Published on Jul 10, 2021 Updated 0 Hours ago

आर्थिक सलाहकार परिषद में रघुराम राजन, एस्थर डफ्लो,आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्मयम,विकासवादी अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ और पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव एस.नारायण शामिल हैं

पांच मशहूर आर्थिक विशेषज्ञों का तमिलनाडु में प्रवेश, अन्य राज्यों के लिए उदाहरण – सावधानी से कर सकते हैं अमल

धीरे धीरे लोगों के ज़हन से उतर रही एनिड ब्लाइटन के शब्दों में कहें तो,पांच मशहूर आर्थिक जानकार तमिलनाडु पहुंचे हैं,जिससे वो इस दक्षिणी राज्य की सरकार को अपनी अर्थव्यवस्था सुधारने में मदद कर सकें. तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के मुताबिक़,इस संस्था का नाम है आर्थिक सलाहकार परिषद.इसमें रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन,नोबल पुरस्कार विजेता एस्थर डुफ्लो,भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्मयम,विकासवादी अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ और पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव एस.नारायण शामिल हैं.

ये पांच मशहूर हस्तियां आर्थिक मामलों के महारथी हैं, जो अकादेमिक क्षेत्र से लेकर नीतिगत क्षेत्र से ताल्लुक़ रखते हैं.हर शख़्स अपनेअपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं.सभी के पास ऐसा ज्ञान है जिसका उनके जैसे विशेषज्ञों ने विश्लेषण किया है.या फिर,उनके पास असरदार नीतिगत क़दम के अनुभव हैं.तमिलनाडु की सरकार को इन सबके साथ मिलकर मज़बूती से काम करना चाहिए,जिससे उनकी सबसे बेहतरीन ख़ूबियों का ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाया जा सके.लेकिन,इन विशेषज्ञों के वैचारिक झुकावों,राजनीतिक पसंद,और इन पांच मशहूर लोगों में से कुछ के द्वारा अपने सार्वजनिक पद का इस्तेमाल करते हुए वैचारिक संघर्ष करने की आदत को देखते हुए,सरकार को इनके साथ काम करते हुए बहुत सावधान रहने की ज़रूरत होगी और उनके मशविरों को पर्याप्त सावधानी से स्वीकार करना होगा.वहीं दूसरी तरफ़,परिषद को भी ध्यान रखना होगा कि वो सत्ता का एक वैकल्पिक केंद्र न बन जाए.उसे बड़े दांव वाले मुद्दों को अपनी शोहरत बढ़ाने मात्र के लिए अपने क़ाबू में रखने से भी बचना होगा.मशहूर होना एक अधिकार है,और जैसा कि कई लोगो ने ये साबित भी किया है कि अधिकारों से अहंकार पैदा होता है.

ये पांच मशहूर हस्तियां आर्थिक मामलों के महारथी हैं, जो अकादेमिक क्षेत्र से लेकर नीतिगत क्षेत्र से ताल्लुक़ रखते हैं.हर शख़्स अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं.सभी के पास ऐसा ज्ञान है जिसका उनके जैसे विशेषज्ञों ने विश्लेषण किया है.या फिर,उनके पास असरदार नीतिगत क़दम के अनुभव हैं.

केंद्र और राज्य के बीच संतुलन

पर,बड़ी तस्वीर इन व्यक्तियों के बारे में नहीं है.ये तो तमिलनाडु राज्य के बारे में भी नहीं है.असल में बात एक संस्था की है.तमिलनाडु आर्थिक सलाहकार परिषद एक ऐसा संगठन है,जिसकी लंबे समय से ज़रूरत थी,जिससे आर्थिक विशेषज्ञता को राजनीतिक लक्ष्यों और नीतिगत क़दमों से जोड़ा जा सके.एक वाक्य में कहें,तो ये बौद्धिक ताक़तों के राज्य स्तरीय अपेक्षाओं और केंद्र सरकार को मुख्य शक्ति मानते हुए,इनके दायरों में रहकर काम करना होगा.इन दोनों ताक़तों से ये उम्मीद की जाती है कि वो आपसी तालमेल से ऐसा आर्थिक संतुलन बनाएंगी,जो राज्य को ताक़तवर बनाने के साथ-साथ केंद्र को भी मज़बूत बनाएगा; मतलब एक हिस्सा संपूर्णता को सहयोग देगा.परिषद का निर्माण एक अच्छी ख़बर है,और तीन कारणों से बहुत बढ़िया शुरुआत है.

पहला,परिकल्पना: इससे बड़ी आर्थिक संरचनाओं को तमाम ऐसे विषयों पर अपनी राय रखने का मौक़ा मिलेगा,जो अर्थव्यवस्था से आगे की चीज़ हैं.ध्यान भटकाने की अन्य सभी बातों से इतर,अर्थव्यवस्था वो आधार है,जिससे अन्य सभी ताक़तें पैदा होती हैं.ख़ास तौर से कल्याणकारी योजनाएं समृद्धि नहीं,तो कल्याण नहीं.लेकिन,चुनाव के वक़्त मुफ़्त देने की राजनीति करते हुए,राज्यों की सभी आर्थिक विषयों पर केंद्र सरकार पर निर्भरता की व्यवस्था को कभी न कभी टूटना ही है.इसीलिए,ये ज़रूरी है कि राज्य सरकारें अपने क़दमों पर खड़ी हों और अपनी आर्थिक शक्ति को गहरा और व्यापक बनाएं.कृषि से लेकर निर्माण,ज़मीन से लेकर स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील विषय,और तकनीक से लेकर संसाधन तक के ज़मीनी नियमन के अधिकार राज्यों के पास हैं.इनमें कार्यकुशलता लाना राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है और तमिलनाडु में परिषद का गठन एक अच्छी शुरुआत है.

अब जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था 10 ख़रब डॉलर की ओर बढ़ रही है,तो थिंक-टैंक की संख्या भी बढ़ेगी. इनमें से ज़्यादातर निजी होंगे और कुछ सरकार के दायरे में भी होंगे.लेकिन,इनका अधिक झुकाव और स्थान राज्यों में होगा,जहां कुछ ख़ास चुनौतियों से निपटने के लिए इनकी विशेषज्ञता का फ़ायदा उठाया जाएगा.

दूसरी,संरचनात्मक: इससे विशेषज्ञों के लिए राज्यों के दरवाज़े खुले हैं. केंद्र सरकार तो नियमित रूप से विशेषज्ञों को सलाह मशविरे के लिए आमंत्रित करती है और वो वित्त-मंत्रालय व प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करते हैं.जैसे कि मुख्य आर्थिक सलाहकार,रिज़र्व बैंक के गवर्नर,शेयरों से जुड़ी नियामक संस्थाओं के अध्यक्ष,बीमा और पेंशन क्षेत्र में बाहर से विशेषज्ञ आते रहे हैं.संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे की सरकार के एक दशक के कार्यकाल में,प्रधानमंत्री को मुख्य रूप से कल्याणकारी विषयों पर सलाह देने के लिए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन किया गया था. प्रशासन में ज्ञान और अनुभव के सहयोग के लिए अलग-अलग क्षेत्रों के बेहतरीन विशेषज्ञों को साथ लाना एक अच्छा क़दम है.यहां पर राज्यों को दो बातों के प्रति सावधान रहना होगा.पहला,कुछ ऐसे विशेषज्ञ भी हो सकते हैं,जो डींग हांकने की ऐंठ वाले हों.बिना संबंधित ज़िम्मेदारी,जवाबदेही या बंधन के,वो अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर सार्वजनिक बयानबाज़ी करते हों.दूसरी बात ये है कि ये एक्सपर्ट अक्सर गहरी जड़ें जमाए बैठे अफ़सरों से तालमेल नहीं बिठा पाते हैं. तो,अफ़सरशाही से टकराव की स्थिति में तो सरकारों को चाहिए कि वो इन विशेषज्ञों के साथ खड़ी हो. मगर,उन्हें ऐंठ दिखाने या ग़ैरज़िम्मेदाराना बयान देने से रोकने पर चेतावनी दे.इसके लिए नॉन डिस्क्लोज़र या बातें सार्वजनिक न करने के समझौते किए जा सकते हैं.

और तीसरी,भौगोलिक:दुनिया के क़ाबिल लोगों का दायरा नॉर्थ ब्लॉक या केंद्रीय सचिवालय से बाहर भी फैलना चाहिए.अब तक ऐसे सभी वैश्विक विशेषज्ञों को केंद्र सरकार ने ही अपने साथ जोड़ा है.राज्य सरकारें इसमें दोयम दर्जे की भूमिका ही निभाती रही हैं.या फिर वो निवेश या बाज़ार के लिए एक दूसरे से मुक़ाबला करती रही हैं क़ाबिल लोग जोड़ने के लिए नहीं.अब चूंकि ख़ुद राज्यों की अर्थव्यवस्था बड़ी हो रही है,उसमें जटिलता आ रही है,तो ये विशेषज्ञता केंद्र से राज्यों की ओर भी जानी चाहिए.तमिलनाडु की आर्थिक सलाहकार परिषद,उसी दिशा में उठा क़दम है.ख़राब से ख़राब स्थिति भी हुई, तो ये सलाहकार परिषद यथास्थिति को चुनौती देगी और मौजूदा नीतियों और संरचनाओं पर सवाल उठाएगी.अच्छी से अच्छी सूरत में ये परिषद तेज़ विकास दर के लिए तर्क देगी,या फिर जैसा कि इस मामले में है कि ये अत्यधिक जनकल्याण को बढ़ावा देगी,जिससे महंगाई दर बढ़ेगी और ग़रीबों को चोट लगेगी.वास्तविक स्थिति और सच शायद इन दोनों के बीच होंगे,जो इस बात पर निर्भर करेंगे कि राज्य सरकार परिषद के मशविरों को किस हद तक मानती है,या उनकी अनदेखी करती है.

बढ़ती अर्थव्यस्था में थिंक-टैंक की भूमिका

जब भारतीय अर्थव्यवस्था 1 ख़रब डॉलर से बढ़कर 3 ख़रब डॉलर की हुई, तो थिंक-टैंक की संख्या में भी विस्तार हुआ है. अब जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था 10 ख़रब डॉलर की ओर बढ़ रही है,तो थिंक-टैंक की संख्या भी बढ़ेगी. इनमें से ज़्यादातर निजी होंगे और कुछ सरकार के दायरे में भी होंगे.लेकिन,इनका अधिक झुकाव और स्थान राज्यों में होगा,जहां कुछ ख़ास चुनौतियों से निपटने के लिए इनकी विशेषज्ञता का फ़ायदा उठाया जाएगा.जैसे कि ज़िला विशेष के कौशल और ज़रूरत को देखते हुए ग़रीबी का प्रबंधन या जनता को समृद्ध बनाने के लिए टीम का गठन.अगर कोई टीम बनाई जाती है,तो एक तिहाई विशेषज्ञ,शीर्ष के तीन ज़िलों पर ध्यान दे सकते हैं;एक तिहाई सबसे ग़रीब तीन ज़िलों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं;और बाक़ी के लोग बीच की संभावनाएं तलाश सकते हैं.

राज्यों के बीच छह ऐसे हैं,जिनकी अर्थव्यवस्था दस लाख करोड़ रुपयों से बड़ी है. इन राज्यों के आर्थिक विकास से ही देश की GDP10 ख़रब डॉलर तक पहुंच सकती है.ऐसा होने के लिए इन सभी छह राज्यों को इंडोनेशिया बनने की आकांक्षा पालनी होगी,मतलब कि हर राज्य अपनी अर्थव्यवस्था को एक ख़रब डॉलर कुल घरेलू उत्पाद (NDP)तक पहुंचाने का लक्ष्य रखे.अभी अपनी 224 अरब डॉलर की नेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (NDP)के साथ तमिलनाडु देश में दूसरे स्थान पर है.उसे 1ट्रिलियन डॉलर NDP का लक्ष्य पाने के लिए हर साल 16.1प्रतिशत की दर से विकास करना होगा.दूसरा राज्य है है महाराष्ट्र (NSDP: 335 अरब डॉलर,1 ख़रब डॉलर तक पहुंचने के लिए विकास दर चाहिए: 11.5 प्रतिशत);उत्तर प्रदेश (202 अरब डॉलर,17.3 फ़ीसद); कर्नाटक (199 अरब डॉलर,17.5 प्रतिशत);गुजरात (198 अरब डॉलर,17.6 फ़ीसद); और पश्चिम बंगाल (156 अरब डॉलर,20.5प्रतिशत विकास दर)

इनमें से कोई भी राज्य,पहले की नीतियों का विस्तार करके 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था नहीं बन सकता है.राज्य सरकारों को ये लक्ष्य पाने के लिए नए विचारों,नई कुशलताएं लागू करने और ख़ुद को नई संस्थाओं के ज़रिए अभिव्यक्त करने की ज़रूरत होगी.तमिलाडु की आर्थिक सलाहकार परिषद,इनमें से ही एक क़दम है.मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन,और वित्त मंत्री पीटीआर पलानिवेल त्यागराजन को ये सुनिश्चित करना होगा कि वो पांच विशेषज्ञों वाली इस परिषद से बेहतरीन सलाह लेकर उन्हें आर्थिक नीतियों के ज़रिए जनता तक पहुंचाएं.अन्य राज्यों को भी तमिलनाडु का मॉडल अपनाना चाहिए और केंद्र सरकार को भी इन सभी अनुभवों का लाभ लेकर उसे राष्ट्र के लिए इकट्ठा करना चाहिए.

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