चीन का ‘न्यू सिल्क रूट’, एक जिओ-इकोनॉमिक्स (भू-अर्थशास्त्रीय) परियोजना है, जिसकाी शुरुआत 2013 में हुई थी, जो आर्थिक और भौतिक रूप से चीन को मध्य एशिया, यूरोप, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के बाज़ारों से जोड़ती है. हालांकि विश्व स्तर पर अपनी आर्थिक मौजूदगी का विस्तार करने के साथ ही चीन तेज़ी से देश और विदेश में इस्लामी आतंकवाद के ख़तरे के संपर्क में आ रहा है. जिन क्षेत्रों में बॉर्डर रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रही है उनमें से एक है अस्थिर ‘अफ़ग़ान-पाक’ क्षेत्र है जहां स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक आतंकवादी संगठनों की भरमार है. इसलिए बीजिंग पड़ोसी देशों के साथ आतंकवाद के सफ़ाये में सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा है, चीनी प्रोजेक्ट और हितों की सुरक्षा के लिए स्थानीय बलों की मदद करने और उन्हें मजबूत करने में हाथ बंटा रहा है. इस नीति के कारण विशेष रूप से बड़े पैमाने पर सुरक्षा सहयोग हुआ है, खासकर पाकिस्तान जैसे देशों के साथ परिसंपत्तियों और हितों को सुरक्षित करने के लिए बीजिंग अब इस दृष्टिकोण का विस्तार कर रहा है. चीन ने पिछले कुछ वर्षों में अफ़ग़ानिस्तान में अपने राजनयिक, आर्थिक और सुरक्षा प्रोफ़ाइल का विस्तार किया है. अफ़ग़ानिस्तान में चीन की संलिप्तता अफ़ग़ान सरकार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसने तालिबान के साथ भी मजबूत संबंध बनाए हैं. ज़ाहिर है, चीन का सुरक्षा एजेंडा ख़ासतौर से अफ़ग़ान-पाक क्षेत्र में विश्वसनीय विकास योजनाओं में भागीदारी की पेशकश से आगे बढ़ चुका है.
चीन ‘तीन बुराइयों’ (आतंकवाद, उग्रवाद, अलगाववाद) से सुरक्षित नहीं है. 1990 के दशक से शिनजियांग इलाक़े में हान चीनी और वीगर मुसलमानों के बीच जातीय तनाव से पैदा हुए, उग्रवाद को 2001 से पहले सामाजिक अशांति का नाम दिया गया था. 9/11 के बाद, चीन ने इन घटनाओं को आतंकवादी हमलों के तौर पर पेश किया और बैक डेट से शामिल करते खुद को आतंकवाद के पीड़ित के रूप में पेश किया. इस तरह वहां जातीय विद्रोह पर सार्वजनिक विमर्श में बदलाव आया. चीन ने शिनजियांग में उग्रवाद को धार्मिक उग्रवाद के रूप में देखा, जो विदेशी आतंकवादी संगठनों से प्रेरित, प्रभावित और उकसाया हुआ था. चीन की आतंकवाद संबंधी चिंताएं मुख्यतः घरेलू थीं और यह ईस्ट तुर्किस्तान इंडिपेंस मूवमेंट (ETIM) को लेकर थीं. हालांकि समय के साथ, ईटीआईएम ने तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP), अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट (ISIS) जैसे आतंकवादी संगठनों का समर्थन हासिल कर लिया है. इनमें से अधिकांश आतंकवादी समूहों ने चीनी मुसलमानों के प्रति बीजिंग के बर्ताव और पाकिस्तान में इसकी बढ़ती पैठ के जवाब में चीनी नागरिकों को निशाना बनाने की धमकी दी है.
बीआरआई की फ्लैगशिप योजना ― चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC)
का मुख्य केंद्र अफ़ग़ान-पाक क्षेत्र है. सीपीईसी ने पिछले एक दशक में बीजिंग इस्लामाबाद के रिश्तों को मज़बूत किया है. अफ़ग़ानिस्तान की मध्य एशिया तक पहुंचने के सबसे छोटे रास्ते की रणनीतिक लोकेशन को देखते हुए, चीन और पाकिस्तान पिछले तीन सालों में बीआरआई के यहां तक विस्तार के लिए साथ मिलकर काम कर रहे हैं. चीन यहां तक कि अपने ‘आयरन ब्रदर’ (चीन अपने क़रीबी मित्रों को यह संबोधन देता है. वह पाकिस्तान की दोस्ती को भी लोहे जैसी मज़बूत मानता है) की बदौलत अफ़ग़ान शांति वार्ता में हिस्सेदार बनने में सफल रहा है, जिससे अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता लाने के प्रयास में एक प्रमुख हितधारक बन गया है. चीन अफ़ग़ान-पाक क्षेत्र के पड़ोसी मध्य-एशियाई देशों के साथ आतंकवाद-विरोधी अभियान में भी सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा है. मध्य एशिया को पारंपरिक रूप से मास्को के प्रभाव क्षेत्र में माना जाता था. बीजिंग ने हालांकि रिश्ते जोड़ने के लिए पांच स्तंभों का इस्तेमाल कर धीरे-धीरे अपनी मौजूदगी बढ़ाई है; शंघाई सहयोग संगठन (SCO), प्रशिक्षण और संयुक्त अभ्यास, सैन्य सहायता, सैनिक साजोसामान की बिक्री और प्राइवेट सिक्योरिटी कंपनियां (PSC). कज़ाख़िस्तान में बीआरआई की घोषणा करने वाला शी ज़िनपिंग का भाषण चीन की सुरक्षा गणना में मध्य एशिया के महत्व का दर्शाता है.
साल 2017 में अफ़ग़ानिस्तान में वाख़ान कॉरिडोर, जिसकी सीमाएं शिनजियांग प्रांत से लगती हैं, पर चीनी सुरक्षा बलों की मौजूदगी और गश्त के बारे में खबरें आई थीं, जबकि बीजिंग ने दावा किया कि काबुल के साथ सेना केवल ‘संयुक्त आतंकवाद-विरोधी ऑपरेशंस’ में लगी हुई है.
QCCM का नेतृत्य ग्रहण
चीन ने अपनी पश्चिमी सीमा पर सुरक्षा के लिए एक नई रणनीति अपनाते हुए क्वाड्रिलैटरल कोऑपरेशन एंड कोऑर्डिनेशन मैकेनिज़्म (QCCM) का नेतृत्य ग्रहण किया. यह एक बहुपक्षीय सुरक्षा सहयोग ढांचा है जिसमें अफ़ग़ानिस्तान, चीन, पाकिस्तान और ताजिकिस्तान (ये देश आतंकवादी हमलों के लिए संवेदनशील माने जाते हैं) शामिल हैं. यह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की एक अभूतपूर्व पहल है, जिसमें आतंकवादी ख़तरों के संदर्भ में साझीदार देशों के बीच इंटेलिजेंस सहयोग और सेना-से-सेना के बीच आदान-प्रदान किया जाता है. साल 2017 में अफ़ग़ानिस्तान में वाख़ान कॉरिडोर, जिसकी सीमाएं शिनजियांग प्रांत से लगती हैं, पर चीनी सुरक्षा बलों की मौजूदगी और गश्त के बारे में खबरें आई थीं, जबकि बीजिंग ने दावा किया कि काबुल के साथ सेना केवल ‘संयुक्त आतंकवाद-विरोधी ऑपरेशंस’ में लगी हुई है. सैनिकों की यह मौजूदगी क्षेत्र के प्रति चीनी नीति और बीआरआई की भूमिका में व्यापक बदलाव का इशारा देती है. मध्य एशिया-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान के विस्तृत क्षेत्र में चीन की प्राथमिक सुरक्षा चिंताओं में चीनी मुसलमानों के बढ़ते इस्लामीकरण और वीगर उग्रवाद को किसी भी तरह के समर्थन पर अंकुश लगाता है. यह सुनिश्चित करने के लिए, बीजिंग ने अपने ‘गुड नेबर्स पॉलिसी’ (अच्छा पड़ोसी नीति) समझौतों में वीगर विरोधी ज़ोर बढ़ाया है और एससीओ के अंतर्गत व्यापक आतंकवाद विरोधी शर्तों को शामिल किया है.
चीन और इसकी बढ़ती वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के लिए अफ़ग़ान-पाक क्षेत्र इसके आतंकवाद विरोधी उद्देश्यों के साथ-साथ क्षेत्र में अपने बीआरआई निवेशों की सुरक्षा पक्की करने के लिए इसके सुरक्षा आकलन में खासी वरीयता रखता है.
क्षेत्र से नाटो की वापसी ने चीन को अफ़ग़ानिस्तान के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने के लिए प्रेरित किया. यह बदलाव इस्लामिक स्टेट समूह के बढ़ते खतरे से प्रभावित है, जिसने एक वीडियो में 2017 में बीजिंग को पहली सीधी धमकी जारी की थी. इस वीडियो में चीनी वीगर हमलों को अंजाम देने के लिए घर लौटने की कसम खाते दिख रहे हैं और उन्होंने देश में अपनी ख़ोरासान प्रांत शाखा की स्थापना भी की. हालांकि अफ़ग़ानिस्तान में चीनी सैन्य भागीदारी अमेरिका की तुलना में सीमित है लेकिन अब इसमें बढ़ोत्तरी देखी गई है. ग़नी सरकार के पूर्व अफ़ग़ान अधिकारियों द्वारा यह भी बताया गया है कि चीन ने अफ़ग़ान बलों के लिए मेंटर और ट्रेनर भेजने के अलावा, बदख़्शां प्रांत के वाख़ान कॉरिडोर में एक सैन्य अड्डा बनाने और पीएलए ब्रिगेड को तैनात करने की मांग की है. चीनियों ने रूसी हेलीकॉप्टरों के अफ़ग़ान सरकार के अनुरोध को ख़ारिज कर दिया और इसके बजाय चीनी हेलीकॉप्टरों व ड्रोन के साथ इंटरनेट व नेविगेशन सिस्टम लगाने पर ज़ोर दिया जो अमेरिका-निर्मित ग्लोबल पोजिशन सिस्टम (GPS) के प्रतिद्वंद्वी थे.
अफ़ग़ानिस्तान सरकार ने फिर भी अफ़गानिस्तान और उसके अमेरिका जैसे सहयोगियों की जासूसी के लिए इस्तेमाल किए जा सकने की आशंका के कारण चीनी सिस्टम के प्रस्ताव का विरोध किया. चीन ने इसी तरह इस्लामाबाद में अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया है, बीआरआई के सिलसिले में पाकिस्तान को चीनी इंटेलिजेंस, नेविगेशन और सैन्य उपकरणों का इस्तेमाल करने पर ज़ोर दिया. चीन और इसकी बढ़ती वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के लिए अफ़ग़ान-पाक क्षेत्र इसके आतंकवाद विरोधी उद्देश्यों के साथ-साथ क्षेत्र में अपने बीआरआई निवेशों की सुरक्षा पक्की करने के लिए इसके सुरक्षा आकलन में खासी वरीयता रखता है.
पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में एक प्रमुख शक्ति है और चीन के नेता कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादियों द्वारा पेश ख़तरे का सामना करने के लिए इसकी उपयोगिता को समझते हैं. अफ़ग़ानिस्तान में कई प्रमुख शक्तियां उम्मीद रखती थीं कि चीनी इस्लामाबाद पर दबाव डालेंगे कि वह प्रॉक्सी गुटों का इस्तेमाल करने की अपनी चालबाज़ी की नीति को छोड़ दे.
विशुद्ध रूप से आर्थिक दृष्टि से मापी गई अफ़ग़ानिस्तान में बीजिंग की गतिविधियों से पता चलता है कि इसने बीआरआई की कहानी को सही ठहराने के लिए कितना कम प्रयास किया है. काबुल में चीनी नियंत्रण की सबसे बड़ी वजह आतंकवादियों की घुसपैठ रोकने के उद्देश्य से सीमा नियंत्रण उपाय हैं. हालांकि चीन शायद ही कभी दूसरे देशों के साथ सुरक्षा संबंधों के विस्तार की हिमायत करता है, मगर हालिया रुझान कुछ और इशारा देते हैं. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने व्यवस्थित तरीके से चीन की राष्ट्रीय रक्षा नीति को क्षेत्रीय से वैश्विक सुरक्षा तंत्र में रूपांतरित करने में तेज़ी लाई है और पीएलए को 2050 तक विश्वस्तरीय बल बनाने का लक्ष्य तय किया है. इससे भविष्य में बीआरआई के साझीदार देशों में चीनी निवेश और नागरिकों की सुरक्षा के लिए चीनी सैन्य अभियानों की संभावना बढ़ जाती है. इंस्टीट्यूट मॉन्टगने में एशिया प्रोग्राम के निदेशक डॉ. मैथ्यू डुचाते के अनुसार, चीनियों ने विदेशी सैन्य अभियानों की प्रकृति को परिभाषित किया है. उनमें से एक मध्य एशिया और अफ़ग़ान-पाक क्षेत्र में व्यापक मौजूदगी और सैन्य तेवर है. चीनियों ने 2015 में अपना पहला आतंकवाद-विरोधी कानून बनाया, जिसमें अनुच्छेद 71 विदेशी अभियानों के बारे में है. यह पीपुल्स आर्म्ड पुलिस (PAP) के लिए विदेश में अभियान चलाने का आधार तैयार करता है. इसमें कहा गया हैः चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और चीनी पीपुल्स आर्म्ड पुलिस केंद्रीय सैन्य आयोग द्वारा अनुमोदित लोगों को आतंकवाद विरोधी मिशन पर देश से बाहर जाने का ज़िम्मा सौंप सकती है. तर्क दिया जा सकता है कि विदेशी अभियानों के लिए चीन के दृष्टिकोण में संस्थानीकरण का अभाव है, लेकिन बीआरआई के मार्फ़त देश की बढ़ती वैश्विक मौजूदगी इसकी अपनी सैन्य स्थिति को मज़बूत करने और इसका इस्तेमाल करने का अवसर प्रदान करती है.
वीगर मुसलमानों के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ
CPEC की सुरक्षा सुनिश्चित करने के महत्व के अलावा, अफ़ग़ान-पाक के प्रति बीजिंग के दृष्टिकोण के लिए दक्षिण एशिया और भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता में इसकी बढ़ती जिओ-स्ट्रेटजिक रुचि से जोड़कर देखा जा सकता है. इसके अलावा, भारत के प्रति उनकी साझा दुश्मनी और दक्षिण एशिया में नई दिल्ली के प्रभाव को चुनौती को लेकर, ‘ऑल वेदर फ्रेंड्स’ (सदाबहार मित्र) के हितों का मिलन होता है. चीन के लिए सहयोगी पाकिस्तान वीगर मुस्लिम आतंकवादियों पर कार्रवाई के लिए इंटेलिजेंस और नीतिगत समर्थन देने के साथ ही अफ़ग़ानिस्तान में उन्हें शरण देने से इनकार करता है. पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में एक प्रमुख शक्ति है और चीन के नेता कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादियों द्वारा पेश ख़तरे का सामना करने के लिए इसकी उपयोगिता को समझते हैं. अफ़ग़ानिस्तान में कई प्रमुख शक्तियां उम्मीद रखती थीं कि चीनी इस्लामाबाद पर दबाव डालेंगे कि वह प्रॉक्सी गुटों का इस्तेमाल करने की अपनी चालबाज़ी की नीति को छोड़ दे. लेकिन उम्मीद के उलट, पाकिस्तान ने बीजिंग को भरोसा दिला दिया है कि वह चीन के ख़िलाफ काम करने वाले आतंकवादियों पर लगाम लगा देगा और वीगर मुसलमानों को पनाह देने और समर्थन देने वाले किसी भी गुट को बेअसर कर देगा. चीन के ड़ोस में आतंकवाद का सफ़ाया करने और अपने ‘आयरन ब्रदर’ के साथ संबंधों को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए, बीजिंग ने हमेशा पाकिस्तान के लिए अपने समर्थन का प्रदर्शन किया है. पाकिस्तान और सऊदी अरब की तरह तालिबान के साथ रिश्तों से भी चीनियों को फ़ायदा हुआ है, चीनी सरकार के वीगर मुसलमानों के प्रति बर्ताव पर तालिबान की ख़ामोशी देखने लायक है.
बीजिंग अस्थिर क्षेत्र में सुरक्षा मौजूदगी बढ़ाकर अस्थिरता फैलाने तत्वों के अफ़ग़ानिस्तान से निकलकर पाकिस्तान जैसे देशों में पहुंचने और फिर शिनजियांग पहुंचने के ख़तरे को रोकने के लिए अपनी सुरक्षा उपस्थिति को बढ़ा रहा है, चीन के सुरक्षा हित― आर्थिक और सैन्य दोनों― इसकी मौजूदगी बढ़ाने की नीतियों की दिशा तय रहे हैं और इसके साथ ही अफ़ग़ान-पाक क्षेत्र में इसकी दख़लअंदाज़ी बढ़ा रहे हैं. भारत के विस्तारित पड़ोस में बेलगाम चीनी प्रभाव के साथ ही इस क्षेत्र में चीनी सैनिकों की तैनाती की संभावना नई दिल्ली के लिए गंभीर चुनौती बन गई है.
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