Published on Aug 19, 2021 Updated 0 Hours ago

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इस मोड़ पर दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि लगातार कम उपभोक्ता और निवेश मांग ने आर्थिक बहाली की तरफ़ उम्मीद बनने की राह को रोक रखा है. 

2020-21 के लिए अस्थायी जीडीपी अनुमान उपभोक्ता मांग में लगातार कमी की पुष्टि करता है

आर्थिक बहाली के लिए अर्थव्यवस्था के हर सेक्टर में एक हद तक उम्मीद की ज़रूरत होती है. महत्वपूर्ण आर्थिक किरदारों, जो आर्थिक बहाली के रास्ते को तय करेंगे, उसको सामान्य रूप से आशावादी होना चाहिए. लेकिन उम्मीद को रियल टाइम डाटा और सांख्यिकीय तथ्यों का समर्थन मिलने की भी ज़रूरत पड़ती है.

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इस मोड़ पर दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि लगातार कम उपभोक्ता और निवेश मांग ने आर्थिक बहाली की तरफ़ उम्मीद बनने की राह को रोक रखा है. आर्थिक बहाली की उम्मीद उस वक़्त जगी जब अस्थायी आकलन में अनुमान लगाया गया कि 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर -7.3 प्रतिशत रहेगी (आंकड़ा 1). वास्तव में एक साल पहले जो उम्मीद लगाई जा रही थी, उससे ये बेहतर वृद्धि दर का अनुमान है. 

अगर बाद के संशोधनों में 2020-21 के लिए सालाना जीडीपी वृद्धि दर नकारात्मक दोहरे अंक में बनी रहती है तो महामारी की वजह से हुई तबाही को देखते हुए ये निश्चित रूप से छोटी-मोटी उपलब्धि होगी.

लेकिन सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय की प्रेस विज्ञप्ति कहती है, “डाटा की सीमा और सामयिकता का जीडीपी अनुमान और बाद के संशोधनों पर असर पड़ता है, इसलिए आकलन में तय समय पर तेज़ बदलाव होने की संभावना है.” इस  महत्वपूर्ण चेतावनी को याद रखना चाहिए. 

अगर बाद के संशोधनों में 2020-21 के लिए सालाना जीडीपी वृद्धि दर नकारात्मक दोहरे अंक में बनी रहती है तो महामारी की वजह से हुई तबाही को देखते हुए ये निश्चित रूप से छोटी-मोटी उपलब्धि होगी. लेकिन ये कमाल भी उस तथ्य की भरपाई नहीं करेगा कि मांग के दो प्रमुख हिस्सों- उपभोक्ता और निवेश मांग (पीएफसीई और जीएफसीएफ)- ने क्रमश: -9.1 प्रतिशत और -10.8 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की है (आंकड़ा 1). 2018-19 के मुक़ाबले 2019-20 में इन दोनों हिस्सों की वृद्धि दर संकुचित हुई है. इस तरह कम-से-कम आर्थिक प्रणाली में मांग की कमी काफ़ी ज़्यादा है. 

सरकारी अंतिम खपत व्यय (जीएफसीई) जीडीपी का एकमात्र हिस्सा है जिसने 2.9 प्रतिशत के साथ सकारात्मक सालाना वृद्धि दर हासिल की है (आंकड़ा 1). 2020-21 की चौथी तिमाही में जीएफसीई की वृद्धि दर ज़बरदस्त रूप से 28.3 प्रतिशत है (आंकड़ा 2). लेकिन इससे पहले की दो तिमाहियों में वृद्धि दर नकारात्मक थी. इससे साफ़ तौर पर पता चलता है कि सरकारी खर्च अर्थव्यवस्था को संभाले नहीं रख सकता है. उपभोक्ता मांग और निवेश मांग जैसे मुख्य हिस्सों को आगे बढ़ना होगा. 


2020-21 में तिमाही के हिसाब से वृद्धि का रुझान संकेत देता है कि चौथी तिमाही में उपभोक्ता मांग में उम्मीद के मुताबिक सुधार नहीं हुआ है (आंकड़ा 2). इसके मुक़ाबले निवेश मांग (जीएफसीएफ) में चौथी तिमाही में ज़ोरदार बढ़ोतरी हुई है. लेकिन जीएफसीएफ का अनुमान कमोडिटी फ्लो दृष्टिकोण का इस्तेमाल करते हुए लगाया गयाहै और सरकार का पूंजी व्यय इन अनुमानों में अप्रत्यक्ष रूप से दिखेगा. 

कमोडिटी फ्लो दृष्टिकोण अनुमान के लिए अंतिम व्यय का इस्तेमाल करता है. इस पद्धति में आपूर्ति के आसान रूप और काफ़ी कम ताज़ा सूचना के साथ सारिणी का इस्तेमाल करके वृद्धि का अनुमान लगाया जाता है. इसलिए मध्यम और अंतिम खपत पर डाटा और उसके बाद मूल्य में बढ़ोतरी पर जानकारी इस पद्धति में सटीक नहीं होने की संभावना है. इसलिए चौथी तिमाही में अच्छी जीएफसीएफ वृद्धि का वर्णन सावधानी के साथ करना चाहिए क्योंकि भविष्य में संशोधन की काफ़ी संभावना है. 

निर्माण और उत्पादन जैसे सेक्टर में आशावादी संकेत देखे जा सकते हैं. लेकिन खनन, व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण सेवा जैसे सेक्टर में काफ़ी ज़्यादा नाउम्मीदी है

2020-21 में सेक्टर के हिसाब से तिमाही वृद्धि दर का रुझान कुछ अलग नहीं है. सिर्फ़ कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन ने हर तिमाही में एक समान सकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की है. निर्माण और उत्पादन जैसे सेक्टर में आशावादी संकेत देखे जा सकते हैं. लेकिन खनन, व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण सेवा जैसे सेक्टर में काफ़ी ज़्यादा नाउम्मीदी है. पर्यटन और परिवहन सेक्टर में मंदी की उम्मीद थी लेकिन खनन सेक्टर के ख़राब प्रदर्शन के साथ उत्पादन के लिए तीसरी और चौथी तिमाही में सकारात्मक वृद्धि दर कुछ हद तक चक्कर में डालने वाला है (आंकड़ा 3). 

फिलहाल कोई ठोस रुझान पता लगाना थोड़ी जल्दबाज़ी है लेकिन चौथी तिमाही में वित्तीय, रियल एस्टेट और प्रोफेशनल सेवाओं की वृद्धि दर में थोड़ी गिरावट भविष्य में चिंता की एक वजह हो सकती है. वित्तीय सेक्टर, ख़ास तौर पर बैंकिंग सेक्टर, सबसे सख़्त लॉकडाउन के समय के दौरान भी बंद नहीं रहा. इसलिए बैंकिंग सेक्टर ने दूसरों के मुक़ाबले अच्छा प्रदर्शन किया. लेकिन अगर दूसरे सेक्टर बार-बार रुकावट का अनुभव करेंगे तो बैंकिंग और दूसरे वित्तीय सेक्टर पर इसका ख़राब असर पड़ते देर नहीं लगेगी. जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, इस तरह के निष्कर्ष पर अभी पहुंचना जल्दबाज़ी होगी लेकिन वित्तीय सेक्टर की वृद्धि दर में गिरावट पर क़रीब से निगरानी रखनी चाहिए. 

तिमाही अनुमान काफ़ी आंकड़ों को इधर-उधर जोड़कर भी तैयार किया जाता है और स्वाभाविक रूप से ये भविष्य में संशोधन की प्रक्रिया से गुज़रता है. लेकिन मौजूदा अनुमान संकेत देते हैं कि निर्माण, रियल एस्टेट और उत्पादन के कुछ हिस्सों में रोकी हुई मांग का एक बड़ा हिस्सा वित्तीय वर्ष 2020-21 की आख़िरी दो तिमाही में बढ़ोतरी का कारण रहा है (आंकड़ा 3). 

मौजूदा अनुमान संकेत देते हैं कि निर्माण, रियल एस्टेट और उत्पादन के कुछ हिस्सों में रोकी हुई मांग का एक बड़ा हिस्सा वित्तीय वर्ष 2020-21 की आख़िरी दो तिमाही में बढ़ोतरी का कारण रहा है 

महामारी की वजह से आई रुकावट के कारण डाटा संग्रह और संकलन पर काफ़ी ख़राब असर पड़ा है. इसलिए जीडीपी का अनुमान लगाना मुश्किल काम बन गया है. अनुमान लगाने के लिए इस ग़लत समय में भी अब ये पूरी तरह साफ़ है कि पिछले वित्तीय वर्ष में हर समय उपभोक्ता मांग कम बनी रही. 

आर्थिक रुकावट के कारण जब लोग आजीविका के अवसर बार-बार गंवा रहे थे और सेहत से जुड़ा कष्ट “न्यू नॉर्मल” बन गया, तब आमदनी/क्रय शक्ति के नुक़सान की भरपाई किसी और तरीक़े से करना अल्पकाल में आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है. इस रास्ते पर चलना इकलौता तरीक़ा है जो दीर्घकाल में अर्थव्यवस्था और लोगों को ज़िंदा रख सकता है. 

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