव होने जा रहे हैं; वहां घरेलू राजनीति की मजबूरियों, इज़रायल-गाज़ा युद्ध की ओर विदेश नीति की बदलती प्राथमिकताओं, और कांग्रेस (अमेरिकी संसद) में रिपब्लिकन पार्टी के ज़बरदस्त विरोध के चलते आगे और सहायता पैकेज जुटाना मुश्किल होता जा रहा है. ये तमाम घटनाक्रम ऐसे समय पेश आ रहे हैं जब ईरान, उत्तर कोरिया और चीन की दोहरे इस्तेमाल वाली टेक्नोलॉजी की मदद से रूस अपने रक्षा भंडार बढ़ाता जा रहा है. 

अब जबकि यूक्रेन की क़िस्मत अधर में लटकी हुई है, रूस एक बार फिर इसका अनपेक्षित लाभार्थी बनकर उभर सकता है. 


शायरी मल्होत्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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