विश्व एड्स दिवस 2023, जिसकी थीम “समुदायों को नेतृत्व करने दो” थी, के अवसर पर ये ज़रूरी है कि HIV/एड्स महामारी से लड़ाई में भारत के अब तक के सफर पर गौर करें. 1986 में भारत के पहले दर्ज HIV केस से लेकर अब तक भारत ने नए संक्रमण में काफी कमी देखी है. ये भारत की मज़बूत सार्वजनिक स्वास्थ्य की रणनीति का सबूत है. लेकिन इस प्रगति के केंद्र में HIV/एड्स को लेकर भारत की रणनीति का समुदाय प्रेरित दृष्टिकोण है. भारत के अनुभव में स्वास्थ्य संकट को लेकर समुदाय के सशक्तिकरण की वैश्विक नैरेटिव की गूंज सुनाई देती है. ये बताता है कि कैसे स्थानीय नेतृत्व, सामुदायिक संगठन और समर्थन मुहैया कराने वाले नेटवर्क HIV/एड्स के ख़िलाफ असरदार उपायों को तैयार करने और उन्हें लागू करने में मददगार रहे हैं.
भारत के अनुभव में स्वास्थ्य संकट को लेकर समुदाय के सशक्तिकरण की वैश्विक नैरेटिव की गूंज सुनाई देती है. ये बताता है कि कैसे स्थानीय नेतृत्व, सामुदायिक संगठन और समर्थन मुहैया कराने वाले नेटवर्क HIV/एड्स के ख़िलाफ असरदार उपायों को तैयार करने और उन्हें लागू करने में मददगार रहे हैं.
समुदाय के नेतृत्व में इन पहलों, जो कि भारत के विविधता से भरे सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य को लेकर संवेदनशील हैं, ने HIV के मामलों में महत्वपूर्ण कमी में योगदान दिया है और ये रोकथाम, टेस्टिंग और इलाज की सेवाओं के साथ हाशिये पर मौजूद लोगों और ज़्यादा जोखिम वाले समूहों तक पहुंचने में निर्णायक रहे हैं. इस साल विश्व एड्स दिवस मनाते समय समुदाय की इन आवाज़ों को मज़बूत करने और उन्हें तेज़ करने पर ध्यान दिया गया ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि वो HIV/एड्स के ख़िलाफ़ भारत की मौजूदा लड़ाई में सबसे आगे बने रहें.
भारतीय दवा उद्योग HIV/एड्स के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई में समुदायों को सशक्त करने में एक बुनियाद रहा है जिसका उदाहरण सिप्ला जैसी कंपनियां हैं. 2001 में एक ऐतिहासिक कदम के तहत सिप्ला ने विकासशील देशों को काफी कम कीमत पर एंटीरेट्रोवायरल (ARV) दवा देने की पेशकश की और इस तरह HIV के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव आया. ये निर्णायक पल न सिर्फ दवा को लेकर परिदृश्य में बहुत बड़ा बदलाव साबित हुआ बल्कि इसने सामुदायिक स्वास्थ्य से जुड़ी पहलों को भी काफी समर्थन दिया. इसने ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले संगठनों, स्थानीय NGO और स्वास्थ्य कर्मियों को अपने समुदायों के भीतर, ख़ास तौर पर सीमित संसाधन वाले हालात में, असरदार ढंग से इन महत्वपूर्ण दवाओं को बांटने में सक्षम बनाया. सिप्ला का कदम उद्योग के इनोवेशन और सामुदायिक स्वास्थ्य की कोशिशों के बीच करीबी संबंध पर ज़ोर देता है, ये दिखाता है कि किस तरह किफायती स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े समाधान HIV/एड्स जैसे स्वास्थ्य संकट से लड़ाई में समुदाय के उबरने की क्षमता को बढ़ा सकते हैं.
HIV/एड्स के ख़िलाफ़ भारत की प्रगति
समय बीतने के साथ HIV/एड्स महामारी को लेकर भारत की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण प्रगति के नैरेटिव को दिखाती है जो लक्ष्य आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों और मज़बूत सामुदायिक भागीदारी पर आधारित है. 1986 में HIV के पहले दर्ज मामले से लेकर अब तक भारत ने HIV के फैलाव में धीरे-धीरे लेकिन लगातार कमी देखी है. 90 के दशक के आख़िर में HIV का प्रसार चरम पर पहुंचने के बाद मौजूदा समय में ये ज़्यादा नियंत्रित हालात में है और फिलहाल लगभग 24 लाख लोगों को HIV/एड्स है. वयस्कों में HIV का प्रसार 2002 में सबसे ज़्यादा 0.41 प्रतिशत था. 2011 तक वयस्कों में HIV के नए संक्रमण के मामलों में 57 प्रतिशत कमी का अनुमान लगाया गया और ये साल 2000 के 2,74,000 से घटकर 1,16,000 हो गया. हाल के वर्षों में HIV/एड्स के ख़िलाफ़ लगातार प्रगति दर्ज की गई है. 2021 के आंकड़ों के मुताबिक भारत की वयस्क आबादी में HIV का प्रसार 0.2 प्रतिशत था. इसी वर्ष HIV के 63,000 नए इन्फेक्शन दर्ज किए गए और 42,000 एड्स से जुड़ी मौतें हुईं.
जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, महामारी की बदलती गतिशीलता के मुताबिक उसका बदलाव उल्लेखनीय रहा है. ज़्यादा जोख़िम वाले समूहों पर ध्यान, निगरानी में बढ़ोतरी और HIV से जुड़ी सेवाओं को व्यापक स्वास्थ्य प्रणाली के साथ जोड़ना महामारी के प्रबंधन के लिए एक व्यापक नज़रिया दिखाता है.
1992 में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) की स्थापना एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई और इसने मिल-जुलकर राष्ट्रीय प्रतिक्रिया को प्रेरित किया. इस पहल में बहुआयामी रणनीतियां जुड़ी थीं जिनमें जागरूकता अभियान, सुरक्षित व्यवहार को बढ़ावा और एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) तक बेहतर पहुंच शामिल हैं. इसने नए संक्रमणों में महत्वपूर्ण कमी लाने में योगदान दिया. इस यात्रा में सामुदायिक पहल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले संगठनों, स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों एवं सामुदायिक नेताओं ने सूचनाओं के प्रसार, HIV/एड्स को लेकर लोगों की सोच (स्टिग्मा) और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच, विशेष रूप से दूर-दराज के क्षेत्रों में, उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाई है.
जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, महामारी की बदलती गतिशीलता के मुताबिक उसका बदलाव उल्लेखनीय रहा है. ज़्यादा जोख़िम वाले समूहों पर ध्यान, निगरानी में बढ़ोतरी और HIV से जुड़ी सेवाओं को व्यापक स्वास्थ्य प्रणाली के साथ जोड़ना महामारी के प्रबंधन के लिए एक व्यापक नज़रिया दिखाता है. सामुदायिक नेतृत्व वाली पहल को लेकर लगातार प्रतिबद्धता और सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियां इन कोशिशों को बनाए रखने और 2030 तक एड्स महामारी को ख़त्म करने के लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण होंगी.
बाकी चुनौतियां
उल्लेखनीय प्रगति करने के बावजूद HIV/एड्स के प्रबंधन में भारत की यात्रा में कई चुनौतियां बनी हुई हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के वैश्विक HIV कार्यक्रम के अनुसार 2022 में दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्र में HIV के साथ जीने वाले लोगों में से केवल 81 प्रतिशत को अपनी स्थिति के बारे में पता था और 65 प्रतिशत को इलाज मिल रहा था जबकि 61 प्रतिशत के शरीर में HIV का स्तर बहुत कम (सप्रेस्ड वायरल लोड) था जिसकी वजह से उनकी स्थिति में सुधार की और ज़्यादा गुंजाइश थी. दक्षिण-पूर्व एशिया में 2022 में लगभग 1,10,000 नए HIV इन्फेक्शन के मामले आए जो कि 2010 में 1,000 असंक्रमित आबादी में 0.12 को संक्रमण से घटकर 2022 में 0.06 को संक्रमण हो गया. ये एक उल्लेखनीय कमी थी. इसी तरह भारत में इन्फेक्शन के मामले 1997 में सबसे ज़्यादा थे. उस वक्त पुरुषों की 1,00,000 आबादी में 38 इन्फेक्शन के मामले थे जबकि महिलाओं की 1,00,000 आबादी में 27.6 मामले थे जो घटकर अब क्रमश: 5.4 और 4.6 हो गए हैं. इन्फेक्शन के मामलों में ये कमी बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों और जागरूकता कार्यक्रम के असर के बारे में बताता है.
भारत में LGBTQ समुदाय HIV/एड्स के संदर्भ में अलग तरह की चुनौतियों का सामना करता है जो सामाजिक कलंक (स्टिग्मा), भेदभाव और कानूनी बाधाओं के ज़रिए तैयार होती हैं. प्रगतिशील कानूनी सुधारों के बावजूद LGBTQ समुदाय के ज़्यादातर लोग अभी भी स्वास्थ्य देखभाल, जिनमें HIV टेस्टिंग और इलाज शामिल हैं, के मामले में बाधाओं का सामना करते हैं..
हालांकि नए संक्रमण की दर विभिन्न उम्र समूहों और लिंगों में अलग-अलग दिखी है जो इस महामारी को लेकर जटिलता के बारे में बताती है. कम उम्र की लड़कियां और उम्रदराज महिलाएं विशेष रूप से असुरक्षित समूह के तौर पर उभरी हैं जो ग़रीबी, कम पढ़ाई-लिखाई और यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य (सेक्शुअल एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ) से जुड़ी सेवाओं तक सीमित पहुंच जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक फैक्टर के असर को उजागर करती हैं. ये फैक्टर असुरक्षा और जोखिम को बढ़ाने में योगदान देते हैं जिसकी वजह से इन असमानताओं का असरदार ढंग से समाधान करने के लिए ज़रूरत के मुताबिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है. नए संक्रमण की दरों में अंतर का ये रुझान बारीक समझ और प्रतिक्रिया की मांग करता है जो अलग-अलग आबादी के वर्गों की आवश्यकताओं से जुड़ी हो.
भारत में LGBTQ समुदाय HIV/एड्स के संदर्भ में अलग तरह की चुनौतियों का सामना करता है जो सामाजिक कलंक (स्टिग्मा), भेदभाव और कानूनी बाधाओं के ज़रिए तैयार होती हैं. प्रगतिशील कानूनी सुधारों के बावजूद LGBTQ समुदाय के ज़्यादातर लोग अभी भी स्वास्थ्य देखभाल, जिनमें HIV टेस्टिंग और इलाज शामिल हैं, के मामले में बाधाओं का सामना करते हैं. उनकी आवश्यकता के मुताबिक सीमित यौन स्वास्थ्य शिक्षा और उनकी यौन प्रवृत्ति (सेक्शुअल ओरिएंटेशन) एवं HIV की स्थिति से जुड़े व्यापक लांछन की वजह से इन बाधाओं में और बढ़ोतरी होती है. ये स्थिति समुदाय आधारित जागरूकता कार्यक्रमों, समावेशी स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए कानूनी समर्थन जैसे लक्ष्य आधारित हस्तक्षेपों की मांग करती है. इन चुनौतियों को हल करना भारत में HIV/एड्स को लेकर एक प्रभावी जवाब देने के लिए महत्वपूर्ण है. इससे ये सुनिश्चित किया जा सकता है कि LGBTQ समुदाय समानता पर आधारित स्वास्थ्य देखभाल और समर्थन हासिल कर सके जो कि इस महामारी को रोकने के व्यापक लक्ष्य के लिए अटूट है.
नीति और रोकथाम की रणनीतियां
विश्व एड्स दिवस 2023 के अवसर पर हमारे लिए आवश्यकता के मुताबिक नीति और रोकथाम की रणनीतियों पर ध्यान देना ज़रूरी है जिसे भारत को HIV/एड्स के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए हर हाल में अपनाना चाहिए. इस साल विश्व एड्स दिवस की व्यापक थीम थी “समुदायों को नेतृत्व करने दो” जो भारत के दृष्टिकोण से गहराई से जुड़ी है क्योंकि भारत का नज़रिया मूल रूप से समुदाय केंद्रित रहा है. वैसे लंबी छलांग लगाने के बावजूद कुछ चुनौतियां बनी हुई हैं, ख़ास तौर पर कम उम्र की लड़कियों और उम्रदराज महिलाओं जैसे असुरक्षित समूहों की आवश्यकताओं का समाधान करने में. ये चुनौतियां एक बारीक और बहुआयामी जवाब की मांग करती हैं.
असुरक्षित लोगों के लिए लक्ष्य आधारित उपाय: भारत की नीतिगत रूप-रेखा को ज़्यादा जोखिम वाले समूहों, जिनमें LGBTQ समूह, महिलाएं, किशोर एवं उम्रदराज लोग शामिल हैं, के लिए विशेष रूप से तैयार उपायों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है. इसमें यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं तक पहुंच को बढ़ाना, शिक्षा एवं जागरूकता कार्यक्रमों को बेहतर करना और देखभाल एवं सूचना के रास्ते में रुकावट बनी सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करना शामिल है.
हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करना: हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को और मज़बूत करना महत्वपूर्ण है, ख़ास तौर पर ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में. इसमें एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) के केंद्रों का विस्तार, HIV सेवाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ जोड़ना और ज़मीनी स्तर पर HIV परीक्षण एवं परामर्श सेवाओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करना शामिल है.
जागरूकता और शिक्षा को बढ़ावा: HIV/एड्स के साथ जुड़े कलंक, दुष्प्रचार और सांस्कृतिक वर्जनाओं (टैबू) का समाधान करने वाले जागरूकता अभियानों की लगातार कोशिश आवश्यक है. स्कूल, यूनिवर्सिटी और सामुदायिक समूहों को लक्ष्य बनाकर तैयार शिक्षा कार्यक्रम सटीक सूचना के प्रसार और रोकथाम के उपायों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
समावेशी नीतियों के ज़रिए समुदायों को सशक्त करना: नीतियों का लक्ष्य स्थानीय समुदायों को सशक्त करना, HIV/एड्स की रोकथाम एवं इलाज में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए उन्हें सक्षम बनाना होना चाहिए. इसमें समुदाय के नेतृत्व वाली पहलों को समर्थन, स्थानीय NGO के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना और नीति-निर्माण की प्रक्रिया में समुदाय के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना शामिल है.
पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी को बढ़ावा: सरकार और प्राइवेट सेक्टर के बीच सहयोग, जिसका उदाहरण सिप्ला जैसी कंपनियां हैं, HIV/एड्स की रोकथाम के उपायों की पहुंच और प्रभाव को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकते हैं. इस तरह की साझेदारियां इनोवेटिव समाधान, इलाज के किफायती विकल्पों और सामुदायिक स्वास्थ्य की पहल के दायरे का विस्तार कर सकती हैं.
निगरानी और समीक्षा: HIV/एड्स के ख़िलाफ़ उपायों के असर का मूल्यांकन, सुधार के क्षेत्रों की पहचान और महामारी की बदलती गतिशीलता के मुताबिक रणनीतियों को ढालने में एक मज़बूत निगरानी और समीक्षा का तौर-तरीका आवश्यक है. डेटा से प्रेरित दृष्टिकोण सही फैसले और प्रभावी ढंग से संसाधनों के आवंटन में मदद कर सकता है.
पक्ष का समर्थन (एडवोकेसी) और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत को HIV/एड्स से लड़ाई में वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य एकजुटता की वकालत और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में भागीदारी जारी रखनी चाहिए. अनुभवों एवं सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को साझा करना और वैश्विक प्रयासों से सीख असरदार नीतियों को तैयार करने में कीमती जानकारी और सहायता मुहैया करा सकती हैं.
2030 तक भारत में एड्स महामारी को ख़त्म करने की दिशा में यात्रा एक समग्र रणनीति की मांग करती है जो स्वास्थ्य देखभाल से आगे HIV/एड्स के प्रसार पर असर डालने वाली सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक बारीकियों को अपनाने तक हो. रणनीति से जुड़ी नीतियों और सक्रिय रोकथाम के उपायों को जोड़ने वाला ये व्यापक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है. ये न सिर्फ तात्कालिक स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं का समाधान करता है बल्कि महामारी में योगदान देने वाले बुनियादी सामाजिक कारकों से भी निपटता है. ऐसा करके भारत ख़ुद को असरदार ढंग से HIV/एड्स का मुकाबला करने के लिए तैयार कर सकता है. इस तरह स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में सबकी समान साझेदारी को सुनिश्चित किया जा सकता है और एक ऐसे भविष्य की तरफ लगातार बढ़ा जा सकता है जहां एड्स की विपत्ति बीते दिनों की बात हो.
ओमन सी. कूरियन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और हेल्थ इनिशिएटिव के प्रमुख हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.