Author : Ramanath Jha

Published on Aug 16, 2022 Updated 26 Days ago

रवांडा सरकार द्वारा उठाए गए अलग-अलग नीतिगत फैसलों की वजह से किगाली अब अफ्रीका के सबसे स्वच्छ शहर में शुमार है.

पर्यावरण व शहरीकरण: अफ्रीका के सबसे साफ शहर के रूप में किगाली की पहचान

अफ्रीकी राष्ट्र रवांडा की राजधानी किगाली, 22 जून को तब चर्चा में आई जब इसने साल 2022 राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक (सीएचओजीएम) के लिए 50 से अधिक राष्ट्रमंडल देशों की मेज़बानी की जिसका विषय था, ‘डिलिवरिंग ए कॉमन फ्यूचर: कनेक्टिंग, इनोवेटिंग, ट्रांसफॉर्मिंग’. यह शहर में आयोजित किए गए कई अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में से एक था. आईसीसीए (इंटरनेशनल कांग्रेस एंड कन्वेंशन एसोसिएशन) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और कार्यक्रमों की मेज़बानी के लिए इसे अफ्रीका में दूसरे सबसे लोकप्रिय गंतव्य स्थान का दर्ज़ा दिया गया. एक बड़ी वज़ह जिसने किगाली को पसंदीदा गंतव्य बनाया, वो थी वहां पहुंचने पर रवांडा की आसान वीज़ा प्रक्रिया और इस शहर को दुनिया से जोड़ने वाली कई उड़ानें.

साल 2018 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के प्रमुख एरिक सोलहेम ने किगाली का “धरती पर सबसे स्वच्छ शहर” के रूप में उल्लेख किया जिसकी मुख्य वज़ह यह थी कि यहां की सड़कों पर नाम मात्र का कचरा नहीं था और सरकार ने शहर में हरियाली सुनिश्चित करने के लिए कई पहल किए थे.

हालांकि, किगाली को लेकर जारी चर्चा के बीच जिस बात का बेहद कम ज़िक्र होता है वह यह है कि इस शहर को अफ्रीका के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में पहचान दिलाने के लिए भारी बदलाव किया गया. साल 2018 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के प्रमुख एरिक सोलहेम ने किगाली का “धरती पर सबसे स्वच्छ शहर” के रूप में उल्लेख किया जिसकी मुख्य वज़ह यह थी कि यहां की सड़कों पर नाम मात्र का कचरा नहीं था और सरकार ने शहर में हरियाली सुनिश्चित करने के लिए कई पहल किए थे. जिन लोगों ने हाल ही में किगाली का दौरा किया है उन्होंने यहां की स्वच्छता और साफ-सफाई की खूब सराहना की, जिस परंपरा को इस शहर ने अभी तक बचा कर रखा है. दरअसल शहरी बदलाव को लेकर किगाली एक विश्व प्रतीक बन चुका है. 

सवाल है कि किगाली ने यह बदलाव कैसे हासिल किया? इस सदी के आख़िरी सालों में किगाली किसी भी दूसरे शहर की तरह था जिसमें बहुत सारे लोग, झुग्गी-झोपड़ी और ढ़ेर सारा कचरा भरा रहता था. राजधानी में तेजी से बढ़ती आबादी ने तरक्की के रास्ते में ढेर सारे रोड़े बिछा रखे थे. साल 1996 में लगभग 350,000 से,शहर में आज लगभग 1.2 मिलियन लोग निवास कर रहे हैं और यह तादाद बढ़ती ही जा रही है. आबादी में आई इस अचानक उछाल के चलते अंधाधुंध घर बनाए जाने लगे जिससे अनौपचारिक बस्तियों में लगातार बढ़ोतरी होने लगी. हालांकि इस सदी के पहले दशक के अंत में, शहर के अधिकारियों ने राष्ट्रीय सरकार के समर्थन के साथ,शहर में आमूल-चूल परिवर्तन करने का फैसला किया. साल 2008 में इस शहर ने इस दिशा में सबसे पहला कदम उठाते हुए शहर में सिंगल यूज़ वाले प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगा दिया. इतना ही नहीं,शहर में प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्री को भी प्रतिबंधित कर दिया गया. किगाली के लोगों को काग़ज,लिनन,केले के पत्ते और पेपीरस जैसी सड़ सकने वाली सामग्री से बने बैग का इस्तेमाल करने को कहा गया. साथ ही इन नियमों को तोड़ने के लिए गंभीर दंड का प्रावधान किया गया और यहां तक ​​कि क़ानून को तोडने के चलते जेल की सजा का भी प्रावधान कर दिया गया था. साथ ही सरकार ने उद्यमियों से परमिशिबल पैकेजिंग मटेरियल बनाने के लिए सुविधाओं को बढ़ाने के लिए कहा. स्थानीय प्रशासन ने भी शहर में वानिकी और वृक्षारोपण पहल के साथ शहर को हरा-भरा बनाने का बीड़ा उठाया.

उमुगंडा का कड़ाई से पालन


स्वच्छता के प्रयास में स्थानीय समुदायों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हर महीने के आख़िरी शनिवार को किगाली के लोग ‘उमुगंडा‘ का पालन करते हैं – जो समुदाय स्वयं सहायता और सहयोग अभ्यास से जुड़ा है. पारंपरिक रवांडा संस्कृति में समुदाय के सदस्य अपने परिवार,दो स्तों और पड़ोसियों से एक कठिन काम को पूरा करने में उनकी मदद मांगते हैं. इसी प्रकार, किगाली के लोग भी अपने शहर के इलाक़ों को साफ करते हैं, आसपास पड़े किसी भी तरह के कचरे को उठाते हैं. यह भागीदारी नई सड़कों के निर्माण, सामुदायिक बगीचों के लिए ज़मीन को साफ़ करने और उन परिवारों के लिए नई कक्षाओं या आवासीय शौचालयों के निर्माण तक भी जाती है जिन परिवारों के पास शौचालय नहीं है. उमुगंडा के दौरान शहर में दुकानें बंद रहती हैं और इस अभियान को सुविधाजनक बनाने के लिए कारें भी इस दिन सड़कों से नदारद रहती हैं. किगाली ने ‘उमुगंडा’ में लोगों की हिस्सेदारी को अनिवार्य कर दिया है और इसमें भाग ना लेने पर भारी जुर्माना लग सकता है. प्रवर्तन के अलावा वहां के अधिकारी स्वच्छता को किगाली की संस्कृति का हिस्सा बनाने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाते रहते हैं. ख़ूबसूरती की दृष्टि से डिज़ाइन किए गए कूड़ेदानों को सार्वजनिक स्थानों पर रखा जाता है जिसमें फुटपाथ, ख़रीदारी क्षेत्र और परिवहन केंद्र शामिल होता है.



उमुगंडा के दौरान शहर में दुकानें बंद रहती हैं और इस अभियान को सुविधाजनक बनाने के लिए कारें भी इस दिन सड़कों से नदारद रहती हैं. किगाली ने ‘उमुगंडा’ में लोगों की हिस्सेदारी को अनिवार्य कर दिया है और इसमें भाग ना लेने पर भारी जुर्माना लग सकता है.

2009 में शहर के अधिकारियों ने स्वच्छता अभियान के दौरान महसूस किया कि शहर के कुछ इलाक़े बेतरतीब तरीक़े से विकसित हुए हैं. लिहाज़ा राजधानी में कुछ ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता थी जिसके लिए अधिक सड़कें, हरे-भरे इलाक़े और फिर से भूमि के उपयोग को बढ़ाने की ज़रूरत थी. इस मक़सद को पूरा करने की दिशा में उन्होंने सबसे पहले नई सड़कों और बेहतर आवास सुविधा निर्माण के लिए ख़राब बने हुए और ख़राब सेवा वाली मलिन बस्तियों और अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने का काम शुरू किया लेकिन इससे प्रशासन को झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा जो इस कार्रवाई से विस्थापित हो गए थे. इसलिए विस्थापित आबादी को फिर से बसाने और उनके नुक़सान की भरपाई करने के लिए सरकार को एक कार्यक्रम शुरू करना पड़ा.

प्रारंभिक अनुभवों ने अधिकारियों को किगाली के लिए एक अधिक व्यापक मास्टर प्लान तैयार करने की ज़रूरत पर बल दिया जिसमें शहर के कई पहलुओं को शामिल किया गया और फिर से इंजीनियरिंग-पर्यावरण, परिवहन, ट्रैफिक की भीड़, रास्तों पर लगे बोर्ड और सामाजिक समावेशन की ज़रूरत सामने आई. ट्रैफिक की भीड़ को कम करने के लिए रवांडा सरकार ने संकरी गलियों को पक्का करने, सभी मुख्य सड़कों को दोहरी करने और रास्तों पर लगे बोर्ड को नवीनीकृत करने के लिए 76 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया. इतना ही नहीं शहर के उपनगरों और शहर के केंद्र के बीच बस सेवाओं को भी सुधारा गया,जिससे नागरिकों को सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया गया. स्थानीय प्रशासन ने भी मिनी बसों और कारों को केंद्रीय शहर के क्षेत्रों में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया. रवांडा सरकार ने गीले इलाक़ों से हटा कर नए बनाए गए विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) में कारखानों को ले जाने के लिए 40 मिलियन अमेरिकी डॉलर ख़र्च किए. सफाई अभियान से विस्थापित हुए कई अन्य व्यवसायों को मुआवजा और पुनर्वास में सहायता प्रदान की गई. हालांकि अनधिकृत लोगों को ऐसी कोई सहायता सरकार की तरफ से नहीं मिली.

 ट्रैफिक की भीड़ को कम करने के लिए रवांडा सरकार ने संकरी गलियों को पक्का करने, सभी मुख्य सड़कों को दोहरी करने और रास्तों पर लगे बोर्ड को नवीनीकृत करने के लिए 76 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया.

ड्यूटी पर मुस्तैद सफाईकर्मी


दुनिया भर के कई शहरों ने स्वच्छता की दिशा में प्रयास किए हैं और इस प्रक्रिया में शुरुआत में काफी प्रगति देखी गई है लेकिन स्वच्छता एक ऐसा प्रयास है जो लगातार आगे बढ़ाया जाना चाहिए. हालांकि, कई शहरों के लिए ऐसा प्रयास काफी चुनौतीपूर्ण रहा है जो स्वच्छता के निम्न स्तर पर पहुंच चुके हैं. उल्लेखनीय बात यह है कि किगाली दिन-ब-दिन साफ-सुथरा और चमकता जा रहा है. किगाली अब और ख़ूबसूरत दिखता है क्योंकि यहां सड़कों के बीच में फूल की क्यारियां हैं, नए बगीचे, ज़्यादा हरियाली दिखती है तो सड़कों, फुटपाथों और सार्वजनिक स्थानों को साफ बनाए रखने के लिए शिफ्ट में काम करने वाले सफाई-कर्मी नज़र आते हैं.

स्वच्छता के मक़सद को पूरा करने के लिए सख़्त कार्यान्वयन के बावज़ूद इसका अंतिम नतीजा यह रहा है कि स्वच्छता की यह परंपरा ज़्यादातर नागरिकों के लिए उनकी दूसरी प्रकृति बन गई है और अब यह नागरिक जीवन का एक स्वीकृत तरीक़ा हो गया है.


इस संबंध में सरकार द्वारा शहर को स्वच्छ रखने के अपने संकल्प को अमल में लाने की जिद दिखती है. अधिकारियों ने वास्तव में अनौपचारिक बस्तियों को साफ करने, गीली ज़मीन से कारखानों को दूर हटाने और बिना किसी विरोध के ‘उमुगंडा’ को लागू करने में सख़्ती का पालन किया है. कुछ ने तो ‘उमुगंडा’ की पहल को ज़बरन मज़दूरी तक करार दे दिया. कई मायनों में आलोचकों ने किगाली में हुए बदलाव को हौसमैन के पेरिस के नवीनीकरण के कारण हुए सामाजिक व्यवधान की तरह ही बताया, जिसके तहत कई घरों को तोड़ने की वज़ह से बड़ी संख्या में ग़रीबों को विस्थापित होना पड़ा था. हालांकि, यह भी सच है कि किगाली के अधिकारियों द्वारा ग़रीबों को फिर से बसाने और कारखानों के लिए मुआवजे के साथ वैकल्पिक जगह उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही है. स्वच्छता के मक़सद को पूरा करने के लिए सख़्त कार्यान्वयन के बावज़ूद इसका अंतिम नतीजा यह रहा है कि स्वच्छता की यह परंपरा ज़्यादातर नागरिकों के लिए उनकी दूसरी प्रकृति बन गई है और अब यह नागरिक जीवन का एक स्वीकृत तरीक़ा हो गया है.


अन्य शहरों के लिए किगाली से क्या सबक मिलता है?

 इसे लेकर तीन चीजें बेहद अहम हैं:

1. स्वच्छता के लिए एक व्यापक योजना होनी चाहिए जिससे उचित भूमि का इस्तेमाल कर सार्वजनिक स्वच्छता के हर चीज को एक साथ लागू किया जा सके. केवल कचरा उठाना ही काफी नहीं होता है. शहर को एक क्रम में व्यवस्थित करना होता है जिससे स्वच्छता का काम सही ढ़ंग से हो सके.

2. इस काम की व्यापकता ऐसी है कि सख़्ती ज़रूरी है जिससे हर कोई इसे अपने जीवन का मक़सद बना सके और सरकार के मक़सद को पूरा करने में अपना सहयोग दे सके. ऐसा इसलिए है क्योंकि हर कोई रोज कचरा पैदा करता है; लिहाज़ा शहर को साफ करने की ज़िम्मेदारी में सभी की हिस्सेदारी होनी ही चाहिए.

3. इसके साथ ही कोशिशें निरंतर की जानी चाहिए जिससे शहर के लोग फिर से वो ना कर सकें जिसके चलते शहर की स्वच्छता कभी ख़त्म हो गई थी.

किगाली यह भी बताती है कि स्वच्छता के पुरस्कार बहुआयामी होते हैं. शहर व्यवसायों, सम्मेलनों और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन के लिए अत्यधिक मांग वाले गंतव्य में बदल गया है, जिससे शहर और देश का तेजी से आर्थिक विकास हुआ है.

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