Author : Rajen Harshé

Published on Aug 24, 2021 Updated 0 Hours ago

विरोधी ताक़तों की संघ के भीतर स्वायत्तता के लिए बार-बार की मांग के संतुलन के द्वारा सभी क्षेत्रों को एक संघीय ढांचे के भीतर रखने की चुनौती इथियोपिया में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को प्रभावित करती रहेगी. 

इथियोपिया: हुड़दंगी राजनीति के बीच अबी अहमद की भारी बहुमत से जीत

10 जुलाई 2021 को इथियोपिया के राष्ट्रीय चुनाव बोर्ड ने इथियोपिया में 21 जून 2021 को हुए राष्ट्रीय चुनाव के नतीजों का एलान किया. प्रधानमंत्री अबी अहमद की प्रॉस्पेरिटी पार्टी (पीपी) ने भारी बहुमत से जीत हासिल की; 436 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली प्रॉस्पेरिटी पार्टी ने 410 सीटों पर जीत हासिल की लेकिन अब तक सिर्फ़ 448 सीटों के नतीजों की घोषणा हुई थी. हालांकि इथियोपिया की संसद में 547 सदस्य हैं लेकिन बाक़ी सीटों पर साजो-सामान से जुड़ी दिक़्क़तों के कारण चुनाव नहीं हो पाए थे. इसके अलावा कुछ ख़ास क्षेत्रों में चुनाव की प्रक्रिया हिंसा और संघर्ष की वजह से प्रभावित हुई थी. इसलिए पूरी तस्वीर सितंबर तक ही साफ़ होगी जब सभी क्षेत्र अपने प्रतिनिधियों को संसद भेजेंगे. इसके बावजूद प्रॉस्पेरिटी पार्टी के विशाल बहुमत को देखते हुए अबी अहमद, जिन्होंने अप्रैल 2018 में सत्ता संभाली थी, ने अगले पांच वर्षों के लिए जनमत हासिल कर लिया है. 

प्रॉस्पेरिटी पार्टी की इस शानदार जीत के बावजूद इथियोपिया- 11 करोड़ से ज़्यादा की आबादी के साथ अफ्रीका का दूसरा सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश- इस वक़्त सबसे ज़्यादा बंटा हुआ लग रहा है. अलग-अलग भाषा, क्षेत्र और धर्म के साथ यहां के लोग इथियोपिया की अवधारणा के एक से ज़्यादा इतिहास और मतों को मानते हैं. स्पष्ट रूप से सामाजिक तौर पर एक जटिल और मिश्रित व्यवस्था में मौजूदा जातीय-राष्ट्रीय संघ और अलग-अलग क्षेत्रीय इकाइयों के बीच संतुलन बनाना एक चुनौतीपूर्ण काम है. 47 राजनीतिक दलों, कई विरोधी समूहों, सिविल सोसायटी, पर्यवेक्षकों और लकभग 3 करोड़ 70 लाख रजिस्टर्ड मतदाताओं के साथ चुनाव के दौरान साफ़ तौर पर इथियोपिया के चुनाव ने एक निर्वाचित लोकतंत्र की सभी पूर्व शर्तों को पूरा किया है. हालांकि अदिस अबाबा और अमहारा क्षेत्र में अबी के समर्थकों ने सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न होने पर जश्न मनाया लेकिन इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि 550 ज़िलों में से सिर्फ़ 400 में चुनाव हुए हैं. इस प्रक्रिया में मताधिकार से वंचित मतदाता अभी तक अबी शासन के तीखे आलोचक के रूप में उभरे हैं.

प्रॉस्पेरिटी पार्टी की इस शानदार जीत के बावजूद इथियोपिया- 11 करोड़ से ज़्यादा की आबादी के साथ अफ्रीका का दूसरा सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश- इस वक़्त सबसे ज़्यादा बंटा हुआ लग रहा है. अलग-अलग भाषा, क्षेत्र और धर्म के साथ यहां के लोग इथियोपिया की अवधारणा के एक से ज़्यादा इतिहास और मतों को मानते हैं.

वास्तव में सत्ता संभालने के बाद पहली बार अबी अहमद ने मतदाताओं का सामना किया है. अबी अहमद के कार्यकाल के शुरुआती वर्षों में उनकी नीतियों और क़दमों के इर्द-गिर्द जो उत्साह था, उसने अबी को सकारात्मक तौर पर देखने के लिए दुनिया को प्रेरित किया. उन्होंने इथियोपियन पीपुल्स रेवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (ईपीआरडीएफ) के दमनकारी शासन को सत्ता से बेदख़ल किया जिसने 1991 से इथियोपिया पर कब्ज़ा कर रखा था. अबी ने पिछली सरकार के दमनकारी क़दमों को नामंज़ूर करते हुए राजनीतिक बंदियों को रिहा किया, विपक्षी पार्टियों से अपराधियों की तरह सलूक बंद किया, जिन अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप थे उनकी शक्तियां छीनीं और नागरिकों के मानवाधिकार की बहाली की ओर काम किया. उन्होंने सत्ताधारी गठबंधन को एकजुट कर अकेली पार्टी में तब्दील किया जिसे प्रॉस्पेरिटी पार्टी के नाम से जाना जाता है. अबी ने इस बात में भी लोगों का भरोसा जगाया कि इथियोपिया जैसा संघीय और बहुजातीय देश उनके नेतृत्व में सामाजिक सद्भावना से काम कर सकता है. वास्तव में ओरोमो और अमहारा जातीय समूहों को मिलाकर इथियोपिया की लगभग 60 प्रतिशत आबादी है. अबी ख़ुद ओरोमो हैं लेकिन उनके माता-पिता अलग-अलग धर्मों के हैं यानी उनके पिता मुस्लिम और मां ईसाई हैं. मौजूदा परिस्थितियों में वो एक आदर्श उम्मीदवार की तरह दिखते हैं जो अलग-अलग धार्मिक समूहों के साथ बात कर सकता है और सामाजिक तौर पर मिश्रित इथियोपिया के समाज को एकजुट रख सकता है. इससे भी बढ़कर 1977 से वास्तव में अबी परंपरागत दुश्मनों जैसे पड़ोसी देश इरीट्रिया के साथ दोस्ती करने में सफल हुए. 1993 में इरीट्रिया ने अपनी आज़ादी के लिये इथियोपिया के ख़िलाफ़ संपूर्ण युद्ध लड़ा था, जिसकी वजह से वो स्वतंत्र देश बन सका. इसके अलावा दोनों देशों के बीच 1998-2000 के बीच सीमा पर युद्ध भी हुआ. इथियोपिया के टिगरे क्षेत्र को इरीट्रिया के 2,00,000 शरणार्थियों ने अपना घर बनाया. इरीट्रिया के साथ शांति समझौता करना अबी के लिए एक गर्व करने वाली उपलब्धि थी. अपनी विदेश नीति बनाते समय अबी ने यूरोपीय यूनियन (ईयू) के विकसित देशों, अमेरिका और चीन के साथ सामरिक साझेदारी बनाने पर ज़ोर दिया. वित्तीय निवेश आकर्षित करना, क्षमता निर्माण को बढ़ाना और सुरक्षा से जुड़े क्षेत्रों को मज़बूत करना ऐसी साझेदारी के प्रमुख प्रेरक थे. अबी ने न सिर्फ़ क्षेत्रीय शांति और आर्थिक अखंडता को बढ़ावा देने का काम किया बल्कि पश्चिम एशिया के देशों जैसे संयुक्त अरब अमीरात, क़तर और सऊदी अरब के साथ आर्थिक साझेदारी बनाने की तरफ़ भी आगे बढ़े. भुगतान संकट को टालने के लिए ऐसा करना ज़रूरी था. उनकी सरकार के कुल काम-काज को देखते हुए अक्टूबर 2019 में अबी को नोबल शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया. इस प्रतिष्ठित पुरस्कार ने न सिर्फ़ उन्हें अफ्रीका के प्रमुख नेता के रूप में उभरने का मौक़ा दिया बल्कि उनके अंतर्राष्ट्रीय कद को भी बढ़ाया. निरंकुश सत्ता, अंदरुनी और बाहरी संघर्ष से भरे महाद्वीप में अबी का शासन आने से लोकतंत्र और क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा मिला जो यहां के लिए कुछ हद तक अनोखा है. 

अबी की सत्ता के सामने चुनौतियां 

लड़ाई में शामिल अलग-अलग जातीय समूहों के बीच संतुलन स्थापित करते हुए अबी की हुकूमत को इथियोपिया में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और आगे भी करना पड़ेगा. उदाहरण के लिए, कोविड-19 की वजह से अबी की संघीय सरकार ने भले ही अक्टूबर 2020 में प्रस्तावित आम चुनाव को टालने का फ़ैसला लिया लेकिन उत्तरी क्षेत्र टिगरे ने क्षेत्रीय संसदीय चुनाव कराया क्योंकि टिगरे पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (टीपीएलएफ) चुनाव टालने के लिए तैयार नहीं हुआ. इसके बाद टीपीएलएफ ने हथियार चुराने के लिए 3 और 4 नवंबर 2020 को एक संघीय सैन्य अड्डे पर हमला किया. इसे संघीय सेना की तरफ़ से कार्रवाई रोकने के लिए किया गया हमला बताया गया. इसके अलावा संघीय सेना में शामिल टिगरे का जातीय समूह भी पाला बदल कर टीपीएलएफ की तरफ़ जाने लगा. 

अबी ने इस बात में भी लोगों का भरोसा जगाया कि इथियोपिया जैसा संघीय और बहुजातीय देश उनके नेतृत्व में सामाजिक सद्भावना से काम कर सकता है. वास्तव में ओरोमो और अमहारा जातीय समूहों को मिलाकर इथियोपिया की लगभग 60 प्रतिशत आबादी है

अबी सरकार ने इस संकट को नियंत्रित करने के लिए तुरंत जवाबी क़दम उठाए और कैबिनेट की बैठक बुलाकर टिगरे क्षेत्र में छह महीने के लिए आपातकाल लगाने का ऐलान किया. इंटरनेट और फ़ोन के कनेक्शन को बंद कर दिया गया और टीपीएलएफ को आतंकी संगठन घोषित करते हुए उस पर पाबंदी लगा दी गई. इथियोपियन नेशनल डिफेंस फोर्सेज़ (ईएनडीएफ) के लगभग 1,40,000 सैनिकों, जिनमें ज़्यादातर थल सेना के थे, को इकट्ठा करने के अलावा संघीय सरकार ने अमहारा और दक्षिणी टिगरे के सशस्त्र लड़ाकों को मज़बूत किया जो नागरिकों पर हमले के आरोपों के बीच पश्चिमी टिगरे गए. इरीट्रिया के बलों ने भी संघीय बलों का समर्थन किया. इसके विपरीत इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के मुताबिक़ 2,50,000 सैनिक और लड़ाके टिगरे में क्षेत्रीय कमांडरों के मातहत काम करते हैं. संघीय बलों और टिगरे के लड़ाकों के बीच संघर्ष के दौरान लड़ाई में तबाह टिगरे की अर्थव्यवस्था और समाज हर बीतते दिन के साथ कमज़ोर होता जा रहा है. 

निष्कर्ष ये है कि इथियोपिया युद्ध की स्थिति में रहा है जिसकी एक बड़ी क़ीमत उसे चुकानी पड़ी है. अबी ने ख़ुद माना है कि 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर सैन्य और उससे जुड़े खर्च जैसे सड़क की मरम्मत और खाद्य सहायता के तौर पर हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के मुताबिक़ क़रीब 3,50,000 लोगों को खाद्य असुरक्षा और भुखमरी का सामना करना पड़ा है. टीपीएलएफ को मजबूर करने के लिए अबी की सरकार ने दमन का हर तरीक़ा अपनाया. टिगरे को अलग-थलग किया गया और आम नागरिकों को भूख से मरने के लिए मजबूर किया गया. मानवाधिकारों के इस तरह खुले आम उल्लंघन का अंतर्राष्ट्रीय असर पड़ा है. जी7 देशों ने संघीय सरकार और टीपीएलएफ के बीच दुश्मनी तुरंत ख़त्म करने की अपील की. यूरोपीय यूनियन ने इथियोपिया को 107 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बजटीय समर्थन को रोक दिया और अमेरिका ने संघर्ष में शामिल दोनों पक्षों के बड़े अधिकारियों पर वीज़ा की पाबंदियां लगा दी. अमेरिका ने भी अपने 1 अरब अमेरिकी डॉलर के सहायता पैकेज के एक हिस्से को स्थगित कर दिया. तब भी दोनों पक्षों के बीच जारी संघर्ष में 30 जून 2021 तक टीपीएलएफ टिगरे की राजधानी मेकेले पर फिर से कब्ज़ा करने में कामयाब रहा. इथियोपिया और इरीट्रिया के बलों को ज़बरदस्त हार का सामना करना पड़ा और पूरे क्षेत्र में लोगों ने जश्न मनाया. वास्तव में टिगरे इथियोपिया के भीतर रहने के लिए तैयार नहीं लग रहा था क्योंकि एक वक़्त में टीपीएलएफ ने लगभग तीन दशकों तक इथियोपिया पर नियंत्रण कर रखा था. लेकिन आख़िर में इसकी 55 लाख आबादी में से एक बड़े हिस्से यानी क़रीब 9,00,000 लोग भुखमरी के शिकार बने जिसे अमेरिका ने पूरी तरह ‘मानव निर्मित’ समझा

टीपीएलएफ को मजबूर करने के लिए अबी की सरकार ने दमन का हर तरीक़ा अपनाया. टिगरे को अलग-थलग किया गया और आम नागरिकों को भूख से मरने के लिए मजबूर किया गया. मानवाधिकारों के इस तरह खुले आम उल्लंघन का अंतर्राष्ट्रीय असर पड़ा है.

टिगरे के अलावा ओरोमिया क्षेत्र की भी इथियोपिया की हुकूमत के ख़िलाफ़ अपनी शिकायत रही है. सबसे बड़े क्षेत्र के तौर पर ओरोमिया ने कई वर्षों तक अपने लोगों को अधिकारहीन करने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन और सशस्त्र आंदोलन शुरू कर लड़ाई लड़ी है. संघीय शासन से स्वायत्तता हासिल करने की कोशिश के तहत ओरोमिया लिबरेशन पार्टी (ओएलपी) संघीय बलों के ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल रही है और हाल में संपन्न चुनाव में उसने ज़बरदस्ती मतदान केंद्रों को बंद करवा दिया. वास्तव में राज्यस्तरीय राष्ट्रवाद इथियोपिया की राजनीति की एक महत्वपूर्ण विशेषता रही है. ओरोमो, टिगरेन, सोमाली और सिडामा के अलावा अमहारा क्षेत्र भी धीरे-धीरे राज्यस्तरीय राष्ट्रवाद के उदय को देख रहा है. दूसरे क्षेत्रों के मुक़ाबले यहां राष्ट्रवाद के उदय में देरी की वजह ये है कि अमहारा के लोगों ने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दमन को अपेक्षाकृत कम झेला है. लेकिन हर जातीय राष्ट्रवाद का रुझान विभाजक और परस्पर विरोधी रहा है. वो एक-दूसरे के ख़िलाफ़ तो लड़ते ही हैं, इसके साथ-साथ संघीय व्यवस्था के ख़िलाफ़ भी लड़ते हैं. उदाहरण के लिए, टिगरे के लोग अमहारा को अपने दुश्मन की तरह देखते हैं या हर क्षेत्र अलग-अलग समय पर संघीय सरकार के ख़िलाफ़ हिंसक संघर्ष में शामिल रहा है. इससे इथियोपिया की पहले से खंडित शासन व्यवस्था के बिना किसी बाधा के काम करने पर असर पड़ता है. 

अबी की प्रॉस्पेरिटी पार्टी की भारी जीत के बावजूद विरोधी ताक़तों की संघ के भीतर स्वायत्तता के लिए बार-बार की मांग के संतुलन के द्वारा सभी क्षेत्रों को एक संघीय ढांचे के भीतर रखने की चुनौती इथियोपिया में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को प्रभावित करती रहेगी.

निष्कर्ष

निष्कर्ष ये है कि अबी की प्रॉस्पेरिटी पार्टी की भारी जीत के बावजूद विरोधी ताक़तों की संघ के भीतर स्वायत्तता के लिए बार-बार की मांग के संतुलन के द्वारा सभी क्षेत्रों को एक संघीय ढांचे के भीतर रखने की चुनौती इथियोपिया में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को प्रभावित करती रहेगी. विरोधी दल मानवाधिकार के उल्लंघन के साथ-साथ इस बात के लिए भी अबी पर निशाना साधते रहेंगे कि वो स्वस्थ लोकतंत्र और संघीय व्यवस्था के वादे से मुकर गए. इस पूरे विषय का सार ये है कि एक संघर्ष से भरी शासन व्यवस्था को लोकतांत्रिक तरीक़े से संभालने और दुनिया में वैधता के लिए काम करने में अबी की हुकूमत को आने वाले दिनों में लगातार नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. 

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